केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 14 जुलाई को मध्यप्रदेश को देंगे बड़ी सौगात, सभी जिलों में खुलेंगे 55 प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस

मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा क्षेत्र को 14 जुलाई को बड़ी सौगात मिलने वाली है. देश के गृह मंत्री अमित शाह प्रदेश में 55 प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस का एक साथ शुभारंभ करने वाले हैं. राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बताया है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 14 जुलाई को प्रदेश के सभी 55 जिलों में प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस का एक साथ शुभारंभ करने वाले हैं.

एक्सीलेंस कॉलेजों की विशेषता यह है कि नई शिक्षा नीति के अनुरूप इनमें सभी कोर्स उपलब्ध होंगे तथा ये कॉलेज सभी संसाधनों से युक्त होंगे. युवा पीढ़ी को इन कॉलेजों का लाभ मिलेगा. सभी मंत्रीगण अपने-अपने क्षेत्र में कॉलेजों के शुभारंभ कार्यक्रम में अवश्य शामिल हों. राज्य के सभी जिलों में प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस की शुरुआत हो रही है. वर्तमान में मौजूद कॉलेजों को ही अपग्रेड कर नया दर्जा दिया जा रहा है. इन कॉलेजों में सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं. साथ ही जरूरत के मुताबिक आने वाले समय में शिक्षकों की पदस्थापना भी की जाएगी. 

सरकार की ओर से उन सभी कॉलेजों का ब्योरा जुटाया जा रहा है, जिन्हें एक्सीलेंस कॉलेज का दर्जा दिया जा रहा है. कई कॉलेज ऐसे हैं, जहां प्रोफेसर से लेकर अन्य कर्मचारी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. इसके चलते कई कर्मचारियों के तबादले भी संभावित हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश में पौधरोपण अभियान के अंतर्गत 5.50 करोड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. उन्होंने इंदौर एवं भोपाल में जारी पौधरोपण गतिविधियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि सभी जिले पौधरोपण का लक्ष्य तय करें एवं सभी विभागों में समन्वय करते हुए इसे अंजाम दिया जाए. अभियान में लगाए गए पौधों के रखरखाव के लिए लोगों को जिम्मा सौंपा जाएगा.

बॉम्बे HC के आदेश का उल्लंघन करने पर पतंजलि को भुगतना पड़ेगा हर्जाना, जानिए कितनी होगी रकम

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को कोर्ट के 2023 के आदेश का उल्लंघन करने के लिए अवमानना ​​के तौर पर 50 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया है। इस आदेश में कंपनी को मंगलम ऑर्गेनिक्स लिमिटेड की तरफ से दायर ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले के सिलसिले में कपूर प्रोडक्ट बेचने से रोक दिया गया था. पैसे जमा करने का यह आदेश पतंजलि की तरफ से अदालत द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के वचन के साथ बिना शर्त माफी मांगने के बाद भी दिया गया.

जस्टिस आरआई चागला की बेंच ने कहा कि पतंजलि ने जून में पेश किए गए हलफनामे में कपूर प्रोडक्ट्स की बिक्री के खिलाफ इंजक्शन (Injuction) देने वाले पहले के आदेश का उल्लंघन करने की बात स्वीकार की थी. आदेश में न्यायमूर्ति चागला ने कहा, 'प्रतिवादी संख्या 1 (पतंजलि) की तरफ से 30 अगस्त 2023 के निषेधाज्ञा आदेश का निरंतर उल्लंघन अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकता.' अगस्त 2023 में हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में पतंजलि को कपूर प्रोडक्ट्स को बेचने या विज्ञापन करने से रोक दिया था. यह आदेश पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ मंगलम ऑर्गेनिक्स द्वारा दायर एक मुकदमे में पारित किया गया था, जिसमें उनके कपूर प्रोडक्ट्स के कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाया गया था. 

