*आजमगढ़ : जागरूकता दिखाएं अपने मवेशियों को लंपी चर्म रोग से बचाएं*
सुबास सिंह
आजमगढ़ - आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा, आजमगढ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एल. सी. वर्मा ने बताया कि इस समय गोवंश पर लंपी चर्म रोग का खतरा मडर आ रहा है। जिससे पशुओं के दुग्ध उत्पादन में कमी देखी गई है, और उनका स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। इसी कड़ी में मवेशियों में लंपी चर्म रोग एक महामारी के रूप में उभर कर आया है। इससे बचाव के लिए पशुपालकों को जागरूक एवं सचेत होने की आवशयकता है।
लंपी रोग गोवंश में एक विषाणु जनित चर्म रोग है । जिसमें पशुओं को तेज बुखार, आंख नाक से पानी गिरना , पैरों में सूजन, कठोर एवं चपटी गांठ से शरीर का ढक जाना होता है । इसके अलावा पशुओं में नैक्रोटिक घाव, स्वसन और जठरांत्र का होना, सांस लेने में कठिनाई, वजन घटना, शरीर कमजोर होना तथा गर्भपात एवं दूध का कम होना । लंपी का संक्रमण मनुष्यों में नहीं फैलता है।
निकटतम पशु चिकित्सा अधिकारी को तत्काल सूचित करें । प्रभावित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग करें। प्रभावित पशु का आवागमन प्रतिबंधित करें। पशुओं को सदैव स्वच्छ पानी पिलाएं। प्रभावित पशुओं के दूध को उबालकर पियें। मच्छर, मक्खियों, किलनी आदि से बचाने के लिए कीटनाशक का उपयोग करें । पशु बाड़े, गौशाला में फिनायल या सोडियम हाइपोक्लोराइट का छिड़काव करें । बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले पशुपालक को भी अन्य पशुओं से दूर रखें।
लंपी बीमारी के सफल इलाज के लिए काला जीरा-200 ग्राम, सनय पत्ती-200 ग्राम, मुलैठी- 200 ग्राम, मजीठ-200 ग्राम, हल्दी- 200 ग्राम एवं आंवला - 200 ग्राम। सभी औषधियों को लेकर चूर्ण बना लें व 50-50 ग्राम की पैकिंग बना लें। 50 ग्राम सुबह 50 ग्राम शाम को गुड़ या दलिये का प्रयोग करें।
Sep 17 2023, 20:35