गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में मुस्लिम संगठन, क्या राजीव गांधी की तरह झुकेगी मोदी सरकार
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। अदालत ने कहा कि सीआरपीसी का ये प्रावधान सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, फिर वे किसी भी धर्म को मानती हों। अदालत ने ये भी साफ कर दिया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में बने एक बेहद विवादित कानून को बड़ा झटका दिया है।

*शाह बानो केस को पलटने राजीव सरकार ने लाया था कानून*
दरअसल, राजीव गांधी सरकार ने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के इसी तरह के आदेश को पलटने के लिए नया कानून बना दिया था। शाह बानो नाम की मुस्लिम महिला को जब सुप्रीम कोर्ट ने पति से गुजारा भत्ता लेने का हकदार बताया था तब 1985 में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ते के हकदार माने जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सड़क से सदन तक जबरदस्त लड़ाई लड़ी थी। मुस्लिम समुदाय के आक्रोश के आगे झुककर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद से मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 कानून पारित करवा दिया था। इस अधिनियम ने तलाक के बाद केवल 90 दिनों तक मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया।

*सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुस्लिम संगठनों में उत्तेजना*
इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने बोर्ड और मुस्लिम संगठनों को फिर उत्तेजित कर दिया है। ताजा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी धर्म की महिलाओं पर लागू होता है यानी यह एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कह दिया है कि यह फैसला हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं। इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है।

*38 साल पहले वाला वाकया दोहराने की कोशिश*
पहली नजर में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला एक तलाकशुदा जोड़े अब्दुल समद और उसकी पत्नी के बीच की कानूनी लड़ाई के निपटारे तक सीमित है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठनों का नजरिया इसे लेकर जुदा है। वे इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में सीधा हस्तक्षेप मानते हैं और इस फैसले के दूरगामी प्रभावों को लेकर फिक्रमंद हैं। स्वाभाविक है कि वे चाहेंगे कि यह पलटा जाए। ठीक वैसे ही जैसे करीब 38 साल पहले शाह बानो मामले में हुआ था।

*विरोध का कानूनी रास्ता तलाश रहे मुस्लिम संगठन*
अब फैसले से असंतुष्ट होने के बाद भी बोर्ड सधे कदमों के साथ आगे बढ़ रहा है और कानूनी रास्तों पर जोर दे रहा है।जिस तरह से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मांग तेज हुई है, उसने भी मुस्लिम संगठनों की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें लगता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के पूरे किले के ही ढह जाने का खतरा पैदा हो गया है। तीन तलाक जैसे मामलों में मोदी सरकार के रुख को देखते हुए मुस्लिम संगठन सार्वजनिक तौर पर विरोध के बजाय अंदरखाने रणनीति बनाने में जुटे हैं।
दबाव की राजनीति की जगह आंतरिक बैठकों में विरोध का कानूनी रास्ता तलाशा जा रहा है। जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं डाली जा सकती हैं। कांग्रेस, सपा व द्रमुक जैसे विपक्षी दलों को भी साथ आने का आह्वान किया जा सकता है, जिससे देश में राजनीतिक हलचल तेज हो सकती है।
पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पर बैन की तैयारी में शरीफ सरकार, सजा-ए मौत का भी खतरा!
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पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।पाकिस्तान की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी पर देश विरोधी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के लिए प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। यह जानकारी शहबाज शरीफ सरकार में सूचना मंत्री अताउल्लाह तरार ने दी।

तरार ने कहा कि उनकी सरकार पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने जा रही है क्योंकि पाकिस्तान और पीटीआई एक साथ नहीं रह सकते। ये पार्टी और इसकी सोच देश के लिए खतरा बन गए हैं और इसके लोग देशविरोधी कामों में शामिल हैं। प्रतिबंध के फैसले की घोषणा करते हुए मंत्री तरार ने कहा कि पीटीआई पर कार्रवाई के लिए विश्वसनीय सबूत मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि विदेशी फंडिंग मामले 9 मई के दंगे, सिफर प्रकरण और अमेरिका में पारित प्रस्ताव को देखते हुए हमारी सरकार मानना है कि पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए लिए ये बहुत विश्वसनीय सबूत हैं।