बाद में मंगलम ने एक आवेदन दायर कर दावा किया कि पतंजलि अंतरिम आदेश का उल्लंघन कर रही है, क्योंकि उसने कपूर प्रोडक्ट्स को बेचना जारी रखा है. पतंजलि के निदेशक रजनीश मिश्रा ने बिना शर्त हलफनामा दायर किया और अदालत के आदेशों का पालन करने का वादा किया। मिश्रा ने हलफनामे में कहा कि निषेधाज्ञा आदेश पारित होने के पश्चात् कपूर उत्पादों की कुल आपूर्ति ₹49,57,861 थी। हालांकि, मंगलम ऑर्गेनिक्स के वकील हिरेन कामोद ने इस राशि का विरोध किया।

बंगाल में जांच नहीं कर सकती CBI..', सुप्रीम कोर्ट पहुंची ममता सरकार तो SC ने कहा - यह मामला सुनवाई योग्य

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CBI की सामान्य सहमति निरस्त करने के बावजूद एजेंसी द्वारा पश्चिम बंगाल में FIR दर्ज करने को लेकर राज्य सरकार की याचिका सुनवाई योग्य है। इस मामले में ममता बनर्जी वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया था।

हालाँकि, केंद्र द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि बंगाल सरकार की शिकायत में कार्रवाई की वजह बताई गई है। अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा दी गई इस दलील को भी मानने से इंकार कर दिया कि राज्य ने शिकायत में महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया है। बता दें कि, यह मामला साल 2018 का है। उस दौरान ममता बनर्जी सरकार ने CBI जाँच के लिए दी गई सामान्य सहमति रद्द कर दी थी। इसके बाद भी CBI कभी हाई कोर्ट के आदेश पर, तो कभी किन्ही और कारणों से पश्चिम बंगाल में अपराधों के खिलाफ FIR दर्ज करना जारी रखी, जबकि ममता सरकार ऐसा नहीं चाहती थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि सामान्य सहमति रद्द करने के बाद एजेंसी जाँच जारी नहीं रख सकती थी।

वहीं, ममता सरकार ने कहा कि CBI केंद्र सरकार के अधीन काम कर रही है। खंडपीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि यह केस सुनवाई योग्य है। अदालत ने कहा कि, “मौजूदा मुकदमा कानूनी मुद्दा उठा रहा है कि क्या सामान्य सहमति वापस लेने के बाद CBI का कस दर्ज करना और DSPE Act की धारा 6 का उल्लंघन करने वाले मामलों की छानबीन करना जारी रख सकती है।”

बता दें कि यह मुकदमा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र सरकार के खिलाफ दाखिल किया गया था। इसमें राज्य सरकार ने कहा है कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 के तहत CBI का गठन हुआ है। राज्य ने कहा कि आम सहमति वापस लेने के बावजूद CBI ने राज्य में हुए अपराधों के संबंध में केस करना जारी रखा। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 131 संघ और राज्यों के बीच विवाद को खत्म करने के लिए है। लेकिन, यह अनुच्छेद CBI पर ये लागू नहीं होता है, क्योंकि यह एजेंसी केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं है। इसलिए यह मुकदमा केंद्र सरकार के खिलाफ है।

बता दें कि, बंगाल में CBI , शिक्षक भर्ती घोटाला, राशन वितरण घोटाला, नगर निगम भर्ती घोटाला, गौवंश तस्करी, संदेशखाली जमीन हड़पना और यौन शोषण जैसे जैसे कई आपराधिक मामलों की जांच कर रही है, जिसमे सत्ताधारी TMC के कई नेता गिरफ्तार हुए हैं। ताजा मामले की बात करें तो, कलकत्ता हाई कोर्ट ने संदेशखाली यौन उत्पीड़न मामले की जांच CBI को सौंपी थी, जिसमे TMC नेता शाहजहां शेख मुख्य आरोपी है। ये जांच रुकवाने ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने ये कहते हुए CBI जांच रोकने से इंकार कर दिया था कि, आखिर राज्य साकार किसी (अपराधी) को बचाने कि कोशिश क्यों कर रही है ? यहां से तो ममता सरकार को झटका मिला, अब उन्होंने कह दिया है कि, CBI उनके राज्य में जांच कर ही नहीं सकती, क्योंकि उसके पास राज्य सरकार की सहमति नहीं है। इस मुक़दमे पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट भी राजी हो गया है, अब देखना ये है कि, ये मामला कहाँ तक जाता है।

