क्या बंद हो जाएगी मदरसों की फंडिंग?, NCPCR ने राज्यों से की रोक की मांग, बताई ये वजह*
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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिख मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है। एनसीपीसीआरने मदरसा बोर्डों को बंद करने का भी सुझाव दिया है। दरअसल, एनसीपीसीआरकी तरफ से एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में मदरसों के इतिहास और "बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका" का उल्लेख किया गया है। इसमें ये भी लिखा गया है कि मदरसों को दिया जाने वाला सरकारी फंड बंद होना चाहिए। एनसीपीसीआर के प्रमुख प्रियांक कनूनगो ने कहा, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 में बताया गया कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को प्राप्त करना सभी के लिए शिक्षा के प्रावधान के माध्यम से ही संभव है। बच्चों के मौलिक अधिकार और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार के बीच एक विरोधाभासी तस्वीर बनाई गई है। उन्होंने आगे कहा, इस संबंध में आयोग ने आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में 11 अध्याय हैं, जिसमें मदरसों के इतिहास के विभिन्न पहलुओं और बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किस तरह मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भारत के संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है। इस रिपोर्ट को बनाने के बाद एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को खत लिखा है। जिसमें सिफारिश की गई है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मदरसों को राज्य की तरफ से दिया जाने वाला वित्त पोषण बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा मदरसा बोर्ड को बंद कर दिया जाना चाहिए। आयोग ने यह भी कहा कि केवल बोर्ड का गठन करने से या यूडीआईएसई कोर्ड लेने का मतलब यह नहीं कि मदरसा आरटीई अधिनियम 2009 के प्रावधानों का पालन कर रहा है। इसलिए आयोग ने रिपोर्ट के माध्यम से यह सिफारिश की कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मदरसा को राज्य वित्त पोषण बंद कर दिया जाना चाहिए। एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि सभी गैर मुस्लिम बच्चों को आरटीई अधिनियम 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर निकाला जाए और स्कूलों में भेजा जाए।
हरियाणा हार पर ओवैसी ने कांग्रेस से किए सवाल, कहा- हम चुनाव नहीं लड़े तो मोदी कैसे जीते?

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हरियाणा विधानसभा के चुनावी नतीजे आए चार दिन हो गए हैं। अब तो सरकार गठन की तारीख भी तय हो गई है। 17 अक्टूबर को हरियाणा में लगातार तीसरी बार बीजेपी सरकार का शपथ ग्रहण होने वाला है। हालांकि, अब तक राज्य में कांग्रेस की हार की चर्चा खत्म नहीं हुई है। इस बीच एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस को जमकर लपेटा। उन्होंने कहा कि हरियाणा में एआईएमआईएम चुनाव नहीं लड़ी फिर कैसे बीजेपी जीत गई?

ओवैसी ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा है कि मोदी जी हरियाणा का इलेक्शन गलती से जीत गए। अब कैसे जीत गए मैं तो वहां पर नहीं था। वरना बोलते बी टीम-बी टीम। ये लोग गए तो ऐसा किए वैसा किए। मगर ये वहां पर हार गए। हारने वालों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि क्यों हारे और किस वजह से हारे?

कांग्रेस को ओवैसी की नसीहत

ओवैसी ने आगे कहा, मैं कांग्रेस से कहना चाहता हूं कि पार्टी मेरी बात समझने की कोशिश करें। अभी भी समय है, अगर मोदी को हराना है तो सबको साथ लेकर चलना होगा। आप अकेले कुछ नहीं कर सकते।

हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार शानदार जीत हासिल की है। बीजेपी ने कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हरियाणा में बीजेपी ने 90 विधानसभा सीट में से 48 सीट जीतीं, जो सरकार बनाने के लिए 46 के जादुई आंकड़े से कहीं अधिक हैं।

