जम्मू-कश्मीर में आखिरी चरण की वोटिंग जारी, सुबह 9 बजे तक 11% मतदान*
#j_k_assembly_election_third_phase_voting जम्मू-कश्मीर में आज तीसरे और आखिरी चरण की वोटिंग जारी है। जम्मू-कश्मीर के सात जिलों में 40 सीटों पर वोटिंग हो रहा है। लोग लोकतंत्र के इस पर्व में बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पहले के दो चरणों में भारी मतदान हुआ था। पहले चरण में 18 सितंबर को 61.38 प्रतिशत और 25 सितंबर को दूसरे चरण में 57.31 प्रतिशत मतदान हुआ था। परिणाम आठ अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। *9 बजे तक हुई 11.60 फीसदी वोटिंग* जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के तहत तीसरे चरण की वोटिंग में सुबह 9 बजे तक 11.60 फीसदी मतदान हुआ है। बांदीपोरा में 11.64 फीसदी, बारामुला में 8.89 फीसदी, जम्मू में 11.46 फीसदी, कठुआ में 13.09 फीसदी, कुपवाड़ा में 11.27 फीसदी, सांबा में 13.31 फीसदी और उधमपुर में 14.23 फीसदी मतदान हुआ है। *इन उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर* तीसरे चरण के मतदान में कुछ प्रमुख उम्मीदवारों में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सज्जाद लोन और नेशनल पैंथर्स पार्टी इंडिया के अध्यक्ष देव सिंह, जम्मू और कश्मीर के मंत्री रमन भल्ला (आर एस पुरा), उस्मान मजीद (बांदीपोरा), नजीर अहमद खान (गुरेज़), ताज मोहिउद्दीन (उड़ी), बशारत बुखारी (वगूरा-क्रीरी), इमरान अंसारी (पट्टन), गुलाम हसन मीर (गुलमर्ग) और चौधरी लाल सिंह (बसोहली) शामिल हैं। *नरेंद्र मोदी ने की वोटिंगी की अपील* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में वोटिंग के बीच ट्वीट किया, 'जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में आज तीसरे और आखिरी दौर का मतदान है। सभी मतदाताओं से मेरा अनुरोध है कि वे लोकतंत्र के उत्सव को सफल बनाने के लिए आगे आएं और अपना वोट जरूर डालें। मुझे विश्वास है कि पहली बार वोट देने जा रहे युवा साथियों के अलावा नारीशक्ति की मतदान में बढ़-चढ़कर भागीदारी होगी।' *मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव पर किया ट्वीट* कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जम्मू-कश्मीर में तीसरे एवं अंतिम चरण का मतदान आरंभ होने के बाद मंगलवार को मतदाताओं से बड़ी संख्या में मतदान करने की अपील की और कहा कि राज्य का दर्जा छीनने वालों को सबक सिखाने का यह आखिरी मौका है।
बॉलीवुड एक्टर गोविंदा को लगी गोली, अस्पताल में कराए गए भर्ती*
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बॉलीवुड एक्टर और शिवसेना नेता गोविंदा से जुड़ी बुरी खबर सामने आई है। एक्टर को गोली लग गई है। बताया जा रहा है कि उनकी ही बंदूक से पैर में गोली लगी है। सुबह 4.45 बजे की घटना बताई जा रही है। एक्टर CRITI केयर अस्पताल में भर्ती हैं, जहां उनका इलाज चल रहा है। इस वक्त वह आईसीयू में हैं और उनका इलाज चल रहा है। गोविंदा आज सुबह 4.30 बजे अपने जुहू के घर से एयरपोर्ट जा रहे थे। तभी गोविंदा के लाइसेंसी बंदूक से मिस फायर हो गया है, जिसमें गोविंदा का पैर में गोली लगी है। पुलिस के मुताबिक गोविंदा खतरे के बाहर हैं। पुलिस अब इस मामले की जांच में जुट गई है। पुलिस का कहना है कि गोविंदा की बंदूक को कब्जे में ले लिया गया है और मामले की गहराई से जांच की जा रही है। बता दें कि इस साल मार्च में लोकसभा चुनाव से पहले गोविंदा मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में शिवसेना में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा था कि वे शिवसेना में इसलिए शामिल हुए क्योंकि यह एक साफ-सुथरी पार्टी है। साथ ही साथ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की भी सराहना की थी और कुछ महीने पहले उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के साथ एक तस्वीर भी शेयर की थी। एक्टर ने लिखा था, मुंबई में चुनाव प्रचार के दौरान भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मिलना सम्मान की बात थी। गोविंदा ने अपने करियर में कई सफल फिल्में दी हैं। गोविंदा को 'कुली नंबर 1', 'हसीना मान जाएगी', 'स्वर्ग', 'साजन चले ससुराल', 'राजा बाबू', 'राजाजी', 'पार्टनर' जैसी मेगा हिट फिल्मों के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने अपने किरदार से लोगों को खूब हंसाया। कॉमेडी ब्लॉकबस्टर फिल्में देने के लिए बॉलीवुड में उनकी अलग पहचान है। आखिरी बार एक्टर साल 2019 में फिल्म 'रंगीला राजा' में नजर आ थे। ये फिल्म पर्दे पर खासा सफल नहीं रही। इन दिनों वो कई टीवी रियलिटी डांस शोज का भी हिस्सा बनते हैं।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के तीसरे व आखिरी चरण के लिए कल होगी वोटिंग, जानें कहां-कितने कैंडिडेट