साइंटिस्ट नंबी नारायणन को कैसे फंसाया गया? सीबीआई ने किया खुलासा

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साल 1994 के जिस इसरो जासूसी केस में देश के शीर्ष वैज्ञानिकों में से एक नम्बी नारायणन और 3 अन्य वैज्ञानिकों को फँसाकर उनका करियर खत्म कर दिया गया और देश को क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के विकास में पीछे हो जाना पड़ा, वो पूरा मामला ही फर्जी था। भारत के पद्म विभूषण प्राप्‍त स्‍पेस साइंटिस्‍ट नंबी नारायण से जुड़े 1994 के जासूसी कांड में सीबीआई की चार्जशीट बुधवार को सामने आई।सीबीआई ने केरल की अदालत में दायर अपने आरोपपत्र में कहा है कि 1994 का इसरो जासूसी मामला झूठा था। इसमें दावा किया गया कि केरल पुलिस के तत्कालीन स्‍पेशल ब्रांच अधिकारी ने मालदीव की एक महिला को भारत में अवैध रूप से हिरासत में रखने को सही ठहराने के लिए यह षडयंत्र रचा था।

सीबीआई ने तिरुवनंतपुरम में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अपना यह आरोपपत्र दाखिल किया है। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में यह दावा किया कि पुलिस ने नारायणन और मालदीव की दो महिलाओं मरियम रशीदा और फौजिया हसन सहित पांच अन्य को जासूसी मामले में कथित रूप से फंसा दिया था। सीबीआई ने कहा कि केरल पुलिस के एक पूर्व विशेष शाखा अधिकारी ने इसकी साजिश रची थी। मालदीव की एक महिला को अवैध हिरासत में रखने को सही ठहराने के लिए यह केस गढ़ा गया था, क्योंकि उसने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। 

सीबीआई ने कहा कि एसपी के पद से रिटायर्ड हुए तत्कालीन स्‍पेशल ब्रांच अधिकारी एस विजयन ने मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा के यात्रा दस्तावेज और हवाई टिकट छीन लिए थे ताकि वो देश छोड़कर नहीं जा सके। महिला ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। एजेंसी ने आगे कहा कि विजयन को पता चला कि वह इसरो के वैज्ञानिक डी शशिकुमारन के संपर्क में थी और उसके आधार पर रशीदा और उसकी मालदीव की दोस्त फौजिया हसन पर निगरानी रखी गई।

सीबीआई ने कहा कि पुलिस ने महिलाओं के बारे में सहायक खुफिया ब्यूरो (SIB) को भी सूचित किया था, लेकिन विदेशी नागरिकों की जांच करने वाले आईबी अधिकारियों को कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। सीबीआई ने कहा कि इसके बाद, रशीदा को विदेशी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह बिना वैध वीजा के देश में समय से अधिक समय तक रह रही थी। इस बारे में तिरुवनंतपुरम के तत्कालीन पुलिस आयुक्त और तत्कालीन एसआईबी उप निदेशक को जानकारी थी।

सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में कहा कि जब रशीदा की विदेशी अधिनियम के तहत हिरासत की अवधि समाप्त होने वाली थी, तो विजयन द्वारा प्रस्तुत एक झूठी रिपोर्ट के आधार पर, उसे और हसन को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत एक मामले में फंसाया गया और उनकी हिरासत जासूसी मुद्दे की जांच के लिए गठित एसआईटी को सौंप दी गई। सीबीआई ने कहा कि इसके बाद एसआईटी ने नारायणन सहित चार इसरो वैज्ञानिकों को गिरफ्तार किया। सीबीआई ने आरोपपत्र में कहा है कि उसकी जांच से पता चला है कि जासूसी का मामला “शुरुआती चरण से ही कानून का दुरुपयोग” था, जब मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और कथित तौर पर विजयन के प्रस्ताव को ठुकराने के लिए देश में अधिक समय तक रहने के लिए फंसाया गया था।

एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन ने भारत के कई रॉकेटों में इस्तेमाल किए जाने वाले विकास इंजन को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जासूसी के आरोपों के बाद, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। यह यातना 50 दिनों तक चली, जिसके दौरान उनकी प्रतिष्ठा और करियर को बहुत नुकसान पहुंचा।

चैंपियंस ट्रॉफी के लिए पाकिस्तान नहीं जाएगी टीम इंडिया! क्या एशिया कप वाला फॉर्मूला होगा लागू?