पाकिस्तान सरकार ने पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही इमरान खान, पूर्व राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और पूर्व उप सभापति कासिम सूरी के खिलाफ आर्टिकल 6 लगाने का भी ऐलान किया है। आर्टिकल 6 के तहत मामले में मौत की सजा हो सकती है। इससे उनके भविष्य में चुनाव लड़ने पर भी संकट हो सकता है।

सरकार का यह फैसला पीटीआई को आरक्षित सीटों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राहत के साथ-साथ अवैध विवाह मामले में खान को दी गई राहत के बाद आया है। विशेषज्ञों का कहना है क‍ि यह इमरान खान का सियासी वजूद खत्‍म करने की तैयारी है, ताक‍ि वे अपनी लोकप्र‍ियता का फायदा न उठा पाएं।

71 साल के इमरान खान पाकिस्तान के लोकप्रिय क्रिकेटर रहे हैं। उनकी कप्तानी में पाकिस्तान ने 1992 में एकदिवसीय वर्ल्डकप जीता था। खेल के बाद वह राजनीति में आए। 1996 में उन्होंने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का गठन किया। 1996 से 2023 तक वह पीटीआई के अध्यक्ष रहे हैं। अगस्त 2018 से अप्रैल 2022 तक वह पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री के रूप में काम कर चुके हैं। 2022 पीएम पद से हटने के बाद उनकी मुश्किलें शुरू हुईं। उन पर कई मामले दर्ज हुए और उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इमरान फ‍िलहाल रावलपिंडी की अडियाला जेल में बंद हैं। उनको दो मामलों में सजा भी सुनाई जा चुकी है।
संसद सुरक्षा चूक मामले में आरोपियों के खिलाफ UAPA के तहत चलेगा केस, पुलिस ने दायर की सप्लीमेंट्री चार्जशीट
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13 दिसंबर, 2023 को संसद की सुरक्षा में चूक का मामला सामने आया था। इस मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कर दी है। एलजी वीके सक्सेना से सभी आरोपियों पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने के बाद स्पेशल सेल ने सोमवार को पटियाला हाउस कोर्ट में आरोप पत्र दायर किया।इस मामले में अब आरोपियों को दो अगस्त को कोर्ट में पेश किया जाएगा और सुनवाई होगी।

विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अधिवक्ता अखंड प्रताप सिंह ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. हरदीप कौर को सूचित किया कि जांच एजेंसी ने संबंधित अधिकारियों से यूएपीए की धारा 13 के तहत अभियोजन की मंजूरी प्राप्त कर ली है। एसपीपी अखंड प्रताप ने अदालत को यह भी बताया कि कुछ एफएसएल रिपोर्ट का इंतजार है जो जल्द ही जमा कर दी जाएंगी। दलील पर गौर करने के बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने मामले को संज्ञान पर बहस के लिए 2 अगस्त, 2024 के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। इस बीच अदालत ने सभी आरोपियों की न्यायिक हिरासत भी उसी तारीख तक बढ़ा दी।

इस मामले में उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने छह आरोपियों पर गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दी है।इस मामले में दिल्ली पुलिस ने उपराज्यपाल से यूएपीए की धारा 16 और 18 के तहत उनके अभियोजन का अनुरोध किया था। एलजी ने रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री पाए जाने पर अभियोजन स्वीकृति प्रदान की।

इस मंजूरी से पहले समीक्षा समिति (डीओपी, तीस हजारी, दिल्ली) ने भी 30 मई को जांच एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए संपूर्ण साक्ष्यों की जांच की। जांच में संसद हमले के मामले में आरोपियों की संलिप्तता पाई गई थी। इसे देखते हुए समीक्षा समिति ने पाया कि प्रथम दृष्टया आरोपियों के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला बनता है।