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जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण के लिए 1 अक्तूबर को मतदान होगा। सात जिलों की 40 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद हो रहे पहले चुनाव में लोगों का खीसा उत्साह देखा जा रहा है। अब तक दो चरणों के चुनाव में मतदाताओं में उत्साह देखने को मिला है। 18 सितंबर को पहले चरण में 61.38 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि 26 सितंबर को दूसरे चरण में 57.31 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई। आखिरी चरण के मतदान के बाद 8 अक्तूबर को मतगणना होगी।

इस चरण के प्रचार के दौरान बीजेपी, कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच पाकिस्तान, अनुच्छेद 370, आतंकवाद और आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिला। तीसरे चरण की जिन 40 सीटों पर चुनाव है, उसमें 24 सीटें जम्मू क्षेत्र की है तो 16 सीटें कश्मीर रीजन की है। इस अहम चरण में सात जिलों जम्मू संभाग के जम्मू, उधमपुर, सांबा और कठुआ तथा कश्मीर संभाग के बारामूला, बांदीपोरा और कुपवाड़ा की कुल 40 सीट के लिए मतदान होगा। इस चरण में पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद (कांग्रेस) और मुजफ्फर बेग सहित 415 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर है।

जम्मू संभाग की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है, कुछ जगह ही नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) है, किंतु कश्मीर की अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबला है। दिलचस्प यह भी है कि प्रदेश की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस दोनों का भविष्य इसी चरण पर टिका है। इसी कारण इन दोनों दलों ने इन सीटों पर प्रचार में पूरा दम दिया। भाजपा के दिग्गज नेता समेत गृह मंत्री और प्रधानमंत्री ने भी चुनावी रैलियां कीं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी ने पूरे चुनाव में जम्मू-कश्मीर में एक जनसभा की वह भी इसी चरण में। राहुल गांधी की भी रैलियां थीं और कांग्रेस अध्यक्ष भी आए।

उत्तर कश्मीर के इलाके में पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस जैसी मुख्यधारा की राजनीतिक दलों के साथ-साथ अलगगावादियों का भी सियासी आधार है। सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और इंजीनियर राशिद की पार्टी एआईपी दोनों की शुरुआत कुपवाड़ा जिले से हुई। इसी इलाके में ही इनका सियासी आधार है. इस बार चुनाव में जिस तरह इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन ही नहीं बल्कि जमात-ए-इस्लामी और निर्दलीय भी चुनावी मैदान में उतरे हैं, उसके चलते नार्थ कश्मीर के इलाके का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।

