वेटलैंड के संरक्षक एवं सस्टेनेबल प्रबंधन पर विशेषज्ञों द्वारा की गई तकनीकी चर्चा
गोरखपुर। वेटलैंड(आर्द्र भूमि) के संरक्षण एवं सस्टेनेबल प्रबंधन पर विशेषज्ञों के समूह द्वारा एक सारगर्भित तकनीकी चर्चा बशारतपुर, गोरखपुर स्थित निजी परिसर में संपन्न हुई। इस चर्चा में मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के पूर्व छात्र रहे और देश के प्रतिष्ठित टिहरी बांध परियोजना के प्रबंधन से जुड़े रहे अवकाश प्राप्त महाप्रबंधक इंजीनियर ओ. एस. मौर्य ने आर्द्र भूमि जुड़ी हुई पर्यावरणीय समस्याओं एवं उनके निदान पर एक प्रेजेंटेशन दिया।
उन्होंने बताया कि लगभग 5 दशकों में देश के पचास प्रतिशत आर्द्र भूमि कृषि कार्य, शहरीकरण तथा विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के कारण से नष्ट हो चुके हैं तथा बचे हुए आर्द्र भूमि भी दो से तीन प्रतिशत वार्षिक दर से उत्तरोत्तर कम होते जा रहे हैं। जंगल वातावरण के लिए लेंस एवं आर्द्र भूमि कीडनी का कार्य करते हैं। जिसप्रकार किडनी शरीर से वेस्ट को बाहर करती है, वैसे ही आर्द्र भूमि विभिन्न प्रदूषण को जल से बाहर करती है तथा उनकी तीव्रता को काफी कम कर देती है। जो मानव, जानवर व पेड़ पौधों आदि को हानि से बचाते हैं।
चर्चा के दौरान यह भी बताया कि विश्व स्तर पर रामसर कन्वेंशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूर्ण करने वाले वेटलैंड को संरक्षण करने की तकनीकी सहायता की जा रही है। भारतवर्ष में 80 आर्द्र भूमि जिनको रामसर साइट कहा जाता है। स्थानीय , राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर से इनका संरक्षण एवं संश्लेषण प्रबंधन की करवाई की जा रही है। जो आर्द्र भूमि रामसर कंजरवेजन से आच्छादित नहीं है, उनके लिए वेटलैंड कंजर्वेजन रूल 2017 भारत सरकार द्वारा नोटिफाई किया गया है।
इस नियम से आच्छादित होने पर वेटलैंड अथॉरिटी को बहुत सारे अधिकार मिल जाते हैं। जिसके द्वारा संरक्षण एवं प्रबंधन की कार्रवाई सही प्रकार से हो सके। गोरखपुर स्थित रामगढ़ ताल को 7 दिसंबर 2020 से वेटलैंड संरक्षण एवं प्रबंधन रूल 2017 से आच्छादित किया गया है। जिसके तहत अच्छी तरह से संरक्षण एवं प्रबंधन का कार्य किया जा सके।
इस विषय के विशेषज्ञ मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के पूर्व डीन एवं विभागाध्यक्ष सिविल इंजीनियरिंग तथा वर्तमान में निदेशक राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज गोंडा के प्रोफेसर गोविंद पाण्डेय ने इस विषय पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला तथा रामगढ़ ताल में हुए कुछ अप्रत्याशित पर्यावरण घटनाओं के बारे में बताया तथा उनके कारण एवं निवारण के बारे में भी बताया। इस कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों की बहुत आवश्यकता है जिससे समाज में दिन प्रतिदिन वेटलैंड के बारे में जागरूकता बढ़ाया जा सके तथा यह भी बताया कि हम प्रबुद्ध वर्ग की जिम्मेदारी है कि आने वाली पीढियों के लिए पर्यावरण को संरक्षित करें।
इस विषय पर आई टी एम गीडा में कार्यरत डॉक्टर एस के हसन ने भी इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी दी तथा ऐसे कार्यक्रमों को जारी रखने की आवश्यकता पर बल दिया। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के डॉक्टर मदन चंद्र मौर्य ने अपने संबोधन में बहुमूल्य विचार रखें तथा आशा किया कि इस कार्यक्रम के जीवी में अवकाश प्राप्त अभियंताओं के अनुभव से काफी लाभ उठाया जाना चाहिए।
इनके द्वारा दिए गए ज्ञान युवा अभियंताओं के लिए बहुत कारगर होंगे। इस अवसर पर इंजीनियर ए के राय पूर्व मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग, इंजीनियर धीरेंद्र चतुर्वेदी पूर्व अभियंता सिंचाई विभाग, डॉ रामपाल कुशवाहा, डॉक्टर कृष्णानंद मौर्य, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर से अभिषेक सिंह, विवेक गुप्ता एवं सरस्वती शिशु मंदिर से आचार्य एस. एन. कुशवाहा आदि लोगों ने प्रतिभाग किया।
Feb 20 2024, 18:58