इससे पहले 7 जून, 2024 को दिल्ली पुलिस ने सभी छह गिरफ्तार आरोपियों मनोरंजन डी, ललित झा, अमोल शिंदे, महेश कुमावत, सागर शर्मा और नीलम आज़ाद के खिलाफ लगभग 1000 पन्नों की चार्जशीट दायर की थी। मनोरंजन डी, सागर शर्मा, अमोल धनराज शिंदे, नीलम रानोलिया, ललित झा और महेश कुमावत नाम के छह लोगों पर अवैध रूप से संसद में प्रवेश करने और लाइव सत्र के दौरान लोकसभा में धुआं फैलाने का आरोप है।इन लोगों पर 13 दिसंबर 2023 को सदन की कार्यवाही के दौरान संसद पर कथित रूप से हमला करने का आरोप है।
देश में होने वाला है बड़ा बदलाव, वन रेट पॉलिसी लागू करने की तैयारी में सरकार, पूरे देश में सोने का होगा एक ही दाम


देश के अलग-अलग शहरों में सोने और चांदी की कीमत भी अलग होती है. सोने और चांदी के रेट पर हर राज्य के अलग-अलग टैक्स के अलावा भी कई तरह की चीजें जोड़ी जाती हैं. इसके चलते राज्यों ने इन सोने दाम भी अलग-अलग हो जाते हैं. अब देश में बड़ा बदलाव आने जा रहा है. जेम एंड ज्वैलरी काउंसिल वन नेशन, वन रेट पॉलिसी को लागू करने के लिए तैयार हैं.

इसके बाद आप देश में कहीं भी सोना खरीदें आपको रेट एक ही मिलेगा. ऐसा होने पर आम जनता को उनके शहर में ही सोना एक ही दाम पर मिल जाएगा. दरअसल देश भर में काफी समय से वन नेश वन रेट अपनाने की कवायद चल रही थी. अब देश भर के ज्वैलर्स इस पॉलिसी को लागू करने को तैयार हो गए है. उम्मीद की जा रही है अगले महीने यानी सितंबर में ही इसकी आधिकारिक घोषणा हो जाएगी.


‘वन नेशन वन रेट पॉलिसी’ भारत सरकार की ओर से प्रस्तावित एक योजना है. सरकार का मकसद है पूरे देश में सोने की कीमते समान हो. इस योजना पर अमल करने के लिए सरकार नेशनल लेबल पर एक बुलियन एक्सचेंज बनाएगी. नेशनल बुलियन एक्सचेंज ही पूरे देश में सोने के दाम तय करेगा. इसे और आसान भाषा में आप ऐसे समझ सकते है. जैसे शेयर मार्केट में किसी कंपनी के शेयर के दाम पूरे देश में एक ही होते है और यही दाम बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होते है. अभी मौजूदा दौर मे सोने-चांदी की खरीद बिक्री MCX पर होती है. लेकिन अब सर्राफा बाजार के लिए भी एक एक्सचेंज बन जाएगा. इस एक्सचेंज को बनाने की मांग काफी समय से हो रही थी.


राष्ट्रीय स्तर पर बनी बुलियन एक्स्चेंज ही सोने की कीमतों को तय करेगा और देश भर के ज्वैलर्स को उसी कीमत पर सोना बेचना होगा. जो कीमत एक्सचेंज तय करेगा. ऐसा होने से इस इंडस्ट्री में तो पार्दशिता बढ़ेगी ही. साथ ही साथ आम जनता को भी सोना पूरे देश में एक ही दाम पर मिलेगा. मान लीजिए आप लखनऊ में रहते है औऱ वहां सोना महंगा है. ऐसे में अगर आपके घर में शादी है तो आप सोना खरीदने के लिए उस शहर में जाते हैं जहां लखनऊ से सस्ता सोना मिलता है. इस योजना के लागू होने के बाद यह समस्या खत्म हो जाएगी.

मौजूदा समय में सोने की कीमतें सर्राफा बाजार के एसोशियन की ओर से तय की जाती है. तो हर शहर के लिए अलग-अलग होती है. अमूमन हर एक सर्राफा बाजार अपने अपने शहरों की कीमत शाम के समय जारी करता है. पेट्रोल-डीजल की तर्ज पर ही सोने-चांदी की कीमतें भी हर रोज तय की जाती है. सोने-चांदी की कीमतों में ग्लोबल सेंटीमेंट्स का भी अहम रोल होता है. अतंराष्ट्रीय बाजारों की कीमतों का असर घरेलू बाजार पर भी होता है.