भारत के खिलाफ नई-नई चालें चल रहा चीन, अब तिब्बत में ऊंचाई वाले हेलीपोर्ट का निर्माण

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वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन के साथ पिछले करीब साढ़े 4 साल से जारी तनाव अभी कम नहीं हुआ है। हालांकि, चीन लगातार भारत के खिलाफ नई-नई चालें चलता रहा है। चीन पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों पर सैकड़ों मॉडर्न गांव बसा चुका है, जिसे जियाओकांग कहा जाता है। इन गांवों को उसने ऐसे बसाया है ताकि उनका सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सके। अब एक बार फिर चीन ने कुछ ऐसा किया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है।

चीन, तिब्बत में हेलिकॉप्टर बेस का जाल बिछा रहा है। तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तिब्बत में चीन के लगभग 90% हेलीपैड समुद्र तल से 3,300 से 5,300 मीटर (10,000 से 17,400 फीट) की ऊंचाई पर हैं। इनमें से 80% हेलीपैड 3,600 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर हैं। यह खुलासा भारत के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों को तेजी से सीमा पर पहुंचाने के लिए कर सकता है।

रिसर्च में यह भी बताया गया है कि चीन इन हेलीपैड का निर्माण भारत और भूटान के साथ लगती सीमा के पास कर रहा है। ये हेलीपैड चीन की सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा हैं और इनसे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है। रिसर्च में 109 हेलीपैड का अध्ययन किया गया है। इनमें से केवल दो हेलीपैड 780 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर हैं। 32 हेलीपैड 2700 से 3600 मीटर, 44 हेलीपैड 3700 से 4300 मीटर और 25 हेलीपैड 4400 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। छह हेलीपैड 4800 से 5400 मीटर की ऊंचाई पर हैं।

बेंगलुरु स्थित तक्षशिला इंस्टिट्यूशन में भूस्थानिक अनुसंधान कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर वाई नित्यानंदम ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस पर लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा कि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैन्य अभियानों के लिए कर सकता है। नया हेलीपोर्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी और टोही गतिविधियों को तेज करने की अनुमति देगा।

यह घने जंगलों वाले क्षेत्र में रसद संबंधी चुनौतियों को कम करता है, जहां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ सैन्य आवाजाही को मुश्किल बनाते हैं। हेलीपोर्ट के निर्माण से 'दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों की तेजी से तैनाती, गश्त को मजबूत करना और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, दूरदराज के स्थानों में चीन की समग्र सैन्य उपस्थिति को बढ़ाना' संभव हो गया है।

UNSC में भारत चाहता है पक्की जगह, अब तक स्थायी सदस्य ना बन पाने की वजह सिर्फ चीन नहीं

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संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुए 7 दशक से ज्यादा वक्त बीत गए। तब से दुनिया बहुत बदल गई, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ढांचा नहीं बदला है। भारत लगातार सुरक्षा परिषद में सुधार की पुरजोर वकालत कर रहा है। यूएनएससी में अपनी स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा। अब उसकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने भी भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन किया है। रूस पहले से ही भारत की दावेदारी के सपोर्ट में रहा है। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य में भारत के सामने सिर्फ चीन ही बाधा है।

आज के वैश्विक परिदृश्य को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या का विस्तार करने की मांग बढ़ रही है। खासकर भारत इसे पुरजोर तरीके से उठा रहा है। भारत का तर्क है कि 1945 में स्थापित 15-सदस्यीय परिषद 'पुराना है और 21वीं सदी के वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम है।

मौजूदा यूएनजीए सेशन में जी-4 देशों- भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को जबरदस्त तरीके से उठाया है। ये चारों देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। उनकी मांग है कि संयुक्त राष्ट्र में वर्तमान भू-राजनैतिक वास्तविकताओं की झलक दिखनी चाहिए ताकि यह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी फिट रहे।