कर्नाटक सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ केस वापस लिया, बीजेपी बोली- कांग्रेस कर रही आतंकवादियों का समर्थन*
#karnataka_govt_withdraws_2022_hubballi_riot_case
कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 2022 के हुबली दंगों से जुड़े मामले को वापस ले लिया है। इस केस में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता मोहम्मद आरिफ समेत 139 लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज था। इन पर पुलिस पर हमला करने और पुलिस स्टेशन में घुसने की धमकी देने का आरोप था। इस फैसले की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार के पास कुछ मामले वापस लेने की शक्ति है, जिसके तहत ही यह फैसला लिया गया है। गृहमंत्री के नेतृत्व में कैबिनेट उपसमिति की सिफारिश पर यह निर्णय किया गया है। बीजेपी के विरोध पर उन्होंने कहा कि उन लोगों की आदत है झूठे और गलत मुद्दों पर विरोध करने की। सरकार ने यह फैसला मुस्लिम संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम की मांग पर लिया है। इस फैसले के तहत सरकार ने 43 ऐसे केस वापस ले लिए हैं। *बीजेपी ने क्या कहा?* कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।बीजेपी का कहना है कि कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद यह केस वापस लिया गया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद पुराने हुबली पुलिस स्टेशन दंगा मामले को वापस ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि मामले को वापस ले लिया जाए। दंगे और उसके बाद हुए पथराव में कई पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कांग्रेस की गंदी राजनीति है। *क्या था मामला?* पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में हुबली शहर में एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक पोस्ट किया था। जिस कारण उसे पुलिस गिरफ्तार कर हुबली पुलिस स्टेशन ले आई थी। इस पोस्ट के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें से करीब 150 लोग उस शख्स पर हमले के लिए पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हो गए थे और पुलिसकर्मियों से आरोपी को सौंप देने की मांग कर रहे थे। भीड़ ने पुलिस को चेतावनी दी थी कि यदि उसे बचाने का प्रयास किया गया तो उन्हें भी नहीं छोड़ा जाएगा। भीड़ पुलिस स्टेशन में घुसने का प्रयास कर रही थी। इसके बाद भीड़ ने डंडों और पत्थरों से पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और कई सरकारी एवं निजी वाहनों को तोड़ फोड़ की गई थी। इस मामले में ओल्ड हुबली टाउन पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंगा, हत्या का प्रयास, सरकारी अधिकारियों पर हमला, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के तहत मामला दर्ज किया था।
कर्नाटक सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ केस वापस लिया, बीजेपी बोली- कांग्रेस कर रही आतंकवादियों का समर्थन

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कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 2022 के हुबली दंगों से जुड़े मामले को वापस ले लिया है। इस केस में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता मोहम्मद आरिफ समेत 139 लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज था। इन पर पुलिस पर हमला करने और पुलिस स्टेशन में घुसने की धमकी देने का आरोप था। इस फैसले की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।

राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार के पास कुछ मामले वापस लेने की शक्ति है, जिसके तहत ही यह फैसला लिया गया है। गृहमंत्री के नेतृत्व में कैबिनेट उपसमिति की सिफारिश पर यह निर्णय किया गया है। बीजेपी के विरोध पर उन्होंने कहा कि उन लोगों की आदत है झूठे और गलत मुद्दों पर विरोध करने की। सरकार ने यह फैसला मुस्लिम संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम की मांग पर लिया है। इस फैसले के तहत सरकार ने 43 ऐसे केस वापस ले लिए हैं।

बीजेपी ने क्या कहा?

कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।बीजेपी का कहना है कि कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद यह केस वापस लिया गया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद पुराने हुबली पुलिस स्टेशन दंगा मामले को वापस ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि मामले को वापस ले लिया जाए। दंगे और उसके बाद हुए पथराव में कई पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कांग्रेस की गंदी राजनीति है।

क्या था मामला?