इस पॉलिसी के आने से इंडस्ट्री में पार्दशिता बढ़ेगी जिसका फायदा आम आदमी को भी मिलेगा. कीमतों का अंतर खत्म होने से सोने की कीमतों में भी कमी आ सकती है. वहीं ज्वैलर्स की मनमानी पर लगाम लग सकेगा. वहीं इस योजना के आने से कारोबारियों में भी कंपिटिशन बढ़ेगा लिहाजा यह स्कीम कारोबार के लिहाज से भी मील का पत्थर साबित हो सकती है. इस पॉलिसी को लागू करने के लिए ज्वैलर्स की संस्था GJC ने देश भर के ज्वैलर्स से राय ली है. जिसमें ज्वैलर्स इसे लागू करने की सहमति जता चुके है.
9 नवंबर से पहले उत्तराखंड में लागू होगा यूसीसी, सीएम धामी ने की बड़ी घोषणा, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मुस्लिम पक्ष


उत्तराखंड में भाजपा की कार्यकारिणी प्रदेश कार्य समिति बैठक चल रही है. इस बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा बयान दिया है. सीएम धामी ने सहा 9 नवंबर राज्य स्थापना दिवस से पहले उत्तराखंड में UCC लागू कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा उत्तराखंड देश में यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा.

भाजपा प्रदेश कार्य समिति की एकदिवसीय बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा यूनिफॉर्म सिविल कोड के ड्राफ्ट की सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं. इसे राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल चुकी है. इसके बाद अब आने वाले 9 नवंबर 2024 को प्रदेश में इसे लागू कर दिया जाएगा. कार्य समिति की बैठक में मौजूद उत्तराखंड भाजपा मुख्य प्रवक्ता सुरेश जोशी ने बताया मुख्यमंत्री का यह बयान भारतीय जनता पार्टी के विजन डॉक्यूमेंट पर मुहर लगता है.

उन्होंने कहा भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में एक देश एक निशान और एक संविधान की परिकल्पना की थी. यूनिफॉर्म सिविल कोड उसी की दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है.भाजपा मुख्य प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा 9 नवंबर 2024 को उत्तराखंड राज्य देश में पहला ऐसा राज्य बन जाएगा जहां पर पूर्ण रूप से यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाएगा. इसको लेकर के लंबे समय से सभी तकनीकी पहलुओं पर कार्य किया जा चुका है.

यूसीसी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
जहां एक तरफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 9 नवंबर से उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड करने की घोषणा कर दी है तो वहीं दूसरी तरफ यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को लेकर कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी भी हो चुकी है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ उत्तराखंड में लागू होने जा रहे यूनिफॉर्म सिविल कोड को कोर्ट में चुनौती देने जा रहा है. रविवार को मुस्लिम संगठन द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार उत्तराखंड में पारित किए गए यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कोर्ट में मिलने जा रही चुनौतियों को लेकर के भाजपा प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा किसी भी नियम या कानून को लेकर के सुप्रीम कोर्ट में जाना किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है. उन्होंने कहा यूनिफॉर्म सिविल कोड कमेटी ने सभी तकनीकी पहलुओं और कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसका ड्राफ्ट तैयार किया है. उन्हें नहीं लगता है इसे किसी भी तरह की चुनौतियों से कमजोर किया जा सकता है.
आप नेता मनीष सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 22 जुलाई तक बढ़ी, दिल्ली शराब नीति मामले में घोटाले का है आरोप


दिल्ली शराब नीति मामले में जेल में बंद आम आदमी पार्टी (आप) नेता मनीष सिसोदिया को कोर्ट से राहत नहीं मिली है. राउज एवेन्यू कोर्ट ने सोमवार (15 जुलाई) को सिसोदिया की न्यायिक हिरासत को 22 जुलाई तक के लिए बढ़ा दिया. CBI की ओर दर्ज मामले में राउज एवेन्यू कोर्ट ने उनकी न्यायिक हिरासत की अवधि 22 जुलाई तक के लिए बढ़ा दी है.

दिल्ली सरकार में पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को आज राउज एवेन्यू कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया. अदालत ने सीबीआई से जुड़े इस मामले में सुनवाई के बाद जमानत देने से इनकार कर दिया. अब इस मसले पर अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी.

इससे पहले मनीष सिसोदिया ने निचली अदालत के 30 अप्रैल 2024 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने भी उनकी जमानत याचिका खारिज कर दिया था.