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आईसीसी का अगला टूर्नामेंट चैंपियंस ट्रॉफी है और इसकी मेजबानी पाकिस्तान करेगा।इसके लिए पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। इस बात पर सभी की नजरें है कि भारतीय टीम इस टूर्नाीमेंट के लिए पड़ोसी देश की यात्रा करेगी या नहीं? भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन बताया जा रहा है कि टीम चैंपियंस ट्रॉफी के लिए पाकिस्तान की यात्रा नहीं करेगी। 

सूत्रों के मुताबिक भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान दौरे पर नहीं जाएगी।न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए बीसीसीआई के एक सूत्र ने बताया कि भारत पाकिस्तान का दौरा नहीं करेगा और बीसीसीआई चैंपियंस ट्रॉफी के वेन्यू में बदलाव करने को लेकर आईसीसी से बात करेगा। भारत ने हाइब्रिड मॉडल के तहत अपने मैच यूएई या श्रीलंका में कराने की मांग की है।

बता दें कि भारतीय टीम ने 2008 के बाद से पाकिस्तान का दौरा नहीं किया है। इससे पहले एशिया कप 2023 की मेजबानी भी पाकिस्तान को मिली थी। लेकिन तब भी भारतीय टीम ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया था। टूर्नामेंट को हाइब्रिड मॉडल में होस्ट किया गया था। चार मैच पाकिस्तान और बाकी मैच श्रीलंका में खेले गए थे। टीम इंडिया ने अपने सभी मैच श्रीलंका में खेले थे और फाइनल भी यहीं हुआ था। ऐसे में बीसीसीआई इस बार भी आईसीसी के सामने भी हाइब्रिड मॉडल का प्रस्ताव रख सकता है।

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने सोमवार को आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 का शेड्यूल आईसीसी को सौंपा था। यह शेड्यूल तभी फाइनल होगा, जब इस पर आईसीसी की मुहर लगेगी।चैंपियंस ट्रॉफी में इस बार भारत-पाकिस्तान 8 टीमों को हिस्सा लेना है। इन 8 टीमों के बीच कुल 15 मैच खेले जाएंगे। पीसीबी ने आईसीसी को जो शेड्यूल सौंपा है, उसमें सुरक्षा और ‘लाजिस्टिकल’ कारणों से भारत के मैच लाहौर में ही रखे गए हैं।

भगवत गीता पर हाथ रखकर ली सांसद की शपथ, जानें कौन हैं भारतीय मूल की सांसद शिवानी

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लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। ऐतिहासिक जीत के बाद भी लेबर पार्टी को एक सीट पर करारी हार मिली। उसे अपनी 37 साल पुरानी लीसेस्टर ईस्ट सीट से हाथ धोना पड़ा है। इस सीट से गुजराती मूल की 29 साल की शिवानी राजा ने जीत हासिल की है। 

भारतीय मूल की निवासी और कंजर्वेटिव पार्टी की सांसद शिवानी राजा ने 37 सालों से लेबर पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले लीसेस्टर ईस्ट से लेबर पार्टी का वर्चस्व खत्म कर दिया। चुनाव के बाद भी उन्होंने कुछ ऐसा कर दिया जिससे एक बार फिर उन्होंने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। भारतीय मूल की 29 वर्षीय गुजराती व्यवसायी शिवानी राजा ने ब्रिटेन की संसद में भगवद गीता पर शपथ ली है।

इस चुनाव में शिवानी के खिलाफ लेबर पार्टी के उम्मीदवार और लंदन के पूर्व डिप्टी मेयर राजेश अग्रवाल खड़े हुए थे, जिन्हें शिवानी ने 4 हजार से ज्यादा वोटों से मात दी। डिप्टी मेयर के अलावा राजेश लंदन के ट्रेड और बिजनेस ग्रोथ एजेंसी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और वह लंदन के बिजनेस कम्युनिटी के लिए एक मजबूत आवाज।

शिवानी को इस चुनाव में 14,500 से ज्यादा वोट हासिल हुए और अग्रवाल को 10,100 वोट मिले थे। शिवानी की इस जीत को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है।

29 साल की शिवानी भारतीय मूल की निवासी है, लेकिन वह अपने परिवार की पहली पीढ़ी हैं जो ब्रिटिश नागरिक हैं। शिवानी के माता-पिता 1970 में केन्या से इंग्लैंड के लीसेस्टर आए थे। शिवानी का जन्म 21 जुलाई 1994 में लीसेस्टर में ही हुआ था। ब्रिटेन में पले-बढ़े होने के बावजूद भी शिवानी अपनी संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। वह एक गुजराती फैमिली से आती है और राजनीति के साथ ही वह अपने फैमिली बिजनेस से भी जुड़ी हुई हैं।