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में हुबली शहर में एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक पोस्ट किया था। जिस कारण उसे पुलिस गिरफ्तार कर हुबली पुलिस स्टेशन ले आई थी। इस पोस्ट के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें से करीब 150 लोग उस शख्स पर हमले के लिए पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हो गए थे और पुलिसकर्मियों से आरोपी को सौंप देने की मांग कर रहे थे।

भीड़ ने पुलिस को चेतावनी दी थी कि यदि उसे बचाने का प्रयास किया गया तो उन्हें भी नहीं छोड़ा जाएगा। भीड़ पुलिस स्टेशन में घुसने का प्रयास कर रही थी। इसके बाद भीड़ ने डंडों और पत्थरों से पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और कई सरकारी एवं निजी वाहनों को तोड़ फोड़ की गई थी। इस मामले में ओल्ड हुबली टाउन पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंगा, हत्या का प्रयास, सरकारी अधिकारियों पर हमला, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के तहत मामला दर्ज किया था।

हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस में “तकरार”, पार्टी के ही नेता खड़े कर रहे सवाल

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐसी हार का सामना करना पड़ा है कि वो इस जख्म को भूल नहीं सकेही। वो पार्टी जिसे एग्जिट पोल में हाथों हाथ लिया जाता है, जो रूझानों में बहुमत पार कर लेती है लेकिन रिजल्ट उसके विपरित आता है। इस हार को लेकर कांग्रेस में सिर फुटव्वल जारी है। खुद राहुल गांधी भी ये मान चुके हैं कि हरियाणा में नेताओं का इंटरेस्ट ऊपर रहा, जबकि पार्टी का इंटरेस्ट नीचे चला गया। राहुल गांधी के बाद कांग्रेस ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव ने भी कांग्रेस की हार को लेकर गुटबाजी और मिस मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहराया है।

लालू यादव के समधी और हुड्डा के कट्टर विरोधी कैप्टन अजय यादव ने एक एक करके हार के कारण भी गिनाए हैं। हालांकि, उन्होंने सीधे तौर पर तो हुड्डा का नाम नहीं लिया, लेकिन सीएम पोस्ट के बहाने उन्हें घेरा। अजय सिंह यादव ने कह कि जब चुनाव होते हैं तो सबसे बड़ा गोल जीत होती है। लेकिन इस दौरान सीएम की पोस्ट के लेकर लगातार खींचतान होती रही। जो कि मीडिया में लगातार सुर्खियां बनी रही और यह पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं था। वह कहते है कि पहले जीत हासिल करनी चाहिए थे और फिर सीएम के पद पर दावा ठोका जा सकता था। यह अकेले तय नहीं होता है और विधायक तय करते हैं।

ओबीसी समाज का वोट बैंक भाजपा को जाने पर अजय यादव ने कहा, कांग्रेस कार्यसमिति, पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति या हरियाणा प्रदेश कांग्रेस समिति में अहीरवाल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। पार्टी ने मुझे ओबीसी राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया है, जिसका कोई फायदा नहीं है, क्योंकि यह शक्तिहीन है। हम चुनाव हार गए, क्योंकि राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ कोई समन्वय नहीं था। उन्होंने कहा कि ओबीसी के नाम पर हमें झुनझुना पकड़ाया हुआ है। कांग्रेस में ओबीसी समाज की कोई वैल्यू नहीं है। जब कोई वैल्यू नहीं है तो वह कांग्रेस को वोट क्यों देगा। यादव ने कहा कि पंजाबी समाज, वैश्य समाज, ब्राह्मण समाज इनकी भी अनदेखी हुई। इनके नेताओं के फोटो तक पोस्टरों पर नहीं लगाए गए। पार्टी केवल चार लोगों के नाम से नहीं चलेगी।

अजय यादव ने पार्टी नेतृत्व पर भी विफलता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, जब पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया अस्पताल में भर्ती थे, तो उनका कार्यभार किसी दूसरे नेता को क्यों नहीं सौंपी गई। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान खुद चुनाव लड़ रहे थे, इसलिए वे उचित फीडबैक लेने और रणनीति को अंतिम रूप देने में उम्मीदवारों की मदद करने में विफल रहे। अजय यादव ने आगे कहा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेताओं ने उनसे राहुल गांधी के रोड शो की व्यवस्था करने को कहा था, लेकिन नेता कभी उनके क्षेत्र में नहीं आए।

