बिहार में जातीय जनगणना में फंस सकता है पेंच, नीतीश सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर
![]()
बिहार में अपने स्तर से जातीय जनगणना कराने के सरकारी फैसले पर ग्रहण लग सकता है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किया गया है। इस याचिका में संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जाति आधारित जनगणना पर रोक लगाने की गुहार लगाई गयी है। शशि आनंद नामक व्यक्ति ने जातीय जनगणना कराने के नीतीश सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि यह फैसला न सिर्फ संविधान के खिलाफ है बल्कि इसके लिए आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रूपये खर्च करने का फैसला भी गलत है।
शशि आनंद की ओर से कोर्ट में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता जगन्नाथ सिंह ने कहा कि आकस्मिकता निधि के पैसे से जातीय जनगणऩा कराना गलत है और यह संविधान की धारा का उल्लंघन है। संविधान के अनुच्छेद 267 में आकस्मिकता निधि और उसे खर्च किये जाने का उल्लेख किया गया है। इसके तहत सिर्फ अप्रत्याशित स्थिति में ही आकस्मिक फंड का उपयोग किया जा सकता है लेकिन नीतीश सरकार इसी पैसे से जातीय जनगणना करा रही है।
याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार ने 02 जून 2022 को मंत्रिमंडल की बैठक में आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रूपये निकाल कर जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है। राज्यपाल ने 06 जून को इससे सम्बंधित अधिसूचना भी जारी कर दी है। अधिवक्ता ने सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है।
उधर याचिका दाखिल किए जाने के बाद प्रशासनिक महकमे में चर्चाओं का दौर जारी है।
Jun 23 2022, 10:09