अभिषेक सिंघवी ने कहा- खत्म कर देना चाहिए राज्यपाल का पद, जानें क्यों की ऐसी मांग?*
#abhishek_manu_singhvi_said_governor_post_should_be_abolished *
कांग्रेस नेता और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्यपाल के पद को लेकर बड़ा बयान दिया है। राज्यपालों और विपक्षी नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के बीच बढ़ते संघर्षों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंहवी ने कहा कि या तो राज्यपाल का पद खत्म कर देना चाहिए या फिर सबकी सहमति से ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करनी चाहिए जो तुच्छ राजनीति में शामिल न हो। इस दौरान कांग्रेस नेता ने केंद्र सरकार पर राज्यपालों की भूमिका को दयनीय बनाने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की कि संसद के दोनों सदनों में अध्यक्ष की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुधार किए जाएं। अभिषेक सिंघवी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को एक साक्षात्कार दिया। पीटीआई को दिए इंटरव्यू में सिंघवी ने संसद में आसन और विपक्ष के बीच टकराव को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘यह बहुत दुखद है.. इस कार्यकाल के पूरा होने तक मैं राज्यसभा में 20 साल की अवधि पूरी कर लूंगा। मैं संसदीय भावना को महत्व देता हूं। मैं वास्तव में इसमें विश्वास करता हूं। मेरा मानना है कि सेंट्रल हॉल मात्र एक जगह नहीं है, यह एक ‘अवधारणा’ (कॉन्सेप्ट) है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं दलगत भावना से अलग विशाल हृदय वाली उदारता में विश्वास करता हूं।‘ *सांसदों के निलंबन पर ये कहा* पिछली एनडीए सरकार के दौरान संसद के शीतकालीन सत्र में बड़े पैमाने पर सांसदों के निलंबन के संदर्भ में उन्होंने कहा, 'आप यह कहकर लोकतंत्र को नकार नहीं सकते कि असहमति के कारण मैं 142 लोगों को निलंबित कर दूंगा। विपक्ष को अपनी बात रखनी होगी और अंततः सरकार का अपना रास्ता होगा। लेकिन मुझे अपनी बात कहने की जरूरत है और आपको अपनी बात कहने की, उस प्रक्रिया को अपने आप चलने दीजिए। सिर्फ दिखावे के लिए संसद (आर्टिफिशियल पार्लियामेंट) नहीं हो सकती।' उन्होंने कहा कि अब यह राज्यों में भी हो रहा है और किसी एमएलसी को सिर्फ इस वजह से सदन से निष्कासित कर दिया जाता है कि उसने सरकार की आलोचना की। *स्पीकर के चुनाव पर खड़े किए सवाल* आगे उन्होंने बिना किसी राज्य का नाम लिए कहा कि अब तो राज्यों में भी यही हो रहा है। वहां किसी एमएलसी को मात्र इस कारण सदन से बाहर कर दिया जाता है कि उसने सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र का सार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विचार की स्वतंत्रता है। इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड की संसदीय व्यवस्था का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह पहले भारतीय संसदीय व्यवस्था में था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। आज हमारे यहां ऐसा है कि सत्ता धारी दल पहले से तय कर लेते हैं कि अगली संसद में फलाना व्यक्ति स्पीकर होगा, ऐसे में चुनाव से पहले उनकी सीट से कोई दूसरा चुनाव नहीं लड़ेगा और वह व्यक्ति निर्विरोध निर्वाचित हो जाएगा। *राज्यपालों की भूमिका बहुत दयनीय- अभिषेक मनु सिंघवी* सिंघवी ने राज्यपालों की भूमिका को लेकर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने केंद्र पर हमला करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार ने राज्यपालों की भूमिका बहुत दयनीय कर दी है। इस सरकार ने हर संस्था को नीचा दिखाया है। उन्होंने कहा कि आज राज्यपाल शासन को अवरुद्ध करते हैं। आज उनके स्तर पर विधेयकों को मंजूरी देने में विलंब होता है। तमिलनाडु में 10 विधेयकों को रोककर रखा गया था। तब जैसे ही मैंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो उससे एक दिन पहले ही दो तीन विधेयकों को मंजूरी दे दी गई और बाकी को राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया।
पैरालंपिक 2024 में भारत को मिला दूसरा गोल्ड, नितेश कुमार ने बैडमिंटन में जीता स्वर्ण

