आज है अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस, जानें इसका महत्व और इतिहास


नयी दिल्ली : अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए प्रेरित करता है। यह शांति, सामाजिक न्याय और सतत विकास के साझा उद्देश्यों की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक आह्वान के रूप में कार्य करता है।

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए प्रेरित करता है। यह शांति, सामाजिक न्याय और सतत विकास के साझा उद्देश्यों की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक आह्वान के रूप में कार्य करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 20 दिसंबर 2005 को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस घोषित किया। हर साल, नागरिकों के बीच सहयोग और एकता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए यह दिन मनाया जाता है। यह दिन विविधता में एकता का जश्न मनाता है और हमें गरीबी उन्मूलन के लिए नई पहल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

इसके पीछे का इतिहास 

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस 20 दिसंबर को मनाया जाता है। इसकी नींव 2000 में संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित की गई थी। 

विश्व नेताओं के नेतृत्व में इस ऐतिहासिक दस्तावेज ने "एकजुटता" को 21वीं सदी के लिए एक आधार और प्रोत्साहन के रूप में माना। इसने माना कि वैश्वीकरण ने अवसर प्रदान किए, लेकिन इसके लाभ और भार असमान रूप से फैले हुए थे, जिससे काफी संख्या में लोग पीछे छूट गए। 

इसलिए, घोषणापत्र में एक संयुक्त वैश्विक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया गया, जहां जो लोग पीड़ित हैं या जिनकी सबसे कम मदद की जाती है, वे उन व्यक्तियों से सहायता के हकदार हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिलता है। इस साझा जिम्मेदारी के विचार के परिणामस्वरूप 2002 में विश्व एकजुटता कोष की स्थापना की।

क्या है इस दिन का महत्व?

संयुक्त राष्ट्र इस दिवस को इस उद्देश्य से मनाता है कि गरीबी से लड़ने के लिए एकजुटता की संस्कृति और साझा करने की भावना को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। यह दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक विकास, मानवाधिकार और शांति को बढ़ावा देने के लिए विश्व के देशों और लोगों को एक साथ लाना है।

यह दिन यह जानकारी फैलाता है कि वैश्विक साझेदारी भी वैश्विक सहयोग और एकजुटता की नींव पर ही बनाई जा सकती है, जैसे संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास एजेंडा लोगों और ग्रह पर केंद्रित है, जो लोगों को गरीबी, भुखमरी और बीमारी से बाहर निकालने के लिए दृढ़ संकल्पित वैश्विक साझेदारी द्वारा समर्थित है।

2005 अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की हुई स्थापना

साल 2005 में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की आधिकारिक घोषणा हुई। यह एक वार्षिक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि हमारी परस्पर जुड़ी दुनिया एक-दूसरे को ऊपर उठाने, व्यक्तिगत सफलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूरे मानव परिवार की समृद्धि के लिए समग्र प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है।

दुनिया में फिर दिखा भारत का दमः विश्व ध्यान दिवस के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में सभी देशों ने लगाई मुहर

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वैश्विक स्तर पर एक बार फिर भारत का कद बढ़ा है।संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के एक सह-प्रायोजित प्रस्ताव पर एकमत से मुहर लगी है। प्रस्ताव में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया गया है। सभी देशों ने प्रस्ताव को स्वीकारते हुए एकमत से वोटिंग की। अब पूरी दुनिया में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस मनाया जाएगा।

भारत के साथ लिकटेंस्टीन, श्रीलंका, नेपाल, मैक्सिको और अंडोरा उन देशों के मुख्य समूह के सदस्य थे जिन्होंने 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘विश्व ध्यान दिवस’ शीर्षक वाले प्रस्ताव को शुक्रवार को सर्वसम्मति से पारित करने में अहम भूमिका निभाई। इन्हीं देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव को लेकर सभी जानकारियां साथी देशों के सामने रखीं। लिक्टेन्सटाइन की तरफ से संयुक्त राष्ट्र के पटल पर रखे गए इस प्रस्ताव को बांग्लादेश, बल्गेरिया, बुरुंडी, द डॉमिनिकन रिपब्लिक, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, मॉरीशस, मोनाको, मंगोलिया, मोरक्को, पुर्तगाल और स्लोवेनिया की तरफ से सह-प्रायोजित किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘‘व्यापक कल्याण और आंतरिक परिवर्तन का दिन! मुझे खुशी है कि भारत ने कोर समूह के अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाए जाने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया।’’ उन्होंने कहा कि समग्र मानव कल्याण के लिए भारत का नेतृत्व ‘‘हमारे सभ्यतागत सिद्धांत-वसुधैव कुटुम्बकम’’ पर आधारित है।

21 दिसंबर शीत संक्रांति

यूएन में भारत के राजदूत ने कहा कि 21 दिसंबर शीत संक्रांति का दिन है और भारतीय परंपरा के अनुसार यह दिन 'उत्तरायण' की शुरुआत का दिन है, जो कि साल के शुभ दिनों में से है, खासकर आंतरिक विचारों और ध्यान लगाने के लिए।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से ठीक छह महीने बाद ध्यान दिवस