बता दें कि कैप्टन अजय यादव रेवाड़ी से लगातार विधायक बनते रहे हैं और वह मंत्री भी रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में उनका बेटा चिरंजीवी राव भी हार गया। लालू यादव के दामाद चिरंजीवी बीते 2019 के चुनाव में यहां से जीते थे।

हाइड्रोलिक सिस्टम फेल होने पर आया एयर इंडिया का बयान, जानें कैसे 2 घंटे तक चक्कर लगाती रही फ्लाइट
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* एअर इंडिया एक्सप्रेस की तिरुचलापल्ली से शारजाह जाने वाली फ्लाइट की शुक्रवार को इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई। शुक्रवार की शाम 5.40 पर उड़ान भरते ही प्लेन के हाइड्रोलिक सिस्टम फेल हो गया था। इसके बाद से ही प्लेन करीब 2 घंटे आसमान में चक्कर काटता रहा। इसके बाद करीब 8.15 बजे प्लेन की सुरक्षित लैंडिंग करा ली गई।इस विमान में कुल 141 यात्री सवार थे।अब एयर इंडिया एक्सप्रेस की ओर से इस पूरी घटना पर पहला बयान सामने आ गया है। तकनीकी खराबी की इस घटना पर एयर इंडिया एक्सप्रेस ने कहा कि वह तिरुचिरापल्ली-शारजाह मार्ग पर संचालित होने वाले उड़ान से संबंधित मीडिया रिपोर्टों से अवगत हैं। कंपनी ने कहा कि विमान के ऑपरेटिंग क्रू द्वारा किसी इमरजेंसी की घोषणा नहीं की गई थी। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने ये भी बताया है कि विमान को बार-बार चक्कर क्यों लगवाया गया था। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने बताया कि तकनीकी खराबी की सूचना देने के बाद सुरक्षित लैंडिंग से पहले विमान ने एक निर्दिष्ट क्षेत्र में कई बार चक्कर लगाए। ऐसा रनवे की लंबाई को ध्यान में रखते हुए विमान के ईंधन और वजन को कम करने के लिए किया गया है। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने आगे कहा कि इस घटना या गड़बड़ी के कारणों की पूरी जांच की जाएगी। इसके साथ ही कंपनी ने बताया है कि यात्रियों के लिए एक वैकल्पिक विमान की व्यवस्था की जा रही है। तमिलनाडु के त्रिची से शारजाह जा रही एयर इंडिया की एक उड़ान में अचानक हाइड्रॉलिक सिस्टम में गंभीर खराबी आ गई। इसके बाद 2 घंटे तक इस फ्लाइट की लैंडिंग नहीं हो पाई।इस फ्लाइट की सुरक्षित लैंडिंग त्रिची एयरपोर्ट पर रात 8:14 बजे कराई गई। फ्लाइट की नॉर्मल लैंडिंग कराई गई है। इसमें सवार सभी 140 यात्री सुरक्षित हैं। बताया गया कि पहले विमान को हल्का बनाने के लिए ईंधन डंपिंग पर विचार किया जा रहा था। लेकिन आवासीय क्षेत्रों के ऊपर चक्कर लगाने की वजह से ऐसा नहीं किया गया। डीजीसीए पूरी स्थिति पर नजर रख रहा था। लैंडिंग गियर खुल रहा था। फ्लाइट सामान्य रूप से लैंड से हो गई है। इस दौरान एयरपोर्ट को भी अलर्ट मोड पर रखा गया था।
क्या ईरान के मिलिट्री चीफ ने की ‘दगाबाजी’, इजरायल को हसन नसरल्लाह की जानकारी देने का आरोप