#paralympics_2024_nitesh_kumar_won_gold

पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत का दूसरा गोल्ड है।नीतेश कुमार ने पैरालंपिक गेम्स 2024 में अपने सपने को साकार करते हुए गोल्ड मेडल जीत लिया है।नितेश कुमार ने मेंस सिंग्लस बैडमिंटन एसएल3 में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। इसी के साथ भारत की झोली में अब कुल 9 मेडल हो गए हैं। जिनमें दो स्वर्ण हैं।

नीतेश ने ब्रिटिश पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी डैनियल बेथेल को पुरुष एकल एसएल3 वर्ग के पदक मुकाबले में 21-14, 18-21, 23-21 के स्कोर से हरा दिया। इस मुकाबले का पहला गेम नितेश ने 21-14 से जीता। हालांकि, वह दूसरे गेम में पिछड़ गए और बेथेल ने यह गेम 18-21 से अपने नाम किया। तीसरे गेम में दोनों खिलाड़ियों के बीच काफी कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने मिली और एक समय स्कोर 20-20 पर पहुंच गया था। हालांकि, नितेश ने 23-21 से यह गेम जीतकर स्वर्ण पदक हासिल किया।

पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल शूटर अवनि लेखरा ने जीता था। उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल SH1 में गोल्ड अपने नाम किया था। अब नितेश कुमार ने इस कारनामे को दोहराया है। बता दें, 2 गोल्ड के अलावा भारत की झोली में अभी तक 3 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल भी आ चुके हैं। बता दें, भारत को आज दो और गोल्ड मेडल मैच खेलने हैं। ऐसे में मेडल के साथ-साथ गोल्ड मेडल की संख्या भी बढ़ने की उम्मीद है।

