नाबालिक बेटी के पिता का सहारा बनी मीडिया
अमृतपुर फर्रुखाबाद। जब तक मीडिया की कलम और स्याही में ताकत है वह अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करती रहेगी। चुनाव के समय आचार संहिता का ताबीज पहनकर कोई भी विभाग अपने कर्तव्यों से भाग नहीं सकता और अगर ऐसा होता है तो इस लोकतंत्र में सबसे पहले उस विभाग को मीडिया की ताकत का अंदाजा करना होगा।
एक सप्ताह से भटक रहा नाबालिक बेटी के पिता की नहीं दर्ज हुई रिपोर्ट शीर्षक नाम से थाना राजेपुर की खबर अखवार में छपी थी। अपनी 16 वर्षीय बेटी को गाजियाबाद ग्राम खोड़ा के रहने वाले अश्विनी उर्फ आंसू द्वारा बहला फुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए एक सप्ताह तक थाने के चक्कर लगाता रहा। दर दर की ठोकरे खाकर जब परेशान हाल व्यक्ति की किसी ने नहीं सुनी तो मीडिया उसका सहारा बनी।
जब उसने लाचारी और बेबसी में मीडिया कर्मियों को अपनी दास्तान सुनाई तो उसके आंसू स्याही और बेबसी कलम बन गए। अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक उसके आंसुओं की आवाज बुलंद हो गई। पुलिस ने सक्रियता दिखाई और खबर छपते ही उसका मुकदमा दर्ज कर जाँच शुरू कर दी। लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ यूं ही नहीं कहा जाता। जब समस्याओं से जूझ रहे व्यक्ति की कोई सुनने वाला ना हो कोई सहारा देने वाला ना हो ऐसी स्थिति में लोकतंत्र की प्रणाली को मजबूत दिशा देने का काम मीडिया ही करती है। बेसहारा का सहारा बन न्याय दिलाने में मीडिया की जो भूमिका सामने आती है उसे कोई भी नकार नहीं सकता। इसीलिए जनता अधिकतर अपने दुख और दर्द मीडिया के सामने रखने से परहेज नहीं करती। भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगानी हो या उचित कार्य करवाना हो गहरी नींद में सो रहे अधिकारियों और कर्मचारियों को जगाना हो और उन्हें अपने कर्तव्यों के प्रति सजग करना हो तो मीडिया की कलम चुप नहीं बैठ सकती। समाज में दर्पण का खिताब पाने वाली मीडिया अपने कर्तव्यों का निर्वाहन बखूबी करती है और कराना भी जानती है।
May 05 2024, 20:20