26 फरवरी 2023 को हुई थी गिरफ्तारी

दिल्ली आबकारी नीति मामले में पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी 2023 को गिरफ्तार किया गया था. सीबीआई का आरोप है कि भ्रष्टाचार के इस मामले में मनीष सिसोदिया ने अहम भूमिका निभाई थी. वर्तमान में दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े दोनों ही मामले में उनके खिलाफ अलग-अलग अदालतों जमानत याचिका लंबित हैं.
देवी-देवताओं की 94 मूर्तियां, कई प्राचीन अवशेष, और भी बहुत कुछ..! ASI रिपोर्ट में भोजशाला के मंदिर होने के स्पष्ट संकेत






भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने आज सोमवार (15 जुलाई) को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष विवादित भोजशाला परिसर पर अपनी वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट जमा कर दी है। इस रिपोर्ट में कई ऐतिहासिक कलाकृतियों की खोज को दर्शाया गया है, जो विवादित परिसर के मंदिर होने का स्पष्ट संकेत देती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के दौरान चांदी, तांबे, एल्युमीनियम और स्टील से बने कुल 31 सिक्के मिले हैं, जो अलग-अलग समय के हैं। ये सिक्के इंडो-सासैनियन (10वीं-11वीं सदी), दिल्ली सल्तनत (13वीं-14वीं सदी), मालवा सल्तनत (15वीं-16वीं सदी), मुगल (16वीं-18वीं सदी), धार राज्य (19वीं सदी) और ब्रिटिश (19वीं-20वीं सदी) के हैं।

इसके अलावा कई दिनों तक चले सर्वेक्षण में कुल 94 मूर्तियां, मूर्तियों के अवशेष और वास्तुशिल्प तत्व भी मिले हैं। ये मूर्तियां बेसाल्ट, संगमरमर, शिस्ट, सॉफ्ट स्टोन, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बनी हैं। इनमें गणेश, ब्रह्मा, नरसिंह, भैरव, अन्य देवी-देवताओं, मनुष्यों और जानवरों जैसे देवताओं की आकृतियाँ हैं। जानवरों की आकृतियों में शेर, हाथी, घोड़े, कुत्ते, बंदर, सांप, कछुए, हंस और पक्षी शामिल हैं। पौराणिक आकृतियों में कीर्तिमुख और व्याल (संयुक्त जीव) के विभिन्न रूप शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनुष्यों और जानवरों की कई छवियों को खराब कर दिया गया है, ताकि उनकी पहचान मिट सके। ऐसा खासकर उन इलाकों में है, जहां अब मस्जिद खड़ी हैं।


वर्तमान संरचना में पाए गए कई टुकड़ों में संस्कृत और प्राकृत शिलालेख भी हैं, जो साहित्यिक और शैक्षिक गतिविधियों का संकेत देते हैं। एक शिलालेख में परमार वंश के राजा नरवर्मन (जिन्होंने 1094-1133 ई. के बीच शासन किया) का उल्लेख है। अन्य शिलालेखों में खिलजी शासक महमूद शाह का उल्लेख है, जिन्होंने एक मंदिर को मस्जिद में बदल दिया था। ASI रिपोर्ट से पता चलता है कि भोजशाला कभी एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक केंद्र था, जिसे राजा भोज ने स्थापित किया था। बरामद कलाकृतियों से पता चलता है कि वर्तमान संरचना पहले के मंदिरों के हिस्सों का उपयोग करके बनाई गई थी।

क्यों है विवाद

बता दें कि हिंदू समुदाय 11वीं शताब्दी के स्मारक भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद कहता है। पिछले 21 वर्षों से हिंदुओं को मंगलवार को भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को शुक्रवार को यहां नमाज अदा करने की अनुमति है। मामले में याचिकाकर्ता हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने इस व्यवस्था को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। जिसके बाद 11 मार्च को उच्च न्यायालय ने 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' के आवेदन पर एएसआई को परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। ASI को सर्वेक्षण पूरा करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया था। एएसआई ने 22 मार्च को विवादित परिसर का सर्वेक्षण शुरू किया था जो हाल ही में समाप्त हुआ। 4 जुलाई को उच्च न्यायालय ने एएसआई को विवादित स्मारक परिसर में लगभग तीन महीने तक चले सर्वेक्षण की पूरी रिपोर्ट 15 जुलाई तक पेश करने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई 22 जुलाई को करेगा।
7 राज्यों में हुए उपचुनाव में “कुम्हलाया” कमल, आने वाले चुनावों से पहले आत्ममंथन की जरूरत