शीना बोरा हत्याकांडः सीबीआई ऑफिस में मिलीं गायब हड्डियां, जानें पूरा मामला

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साल 2012 में हुए शीना बोरा हत्याकांड पर काफी साल तक हंगामा मचा रहा था। हालांकि, समय के साथ इसके चर्चे कम हो गए थे। अब हत्या के 12 साल बाद शीना बोरा मर्डर केस एक बार फिर से सुर्खियों में है।शीना बोरा हत्याकांड में एक बड़ा खुलासा हुआ है। शीना बोरा की गायब हड्डियों का पता चल गया है। उनकी हडि्डयां दिल्ली के सीबीआई ऑफिस में मिली हैं।

शीना बोरा हत्याकांड को लेकर 10 जुलाई को मुंबई की ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सीबीआई ने कोर्ट में बताया कि अप्रैल में गायब हुईं हडि्डयां सीबीआई के दिल्ली वाले ऑफिस के मालखाने में मिल गई हैं। अभियोजक सी जे नंदोडे ने कहा कि ऑफिस के मालखाने की फिर से तलाशी लेने पर उनकी हड्डियां पड़ी मिलीं।

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने बताया है कि पहले 24 अप्रैल को कोर्ट को शीना बोरा के अवशेषों के लापता होने के बारे में सूचित किया गया था। 10 जून को उसने कहा कि वे नहीं मिल सके हैं। लेकिन इस बीच कार्यालय के मालखाने की फिर से तलाशी लेने पर हड्डियां पड़ी मिलीं।

यह खुलासा उस दिन हुआ, जब कोर्ट को मिले एक ईमेल में आरोप लगाया गया कि शीना की हड्डियां गायब नहीं हुईं, बल्कि वे एक फॉरेंसिक एक्सपर्ट के पास हैं, जिसने उनकी जांच की थी और जो गवाह के तौर पर अदालत के सामने गवाही दे रहा था। ईमेल में आरोप लगाया गया है कि इस गवाह ने अचानक बहुत संपत्ति अर्जित कर ली है। ईमेल भेजने वाले ने खुद को फोरेंसिक विशेषज्ञ का भाई बताया।

शीना बोरा की साल 2012 में हत्या कर दी गई थी। इस हत्या में शीना की मां इंद्राणी मुखर्जी मुख्य आरोपी हैं। फिलहाल वो जमानत पर बाहर हैं। इंद्राणी मुखर्जी ने अपने पूर्व पति संजीव खन्ना और ड्राइवर श्यामवर राय के साथ मिलकर शीना की हत्या की थी। हत्या के बाद उसके शव को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक जंगल में जला दिया था। पुलिस ने यहां से कुछ हड्डियां जब्त की थीं। सीबीआई ने इन्हें शीना बोरा के अवशेष बताया था। दरअसल, शीना बोरा की हत्या का मामला 2015 में सबके सामने आया था। इस मामले में अब तक 80 से ज्यादा गवाहों ने गवाही दी है।

क्या फिर से होगी नीट की परीक्षा या होगी शुरू होगी काउंसलिंग, सुप्रीम कोर्ट में बड़ा फैसला आज

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आज नीट यूजी परीक्षा में सम्मिलित 24 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं के लिए अहम दिन है।नीट परीक्षा को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ये फैसला दे सकता है कि नीट यूजी की परीक्षा फिर कराई जाए या आगे नीट काउंसलिंग शुरू होगी। इससे पहले नीट पेपर लीक मामले में केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। सरकार का कहना है कि डेटा विश्लेषण से बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का कोई संकेत नहीं मिला है। इसलिए वो नीट यूजी री-एग्जाम के समर्थन में नहीं है। जुलाई के तीसरे हफ्ते से नीट काउंसलिंग शुरू होगी। इसी मामले में एनटीए ने भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में गुरुवार को सुनवाई करेगा।