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इजरायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष ने मिडिल ईस्ट देशों में तनाव की स्थिति पैदा कर दी है। इजराइल पिछले कुछ महीनों में ईरान को बड़े-बड़े झटके दे चुका है। इजरायल ने ईरान की सबसे सुरक्षित जगहों में सेंध लगाई है। हमास नेता इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत ने दिखा दिया है कि इजरायल की पहुंच कितने अंदर तक है। हालांकि, ईरान भी चुप नहीं बैठा है। ईरान हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की हत्या के मामले की जांच कर रहा है। 

इस बीच इससे ईरान की सिक्योरिटी पर सवाल उठे हैं। इस वजह से ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) के कुद्स फोर्स के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल इस्माइल कानी पर शक की सुई घुमी। कहा जाने लगा है कि कहीं उन्होंने ही तो इजरायल की मदद करके गद्दारी तो नहीं की।

मिडिल ईस्ट आई (MME) ने सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा कि ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के विशिष्ट कुद्स फोर्स के नेता इस्माइल कानी हाउस अरेस्ट रखा गया है। पहले खबर थी कि बेरूत में हुए एक धमाके के बाद से इस्माइल कानी लापता हैं, आशंका जताई जा रही थी कि कहीं इजराइली हमले में ईरान के टॉप कमांडर इस्माइल कानी भी मारे गए, लेकिन ‘मिडिल ईस्ट आई’ की एक रिपोर्ट में कई सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि इस्माइल कानी जिंदा और सुरक्षित हैं। ईरान के जांच अधिकारी नसरल्लाह की मौत के मामले में कानी से पूछताछ कर रहे हैं।

कानी को हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत के बाद से पब्लिक में नहीं देखा गया है। 27 सितंबर को इजरायल ने बेरूत में एक एयर स्ट्राइक में नसरल्लाह को ढेर कर दिया था। यह हिजबुल्लाह के साथ ईरान को एक बड़ा झटका था। तब से IRGC ने इस बात की जांच शुरू कर दी है कि इजरायल को हसन नसरल्लाह की लोकेशन का पता कैसे चला। क्योंकि हसन नसरल्लाह की लोकेशन बेहद गुप्त रही है। वह किसी भी जगह पर ज्यादा दिन नहीं रुकता था। इसके बाद 4 अक्टूबर को हिजबुल्लाह के उत्तराधिकारी हाशेम सैफुद्दीन को भी इजरायल ने एक बंकर में मिसाइल से मार दिया। इन घटनाओं ने ईरान और हिजबुल्लाह के सुरक्षा तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं कि इजरायल को इन गुप्त स्थानों की जानकारी कैसे मिली।

इस्माइल कानी ईरान के टॉप कमांडर में से एक हैं। जनवरी 2020 में अमेरिका के हमले में कासिम सुलेमानी की मौत के बाद कानी को कुद्स फोर्स का चीफ बनाया गया था। इससे पहले वह ईरान की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट का हिस्सा थे। सुलेमानी की मौत के बाद उन्हें ईरान की सैन्य रणनीति को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा गया था लेकिन अब सामने आ रहीं रिपोर्ट्स से शक जताया जा रहा है कि कहीं इस्माइल कानी मोसाद के एजेंट तो नहीं हैं।

भ्रष्ट और खराब प्रदर्शन वाले अधिकारी पर चलेगा “चाबूक”, पीएम मोदी ने सचिवों को दिया ये आदेश

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पीएम मोदी ने काम नहीं करने वाले और भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया हुआ है। खराब प्रदर्शन करने वालों और भ्रष्टाचार के दागियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नकेल कसने के आदेश दिए हैं। पीएम मोदी ने केंद्रीय सचिवों से नियमों के अनुसार कर्मचारियों के प्रदर्शन का कठोर मूल्यांकन करने को कहा है।

