राष्ट्रीय लोक अदालत एक जन आंदोलन
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ललितपुर। लोक अदालत क्या है और इसके क्या उद्देश्य हैं इन सब बातों को आम जनमानस को सरल भाषा में बताते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ललितपुर के पैनल अधिवक्ता पुष्पेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं कि आगामी 9 मार्च को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन सम्पूर्ण भारत वर्ष में आमजन को सस्ता सुलभ न्याय दिलाने के लिए आयोजित हो रहा है।
लोक अदालत -जैसा कि नाम से स्पष्ट है, आपसी सुलह या बातचीत की एक प्रणाली है। यह एक ऐसा मंच है जहां अदालत में लंबित मामलों (या विवाद) या जो मुकदमेबाजी से पहले के चरण में हैं, उन दो पक्षों में समझौता किया जाता है। मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटाया जाता है।
लोक अदालतों का गठन भारतीय संविधान की प्रस्तावना द्वारा दिए गए वादे को पूरा करने के लिए किया जाता है, जिसके अनुसार- भारत के प्रत्येक नागरिक के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करना कहा गया है । संविधान का अनुच्छेद 39 समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को नि:शुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता की गारंटी देना अनिवार्य बनाते हैं। 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया, जो 9 नवंबर 1995 को लागू हुआ। पहला लोक अदालत शिविर 1982 में गुजरात में एक स्वैच्छिक और सुलह एजेंसी के रूप में आयोजित किया गया था। लोक अदालत भारतीय न्याय प्रणाली की उस पुरानी व्यवस्था को स्थापित करता है जो प्राचीन भारत में प्रचलित थी।
इसकी वैधता आधुनिक दिनों में भी प्रासंगिक है। भारतीय अदालतें लंबी, महंगी और थकाने वाली कानूनी प्रक्रियाओं से जुड़े मामलों के बोझ से दबी हुई हैं। छोटे -छोटे मामलों को निपटाने में भी कोर्ट को कई साल लग जाते हैं। इसलिए, लोक अदालत त्वरित और सस्ते न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या युक्ति प्रदान करती है।
मुख्य धारा कानूनी प्रणाली के लिए एक पूरक प्रदान करने के लिए औपचारिक व्यवस्था से हट कर अपने मामलों को निपटाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने के लिए, न्याय वितरण प्रणाली में भाग लेने के लिए जनता को सशक्त बनाने के लिए।
Mar 03 2024, 20:03