*आला हज़रत की याद में तकरीर,नात व मनकबत का हुआ मुकाबला*
गोरखपुर- चिंगी शहीद तुर्कमानपुर में सोमवार को आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां की याद में बच्चों के बीच तकरीर, नात व मनकबत का मुकाबला हुआ। जिसमें मकतब इस्लामियात की तीन शाखाओं के बच्चों ने हिस्सा लिया। हिंदी , उर्दू व अंग्रेजी में तकरीर शिफा खातून, खुशी नूर, फिजा खातून, हाफिज मोहम्मद सैफ अली, अली अकबर, मो. अरीश, अफीना, सफियान रजा ने पेश की। हम्द, नात व मनकबत सना खान, हसनैन, नूर फातिमा, उजैन, कुलसुम फातिमा ने पेश की। सवाल-जवाब यासीन व रेहान के बीच हुआ। बच्चों को मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी, नायब काजी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी, हाफिज़ रहमत अली निजामी, अली गज़नफर शाह, हाफिज आमिर हुसैन निजामी, मोहम्मद आज़म ने पुरस्कृत किया।
मकतब के शिक्षक कारी मोहम्मद अनस रजवी ने कहा कि आला हज़रत 10 शव्वाल 1272 हिजरी यानी 14 जून 1856 को बरेली शहर में पैदा हुए। आप बहुत सारी खूबियों के मालिक थे। आप भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे मशहूर शख़्सियतों में से हैं। शायद ही कोई जगह ऐसी हो जहाँ मुसलमान आबाद हों और आपका जिक्र न हो। एक बात जो सिर्फ आपकी ही जात को हासिल है कि 200 साल में किसी भी आलिम-ए-दीन की हयात और ख़िदमात पर इतनी किताबें नहीं लिखी गई जितनी किताबें आपकी ज़िन्दगी पर लिखी गईं। जिनकी तादाद तक़रीबन 528 से ज्यादा है। जो अरबी, फ़ारसी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, पश्तो, बलूची, कन्नड़, तेलगू, सिंधी, बंगला आदि भाषाओं में है। दुनिया के कमोबेश 15 से ज्यादा विश्वविद्यालय जिनमें अमेरिका, मिस्र, सूडान, भारत, बांग्लादेश आदि शामिल हैं से आपकी जात पर पीएचडी और एमफिल की 35 से ज्यादा डिग्रीयां मुकम्मल हो चुकी हैं।
नायब काजी ने कहा कि आला हज़रत ने 56 से ज्यादा विषयों पर 1000 से ज्यादा किताबें लिखीं। आपका इल्मी दबदबा इतना था कि उस वक़्त के क़ाज़ी-ए-मक्का, मुफ़्ती-ए-मक्का, इमाम-ए-हरम, मुफ़्ती-ए-मदीना, क़ाज़ी-ए-मदीना, उलमा-ए-सीरिया, इराक, मिस्र आपकी तारीफ़ करते थे। अल्लामा डॉ. इक़बाल ने आला हज़रत के बारे में कहा था कि आला हज़रत अपने वक़्त के इमाम अबू हनीफ़ा थे। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।
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सिराजुद्दीन ने याद किया पूरा कुरआन-ए-पाक
गोरखपुर। मोहल्ला शहीद अब्दुल्लाह नगर के रहने वाले मो. मोईनुद्दीन के पुत्र सिराजुद्दीन ने पूरा कुरआन-ए-पाक याद कर लिया है। क़ुरआन-ए-पाक के सभी तीस पारों (अध्याय) को उच्चारण सहित पूरा कराने में उनके उस्ताद हाफिज रजी अहमद बरकाती का सहयोग रहा। खुशी के इस मौके पर बरकाती मकतब पुराना गोरखपुर गोरखनाथ में दुआ का कार्यक्रम हुआ। इसमें सिराजुद्दीन को परिजनों ने दुआओं से नवाजा। उनके पिता मोईनुद्दीन ने बताया कि यह उनके और खानदान व रिश्तेदारों के लिए खुशी का मौका है। हाफिज रजी ने कहा कि कुरआन की तालीम हर मुसलमान के लिए जरूरी है क्योंकि कुरआन एक किताब भी नहीं बल्कि दुनिया में ज़िंदगी गुजारने का तरीका है।
Sep 11 2023, 19:39