सूत्रों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के एक दिन बाद बुधवार को सभी केंद्रीय मंत्रियों और सचिवों के साथ बातचीत की। इस दौरान प्रधानमंत्री ने सीसीएस (पेंशन) नियमों के मूल नियम 56 (जे) का उल्लेख किया। इसमें निर्दिष्ट किया गया है कि 'उपयुक्त प्राधिकारी' किसी भी सरकारी कर्मचारी को यदि उसकी राय में वह सेवा में बने रहने के लिए अयोग्य है तो उसे समय से पहले रिटायर कर सकता है।

अनिवार्य सेवानिवृत्ति के मामले में सरकार को तीन महीने का नोटिस या तीन महीने का वेतन और भत्ते देने की आवश्यकता होती है। 55 वर्ष की आयु पूरी करने वाले सरकारी कर्मचारी इस नियम से प्रभावित हो सकते हैं। इसी तरह, नियम 48 में कहा गया है कि किसी भी समय जब कोई सरकारी कर्मचारी 30 साल की अर्हक सेवा पूरी कर लेता है, तो उसे नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा जनहित में सेवानिवृत्त होने के लिए कहा जा सकता है। ऐसे अधिकारियों को जवाब देने का अवसर मिलता है और वे अदालत में आदेश को चुनौती भी दे सकते हैं।

अब तक 500 से अधिक अधिकारियों पर हो चुकी है कार्रवाई

सरकारी विभागों ने इन नियमों का हवाला देते हुए अब तक 500 से अधिक अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन नियमों के तहत अब तक 500 से अधिक अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा चुकी है। आगे भी इस पर काम चल रहा है।बैठक में बताया गया कि पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री कार्यालय को लोगों की शिकायतों समेत 4.5 करोड़ पत्र मिले हैं, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान आखिरी 5 साल में केवल 5 लाख पत्र मिले थे।इनमें 40 प्रतिशत केंद्र और 60 प्रतिशत राज्य से संबंधित थे।

शिकायतों के समाधान के लिए एक दिन निकालने का निर्देश

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में कहा कि सरकारी कर्मचारियों को अच्छा प्रदर्शन करके लोगों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए और जीवन आसान बनाना चाहिए। उन्होंने मंत्रियों और अधिकारियों से कहा कि जन शिकायतों का व्यापक और त्वरित समाधान किया जाए, न कि उसे एक मेज से दूसरी मेज पर धकेला जाए।उन्होंने सचिवों से शिकायतों के समाधान के लिए हफ्ते में एक दिन निकालने और राज्य मंत्रियों से उनकी निगरानी को कहा है।

अखिलेश द्वारा नीतीश कुमार से भाजपा से समर्थन वापस लेने के अनुरोध के बाद जदयू ने ‘आपातकाल’ की दिलाई याद

अखिलेश यादव द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से ‘बाहर निकलने’ के अनुरोध के कुछ घंटों बाद, कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ सदस्य केसी त्यागी ने शुक्रवार को कहा कि आपातकाल के दौरान जो कुछ हुआ, उसके कारण यादव को कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन खत्म कर देना चाहिए।

उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक जय प्रकाश नारायण की 122वीं जयंती पर उनके स्मारक पर जाने से रोके जाने के बाद लखनऊ में अपने आवास के बाहर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने यह टिप्पणी की। “जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन कांग्रेस की ‘तानाशाही’ के खिलाफ था। 25 जून (1975) को आपातकाल लगाया गया था। उस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी। अखिलेश यादव की टिप्पणी अनुचित है, मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूं कि आपातकाल के दौरान उनके पिता (मुलायम सिंह यादव) और नीतीश कुमार दोनों जेल गए थे। एबीपी न्यूज के अनुसार त्यागी ने कहा, "उन्हें ऐसी पार्टी के साथ अपनी साझेदारी समाप्त कर देनी चाहिए जिसने लोगों की स्वतंत्रता को सीमित किया और सभी लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन किया।" 