विपक्ष की टीम में आरएसएस! जातीय जनगणना का संघ ने किया समर्थन, जानें क्या है इसके पीछे की वजह?*
#rss_big_statement_on_caste_census लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने मोदी सरकार पर जातीय जनगणना नहीं कराने का आरोप लगाया। इसके साथ ही कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष समेत कई पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में दावा किया था कि जैसे बिहार में नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराई और उसके नतीजों को सबके सामने रखा। ठीक उसी तरह सरकार में आने के बाद वह पूरे देश में जातीय जनगणना कराएंगे। हालांकि, विपक्ष की ये कामना पूरी नहीं हो सकी। हालांकि, अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने जातीय जनगणना को लेकर बड़ा बयान दिया है।केरल के पलक्कड़ में तीन दिन तक चली समन्वय बैठक के समापन के बाद आरएसएस ने विपक्ष के जाति जनगणना के लिए अपना समर्थन जताया है, मगर कुछ शर्तें भी रखी हैं। संघ की समन्वय बैठक में जातीय जनगणना के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। संघ ने जातीय जनगणना को संवेदनशील मुद्दा बताते हुए कहा कि जातीय जनगणना संवेदनशील विषय है। इससे समाज की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है। पंच परिवर्तन के तहत की गई इस चर्चा में संगठन ने फैसला किया है कि व्यापक पैमाने पर समरसता को बढ़ावा देने के लिए काम किया जाएगा। यह राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। संघ ने कहा कि जातीय जनगणना का इस्तेमाल चुनाव प्रचार और चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए बल्कि कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए और खासतौर पर दलित समुदाय की संख्या जानने के लिए सरकार उनकी गणना कर सकती है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जातिगत जनगणना देश की एकता-अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिये इसको बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस पर राजनीति नहीं की जा सकती है। जातिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अलग-अलग जातियों और समुदाय की भलाई के लिए करना चाहिए।सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ की राय स्पष्ट है, कौन सी जाति किस मामले में पिछड़ गई है, किन समुदाय पर विशेष ध्यान की जरूरत है, इन चीजों के लिए कई बार सरकार को उनकी संख्या की जरूरत पड़ती है। ऐसा पहले भी हो चुका है। हां, जातिगत नंबर का इस्तेमाल उनकी भलाई के लिए किया जा सकता है। न कि इसे चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए और राजनीति के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। अब तक संघ ने जाति-विहीन समाज की वकालत की है। वहीं, संघ ने जातिगत जनगणना न तो इसका समर्थन किया और न ही विरोध। हालांकि, आरएसएस पर हमेशा से जाति जनगणना के खिलाफ रहने का आरोप लगता रहा है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि “भाजपा को चलाने वाला आरएसएस हमेशा से जाति जनगणना के खिलाफ रहा है। उनका रुख बिल्कुल स्पष्ट है। दलितों और पिछड़ों को उनका हक किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए। इसी घृणित सोच के कारण 100 वर्षों में एक भी आरएसएस अध्यक्ष दलित या पिछड़े वर्ग से नहीं हुआ। देश में सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए जाति जनगणना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे शोषित, वंचित, दलित और पिछड़े वर्ग के लिए नीतियां बनाई जा सकेंगी, ताकि उन्हें समाज में समान अधिकार मिल सकें। आरएसएस और बीजेपी इसी बात से डरते हैं।” हालांकि, आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस साल की शुरुआत में आरक्षण की वकालत की थी और कहा था कि कोटा तब तक जारी रहना चाहिए जब तक समाज में भेदभाव है। यह बयान भागवत के पहले के रुख से हटकर था। 2015 में, उन्होंने गैर-पक्षपातपूर्ण पर्यवेक्षकों के एक पैनल द्वारा आरक्षण की समीक्षा का आह्वान किया था। बता दें कि हाल के दिनों में कांग्रेस ने इस मुद्दे को बहुत एग्रेसिव तरीके से उठाया। राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की मांग के साथ-साथ यह नारा दिया कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’। उन्होंने मांग की कि जातीय जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक हर जाति को आरक्षण भी मिलना चाहिए। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने जातीय जनगणना के मुद्दे को ज्यादा भाव नहीं दिया। उल्टा बिहार के जातिगत जनगणना पर तमाम सवाल भी उठाए। पर 2024 के चुनाव में जिस तरीके से उसे नुकसान हुआ और नीतीश-नायडू जैसे नेताओं से सहयोग लेकर सरकार बनानी पड़ी, उससे दबाव बढ़ा है। 2024 के चुनाव नतीजों ने संघ और बीजेपी को झकझोर दिया। भले ही वो ये कहें कि सबकुछ ठीक-ठाक है लेकिन अंदरखाने राजनीतिक रूप से बहुत प्रभाव पड़ा है। संघ और बीजेपी सोचने पर मजबूर हुई कि जिस तरीके से दलितों-पिछड़ों ने वोट की ताकत दिखाई, वो भाजपा के लिए बड़ा खतरा है। 90 के दशक की गैर भाजपाई-गठबंधन सरकारों का दौर लौट सकता है। उसको रोकने के लिए एक तरीके से संघ को मजबूरन यह स्टैंड लेना पड़ा। हालांकि, भले ही आरएसएस ने अपना रूख साफ कर दिया हो, लेकिन बीजेपी के लिए ये फैसला लेना अभी भी मुश्किल होगा। दरअसल, बीजेपी के सामने असल दुविधा ये है कि पार्टी को लगता है कि जातिगत जनगणना के बाद नंबर के मुताबिक आरक्षण की मांग भी उठेगी। ऐसे में बीजेपी के परंपरागत अगड़ी जातियों के वोटर नाराज हो सकते हैं।
भारत ने पैरालंपिक में जीता एक और मेडल, योगेश कथुनिया को डिस्कस थ्रो में मिला सिल्वर

#yogesh_kathuniya_wins_silver_medal_in_men_discus_throw_paris_paralympics

भारत के योगेश कथुनिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत पदक जीता।योगेश ने लगातार दूसरे पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है। उन्होंने इससे पहले टोक्यो गेम्स में भी यही मेडल जीता था। इस तरह भारत अब तक इन खेलों में आठ पदक जीत चुका है जिसमें एक स्वर्ण भी शामिल है।

पेरिस के स्टैड डि फ्रांस में हो रहे पैरालंपिक के एथलेटिक्स इवेंट में भारत की झोली में ये मेडल आया। योगेश कथुनिया ने मेन्स डिस्कस थ्रो एफ 56 इवेंट में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। खास बात ये है कि योगेश ने अपने पहले ही प्रयास में ये थ्रो किया था, जो उन्हें मेडल जिताने के लिए काफी था। ये इस सीजन में योगेश का बेस्ट थ्रो भी था। योगेश कथुनिया का पहला थ्रो 42.22 मीटर का फेंका। इसके बाद दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां क्रमश 41.50 मीटर, 41.55 मीटर, 40.33 मीटर और 40.89 मीटर का रहा।

