भारत में बनती है दुनिया की 60 फीसद वैक्सीन: डॉ. भट्ट
गोरखपुर- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंस के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनंत नारायण भट्ट ने कहा है कि भारत प्राचीन काल से ही औषधियों के उत्पादन की जननी रही है। वर्तमान समय में अपना देश पूरी दुनिया में लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन के उत्पादन का केंद्र है।
डॉ. भट्ट महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संकाय व फार्मेसी संकाय के संयुक्त तत्वावधान एवं ट्रांसलेशन बायोमेडिकल रिसर्च सोसायटी के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के एक महत्वपूर्ण तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। एडवांटेज एंड ऑपर्चुनिटीज इन ड्रग डिस्कवरी फ्रॉम नेचुरल प्रोडक्ट्स 'बायोनेचर कॉन-2023' विषयक संगोष्ठी में 'जैव पॉलिमर एल्गिनेट से हेमोस्टैटिक एजेंट का विकास' बिंदु पर अपना शोध प्रस्तुत करते हुए डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ भट्ट ने बताया कि गनशॉट से अत्यधिक रक्तस्राव की वजह से भारत के सेना के जवानों का जीवन खतरे में आ जाता है। उनके रक्तस्राव को रोकने हेतु एक स्वदेशी औषधि का निर्माण किया है जिसकी क्षमता अन्य दवाओं की अपेक्षा काफी बेहतर है। यह औषधि एलिग्नेट रसायन पर आधारित है।
एक अन्य सत्र की अध्यक्षता करते हुए इंस्टिट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर एंड आयुर्वेदिक बायोलॉजी के निदेशक एवं बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. राजा वशिष्ट त्रिपाठी ने आयुर्वेद के विभिन्न आयामों व पर महायोगी गोरखनाथ जी के ग्रंथो के सबद, दोहावली को लेते हुए आहार-विहार पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमें आयुर्वेद व आधुनिक विज्ञान को साथ में रखकर कदम से कदम मिलाकर आगे अध्ययन की जरूरत है जो भविष्य में मानवता के समग्र विकास हेतु एक वरदान साबित होगा। डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि भारत के वैदिक ग्रंथ मार्गदर्शक ग्रंथ हैं जिनके द्वारा संपूर्ण विश्व को निरोगी बनाया जा सकता है। जरूरत बस इन ग्रंथों में निहित ज्ञान को अपनाने की है। हमारा शरीर हर प्रकार के बीमारियो से निपटने की क्षमता रखता है और इस क्षमता का ज्ञान वैदिक ग्रंथों में वर्णित है।
पुरातन काल से प्रचलित औषधि है त्रिफला: पद्मश्री होसुर
मुंबई के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं पद्मश्री से सम्मानित प्रो. आरवी होसुर ने 'हर्बोलॉमिक्स: एन इमर्जिंग फ्रंटियर' विषय पर बात करते हुए कहा कि आयुर्वेद में सभी रोगों से निदान संबंधी सामग्री संकलित है। उन्होंने त्रिफला की उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि त्रिफला एंटीऑक्सीडेंट, सूजनरोधी और जीवाणुरोधी प्रभाव वाला एक प्राचीन हर्बल उपचार है। यह हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। त्रिफला पुरातन काल से प्रचलित महत्वपूर्ण औषधि है। त्रिफला को हर उम्र के लोग रसायन औषधि के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके नियमित सेवन से पेट से जुड़ी बीमारियों से बचाव होता है। यह औषधि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसे गंभीर रोगों में भी लाभकारी है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला में ऐसे गुण हैं जो पाचन शक्ति बढ़ाने और वजन घटाने में सहायक हैं।
प्राकृतिक संसाधनों में सभी बीमारियों का इलाज: डॉ. शिल्पी
सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय पुणे के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग की डॉ. शिल्पी शर्मा ने 'मधुमेह के प्रबंधन के लिए प्राकृतिक यौगिकों की क्षमता की खोज' विषय पर अपना शोध अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों में लगभग सभी लाइलाज बीमारियों के इलाज हैं। मधुमेह जैसी भयानक बीमारी का इलाज भी आज वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है और अब प्राकृतिक संसाधनों से इसकी दवाई भी बनाई जा रही है जिसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा। आईआईटी इंदौर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हेम चन्द्र झा ने 'अश्वगंधा बैक्टीरिया और वायरस से प्रेरित गैस्ट्रिक के खिलाफ एक संभावित चिकित्सीय एजेंट है' विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि अश्वगंधा चूर्ण या किसी भी माध्यम में इसे लेने से यह शरीर को स्वस्थ ही बनाता है। यह विभिन्न रोगों से लड़ने में और असामान्य बीमारी से हमें बचाने में भी कारगर सिद्ध होता है।
