भारत के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की 196वी जन्मदिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन
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आज दिनांक 11 अप्रैल 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के महान सुधारक ज्योतिबा फुले की 196 वी जन्मदिवस पर सत्याग्रह इस फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया । विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया ।
इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने संयुक्त रूप से कहा कि आज ही के दिन 196 वर्ष पूर्व भारत के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले का जन्म हुआ। ज्योतिबा फुले का सारा जीवन सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित रहा। समाज के उपेक्षित वर्ग के लिए उन् के त्याग एवं बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।भारत समेत पूरे विश्व में मानव के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए सैकड़ों सालों से दलितों का संघर्ष जारी है। पहले ये अछूत कहलाते थे, अब दलित कहा जाता है।
दलित का शाब्दिक अर्थ दमित, शोषित, कुचला हुआ माना जाता है। माना जाता है कि सबसे पहले 1927 में महात्मा गांधी ने एक गुजराती लेख में राजनैतिक रूप से दलित शब्द का प्रयोग किया था। इंसानों के बीच महज उनकी जाति को लेकर फर्क करने वाली सामाजिक व्यवस्था में दलित आज भी अपनी पहचान बनाए को लेकर संघर्षरत हैं। ये संघर्ष सैकड़ों साल पुराना है एवं दलितों की यह लड़ाई अब भी किसी न किसी रूप जारी है। उनके संघर्ष की ये कहानी तो उस दौर से शुरू होती है जब उन्हें केवल सर पर मैला ढ़ोने और ऊंची जातियों की सेवा करने के योग्य ही समझा जाता था। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल ,अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली एवं अल बयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से कहा कि पुणे के ज्योतिराव फुले वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों की असल समस्यायों की जड़ पहचानना शुरू किया।
उन्होंने दलितों को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें शिक्षित करने पर जोर दिया। जिस वक्त ज्योतिबा ने दलित शिक्षा के लिए अपनी लड़ाई शुरू की, उन्हें ऊंची जातियों के अलावा अपने समाज के लोगों का भी विरोध झेलना पड़ा था। तत्कालीन भारत में यह बहुत क्रांतिकारी कदम था। जिन लोगों को सिर्फ मजदूरी करने, मैला ढोने और ऊंची जाति के लोगों की सेवा करने के लिए अधिकृत कर दिया गया था, फुले ने उन लोगों के हाथों में किताब पहुंचाने की हिम्मत दिखाई थी।
अपने इन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
इस संगठन ने स्त्री शिक्षा के लिए बेहतरीन काम किया। ज्योतिबा फुले ने सिर्फ समाज के कमजोर वर्गों को पढ़ाने पर ही जोर नहीं दिया बल्कि अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों को भी स्कूल तक आने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए पहला आधुनिक स्कूल खोला, जो भारत में भी महिलाओं का पहला स्कूल था।
दलितों को एक समाज के रूप में संगठित करने और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम भारत के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फूले ने किया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि ज्योतिबा फुले का सारा जीवन नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन है।
Apr 12 2023, 09:25