#the_results_of_by_elections_on_13_seats_in_7_states

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारत की राजनीति करवट लेने लगी है। एनडीए के 293 सांसदों के साथ तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रही है, जबकि 234 सीटें जीतने वाले विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सकी तस्दीक कर रहा है। देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इंडिया गठबंधन में जहां कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत का परचम फहराया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है।

लोकसभा के बाद हुए पहले चुनाव पर देश की निगाहें लगी थी। राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोग भी इन चुनावों को बीजेपी की परीक्षा मान रहे थे। विधानसभा उपचुनाव में पंजाब की एक, हिमाचल प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की दो, पश्चिम बंगाल की चार, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की एक-एक सीट पर मतदान हुआ था। इन चुनाव में इंडिया’ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में बीजेपी पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ा। बीजेपी के लिए हिमाचल में बीजेपी हमीरपुर सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, तमिलनाडु में विक्रवांडी विधानसभा सीट पर डीएमके उम्मीदवार अन्नियूर शिवा ने जीत हासिल की।

सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं। जहां से बीजेपी के लिए एक शुभ समाचार आया है क्योंकि उसने कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में शामिल अमरवाड़ा सीट जीत ली है, जो कभी कांग्रेस के पास हुआ करती थी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल में लगा है। जहां 4 सीटों पर हुए उप चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर के बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इनमें से तीन सीट ऐसी थी जो पहले बीजेपी के पास थीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 से 77 सीट का सफर तय किया था, लेकिन चार सीटों के इस उपचुनाव में उसके लिए संकेत अच्छे नहीं है। उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक दीवारों का जोड़ और मजबूत हो गया है। 

सबसे बड़ा खेल बिहार में हुआ हैं। जहां जेडीयू और आरजेडी देखते रह गए और बाजी निर्दलीय उम्मीदवार ने मार ली। 13 में ये इकलौती ऐसी सीट है जहां निर्दलीय की सत्ता आई है। पंजाब में 1 सीट पर हुए उपचुनाव में झाड़ू का जादू चला गया और जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस ने पहाड़ों में कमाल कर लिया क्योंकि हिमाचल प्रदेश की 3 सीट में उसे दो सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी को एक जीत से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी को उपचुनाव में कांग्रेस ने खाली हाथ भेजा है और दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा तमिलनाडु की विक्रवंदी विधानसभा सीट इंडिया गठबंधन की DMK के पास गई है।

अब सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर बीजेपी को हुए नुकसान की वजह क्या है? दरअसल, 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि को धक्का लगा है। नीट एग्जाम और यूजीसी जैसे एग्जाम में धांधली के आरोप और बारिश में टपकते एयरपोर्ट जैसे मसलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि करप्शन के मामले बेदाग रही। हालांकि, पेरपर लीक जैसे मुद्दों ने सरकार को छवि का खासा नुकसान पहुंचाया है। 

2014 के दौर को याद कीजिए। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे, तब देश की जनता करप्शन और घोटालों की खबरों से परेशान थी। मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री के तौर प्रचारित हुए, जो कांग्रेस अध्यक्ष के मातहत के तौर पर काम करते हैं। विपक्ष ने बड़े घोटालों पर उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस भी आरोपों का सटीक जवाब देने में सक्षम नहीं दिख रही थी। गुजरात में ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी ने इस माहौल को भुनाया। बदलाव की इंतजार कर रही जनता ने समर्थन दिया और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 

2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक ने पीएम मोदी की साख बढ़ाई। जनता ने उन्हें दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया। मोदी 2.0 में धारा-370 हटाने और सीएए लागू करने जैसे बुलंद फैसले भी लिए। कोरोना के दौर में भी जनता नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी रही। उन्होंने जैसा कहा, लोगों ने वैसा ही किया। यह उनकी लोकप्रियता का चरम था, जिसे देखकर विपक्ष समेत पूरी दुनिया दंग रह गई। किसान आंदोलन और कोरोना से हुई मौतों के बाद भी यूपी में बीजेपी की वापसी हुई। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी की बनी।