इस संबंध में 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई की थी। आज दूसरी बार सीजेआई की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एनटीए, सरकार, सीबीआई और छात्रों से इस मामले में कुछ सवालों के जवाब मांगे थे। चारों की तरफ से इस मामले में जवाब दाखिल होने के बाद आज दोबारा सुनवाई होनी हैं। नीट परीक्षा में तकरीबन 24 लाख अभ्‍यर्थी शामिल हुए थे। ऐसे में इस परीक्षा और रिजल्‍ट पर होने वाली सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकीं हुई है। परीक्षा में प्रश्न-पत्र लीक होने और 4 जून को घोषित परिणामों में कथित अनियमितताओं को लेकर इसे रद्द करने और फिर से आयोजित किए जाने की मांग वाली सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई 38 याचिकाओं पर निर्णय आज आ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है किनीट से संबंधित आंकड़ों पर आईआईटी मद्रास ने व्यापक तकनीकी मूल्यांकन किया है। डेटा विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि असामान्य स्कोर के कारण किसी भी स्थानीय उम्मीदवार को लाभ नहीं मिला है। इसके समाधान के लिए हर संभव कदम और तंत्र स्थापित करने के लिए चौतरफा प्रयास किया जा रहा है। सरकार ने कहा है कि एक तरफ ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि कदाचार के दोषी किसी भी उम्मीदवार को कोई लाभ न मिले। दूसरी तरफ यह सुनिश्चित किया जाए कि 23 लाख छात्रों पर केवल आशंकाओं के आधार पर एक नई परीक्षा का बोझ न डाला जाए। केंद्र सरकार मजबूत परीक्षा प्रक्रिया बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

एनटीए ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। अपने हलफनामे में एनटीए ने कहा है कि पटना में हुए कथित पेपर लीक मामले में लगातार कार्रवाई की गई है। पुलिस के साथ साथ इस मामले की जांच सीबीआई भी कर रही है। इसके अलावा एनटीए ने भी यह भी हलफनामे में मेरिट लिस्‍ट में 61 स्‍टूडेंटस के 720 में 720 अंक कैसे आए इसका भी जवाब दिया है।

इसके अतिरिक्त पिछली सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा था कि परीक्षा में सम्मिलित करीब 24 लाख छात्र-छात्राओं की बड़ी संख्या के देखते हुए रीटेस्ट पर आदेश दिया उचित नहीं होगा।

आरएसएस ने “धार्मिक असंतुलन” को लेकर जताई चिंता, बताई जनसंख्या नियंत्रण कानून की क्यों है जरूरत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने वीकली मैगजीन में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की मांग की है। विश्‍व जनसंख्‍या दिवस पर आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ने देश के कुछ इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ 'जनसांख्यिकीय असंतुलन' बढ़ने का दावा करते हुए कहा कि एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है। आरएसएस ने दावा किया है कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि किसी भी धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले, जिससे अन्यथा “सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और राजनीतिक संघर्ष हो सकते हैं।”

ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी एंड डेस्टिनी नामक लेख में लिखा है। संपादकीय के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिर होने के बावजूद यह सभी धर्मों और क्षेत्रों में समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों खासकर सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसमें लिखा गया है कि पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में सीमाओं पर 'अवैध विस्थापन' की वजह से 'अप्राकृतिक' तरीके से जनसंख्या वृद्धि हो रही है।

पत्रिका में लिखा गया है कि पश्चिम और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने में अपेक्षाकृत बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जनगणना के बाद आबादी में बदलाव होने पर संसद में कुछ सीट कम होने का डर है।संपादकीय के अनुसार, लोकतंत्र में जब प्रतिनिधित्व के लिए संख्या महत्वपूर्ण होती हैं और जनसांख्यिकी भाग्य का फैसला करती है, तो हमें इस प्रवृत्ति के प्रति और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए।  

पत्रिका के अनुसार, 'हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियों की जरूरत है कि जनसंख्या वृद्धि से किसी एक धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक संघर्ष की स्थिति बन सकती है। उसने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय संगठनों, शोध संस्थानों और परामर्शदात्री एजेंसियों के माध्यम से आगे बढ़ाए जा रहे बाहरी एजेंडे से प्रभावित होने के बजाय हमें देश में संसाधनों की उपलब्धता, भविष्य की आवश्यकताओं और जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाने का प्रयास करना चाहिए और उसे सभी पर समान रूप से लागू करना चाहिए।

संपादकीय में आरोप लगाया गया है, 'राहुल गांधी जैसे नेता यदा-कदा हिंदू भावनाओं का अपमान कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस्लामवादियों द्वारा महिलाओं पर किए गए अत्याचारों को स्वीकार करते हुए भी मुस्लिम कार्ड खेल सकती हैं और द्रविड़ पार्टियां सनातन धर्म को गाली देने में गर्व महसूस कर सकती हैं क्योंकि उन्हें जनसंख्या असंतुलन के कारण विकसित तथाकथित अल्पसंख्यक वोट बैंक के एकजुट होने पर भरोसा है।