आयुर्वेद समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति: प्रो रेड्डी
बीएचयू, वाराणसी में रसशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. के. रामाचंद्र रेड्डी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आयुर्वेद प्राकृतिक एवं समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति है। प्रारंभ से भारत में आयुर्वेद की शिक्षा मौखिक रूप से गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत ऋषियों द्वारा दी जाती रही है। जिसे लगभग 5000 साल पहले इस ज्ञान को ग्रंथों का रूप दिया गया है । चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय आयुर्वेद के पुरातन ग्रंथ हैं तथा इन ग्रंथो में सृष्टि में व्याप्त पंच महाभूतों - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं आकाश तत्वों के मनुष्यों के ऊपर होने वाले प्रभावों तथा स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लिए के लिए उनको संतुलित रखने के महत्ता को प्रतिपादित किया गया है।
नीम की पत्तियों से डेंगू का उपचार संभव: प्रो शरद
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बायो टेक्नोलॉजी के आचार्य प्रो. शरद कुमार मिश्रा ने "अजादिरचता इंडिका (नीम) - ए ट्री ऑफ सॉल्विंग ग्लोबल हेल्थ प्रोब्लेम्स" विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि नीम के पत्ते से डेंगू का उपचार संभव है। उन्होंने बताया कि नीम का पेड़ अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है और सदियों से पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में इसका उपयोग किया जाता रहा है। नीम के पेड़ का मुख्य लाभ इसकी बहुमुखी पत्तियां हैं है। त्वचा की विभिन्न समस्याओं के इलाज के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हम नीम के पेड़ों को उनके बीज से लेकर तेल, पत्तियों, छाल और जड़ों तक किसी भी रूप में पा सकते हैं। इसमें हानिकारक कीड़ों और बीमारियों को दूर भगाने की भी अपार क्षमता होती है। नीम का पेड़ विभिन्न प्रकार के त्वचा विकारों जैसे मुँहासे, एक्जिमा, सोरायसिस और सनबर्न को ठीक करने में मदद करता है। नीम के पेड़ की मदद से आप लंबे समय तक मनमोहक, ताज़ा और लंबे समय तक रहने वाली खुशबू का आनंद ले सकते हैं।
इन विशेषज्ञों ने किया विद्यार्थियों का मार्गदर्शन
उद्घाटन के बाद दो दिन तक अलग अलग सत्रों में सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. माधव नीलकंठ मुगले, राजकीय आयुर्वेद कॉलेज लखनऊ में काया चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ संजीव रस्तोगी, आईआईटी रुड़की में बायो इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. कृष्ण मोहन पोलुरी, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बायो टेक्नोलॉजी के आचार्य प्रो. दिनेश यादव, इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ सुजॉय के. धारा, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मनीष द्विवेदी ने शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। इसी क्रम में युवा वैज्ञानिक पुरस्कार हेतु विभिन्न प्रतिभागियों ने विभिन्न शोध कार्य प्रस्तुत किए।विभिन्न प्रतिभागियों द्वारा विविध विषयों पर शोध पोस्टर प्रस्तुतिकरण किया गया। इस अवसर पर कुल 40 शोधार्थियों ने शोध प्रस्तुतीकरण किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के विभिन्न तकनीकी सत्रों में विश्वविद्यालय कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी, कुलसचिव डॉ प्रदीप कुमार राव समेत समस्त प्राध्यापक, विद्यार्थी एवं देश के विभिन्न जगहों से आये विशेषज्ञ, शोधार्थी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का समापन रविवार को होगा।
Dec 17 2023, 17:31