योगेश कथुनिया ने इससे पहले टोक्यो ओलंपिक 2020 में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। इस तरह उन्होंने लगातार दूसरे पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है।पैरालंपिक 2024 में भारत को एथलेटिक्स में ये चौथा मेडल मिला है। उनसे पहले प्रीति पाल ने 100 मीटर और 200 मीटर की अपनी कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीते थे। वहीं निषाद कुमार ने मेंस हाई जंप में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। निषाद ने भी लगातार दूसरे पैरालंपिक में सिल्वर जीता था। अब योगेश ने भी अपनी सफलता को दोहराया है। कथूनिया की ये सफलता इसलिए भी खास है क्योंकि सिर्फ 9 साल की उम्र से ही वो अपनी शारीरिक समस्या से जूझ रहे हैं।

अगर भारत ने शेख हसीना को बांग्लादेश नहीं भेजा तो...',खालिदा जिया की पार्टी के नेता को है संबंधों की चिंता या दे रहे धमकी?

#bangladesh_crisis_bnp_mirza_alamgir_if_india_not_send_hasina_bilateral_relations_will_deteriorate

पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ने वालीं शेख हसीना इन दिनों भारत में हैं। मगर शेख हसीना का भारत में होना बांग्लादेश को रास नहीं आ रहा है।बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि शेख हसीना के प्रत्यार्पण को लेकर भारत-बांग्लादेश संबंधों पर बयान दिया है। हालांकि उनके बयान से उस तरह के सवाल उठ रहे है कि उन्हें दोनों देशों के संबंधों की चिंता सता रही है या वो शेख हसीने के प्रत्यारण के बहाने भारत को धमकाने का कोशिश कर रहे हैं?

दरअसल, खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक नया अध्याय शुरू करना महत्वपूर्ण है, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण के साथ शुरू होना चाहिए, क्योंकि भारत में उनकी निरंतर उपस्थिति द्विपक्षीय संबंधों को और नुकसान पहुंचा सकती है। बीएनपी में दूसरे नंबर के नेता आलमगीर ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी पार्टी भारत के साथ मजबूत संबंधों की इच्छुक है। उन्होंने कहा कि वह ‘‘पिछले मतभेदों को दूर करने और सहयोग करने के लिए’’ तैयार हैं।

आलमगीर ने कहा कि अगर भारत हसीना की बांग्लादेश वापसी सुनिश्चित नहीं करता है, तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध खराब होंगे। उन्होंने कहा, ‘यहां पहले ही भारत के खिलाफ गुस्सा है, क्योंकि उसे शेख हसीना की निरंकुश सरकार के समर्थक के रूप में देखा जाता है। अगर आप बांग्लादेश में किसी से भी पूछेंगे, तो वह यही कहेगा कि भारत ने शेख हसीना को शरण देकर ठीक नहीं किया।‘

बीएनपी नेता ने कहा कि हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की खबरें सही नहीं हैं, क्योंकि ज्यादातर घटनाएं सांप्रदायिक होने के बजाय राजनीति से प्रेरित थीं। उन्होंने कहा, ‘शेख हसीना को खुद और अपनी सरकार की ओर से किए गए सभी अपराधों और भ्रष्टाचार के लिए बांग्लादेश के कानून का सामना करना पड़ेगा। इसे संभव बनाने और बांग्लादेश के लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए भारत को उनकी बांग्लादेश वापसी सुनिश्चित करनी चाहिए।‘

एक साक्षात्कार में आलमगीर ने कहा कि अगर बीएनपी सत्ता में आती है, तो वह आवामी लीग सरकार के दौरान हुए ‘विवादित’ अडाणी बिजली समझौते की समीक्षा और पुन: मूल्यांकन करेगी, क्योंकि इससे बांग्लादेश के लोगों पर ‘भारी दबाव’ पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि यह भारत की कूटनीतिक विफलता है कि वह बांग्लादेश के लोगों की मानसिकता को समझने में नाकाम रहा। आलमगीर ने कहा कि जन आक्रोश के बीच हसीना सरकार के पतन के बाद भी ‘भारत सरकार ने अभी तक बीएनपी से बातचीत नहीं की है, जबकि चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान पहले ही बात कर चुके हैं।’