आपातकाल लगाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, जो पूर्व कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी की दादी थीं, जो वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी भारत ब्लॉक का नेतृत्व करती है और समाजवादी पार्टी इसके सदस्यों में से एक है। इस साल के लोकसभा चुनावों में, दोनों ने मिलकर उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 43 (सपा-37, कांग्रेस-6) सीटें हासिल कीं, जहाँ भाजपा सत्ता में है, जिससे भगवा पार्टी 33 सीटों पर सिमट गई, जो 2019 में 62 और 2014 में 71 थी। हालांकि भाजपा ने केंद्र में अपनी लगातार तीसरी सरकार बनाई, लेकिन वह अपने लगातार तीसरे व्यक्तिगत बहुमत से चूक गई, लेकिन सहयोगियों के समर्थन से सरकार बनाई। जेडी(यू) की 12 लोकसभा सीटें इसे भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण गठबंधन सहयोगी बनाती हैं।

हरियाणा हार के बाद कांग्रेस ने बदली रणनीति, चुनाव आयोग पर हमले के लिए ईवीएम नहीं होगा ‘हथियार”

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हरियाणा में बीजेपी तीसरी बार स्पष्ट बहुमत हासिल कर सरकार बनाने जा रही है।पार्टी ने 48 सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई है। इन नतीजों को लेकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाए।कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया था कि हिसार, महेंद्रगढ़ और पानीपत से शिकायतें मिली हैं कि 99 प्रतिशत बैटरी वाली ईवीएम पर भाजपा जीती, जबकि 60-70 प्रतिशत बैटरी वाली ईवीएम पर कांग्रेस जीती। वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे साजिश करार दिया था। हालांकि, हरियाणा में करारी हार के लिए ईवीएम पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस ने अब रणनीति बदलने का फैसला किया है।

दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने गुरुवार को हरियाणा में हार पर एक समीक्षा बैठक बुलाई थी। जिसमें ये फैसला लिया गया कि पार्टी अब अंदरूनी गुटबाजी और दूसरी कमजोरियों को दूर करने पर अपना फोकस करेगी जिसके कारण सफलता नहीं मिल सकी।

कांग्रेस के अंदर से ही आवाज उठने लगी कि हरियाणा में लीडरशिप की कुव्यवस्था साफ दिखी जिस वजह से पार्टी को वहां हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव परिणाम पर इसी अंदरूनी खींचतान पर कांग्रेस नेतृत्व को फिलहाल चुनाव आयोग पर सवाल उठाने से बचने को मजबूर होना पड़ा। इसकी जगह यह तय हुआ कि प्रत्याशियों की शिकायतों और खामियों की जांच की जिम्मेदारी के लिए पार्टी एक टेक्निकल टीम का गठन करेगी।

इसके तहत फिलहाल वे कुछ भी गलत होने से संबंधित 'ठोस सबूत' जुटाने के बाद ही चुनावी हार के लिए ईवीएम पर दोष मढ़ेंगे। बाद में खरगे ऑफिस से जारी बयान में बताया गया कि पार्टी ने उम्मीदवारों की शिकायतों और विसंगतियों की जांच करने के लिए एक टीम बनाने का फैसला किया है। इसमें कहा गया है, कांग्रेस मतगणना प्रक्रिया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के कामकाज पर फैक्ट-फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत प्रतिक्रिया देगी।

कांग्रेस पार्टी ने गुरुवार को हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणामों की चर्चा के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर पर बैठक की थी। इसमें खरगे के अलावा राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, दीपक बावरिया और अशोक गहलोत शामिल थे। हरियाणा के किसी भी नेता को इसमें आने का बुलावा नहीं भेजा गया था। हरियाणा में हुआ क्या, इसकी जानकारी जुटाने के लिए वहां राष्ट्रीय नेतृत्व की तरफ से नियुक्त अधिकारियों को ही बुलाया गया था। हरियाणा के नेताओं भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं को अगली बैठक में बुलाया जा सकता है।