शोध : फोन का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को बना रहा ऑटिज्म का शिकार, जानें क्या हैं इस बीमार के लक्षण
नयी दिल्ली : आज ऐसा दौर है जब बच्चों के हाथ में भी स्मार्टफोन है. वे घंटों इसका यूज करते है. अब बच्चों का खेलकूद की तरफ रुझान कम होता जा रहा है. टाइमपास के लिए वो फोन का इस्तेमाल करते हैं. घंटों तक उसमें गेम खेलने या अन्य किसी गतिविधि में लगे रहते हैं.
लेकिन अब इसका असर बच्चों की हेल्थ पर हो रहा है.स्मार्टफोन के इस्तेमाल की वजह से उनकी सेहत बिगड़ रही है. यहां तक की बच्चे ऑटिज्म जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो रहे हैं.
डॉक्टरों के मुताबिक, फोन का ज्यादा यूज करने से बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ रहा है. इसको वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है. ये परेशानी पांच से आठ साल तक के बच्चों में ज्यादा देखी जाती है. वर्चुअल ऑटिज्म के कारण बच्चों की मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हो रही है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में 24% फीसदी बच्चे रात को सोने से पहले स्मार्टफोन का यूज करते हैं. इस कारण करीब 40 फीसदी बच्चे किसी काम में फोकस करने की परेशानी से जूझ रहे हैं.
क्या होता है वर्चुअल ऑटिज्म
दिल्ली में न्यूरोसर्जन डॉ राजेश कुमार बताते हैं कि बच्चा अगर वर्चुअल ऑटिज्म से पीड़ित है, तो वह बोलते समय हकलाने लगता है. इन बच्चों में आईक्यू लेवल भी कम होता है. वह किसी से बात करने में भी घबराते हैं. किसी काम का सही से रिसपॉन्स नहीं करते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराते है.फिलहाल ऑटिज्म के जो केस आ रहे हैं. उनमें 5 से 10 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो स्मार्टफोन का अधिक यूज करते हैं. ये एक संकेत है कि फोन का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म का कारण बन रहा है.
कुछ बच्चों को फोन देखकर ही भोजन करने की आदत होती है. ये भी काफी हानिकारक है. बच्चे फोन के देखने के चक्कर में सही से भोजन भी नहीं कर पाते हैं. फोन के ज्यादा यूज की वजह से उनको अपनी पढ़ाई करने में भी परेशानी आ रही है. यहां तक कि कुछ बच्चों में 2 से तीन साल की उम्र में भी फोन देखने का क्रेज देखा जा रहा है. ये उनकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है. ऐसे में माता-पिता को अलर्ट रहने की जरूरत है.
माता पिता इन बातों का रखें ध्यान
बच्चों में फोन के यूज का समय कम करें
बच्चों को समय दें और खेलकूद के लिए उनको प्रोत्साहित करें
बच्चों को फोन के नुकसान के बारे में बताएं
बच्चों से रोजाना किसी विषय पर बात जरूर करें जिसका असर बच्चे के माता-पिता पर भी होता है
यूसीएसएफ के शोधकर्ताओं ने बच्चों पर एक रिसर्च की है. इसको फैमली प्रोसेस में प्रकाशित किया गया है. स्टडी के मुताबिक, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की लगभग 50 प्रतिशत माताओं में डिप्रेशन के लक्षणों का स्तर ऊंचा था, जबकि विक्षिप्त बच्चों वाली माताओं में इसकी दर बहुत कम थी (6 प्रतिशत से 13.6 प्रतिशत).इसके अलावा, जबकि पिछले शोध का सुझाव था कि अवसादग्रस्त माता-पिता होने से बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है, इस स्टडी में ऐसा नहीं पाया गया.
दिल्ली में स्थित एक वरिष्ठ सलाहकार और न्यूरो-मनोचिकित्सक डॉ संजय चुघ ने बताया कि यह केवल ऑटिज्म की बात नहीं है, “बल्कि यह किसी भी ऐसी बीमारी की हकीकत है जहां पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बहुत ज्यादा नहीं होती. बच्चे की यह स्थिति माता-पिता पर बहुत तनाव डालती है. इसलिए जितना ज्यादा तनाव होगा, माता-पिता में अवसाद के लक्षण दिखने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी.”
पीएचडी और मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान विभाग में UCSF के सहायक प्रोफेसर और स्टडी के पहले लेखक डेनियल रूबिनोव ने कहा, “हमने पाया कि माताओं के उच्च स्तर के अवसाद ने समय के साथ बच्चों के व्यवहार में समस्याएं पैदा नहीं की, यहां तक कि ऑटिज्म वाले बच्चों के परिवारों में भी जो बहुत तनाव में थे.” “यह हैरान करने के साथ एक अच्छी खबर भी है.”
माता-पिता को हो जाता है क्रोनिक स्ट्रेस
मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान विभाग में UCSF की प्रोफेसर और स्टडी की वरिष्ठ लेखिका एलिसा एपेल ने कहा, “विशेष जरूरतों वाले बच्चे के माता-पिता होने के नाते उनका हर दिन स्वाभाविक रूप से मुश्किल होता है.” “यह क्रोनिक स्ट्रेस का एक क्लासिक उदाहरण है, यही वजह है कि हमने ऐसे बच्चों की देखभाल करने वाली माताओं पर फोकस किया है और उनके स्वास्थ्य पर तनाव के प्रभावों को स्टडी किया.”
एक बाल एवं किशोर मनोचिकित्सक और स्टेप्स सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ, गुरुग्राम के चिकित्सा निदेशक डॉ प्रमीत रुस्तोगी ने को बताया कि जिन माताओं के बच्चे में ऑटिज्म डायग्नोज होता है, वे बहुत स्ट्रेस में होती हैं, “ऐसा क्यों हुआ इसके लिए अक्सर मां को दोषी ठहराया जाता है.”
उन्होंने कहा, “सबसे पहले, एक मां के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल होता है, क्योंकि उसने मां के रूप में अपनी नई जिंदगी को लेकर कई आशाएं, इच्छाएं और कल्पनाएं की होती हैं. कई मामलों में एक ऑटिस्टिक बच्चा माता-पिता से रिलेट नहीं कर पाता है या कहें अपने माता-पिता के साथ वह अच्छी तरह से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाता है. जिसे स्वीकार करना माता-पिता के लिए मुश्किल होता है.
माताएं अपना स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए क्या कर सकती हैं?
एक्सपर्ट ने कहा, “ऐसी दूसरी माताओं और परिवारों को ढूंढे जो इस स्थिति से गुजर रहे हैं, जिन्हें यह जिम्मेदारी उठाते हुए समय हो गया हो और एक ऐसी टीम से जुड़े हैं जो जरूरत पड़ने पर मदद कर सकती है.”
उन्होंने आगे कहा, “घर से ही पर्याप्त सहयोग मिलना चाहिए, ज्यादातर मनोवैज्ञानिक जो बच्चे का इलाज कर रहे हैं उन्हें पहले मां से पूछना चाहिए कि उनपर अतिरिक्त भार तो नहीं हैं उन्हें यह बताने से पहले कि बच्चों के लिए उन्हें और क्या करना चाहिए.”
Jul 16 2023, 13:01