सवाल उठता है कि जब लगभग सभी देश भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर हैं तो फिर पेंच फंसता कहां है? इस सवाल का जवाब चीन और अमेरिका हैं।

हां, भले ही पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। हालांकि, भारत की इस समस्या के लिए बहुत हद तक अमेरिका भी जिम्मेदार है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का सोशलिस्ट लोकतंत्र होने की वजह से हम तत्कालीन सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक थे। जिस वजह से अमेरिका हमारे खिलाफ था। जैसा हम 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी देख चुके हैं।

यही वजह है कि अमेरिका हर जगह भारत का न सिर्फ विरोध करता था बल्कि भारत के खिलाफ अपने सारे सहयोगी देशों को भी इस्तेमाल करता था। यही वजह है कि अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल लंबे समय तक कायम रहा। इसी सिलसिले में ब्रिटेन भी भारत की स्थायी सीट का विरोध करता था।

हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। उसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 79वें सत्र में ऐलान किया कि उनका देश भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में हैं। अब ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर में भी इस बात का समर्थन किया है।

सीजेआई ने पश्चिम बंगाल सरकार से सीसीटीवी कैमरों पर प्रगति पर उठाए सवाल

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों ने घोषणा की है कि वे कार्यस्थलों पर उनकी सुरक्षा और संरक्षा के बारे में राज्य सरकार के आश्वासन का आकलन करने के बाद मेडिकल कॉलेजों में अपना पूर्ण ‘काम बंद’ करने का फैसला वापस लेंगे । यह निर्णय 30 सितंबर, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में आरजी कर मामले की सुनवाई के बाद लिया जाएगा। मामले में याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में “खतरे की संस्कृति” के बारे में चिंताजनक चिंता जताई है।

उनका तर्क है कि परीक्षा कुंजी की बिक्री, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और मेडिकल छात्रों और जूनियर डॉक्टरों के यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार जैसे व्यापक मुद्दे प्रचलित हैं। कोर्ट ने इन आरोपों की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा है कि अगर इनमें से कुछ भी सच है, तो वह उन्हें अत्यंत गंभीरता से लेगा।

21 सितंबर को, जूनियर डॉक्टरों ने 42 दिनों के अंतराल के बाद पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में आंशिक रूप से अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू किया। वे आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद एक महिला डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के विरोध में 'काम बंद' कर रहे थे।

गुरुवार को जूनियर डॉक्टरों ने मुख्य सचिव मनोज पंत को एक ईमेल भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी मांगों को दोहराया, जिन्हें राज्य सरकार ने "अभी तक पूरा नहीं किया है।" दो पन्नों के पत्र में, पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फोरम के प्रतिनिधियों ने 18 सितंबर को राज्य सचिवालय में पंत के साथ अपनी बैठक का संदर्भ दिया, जिसके दौरान उनकी मांगों पर "मौखिक रूप से सहमति" बनी थी।

पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के जूनियर डॉक्टरों ने अन्य नागरिकों के साथ मिलकर रविवार को पूरे राज्य में मशाल जुलूस निकाला। रैलियाँ कई स्थानों पर हुईं, जैसे आरजी कर अस्पताल, सगोर दत्ता अस्पताल, एसएसकेएम अस्पताल, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और दक्षिण कोलकाता के जादवपुर।

पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट द्वारा आयोजित - राज्य के विभिन्न मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक छाता समूह - रैलियों ने मेडिकल कॉलेजों में "धमकी की संस्कृति" को समाप्त करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला, जहाँ छात्रों को कथित तौर पर धमकी का सामना करना पड़ता है।

बंद कमरे में मीटिंग करके दिए ये आदेश...”, अमित शाह की बैठक पर उद्धव ठाकरे का बड़ा दावा*

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इसी बीच शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा है। उद्धव ठाकरे ने दावा किया कि एक बंद कमरे में हुई बैठक में भाजपा नेताओं को विपक्षी दलों को तोड़ने का निर्देश दिया था।

