*संक्रान्ति सूर्य सत्य की किरणों से असत्य को बेध रहा है : प्रो.शर्मा*
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ललितपुर। मकर संक्रांति के पावन अवसर पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि अनुकूल हो रहे मौसम के परिवर्तन के सूत्रधार के नाते मकर संक्रान्ति आगत बसन्त की अभी से दस्तक देने लगी है। सूर्य के उत्तरायण का तात्पर्य है सूर्य द्वारा मकर रेखा से संक्रान्त करना, अर्थात समस्त ब्राह्मण्ड को प्रकाश से आलोकित करना है।
संक्रान्ति का अर्थ है अपने आपकों और अधिक ऊर्जावान बनाना और ज्यादा मेलजोल बढ़ाने के लिए प्रवाहशील नदियों के तटों पर मेला लगाना। सचमुच भारत का प्रत्येक तीज-त्यौहार किसानों के हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति है। किसानों और मजदूरों का प्राकृतिक स्वभाव है कि वे अपने आनन्द में सभी को भागीदार बनाते हैं, परन्तु दुकानदारी छाप आदमी कुठिया में गुड़ फोड़कर मिठास का मजा अकेले ही लेता रहता है।
किसी को भनक भी नहीं लगने देता। परन्तु किसान गुड़ को फोड़कर उसमें तिल की चिकनई जिसें संस्कृत में स्नेह कहा जाता है को मिलाकर देवताओं को समर्पित करके अपने से पहले संगी-साथियों को खिलाता पिलाता है। वस्तुत: रवि की लहलहाती गेंहू, चने और तिलहन की फसलें संक्रान्ति के समय जीत का सेमीफाइनल है।
अभी फाइनल बाकी है जो बसन्त, होली और दीवाली तक चलता रहेगा। जश्न का परमानन्द तो तब आयेगा जब नवान्न की राशि उसके खलिहान से घर आकर मंडी जायेगी। भले ही ज्योतिषियों के लिए रितुराज बसन्त का मतलब सिर्फ धरती की मध्यरेखा का सूर्य के ठीक-ठीक सामने पहुँच जाने तक सीमित हो परन्तु समस्त जड़ और चेतन को आनन्द के सागर में निमग्न कर देने वाला स्रृष्टा का धरती को सर्वोत्तम उपहार है।
उपलब्ध अन्न की राशि ही किसान के घर-परिवार में नई-नई उमंग लेकर आती है। खेत में गेंहू के साथ बोई गई सरसों निरन्तर ऊंची होती जाती है। फूलों की पियराई को देख-देख कर पूरा परिवार चिन्ता में डूब जाता है। बेचारा गेंहू तो जन्म से ही अपने होंठ सिले हुए है, परन्तु नुकीला मुड़ायछा (साफा) बांधे चना बड़ी ठसक के साथ कटिबद्ध है कि कतकी के पहले ही वह बहिना के हाथ पीले करके ही दम लेगा।
Jan 14 2024, 18:43