*माताओं ने पुत्रों की दीर्घायु की कामना में रखा जिवित्पुत्रिका व्रत*
खजनी गोरखपुर।अपने पुत्रों की लंबी आयु एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना में आश्विन मास पितृपक्ष की अष्टमी तिथि को होने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत में माताओं ने कठोर निर्जल, निराहार व्रत रह पूजा अर्चना की और व्रत कथा सुनी।
लोकभाषा में इसे "जिउतिया व्रत" या "जितिया व्रत" भी कहा जाता है, और ज्यादातर पुत्रवती माताएं ही जीवित्पुत्रिका व्रत रहती हैं। शुक्रवार को क्षेत्र में पुत्रवती माताओं ने श्रद्धापूर्वक व्रत रहकर अपने पुत्रों के स्वस्थ्य और लंबे जीवन की कामना की साथ ही बरियार नामक पौधे की पूजा की और व्रतकथा सुनीं।
पौराणिक एवं लोकमान्यताओं के अनुसार इस व्रत में माताऐं भगवान जीमूतवाहन की उपासना करते हुए अपने पुत्रों के दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना में निर्जल एवं निराहार व्रत रहकर सायंकाल बरियार नामक पौधे की पूजा करती हैं।
प्रात: सूर्योदय से पहले प्रारंभ होने वाले इस व्रत में माताओं ने सबेरे ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पूरे दिन और रात निर्जल व्रत रहने का संकल्प लिया।
लोकमान्यताओं और व्रत के विधान के अनुसार व्रत के समापन पर सिर्फ बछड़े वाली गाय के दूध, जिउतिया (रंगीन लाल धागे की माला) दान के लिए श्रृंगार की वस्तुऐं,सप्त धान्य (सात प्रकार के अन्न),सरपुतिया की सब्जी,भैंस के दूध की दही,चिवड़ा (पोहा),नेनुआ के पत्ते,कुशा,धूप,दीप,मिठाई,फल, सरसों का तेल,खल्ली,गाय के गोबर आदि विशेष पूजन सामाग्री का प्रयोग करती हैं।
इसमें पारंपरिक चिल्हो सियारो,राजा जीमूतवाहन और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी व्रतकथा सुनने के बाद अगले दिन समापन के अवसर पर व्रत का पारण और दान दक्षिणा देने का विधान है।
Oct 06 2023, 18:01