उद्धव ठाकरे ने कहा, अमित शाह चार दिन पहले नागपुर आए थे। वे बंद दरवाजे के पीछे कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि उद्धव ठाकरे को मारो, शरद पवार को मारो, उनकी पार्टी तोड़ो, कार्यकर्ताओं को तोड़ो। अमित शाह बंद दरवाजे छोड़ें, हिम्मत है तो मैदान में आएं और शिव राय की गवाही से हमें खत्म करने की भाषा दिखाएं। आप मुझे दिल्ली से खत्म नहीं कर पाएंगे। अगर मुझे कोई खत्म कर सकता है तो सिर्फ यहां की जनता और यहां के वोटर। अगर वो कहेंगे कि उद्धव ठाकरे घर बैठ जाओ तो मैं घर बैठ जाऊंगा। उद्धव ठाकरे ने भारसभा से सीधे तौर पर अमित शाह की विधानसभा रणनीति की आलोचना की।

शाह मुझे और शरद पवार को राजनीतिक रूप से खत्म करना चाहते हैं-उद्धव ठाकरे

उन्होंने आरोप लगाया कि अमित शाह उद्धव ठाकरे और शरद पवार को राजनीतिक रूप से क्यों खत्म करना चाहते हैं, ताकि बीजेपी महाराष्ट्र को लूट सके। ठाकरे ने कहा, बीजेपी ने 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले अविभाजित शिवसेना के साथ अपना तीन दशक पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। हालांकि, शिवसेना 63 सीट जीतने में सफल रही।

उद्धव ने पूछा- क्या मोहन भागवत बीजेपी के हिंदुत्व से सहमत?

ठाकरे ने सवाल किया कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत बीजेपी के हिंदुत्व से सहमत हैं, जिसमें अन्य दलों को तोड़ना और विपक्षी नेताओं को अपने पाले में लाना शामिल है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे ने कहा, आगामी चुनाव सत्ता के लिए नहीं हैं, बल्कि महाराष्ट्र को लूट से बचाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने लोगों से महा विकास आघाड़ी को भारी जीत दिलाने और रामटेक लोकसभा क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत सुनिश्चित करने की अपील की. इस दौरान कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के नेता सुनील केदार और अनिल देशमुख भी मौजूद रहे।

महाराष्ट्र में गाय बनी 'राजमाता', विधानसभा चुनाव से पहले शिंदे सरकार का बड़ा फैसला

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महाराष्ट्र सरकार ने स्वदेशी गाय को 'राजमाता-गौमाता' का दर्जा दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले सोमवार सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए देसी गाय को राज्यमाता का दर्ज दिया। इसके साथ-साथ सरकार ने देसी गायों को पालने के लिए सब्सिडी योजना के शुरुआत को भी मंजूरी दे दी है। माना जा रहा है कि इस दांव के जरिए शिंदे सरकार हिंदुत्व की पिच पर चुनाव में उतरने जा रही है। अब देखना होगा शिंदे सरकार का ये दांव कितना काम करता है?

महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति और , मानव आहार में उसके दूध की उपयोगिता बेहद अहम है। आयुर्वेद चिकित्सा, पंचगव्य उपचार पद्धति और जैविक कृषि प्रणालियों में गोबर- गोमूत्र का महत्वपूर्ण स्थान है. इसे ध्यान में रखते हुए देशी गायों को अब से "राज्यमाता गोमाता" घोषित करने की मंजूरी दी गई है।

यह घोषणा महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की ओर से हस्ताक्षरित एक सरकारी आदेश के जरिए की गई है। इसमें कहा गया, गाय प्राचीन काल से ही मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। प्राचीन काल से गाय को मान्यता के रूप में कामरेणु का नाम दिया गया। इसका ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। हमें पूरे देश में गायों की विभिन्न नस्लें मिलती हैं, लेकिन देशी गायों की संख्या तेजी से घट रही है।

तिरुपति प्रसाद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र सरकार से पूछे तीखे सवाल, कहा- भगवान को राजनीति से दूर रखें