बता दें कि पिछले महीने अगस्त में आरक्षण के खिलाफ बांग्लादेश में हिंसका छात्र आंदोलन में 400 से अधिक लोगों की जान गई थी। छात्र आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण व्यवस्था में सुधार किया लेकिन बाद में छात्रों ने शेख हसीना से इस्तीफे की मांग की। उग्र भीड़ ढाका में पीएम आवास की तरफ बढ़ने लगी थी। बांग्लादेश सेना के दबाव में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और अपना देश भी छोड़ना पड़ा था।

हिन्दुओं को कुत्ता-काफिर कहने वाले मौलाना अजहरी की रिहाई के लिए जुटी मुस्लिम भीड़, वीडियो हो रहा वायरल

उत्तर प्रदेश के बरेली में हाल ही में हुए एक कार्यक्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय ने मुफ़्ती सलमान अजहरी की रिहाई के लिए प्रदर्शन किया। फरवरी 2024 से गुजरात की जेल में बंद मौलाना अज़हरी ने खुले मंच से हिन्दुओं को कुत्ता काफिर कहा था और सांप्रदायिक नफरत फ़ैलाने वाले भाषण दिए थे। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हुए और उन्होंने बैनर-पोस्टर लेकर मुफ़्ती की रिहाई की माँग की। इस भीड़ ने कार्यक्रम के दौरान शोर मचाया और रिहाई के समर्थन में नारे लगाए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह घटना बरेली में उर्स-ए-रजवी के मौके पर हुई, जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम लोग शामिल हुए थे। कार्यक्रम के समापन के दिन, 30 अगस्त 2024 को, भीड़ ने मुफ़्ती सलमान अजहरी की रिहाई के समर्थन में नारे लगाए। मंच पर मौजूद मौलानाओं ने भी इस मांग का समर्थन किया और सलमान अजहरी के साथ खड़े होने की बात कही। एक मौलाना आकिल रजवी ने यह भी कहा कि किसी सहाबी के खिलाफ बोलने वालों की जुबान बंद कर दी जाएगी। मंच से मुफ़्ती सलमान अजहरी की रिहाई के लिए दुआ भी पढ़ी गई और कार्यक्रम के अंत में फिलिस्तीन के लिए भी दुआ की गई। मुफ़्ती सलमान अजहरी को फरवरी 2024 में गुजरात की एक जेल में भेजा गया था। उसने जनवरी 2024 में एक कार्यक्रम में हिन्दुओं की तुलना कुत्ते से की थी और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया था। इसके बाद उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और मुंबई से गुजरात की एटीएस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इसके अतिरिक्त, उसके खिलाफ महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी कई FIR दर्ज की गई हैं, जिनमें दंगा भड़काने और संपत्ति नष्ट करने के मामले शामिल हैं। इधर, विद्वान लोगों के बीच चर्चा जोरों पर है कि मुस्लिम भीड़ इस तरह के अपराधियों के समर्थन में क्यों इकट्ठा होती है, जो समाज में नफरत और विष फैलाते हैं? समाज में राष्ट्रप्रेम और एकता का संदेश देने वाले व्यक्तियों जैसे मिसाइलमैन अब्दुल कलाम, वीर अब्दुल हामिद, और शहीद अशफाकुल्लाह खान को प्रेरणा के रूप में क्यों नहीं देखा जाता? क्या कारण है कि आखिर समाज में इन सकारात्मक उदाहरणों की जगह हिंसा और घृणा फैलाने वालों को अधिक महत्व दिया जाता है।
उज्जैन में महाकाल की सवारी में इस्लामिक शब्द- 'शाही' पर छिड़ा बवाल, यहां जानिए, क्या है पूरा मामला

