भारतीय संगीत हमारी संस्कृति का सजग प्रहरी है : पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव
मिर्जा़पुर। उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख आयाम राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में नगर के एस एन पब्लिक स्कूल के सभागार में दो दिवसीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता आयोजित हुई। कार्यक्रम का शुभारम्भ देवी सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित करने के साथ हुआ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव ने कहा कि संगीत कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। देश में संस्कृति की मुख्य धरोहर शास्त्रीय संगीत ही है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत हमारे शास्त्रों से निकली ताल है। जो कि भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसको जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार भी शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है।
विशिष्ट अतिथि द्व जिला पंचायत अध्यक्ष राजू कनौजिया व नगरपालिका अध्यक्ष श्याम सुन्दर केशरी ने कहा कि शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है। संगीत और संस्कृति का संरक्षण आज की जरूरत है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत में विविध धर्म, भाषाएं, बोलियां, रीति-रिवाज़ तथा भौगोलिक विभिन्नताएं हैं, बावजूद इसके भी एक अखंड राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है।
संगीत पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। वर्तमान में भारत में बहुत से ऐसे शहर अस्तित्व में आ चुके हैं जिनका भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारतीय संगीत का संरक्षण बहुत ज़रूरी है। विद्यालय स्तर से बच्चों को संस्कृति से जुड़े विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने चाहिए। सरकार संगीत विधा को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही साथ नगर पालिका अध्यक्ष श्याम सुन्दर केशरी ने मिर्ज़ापुर शहर में आयोजित ऐसे वृहद व पारम्परिक आयोजन की सराहना की।
कार्यक्रम की सम्भागीय संयोजिका पूजा केशरी ने कहा कि वैदिक काल में संगीत के सात स्वरों का आविष्कार हो चुका था। भारतीय महाकाव्य रामायण तथा महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली एवं प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि तानसेन, स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने संगीत की उन्नति एवं विकास के लिए अत्यधिक योगदान दिया। वर्तमान में शास्त्रीय की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के अंतर्गत भारत में ख्याल, ध्रुपद, धमार, चतुरंग, तराना, ठुमरी, दादरा इत्यादि गायन शैलियां प्रचलित हैं। भारतीय संगीत एवं संस्कृति की इस धरोहर के उत्थान एवं संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
अकादमी की ओर से अतिथियों का स्वागत विभाग संयोजिका पूजा केशरी ने बुके व गीता की पुस्तिका दे कर किया।
उक्त अवसर पर विजयी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया सम्भाग में बाल, किशोर व युवा वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त अभ्यर्थियों को लखनऊ की प्रांतीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला।
निर्णायक मण्डल में प्रतापगढ़ से पुरुषोत्तम प्रसाद पाण्डेय, लखनऊ से अनंत कुमार प्रजापति, लखनऊ से ही विकास पाण्डेय, अकादमी प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ से पवन कुमार तिवारी शामिल रहे।
प्रतियोगिता के बाद अकादमी की ओर से पुरस्कार व सर्टिफिकेट का वितरण किया गया। विजयी प्रतिभागियों के हर वर्ग से प्रथम स्थान पर रहे प्रतिभागी लखनऊ में होने वाली प्रदेशस्तरीय प्रतियोगिता का हिस्सा होंगे।
जहां किशोर वर्ग गायन में हंशिका प्रथम, कन्हैया पाण्डेय द्वितीय, अर्चिता सिंह तृतीय स्थान पर रहे। तबला में हेमंत कुमार प्रथम स्थान पर रहे।
बांसुरी वादन में मयंक कुमार प्रथम, अवनद्य वाद्य में हेमंत कुमार, शास्त्रीय गायन ख्याल तराना में ऋत्विका सिंह, युवा वर्ग में पूजा बसाक प्रथम रही। अनंदिता, सिमरन मिश्रा, अकुल, वर्षा, भव्या गुप्ता, दिव्या गुप्ता, चिराग कुशवाहा, आदर्श कुमार, राजवीर शर्मा ने बेहतर प्रस्तुति दी, इनके बीच कडा़ संघर्ष रहा।
इस दौरान वरिष्ठ समाजसेवी शैलेन्द्र अग्रहरि, सिविल डिफेन्स की चीफ वार्डन डॉ मधुलिका सिंह, जिला जुडो संघ के अध्यक्ष नित्यान्द प्रसाद, अधिवक्ता अतिन गुप्ता, डॉ संतोष सिंह, हर्षित सिंह, राम आसरे कैंथवास, सुरेश केशरी सभासद अमित मिश्रा आदि रहे।
Oct 25 2024, 19:02