*आजमगढ़ : निष्ठा, लगन , समर्पण की पहचान शिक्षिका सुभद्रा यादव को दी गयी श्रद्धांजलि*
सिद्धेश्वर पांडेय
आजमगढ़ । निष्ठा, लगन , समर्पण और कर्तव्यपरायणता की पहचान शिक्षिका सुभद्रा यादव बुधवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन अंबारी के पांडेय का पूरा स्थित आवास पर किया गया। इस दौरान काफी संख्या में क्षेत्रीय लोगों उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर प्रसाद ग्रहण किया।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ उदयभान यादव ने कहा कि 1985 में पहली बार कन्या पाठशाला अंबारी में आंधीपुर के बड़े भाइयों के साथ पढ़ने के लिए गया था, गुरुजी एक आछी के पेड़ की छांव में खटोले पर बैठ कर बच्चों को मात्रा का ज्ञान करा रहीं थी। पाठशाला पर उनकी गहरी छाप चारो तरफ दिखाई दे रही थी।
वह विद्यालय एक खंडहरनुमा घर में चलता था जहां बच्चे बाहर पेड़ के नीचे ही पढ़ते थे। उसे सब लोग कोटिया कहते थे। 1963 में अंबारी गांव के निवासी एवं तत्कालीन ऑनरेरी मजिस्ट्रेट , डिस्ट्रिक बोर्ड के मेंबर महमूदुल हसन उर्फ अच्छन मियां ने अपने कोर्ट में कन्या पाठशाला का शुभारंभ कराया था।
उस समय वहां सुभद्रा यादव, जिन्हें सब लोग यादव गुरुजी कहते थे वहां पर थीं। सुभद्रा गुरुजी की अपनी सेवा के प्रति लगन और निष्ठा का परिणाम था कि कक्षा 2 तक पहुंचते पहुंचते हम लोग मात्रा ज्ञान , आलेख, सुलेख, जोड़ घटाना, गुड़ा भाग सीख लिए। राजेश यादव ने कहा कि उनका अनुशासन ऐसा था कि लघु शंका और दीर्घ शंका जाने के लिए 1 उंगली और 2 उंगली दिखा कर छुट्टी लेने में भी भय महसूस होती थी। सभी बच्चे उनसे डरते थे तो स्नेह भी करते थे। उन तीनों गुरुजी में मातृत्व का भाव ऐसा था कि यदि कभी कोई बच्चा शौच कर दे तो उसे बेझिझक धुलवा भी देती थीं।
कभी कभी हम लोग एक उंगली या दो उंगली दिखा कर झूठी छुट्टी लेकर हाथी गाड़ा या मालगाड़ी देखने कौतूहल बस चले जाते तो उस दिन गुरुजी के हाथों पीटे जरूर जाते थे। उनके भय से बच्चों में एक अनुशासन दिखाई देता था। कक्षा 4 तक आते आते हम लोग भाषा और अंकगणित में इतना कुछ सीख गए थे कि आलेख में मात्रा की एक त्रुटि भी नहीं होती थ गुरुजी मात्रा और गणित पर विशेष ध्यान देती थीं।
डॉ सुरेश यादव पूर्व विश्लेषक हिंडाल्को ने कहा कि1990 में नवनिर्मित भवन पांडेय का पूरा में आया। उनके पढ़ाने का असर था कि, अंबारी, आंधीपुर, शाहपुर, कुशहा, आलमपुर तक के बच्चे कन्या पाठशाला में पढ़ने आते थे।
पाठशाला में लड़को से अधिक लड़कियों की संख्या थी जो गुरुजी की देन थी।
गुरुजी ने राजकीय बालिका इंटर कॉलेज आजमगढ़ से 1972 इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया उसी कैंपस से 1973 बी टी सी पूर्ण किया। दिसंबर 1973 में वो अध्यापक के पद पर कन्या पाठशाला अम्बारी में नियुक्त हुईं। लगभग 2002 तक वो प्राथमिक विद्यालय अंबारी द्वितीय में रहीं । 2011 तक प्राथमिक विद्यालय शाहपुर और प्राथमिक विद्यालय मुस्तफाबाद में प्रधानाध्यापक के पद पर रहीं।
2011 से 2013 जून तक उच्च प्राथमिक विद्यालय सरैया भटपुरा में प्रधानाध्यापक के पद पर रहीं और वहीं से सेवानिवृत हुई।
लगभग 40 वर्ष की सेवा में आपके शिष्य केंद्र और प्रदेश की सेवाओं में अपनी बेहतरीन सेवा दे रहे हैं। उनमें पी सी एस, इंजीनियर, डॉक्टर, प्राथमिक लेकर उच्च शिक्षा विभाग में शिक्षक जिनकी संख्या सैकड़ों में है। वे अपनी सोच से भी प्रगतिशील रहीं। 1990 के दशक में आपने अपने बेटे के साथ साथ अपनी तीनों बेटियो को भी उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा जिसका प्रतिफल है कि उनके बेटे भारद्वाज सिंह कंपोजिट प्राथमिक विद्यालय अंबारी में अध्यापक है।
आपकी बड़ी बेटी अर्चना यादव सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी , बाराबंकी में है, दूसरी व तीसरी बेटी वंदना एवं आराधना प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के पद पर कार्यरत है। संचालन दिनेश यादव ने किया। डॉ सुरेश यादव, रामकीर्ति पांडेय, रामकुमार यादव, विनोद यादव, सुरेंद्र प्रताप, प्रदीप यादव, सूर्यभान यादव, अरविंद यादव, राजेश यादव, डॉ उदयभान यादव आदि रहे।
Dec 28 2023, 19:16