महाकाल की नगरी उज्जैन में इन दिनों आक्रोश व्याप्त है। हालांकि, यह आक्रोश सड़कों पर नहीं बल्कि विद्वानों के विमर्श के जरिए व्यवस्था में परिवर्तन की मांग के रूप में उभर रहा है। इसका कारण है उज्जैन के राजा और ब्रह्मांड के अधिपति महाकाल की सवारी को 'शाही सवारी' कहना। विद्वानों, संस्कृतज्ञों, अखाड़ों के साधुओं तथा सनातन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि 'शाही' शब्द में इस्लामिक आक्रांताओं और राजशाही की गंध आती है। इसलिए, महाकाल की सवारी को 'शाही सवारी' न कहा जाए। इसकी जगह, संस्कृत या हिंदी का कोई उपयुक्त शब्द प्रचलन में लाया जाना चाहिए। विद्वतजन यह भी कहते हैं कि इस परिवर्तन के लिए सीएम डॉ. मोहन यादव को स्वयं पहल करनी होगी, तभी सरकार के दस्तावेजों से लेकर आम जनजीवन तक में 'शाही' शब्द को हटाया जा सकेगा। गौरतलब है कि इस बार सावन-भाद्रपद मास की अंतिम सवारी आज, सोमवार 2 सितंबर को निकाली जाएगी। यह इस साल की महाकाल की अंतिम तथा भव्यातिभव्य सवारी होगी, जिसे देखने के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु आएंगे। इसी अंतिम सवारी से पहले, इसे 'शाही' कहे जाने के विरोध में विद्वानों का यह आक्रोश सामने आया है। आक्रोश का कारण प्रतिवर्ष श्रावण-भाद्रपद मास के प्रत्येक सोमवार को महाकाल की सवारी निकलती है, जिसमें महाकाल पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। महाकाल की अंतिम सवारी सबसे भव्य होती है, इसलिए इसे 'शाही सवारी' कहा जाता रहा है। किन्तु, इसे 'शाही' कहने पर उज्जैन के संतों, विद्वानों और अखाड़ों के साधुओं में असहमति और आक्रोश है। उनका कहना है कि जिस महाकालेश्वर मंदिर पर साल 1234 में क्रूर इस्लामिक शासक इल्तुतमिश ने हमला किया था तथा कत्लेआम मचाया था, उसी इस्लामिक शब्द 'शाही' को महाकाल की सवारी से जोड़ना अनुचित है। इसलिए, इसे तुरंत हटाकर संस्कृत या हिंदी का कोई ऐसा शब्द अपनाया जाए जो इस सवारी की पवित्रता और भव्यता को सही अर्थों में व्यक्त कर सके। विद्वानों की प्रतिक्रिया कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन के निदेशक डॉ. गोविंद गंधे का कहना है कि महाकाल की सवारी को 'शाही' बोलना उनका अपमान है। 'शाह' तो मुगलों तथा यवनों का शब्द है। यह पराधीनता के प्रभाव में प्रचलन में आ गया होगा। जब इसे लोक ने मान्यता दी, तो शास्त्रों ने भी हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन अब इसे हटाना आवश्यक है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरुरत है। महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त कहते हैं कि 'शाही' शब्द सामंती परंपरा का प्रतीक है। महाकालेश्वर कोई शाह या सामंत नहीं, बल्कि भगवान हैं। इसलिए, 'शाही' शब्द को हटाया जाना चाहिए।
दिल्ली के ओखला से आप विधायक अमानतुल्लाह खान की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी ने कहा, मां को कैंसर है, कुछ भी हुआ तो कोर्ट लेकर जाऊंगी