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तिरुपति मंदिर से प्रसाद के तौर पर मिलने वाले लड्डू में कथित तौर पर पशुओं की चरबी मिले होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सनुवाई हुई। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई की। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद वाई वी सुब्बा रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के आरोपों की जांच की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुपति प्रसादम विवाद पर आंध्र प्रदेश सरकार से कई कड़े सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि जब यह स्पष्ट नहीं था कि तिरुमाला लड्डू बनाने में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? उसने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कहा कि कम से कम हम यह उम्मीद करते हैं कि भगवान को राजनीति से दूर रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत है। इस बात का सबूत कहां है कि यह वही घी था जिसका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया? शीर्ष अदालत का कहना है कि भगवान पर चढ़ाने के बाद प्रसाद बनता है, उससे पहले वह केवल तैयार की हुई मिठाई होती है। ऐसे में भगवान-भक्त का हवाला न दिया जाए, उसको विवाद से दूर रखें।

शीर्ष अदालत ने पूछा कि जब सरकार ने जांच के लिए SIT का गठन किया है, तो SIT के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले सीएम को प्रेस में बयान देने की क्या जरूरत थी। संवैधानिक पदों पर मौजूद लोगों से जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। अगर आप जांच के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं थे, तो आपने बयान कैसे दे दिया। अगर आप पहले ही बयान दे रहे है तो फिर जांच का क्या मतलब है?

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि ये आस्था का मामला है। इसकी जांच होनी चाहिए कि कौन जिम्मेदार था और किस मकसद से था. इस पर जस्टिस गवई ने कहा हां, बिल्कुल जांच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपके रुख की सराहना करते हैं। हम तो यही चाहेंगे कि आप (एसजी) जांच करें कि क्या जांच इस एसआईटी से कराई जानी चाहिए? क्या ऐसा बयान देना चाहिए था, जिससे भक्तों की भावनाएं प्रभावित हों? जब एसआईटी का आदेश दिया गया तो प्रेस में जाने और सार्वजनिक बयान देने की क्या जरूरत थी?

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि इस बात का सबूत कहां है कि लड्डू बनाने में इसी घी का इस्तेमाल किया गया था? लूथरा ने बताया कि मार्च में टेंडर खुले, अप्रैल से सप्लाई शुरू हुई। जून, जुलाई में हफ्तावार सप्लाई हुई। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, कितने ठेकेदार सप्लाई कर रहे थे, क्या अप्रूव किए गए घी में ये घी मिलाए गए हैं? कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसे उपयोग किया गया था। यह परीक्षण किया गया है और रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है, लेकिन जांच अभी लंबित है। वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, एक बार जब यह पाया जाता है कि प्रोडक्ट उचित नहीं है, तो दूसरा परीक्षण भी किया जाता है। उसके बाद प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाता है। 6 जुलाई को नई सप्लाई आई। इसे लैब में भेजा गया। हमें लैब रिपोर्ट मिली। ये घी इस्तेमाल नहीं हुए थे।

जस्टिस गवई ने कहा, क्या लैब ने 12 जून के टैंकर और 20 जून के टैंकर के सैंपल लिए थे? जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, एक बार जब आप सप्लाई को मंजूरी दे देते हैं, घी लाया जाता है और सब एक में मिल जाता है, तो आप यह कैसे पहचानते हैं कि कौन सा ठेकेदार ने सप्लाई किया है?

