टीबी का लक्षण हो तो दस्तक की टीम को बताएं, इलाज में मदद पाएं
गोरखपुर।जिले में इस समय चल रहे दस्तक अभियान के दौरान टीबी के नये मरीजों को खोजने पर विशेष जोर है। इकतीस जुलाई तक चलने वाले इस अभियान के दौरान आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को घर घर जाने का निर्देश दिया गया है। भ्रमण के जरिये वह बुखार के रोगियों को सूचीबद्ध करेंगी, संचारी रोगों से बचाव के उपाय बताएंगी, डायरिया रोको अभियान के तहत ओआरएस का पैकेट देंगी और साथ ही साथ टीबी, फाइलेरिया और कुष्ठ के मरीजों को भी खोजेंगी।
वर्ष 2025 तक जिले में टीबी का उन्मूलन हो सके, इसके लिए विभागीय प्रयासों के साथ समुदाय के स्तर से सहयोग मिलना नितांत आवश्यक है। लोगों से अपील है कि वह घर घर घूम रही आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को टीबी के संभावित लक्षण वाले मरीजों के बारे में जरूर बताएं। इस टीम की मदद से मरीजों की न केवल जांच हो सकेगी, बल्कि सम्पूर्ण इलाज भी संभव होगा।’’
यह जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने दी। वह एक चेस्ट फिजिशियन भी हैं। उन्होंने बताया कि अगर किसी को दो सप्ताह से अधिक की खांसी आ रही है तो वह टीबी का मरीज भी हो सकता है। ध्यान रखना है कि खांसी का ऐसा हर मरीज टीबी का रोगी नहीं होता है, लेकिन अगर यह लक्षण है तो टीबी की जांच करूर कराई जानी चाहिए। इसके अलावा बलगम में खून, सांस फूलना, तेजी के साथ वजन गिरना, भूख न लगना, रात में पसीने के साथ बुखार आना जैसे लक्षण भी टीबी में नजर आते हैं। अगर किसी के परिवार का कोई सदस्य या पड़ोसी व रिश्तेदार इन लक्षणों से ग्रसित है तो उसे जांच के लिए प्रोत्साहित करना है।
अगर ऐसे लोगों की समय से जांच हो जाए और इलाज हो तो वह न केवल वह ठीक हो जाते हैं, बल्कि दूसरे लोग भी टीबी संक्रमित होने से बच जाते हैं।
डॉ दूबे ने बताया कि सामाजिक भेदभाव के डर से टीबी मरीज जांच व इलाज के लिए कई बार सामने नहीं आते हैं। अगर एक मरीज की समय से पहचान कर इलाज न हो तो वह वर्ष में दस से बारह लोगों को टीबी संक्रमित कर सकता है, लेकिन यदि ऐसे मरीज को खोज कर तुरंत दवा शुरू कर दी जाए तो वह तीन हफ्ते बाद किसी को भी संक्रमित नहीं करता है। सरकारी अस्पतालों में टीबी की समस्त जांचे व इलाज की सुविधा उपलब्ध है । मरीजों को इलाज के साथ सही पोषण देने के लिए पांच सौ रुपये प्रति माह की दर से उनके खाते में भी दिये जाते हैं। इस तरह ड्रग सेंसिटिव टीबी मरीज छह माह में, जबकि ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी मरीज डेढ़ से दो साल में ठीक हो जाता है।
इन स्थानों पर है सुविधा
सभी आयुष्मान आरोग्य मंदिर पर बलगम संग्रह कर पीएचसी से जांच कराई जाती है
सीएचसी पर बलगम के साथ एक्स रे जांच की सुविधा
पीएचसी पर बलगम जांच की सुविधा
जिला क्षय रोग केंद्र, बड़हलगंज और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सीबीनॉट जांच की सुविधा
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कल्चर डीएसटी जांच की सुविधा
नौ हजार से ज्यादा मरीज उपचाराधीन
सीएमओ ने बताया कि जिले में इस समय टीबी के करीब नौ हजार से अधिक मरीज उपचार ले रहे हैं। जो मरीज जरूरतमंद हैं उन्हें निःक्षय मित्रों के जरिये एडॉप्ट भी कराया जा रहा है ताकि उनकी अच्छी देखभाल हो सके।
Jul 18 2024, 19:21
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