बता दें कि इससे पहले आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत भी इस तरह की चिंता जाहिर कर चुके हैं। मोहन बागवत ने ने 2022 में विजयादशमी के अवसर पर अपने भाषण में कहा था, "एक व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति होनी चाहिए , जो सभी पर समान रूप से लागू हो और एक बार इसे लागू कर दिया जाए, तो किसी को भी कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए।" "जब 50 साल पहले (जनसंख्या) असंतुलन हुआ था, तो हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े थे। यह सिर्फ हमारे साथ ही नहीं हुआ है। आज के समय में, पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो जैसे नए देश बने हैं। इसलिए, जब जनसंख्या असंतुलन होता है, तो नए देश बनते हैं। देश विभाजित होते हैं।"

ऑस्ट्रिया से एक बार फिर मोदी ने दिया शांति संदेश, आतंकवाद पर किया कड़ा प्रहार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिवसीय दौरे के लिए ऑस्ट्रिया में हैं। बुधवार को पीएम मोदी ने ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वैन डेर बेलेन के साथ बैठक की। इसके बाद एक ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहमर के साथ संयुक्त वार्ता को संबोधित किया।इस दौरान पीएम मोदी ने एक बार फिर शांति का संदेश दिया और आतंकवाद की कड़ी निंदा की साथ ही आपसी सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। 

संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी ने कहा कि लोकतंत्र और कानून के शासन जैसे मूल्यों में साझा विश्वास भारत-ऑस्ट्रिया संबंधों की मजबूत नींव हैं। मुझे खुशी है कि मुझे प्रधानमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ऑस्ट्रिया आने का मौका मिला। मेरी यह यात्रा ऐतिहासिक और विशेष है। 41 वर्ष के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रिया का दौरा है। यह भी सुखद संयोग है कि यह यात्रा उस समय हो रही है, जब हमारे आपसी संबंधों के 75 वर्ष पूरे हुए हैं। लोकतंत्र और कानून के शासन जैसे मूल्यों में आपसी विश्वास हमारे संबंधों की नींव हैं। आपसी विश्वास से हमारे रिश्तों को बल मिलता है। आज मेरे और चांसलर नेहमर के बीच बहुत सार्थक बातचीत हुई। हमने आपसी सहयोग को और मजबूत करने के लिए नई संभावनाओं की पहचान की है। हमने फैसला लिया कि संबंधों को रणनीतिक दिशा प्रदान की जाएगी। 

पीएम मोदी ने आगे कहा कि आज मेरे और चांसलर नेहमर के बीच बहुत सार्थक बातचीत हुई। हमने आपसी सहयोग को और मजबूत करने के लिए नई संभावनाओं की पहचान की है।हमने निर्णय लिया है कि संबंधों को रणनीतिक दिशा प्रदान की जाएगी।हम दोनों आतंकवाद की कठोर निंदा करते हैं।हम इस बात पर सहमत हैं कि यह किसी भी रूप में आतंकवाद स्वीकार्य नहीं है। 

पीएम मोदी ने कहा, मैंने पहले भी कहा है कि यह युद्ध का समय नहीं है। समस्याओं का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता। मानवता में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति तब दुखी होता है जब किसी की जान चली जाती है। मासूम लोगों के जान की हानि स्वीकार्य नहीं है। भारत और ऑस्ट्रिया शांति और स्थिरता की बहाली के लिए हर संभव सहयोग देने को तैयार हैं।

ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहमर ने एक्स पर पोस्ट कर पीएम मोदी की ओर से कहे गए कई मुद्दों पर सहमति जताई। उन्होंने कहा, पश्चिम और दक्षिण के देशों को स्विट्जरलैंड में शांति शिखर सम्मेलन में चुने गए रास्ते को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट होना चाहिए। इस संबंध में भी भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। ऑस्ट्रियाई चांसलर कार्ल नेहमर ने कहा, यूक्रेन में हो रहा युद्ध अब समाप्त होना चाहिए। इसके लिए ऑस्ट्रिया संवाद स्थापित करने के लिए हर संभव कोशिश करेगा।