एक देश-एक चुनाव पर बनेगा कानून! संसद में 3 बिल पेश करेगी मोदी सरकार

भारत सरकार ने देश में एक साथ चुनाव कराने की योजना को लागू करने के लिए तीन विधेयकों का प्रस्ताव लाने की तैयारी की है। इनमें से दो विधेयक संविधान संशोधन से संबंधित होंगे। प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयकों में एक स्थानीय निकाय चुनावों को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ कराने का प्रावधान है, जिसके लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों का समर्थन आवश्यक होगा। सरकार ने अपनी 'एक देश, एक चुनाव' योजना के तहत देशव्यापी सहमति बनाने की कोशिशें शुरू की हैं। इसके र्गत, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया गया है।

प्रस्तावित पहले संविधान संशोधन विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रावधान होगा। इस विधेयक में अनुच्छेद 82A में 'नियत तिथि' से संबंधित उप-खंड जोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिससे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ समाप्त किया जा सकेगा। इसके साथ ही अनुच्छेद 83(2) में संशोधन और नए उप-खंड जोड़ने का भी प्रस्ताव है, जिसमें विधानसभाओं के भंग करने और 'एक साथ चुनाव' शब्द को शामिल करने का प्रावधान होगा। दूसरा संविधान संशोधन विधेयक स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य निर्वाचन आयोगों के परामर्श से मतदाता सूची तैयार करने के प्रावधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी अन्य चुनावों के साथ एक ही समय पर कराए जाएं।

तीसरा विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित तीन कानूनों में संशोधन करेगा, ताकि इनकी चुनावी प्रक्रिया भी अन्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनावों के साथ समन्वयित हो सके। जिन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव है, उनमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम-1991, केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम-1963 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 शामिल हैं। यह प्रस्तावित विधेयक सामान्य कानून होगा, जिसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी और राज्यों के समर्थन की भी जरूरत नहीं होगी। उच्च-स्तरीय समिति ने 18 संशोधनों और नए प्रविष्टियों का प्रस्ताव रखा है, जिसमें तीन अनुच्छेदों में संशोधन और मौजूदा अनुच्छेदों में 12 नए उप-खंड शामिल हैं।

सरकार ने इस साल लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले 'एक देश, एक चुनाव' को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव होंगे, जबकि दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव कराए जाने का सुझाव दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना, लागत में कमी लाना, और राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देना है।

पहले एकसाथ होते थे चुनाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का विजन पेश किया था और इसे स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भी समर्थन मिला। उन्होंने इस विचार को लागू करने की आवश्यकता को बार-बार रेखांकित किया है। इसके तहत, देशभर में एक ही दिन या चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे। ऐसा पहले भी हुआ करता था, जब 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि, 1967 के बाद की स्थिति ने इस परंपरा को तोड़ दिया। कांग्रेस पार्टी के सत्ता (इंदिरा कार्यकाल) में रहते हुए विपक्ष द्वारा शासित कई विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं और इसके बाद लोकसभा भी भंग कर दी गई। यह प्रक्रिया कई दशकों तक नहीं बदली।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) के लागू होने से चुनाव के भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी। आजादी के बाद 1952 में चुनाव पर लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जबकि 2019 में चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। वर्तमान में यह खर्च बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। चुनाव एक साथ होने पर खर्च केंद्र और राज्य दोनों में बंट जाएगा और पूरे 5 सालों तक सरकार के कर्मचारी चुनाव की तैयारी में व्यस्त नहीं रहेंगे, जिससे विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। राजनीतिक दलों को भी चुनाव पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा, जिससे राजनीतिक भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा।

हालांकि, कुछ विपक्षी दल एक साथ चुनाव कराने पर सहमत नहीं हैं। उन्हें डर है कि इससे उनकी सत्ता खो सकती है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस डर को तार्किक नहीं माना जाता है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर 62 सियासी दलों से संपर्क किया था और इस पर जवाब देने वाले 47 पार्टियों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुल 15 पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से चुनाव के खर्च और आचार संहिता की बार-बार की बाधाओं से निजात मिलेगी, जिससे आम आदमी भी बहुत परेशान होता है। अचार संहिता में कई विकास कार्य रुक जाते हैं। चुनाव आयोग के लिए पहले चरण में दिल्ली समेत चार राज्यों के चुनाव कराने की योजना है। दूसरे चरण में बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, और पुदुचेरी के चुनाव होंगे। तीसरे चरण में उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, और त्रिपुरा के चुनाव होंगे।