क्या पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे से रूस होगा नाराज?
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रूस की यात्रा के ठीक 6 हफ्ते बाद प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन पहुंच रहे हैं। यह वही देश है जब पीएम मोदी ने पुतिन को गले लगाया था, तब खूब जहर उगला था। वह पीएम मोदी और पुतिन की दोस्ती और गले मिलने से खफा था। लोकतंत्र की दुहाई देने लगा था। मगर आज वही देश पीएम मोदी को गले लगाने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे पर रूस की क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या रूस भी यूक्रेन की तरह अपना आक्रोश जताएगा?
बता दें कि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बावजूद भारत ने रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा हैं। पीएम मोदी ने कई मौकों पर रूस और यूक्रेन में शांति का आह्वान किया है। हालांकि, उन्होंने युद्ध के लिए सीधे तौर पर रूस को जिम्मेदार ठहराने से इनकार किया है। जुलाई में पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी बैठक के दौरान ही रूसी सेना ने यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर घातक हमला किया था। हालांकि, पीएम मोदी ने पुतिन के सामने ही उस हमले को लेकर सार्वजनिक तौर पर दुख जाहिर किया था। उस समय मोदी ने कहा, "जब मासूम बच्चों की हत्या की जाती है, तो दिल दुखता है और वह दर्द बहुत भयानक होता है।"
जहां तक रूस के नाराज होने की बात है, तो बता दें कि रूस और भारत के बीच सैन्य, व्यापार और कूटनीतिक संबंध पहले से ही गहरे हैं। भारत अपने तेल का 40% से अधिक और अपने हथियारों का 60% रूस से खरीदता है। भारत हर साल बड़ी मात्रा में कोयला, उर्वरक, वनस्पति तेल और कीमती धातुओं का भी आयात करता है। यूक्रेन पर आक्रमण के कारण पश्चिमी देशों ने भारत को रूस से दूर करने की भरसक कोशिश की, लेकिन यह उनके लिए उल्टा साबित हुआ। इस दबाव ने भारत और रूस के संबंधों को और ज्यादा मजबूत किया।
यही नहीं, भारत इसलिए भी रूस को नहीं छोड़ना चाहता कि उसे डर है कि कहीं मॉस्को अलग-थलग होने पर चीन के बहुत ज्यादा करीब न चला जाए। चीन और रूस के बीच एक लंबा और जटिल रिश्ता है और जो धीरे धीरे मजबूत हो रहा है। दशकों की प्रतिद्वंद्विता के बाद, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के सामने आखिरकार दोनों देश एक साथ आ गए हैं। रूस अगर भारत के सबसे बड़े दुश्मन के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है तो भारत को रूस को भी यह जताना जरूरी है कि वह पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता।
चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती के चलते ही भारत अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति का भी बड़ा समर्थक रहा है, जिसने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश के लिए समर्थन का वादा किया गया है। भारत को डर है कि चीन बंगाल की खाड़ी में अपनी नौसैनिक प्रक्षेपण क्षमताओं को बदलने के लिए रूस पर दबाव डाल सकता है। 21यही नहीं रूस के संबंध उत्तर कोरिया और ईरान के साथ भी नजदीकियां बढ़ रही हैं। जाहिर है कि ये देश एक लोकतंत्र विरोधी धुरी बना रहे हैं जो कानून के शासन, मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की पवित्रता को नजरअंदाज करने के लिए तैयार हैं।
ऐसे में भारत खुद को शांतिदूत के रूप में पेश करने और मानवीय सहायता में शामिल होने की कोशिश करेगा। यूक्रेन भी जानता है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जिस पर वह मध्यस्थ के रूप में भरोसा कर सकता है। इसके अलावा दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है, जो रूस और यूक्रेन पर एक समान प्रभाव डाल सके।
Aug 23 2024, 11:41