दिल्ली के ओखला से आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक अमानतुल्लाह खान को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गिरफ्तार कर लिया है। यह घटना आज सोमवार (2 सितंबर 2024) सुबह की है, जब ईडी के अधिकारी उनके घर पहुँचे। इससे पहले, अमानतुल्लाह खान ने अपने ट्विटर अकाउंट पर जानकारी दी थी कि ईडी के अधिकारी उन्हें गिरफ्तार करने आए हैं। हालांकि, उस समय मीडिया में कहीं भी ईडी की ओर से इस गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की गई थी, लेकिन अब एक वीडियो सामने आई है जिसमें अधिकारियों को उन्हें ले जाते हुए दिखाया गया है। बताया जा रहा है कि ये मामला वक्फ बोर्ड में भर्तियों से जुड़ी गड़बड़ी का है, जिसमे अमानतुल्लाह आरोपी हैं। खुद अमानतुल्लाह खान ने एक वीडियो साझा की थी जिसमें उनकी और ईडी अधिकारियों की बातचीत दिखाई गई थी। वीडियो में खान दरवाजे पर खड़े अधिकारियों से पूछते नजर आ रहे थे कि, “मैंने आपसे चार दिन का समय माँगा था, मेरी सास का हाल ही में ऑपरेशन हुआ है, और आप मुझे अरेस्ट करने के लिए आ गए।” इस पर अधिकारियों ने जवाब दिया, “आपने यह कैसे मान लिया कि हम आपको अरेस्ट करने आए हैं।” इस पर खान ने फिर पूछा, “अगर आप अरेस्ट करने नहीं आए हैं तो क्यों आए हैं?” वहीं, उनकी पत्नी ने कहा, “तीन कमरों के घर में किस चीज का सर्च है? मेरी माँ को कैंसर है और उनका ऑपरेशन हुआ है। अगर मेरी माँ को कुछ भी हुआ तो मैं आपको कोर्ट लेकर जाऊँगी।” इस दौरान, अमानतुल्लाह खान लगातार पूछते रहे, “मेरे पास क्या है जो आप लोग सर्च करने आए हैं?” उन्होंने वीडियो में बताया, “सुबह के 7 बजे हैं और ईडी वाले मेरे घर पर सर्च वारंट के नाम पर मुझे अरेस्ट करने के लिए आए हैं। मेरी सास को कैंसर है और अभी चार दिन पहले उनका ऑपरेशन हुआ है। मैंने हर नोटिस का जवाब दिया है, लेकिन इनका मकसद सिर्फ मुझे गिरफ्तार करना है और हमारे कामों को रोकना है।” खान ने आगे कहा कि ईडी वाले आम आदमी पार्टी को लगातार परेशान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री और पूर्व उप मुख्यमंत्री को जेल भेजा गया, सत्येंद्र जैन अभी भी जेल में हैं, और अब उन्हें भी गिरफ्तार करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि इनका मकसद पार्टी को तोड़ना है, लेकिन वे डरने वाले नहीं हैं और जेल जाने के लिए तैयार हैं। उन्हें कोर्ट से इंसाफ की उम्मीद है। अमानतुल्लाह खान ने यह भी कहा कि मामला 2016 का है, जिसकी जाँच पहले ही एसीबी, सीबीआई, और ईडी कर चुकी है, और सीबीआई ने कहा था कि कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है, फिर भी अब ये लोग फिर से आ गए हैं। इस बीच, खान के घर के बाहर की एक वीडियो भी सामने आई थी, जिसमें सुरक्षा बलों की तैनाती दिखाई दे रही थी।
कांग्रेस में भी कास्टिंग काउच !, वही महिला आगे जाती है जो..', कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सिमी रोजबेल जॉन ने किया दावा