2024 के लोकसभा चुनाव में हालात बदल गए। बेहतर चुनाव प्रबंधन और अग्रेसिव कैंपेन के बाद भी बीजेपी पूर्ण बहुमत के 273 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। अब महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक जैसे मुद्दों की छाया में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को कड़े संदेश दिए हैं। नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। आने वाले चुनावों में भाजपा को संगठनात्मक खामियों को समय रहते दूर करना होगा। कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर त्वरित एक्शन लेकर साधना होगा।

लोकसभा के लिए राहुल गांधी की नई टीम तैयार, मोदी सरकार पर और तीखे होंगे हमले
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संसद के बजट सत्र के पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह से तैयारी के मूड में है।बजट सत्र से पहले कांग्रेस ने लोकसभा में राहुल गांधी की संसदीय कोर टीम का गठन कर दिया है। पार्टी ने तीसरी बार असम से चुनाव जीते तेज-तर्रार युवा सांसद गौरव गोगोई को लोकसभा में पार्टी का उपनेता बनाया तो केरल से आठ बार के सांसद के सुरेश को लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाकर अहम जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं, तमिलनाडु से आने वाले सांसद मणिक्कम टैगोर और बिहार के किशनगंज से सांसद मो. जावेद को लोकसभा में सचेतक नियुक्त किया गया है।

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा में उपनेता नियुक्त करने के साथ मुख्य सचेतक और दो सचेतकों की नियुक्ति का पत्र लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला को भेज दिया है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के संगठन महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में बताया कि कांग्रेस के संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष बिरला को पत्र लिखकर उन्हें संसद के निचले सदन में कांग्रेस के उप नेता, मुख्य सचेतक और दो सचेतक नियुक्त किये जाने के बारे में जानकारी दी है।

वेणुगोपाल ने कहा, विपक्ष के नेता राहुल गांधी के मार्गदर्शन में कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के दल लोकसभा में जनता के मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाएंगे।

लोकसभा में कांग्रेस को 10 साल के बाद आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है। कांग्रेस इस बार 99 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही है, जिसके चलते कांग्रेस और विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभालने के बाद नई लोकसभा के पहले सत्र के दौरान ही राहुल गांधी ने मोदी सरकार को आगाह कर दिया था कि अब सदन की कार्यवाही एकतरफा चलाने की कोई कोशिश आईएनडीआईए गठबंधन बर्दास्त नहीं करेगा। मजबूत विपक्ष की एकजुटता का हवाला देते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि नई लोकसभा में संख्या बल का स्वरूप बदल चुका है और विपक्ष जनता के मुद्दों को सदन में बहस-चर्चा के लिए उठाएगा। इतना ही नहीं राहुल ने लोकसभा में ही एलान किया था कि सदन में वे आईएनडीआईए की सभी पार्टियों का नेतृत्व कर रहे हैं और सबको साथ लेकर चलना उनकी जिम्मेदारी है।

ऐसे में नेता विपक्ष के तौर पर पहली बार संवैधानिक भूमिका में आए राहुल गांधी को सदन में जुझारू-मुखर होने के साथ प्रभावशाली सहयोगियों की जरूरत है। यही वजह है कि लोकसभा में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रहे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को सदन में सहयोग देने के लिए जुझारू और मुखर चेहरों को महत्वपूर्ण संसदीय जिम्मेदारी सौंपी गई है।
अग्निवीरों के मुद्दे पर केन्द्र के एक तीर से दो निशाने, सहयोगियों को “मनाने” से लेकर विपक्ष को “चुप” करने की तैयारी पूरी
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केन्द्र की मोदी सरकार ने 2022 में सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की गई थी। इसके तहत सेना में आए 75 फ़ीसदी अग्निवीरों को चार साल बाद रिटायर होना था। योजना की घोषणा के साथ ही विपक्ष ने इसे सियासी मुद्दा बना दिया।विपक्षी कांग्रेस का आरोप था कि सरकार अग्निवीरों को यूज़ एंड थ्रो मज़दूर मान रही है।राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक विपक्ष के कई नेता केंद्र सरकार की इस पहल को लेकर लगातार हमलावर थे। वहीं, लोकसभा चुनाव में बीजेपी को झटके के बाद जेडीयू और एलजेपी जैसे उसके सहयोगी भी अग्निपथ स्कीम की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। इसी बीच केंद्र ने बड़ा फैसला लिया था। पूर्व अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों में 10 फीसद आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था।CISF से लेकर CRPF तक में पूर्व अग्निवीरों को 10 फीसद रिजर्वेशन का लाभ दिया जाएगा। केन्द्र की मोदी सरकार ने ऐसे ही ये फैसला नहीं लिया है। जानते हैं क्या है इसके पीछे की वजह?

वैसे तो सीएपीएफ भर्तियों में अग्निवीरों को तरजीह दिए जाने का ऐलान तो पिछले साल ही हो चुका था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तब ऐलान किया था कि सेंट्रल सिक्यॉरिटी फोर्सेज में पूर्व अग्निवीरों को आरक्षण दिया जाएगा। लेकिन अब बीएसएफ, सीआईएसएफ के चीफ आगे बढ़कर इसका ऐलान कर रहे हैं। दरअसल, मोदी सरकार अग्निपथ के मुद्दे पर अब और जोखिम नहीं ले सकती। अगले 2-3 महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनाव जो होने हैं। ऐसे में अग्निवीर मसले पर विपक्ष के हमलों और उसके नैरेटिव को कुंद करने के लिए मोदी सरकार ने पूर्व अग्निवीरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में आरक्षण का दांव खेला है।

लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष खासकर कांग्रेस ने मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और वादा किया कि सत्ता में आए तो इस स्कीम को खत्म कर देंगे। कांग्रेस सत्ता में तो नहीं आई जो वादे के तहत अग्निपथ स्कीम को खत्म कर सके, लेकिन चुनाव बाद भी वह इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ आक्रामक है। राहुल गांधी ने अभी ड्यूटी के दौरान अग्निवीरों की मौत के बाद मिलने वाले मुआवजे का मुद्दा उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि ड्यूटी के दौरान देश की रक्षा करते हुए जो अग्निवीर अपनी जान न्यौछावर करते हैं, उन्हें सरकार की तरफ से मुआवजा नहीं दिया जा रहा। हालांकि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यहां तक कि सेना ने भी राहुल गांधी के आरोपों को पुरजोर तरीके से खारिज किया।

लोकसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले बीजेपी की सीटें घटने के पीछे एक बड़ी वजह अग्निवीर के मुद्दे को भी माना गया। चुनावी झटके के बाद माना जा रहा था कि मोदी सरकार अग्निपथ स्कीम में बदलाव करेगी लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा। हालांकि, मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में 10 प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों को अग्निपथ योजना की समीक्षा करने और इस स्‍कीम को अधिक आकर्षक व कारगर तरीके सुझाने का काम सौंपा है। इसलिए अभी अग्निवीरों को और फायदे मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। केंद्र सरकार जल्‍द से जल्‍द इसकी हर कमी को दूर करना चाहती है। भारतीय सेना ने भी एक इंटरनल सर्वे किया है जिसमें अग्निपथ योजना में कुछ बदलाव करने की सिफारिश की है।

14 जून 2022 को घोषित अग्निपथ योजना साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के युवाओं को चार साल के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती करने के लिए शुरू की गई थी। अभी अग्निवीर भर्ती परीक्षा में सिलेक्ट होने वाले कैंडिडेट्स को पहले साल हर महीने 30,000 रुपए सैलरी मिलती है। इसमें 9,000 रुपए कॉर्पस फंड के तौर पर कटने के बाद पहले साल इन हैंड सैलरी 21,000 रुपए आती है। दूसरे साल 10 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 33,000 रुपए सैलरी और इसमें 23100 रुपए इन हैंड मिलते हैं। इसी तरह हर साल 10 प्रतिशत सैलरी बढ़ती है। तीसरे वर्ष 36500 रुपए सैलरी में 25550 रुपए इन हैंड और चौथे साल सैलरी बढ़कर 40000 रुपए हो जाती है।