केरल कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सिमी रोजबेल जॉन ने पार्टी में महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि पार्टी में भी फिल्म इंडस्ट्री की तरह कास्टिंग काउच जैसी स्थिति है, जहां केवल उन महिलाओं को आगे बढ़ाया जाता है, जो बड़े नेताओं की करीबी हैं। इस बयान के बाद दावा किया जा रहा है कि सिमी रोजबेल के इन आरोपों की जांच करने के बजाए, कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सिमी रोजबेल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि महिलाओं का शोषण राजनीति और दफ्तरों में भी होता है। उन्होंने बताया कि कई महिला सहयोगियों ने उन्हें अपने बुरे अनुभव साझा किए हैं और उन्होंने हमेशा सलाह दी है कि वे अकेले नेताओं से न मिलें और अपने परिवार के किसी सदस्य या दोस्त को भी साथ ले जाएं। रोजबेल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस में भी फिल्म उद्योग की तरह कास्टिंग काउच जैसे हालात हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी में केवल वही महिलाएं तरक्की करती हैं जो शीर्ष नेताओं के करीबी संपर्क में होती हैं। उन्होंने कई महिला नेताओं की राजनीतिक क्षमता पर भी सवाल उठाए। सिमी रोजबेल ने यह भी कहा कि उनके पास कई महिलाओं के अनुभव और सबूत मौजूद हैं, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव का कोई खुलासा नहीं किया। इन आरोपों के बाद, कांग्रेस ने कोई जवाब देने या सबूत देखकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए, सिमी रोजबेल को ही पार्टी से निष्कासित कर दिया है। जिससे देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पर सवाल उठने लगे हैं। आलोचकों का कहना है कि यूँ तो प्रियंका गांधी, लड़की हूँ लड़ सकती हुईं के नारे लगाती है, लेकिन उनकी पार्टी में एक महिला को अपनी बात का भी हक नहीं। वहीं, पार्टी से निकाले जाने के बाद भी सिमी रोजबेल की प्रतिक्रिया सामने आई है, उन्होंने कहा है कि कांग्रेस में उन महिलाओं को काम करने का मौका नहीं मिलता, जिनके पास गरिमा होती है। उन्होंने केरल के बड़े नेता वीडी सतीशन पर भी आरोप लगाए। सिमी रोजबेल के आरोपों के बाद, राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी CPIM ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सवाल उठाए हैं। हालाँकि, ये पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने अपनी महिला नेताओं को आवाज़ उठाने के लिए बाहर का रास्ता दिखाया है। इससे पहले भी कॉन्ग्रेस ने उन नेताओं को पार्टी से बाहर किया है, जिन्होंने बड़े नेताओं के खिलाफ बोलने की कोशिश की। उदाहरण के तौर पर, यूथ कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष अंगकिता दत्ता को भी पार्टी से निकाल दिया गया था, जिन्होंने यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास और सेक्रेटरी इंचार्ज वर्धन यादव पर लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न और बदजुबानी का आरोप लगाया था। दत्ता ने कहा था कि राहुल गांधी ने उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया और उनका उत्पीड़न जारी रहा। इसी तरह कांग्रेस प्रवक्ता राधिका खेड़ा के साथ हुआ था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने शराब पीकर उनके साथ छेड़खानी की है। राधिका ने इसके लिए राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, भूपेश बघेल, सचिन पायलट से भी शिकायत की और न्याय की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने उनकी सुनवाई नहीं की। 10 साल तक कांग्रेस में सेवाएं देने वाली प्रियंका चतुर्वेदी का भी ऐसा ही किस्सा है, उनके साथ मथुरा में एक प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेस नेताओं ने बदसलूकी की थी। जिसके बाद प्रियंका ने प्रेस वार्ता छोड़ दी, लेकिन तब कांग्रेस नेता उनके कमरे तक पहुँच गए और बदतमीजी की। शिकायत पर 8 कांग्रेस नेताओं को कुछ दिन के लिए निलंबित किया गया, लेकिन जल्द ही उनकी वापसी हो गई। आखिरकार प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़कर शिवसेना (उद्धव गुट) ज्वाइन कर ली। इसके अलावा महिलाओं के लिए कांग्रेस नेताओं के बयान भी काफी चर्चित रहे हैं। फिर वो पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का एक महिला को टंच माल कहना हो या दिग्गज कांग्रेसी कमलनाथ द्वारा एक महिला विधायक को आइटम कहना हो। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भी पीछे नहीं हैं, उन्होंने महिला विधायक इमरती देवी पर कहा था कि इमरती देवी का तो रस ख़त्म हो चुका है। हालाँकि, इन नेताओं के बयान पर कांग्रेस हाईकमान ने कोई कार्रवाई नहीं की है।
बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कोई दोषी है तो भी घर को ध्वस्त करना कानून के खिलाफ*
#supreme_court_strict_comment_regarding_bulldozer_action बुलडोजर एक्शन के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल खड़े किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं हो सकती, यह कानून के खिलाफ है। दरअसल जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाल ही में यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई घटनाओं का हवाला देते हुए बुलडोजर एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या कोई किसी का भी घर सिर्फ इसलिए तबाह कर सकता है, क्योंकि वह आरोपी है? न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से सीनियर एडवोकेट दुष्यन्त दवे ने कहा कि सारे विवाद पर विराम लग सकता है अगर सरकार आश्वस्त कर दे कि बुलडोजर जस्टिस के नाम पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। जस्टिस गवई ने बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है तो भी कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह आरोपी है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि वह किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगा।   सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मुददे पर अगस्त 2022 में सरकार ने हलफनामा दायर कर साफ किया है कि केवल आरोपी होने से किसी की प्रॉपर्टी पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। केवल म्युनिसिपल कानून के उल्लंघन में ही ऐसा किया जा सकता है. जिन जगहों पर कार्रवाई हुई है, वहां नोटिस जारी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में गाइडलाइन बनाए जाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद हम इस मामले में दिशा-निर्देश जारी करेंगे, जो पूरे देश भर में लागू होगा इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से सुझाव मांगा है। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों का सुझाव आने दीजिए, हम राष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी करेंगे। इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 सितंबर की तारीख तय की गई है।