विश्व ध्यान दिवस के साथ एक खास बात यह जुड़ी है कि यह 21 जून को पड़ने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से ठीक छह महीने बाद मनाया जाएगा। विश्व ध्यान दिवस से उलट योग दिवस ग्रीष्म संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस तथ्य का जिक्र करते हुए हरीश ने कहा कि 2014 में भी भारत ने नेतृत्व करते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर घोषित करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। अब एक दशक बाद विश्व योग दिवस पूरी दुनिया में आम लोगों के लिए योग को उनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनाने का वैश्विक आंदोलन बन गया है।

भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में फिलिस्तीन का किया समर्थन, इजराइल के खिलाफ दिया वोट

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भारत ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर अपने पुराने रुख को बरकरार रखा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में इजराइल के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पूर्वी यरुशलम सहित 1967 से कब्जाए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र से इजराइल से वापस जाने का आह्वान किया गया है तथा पश्चिम एशिया में व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने के आह्वान को दोहराया गया है।

यह प्रस्ताव "फिलिस्तीन के सवाल का शांतिपूर्ण समाधान" शीर्षक से पेश किया गया था, जिसे सेनेगल ने प्रस्तावित किया। इसे 157 देशों का समर्थन मिला, जबकि 8 देशों - इजराइल, अमेरिका, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, अर्जेंटीना और हंगरी ने इसका विरोध किया। कई देशों ने मतदान से दूरी बनाई, जिनमें यूक्रेन, जॉर्जिया और चेकिया शामिल हैं। 

यूएन में पेश हुए इस प्रस्ताव में मांग की गई कि इजराइल 1967 से कब्जाई गए फिलिस्तीन के क्षेत्र, जिसमें पूर्वी यरुशलम का हिस्सा भी शामिल है को खाली करे। प्रस्ताव में फिलिस्तीन के लोगों के अधिकारों, खासकर उनके आत्मनिर्णय के अधिकारों और स्वतंत्र शासन का समर्थन किया गया। इस प्रस्ताव के तहत यूएन महासभा ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इजराइल-फलस्तीन के बीच दो शासन से जुड़े हल (टू स्टेट सॉल्यूशन) का समर्थन किया। इसके तहत दोनों देशों के 1967 से पहले वाली सीमा के आधार पर शांति-सुरक्षा के साथ रहने की वकालत की जाती है।

प्रस्ताव में गाजा पट्टी में जनसांख्यिकीय या क्षेत्रीय परिवर्तन के किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया गया, जिसमें गाजा के क्षेत्र को सीमित करने वाली कोई भी कार्रवाई शामिल है। प्रस्ताव में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गाजा पट्टी 1967 में कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और यह ‘द्वि-राष्ट्र समाधान के दृष्टिकोण की पुष्टि करता है, जिसमें गाजा पट्टी फिलिस्तीन का हिस्सा होगी।’

संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से इजराइल से फिलिस्तीनी क्षेत्रों को छोड़ने की मांग करता रहा है। यह विवाद दशकों पुराना है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच विभाजन का कारण बना हुआ है। हालांकि, अमेरिका जैसे देश इस तरह के प्रस्तावों का विरोध करते रहे हैं और इजराइल का समर्थन करते हैं।

बिना खांसी-बलगम के सीने में दर्द: फेफड़ों में फंगस का खतरा,हर साल 3 लाख लोगों की लेता है जान ये संक्रमण, न करें अनदेखा



 

फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां अक्सर खांसी और बलगम के साथ आती हैं, लेकिन अगर आपको बिना खांसी या बलगम के भी सीने में दर्द महसूस हो रहा है, तो यह गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है। 

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन (Fungal Infection in Lungs) एक ऐसी स्थिति है, जो समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा हो सकती है। हर साल यह समस्या लाखों लोगों की मौत का कारण बनती है।

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन के प्रमुख लक्षण

सीने में दर्द

बिना खांसी और बलगम के यदि लगातार सीने में दर्द बना रहे, तो यह फेफड़ों में फंगस का शुरुआती संकेत हो सकता है।

सांस लेने में कठिनाई

फंगस इंफेक्शन से फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है, जिससे सांस फूलने या घुटन जैसी समस्या हो सकती है।

थकान और कमजोरी

यदि बिना मेहनत के अत्यधिक थकावट या कमजोरी महसूस हो रही हो, तो यह इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है।

वजन कम होना

फेफड़ों के इंफेक्शन में अक्सर व्यक्ति का वजन तेजी से कम होने लगता है।

हल्का बुखार

लगातार हल्का बुखार रहना और इसका दवा से ठीक न होना फंगल इंफेक्शन का संकेत हो सकता है।

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन कैसे फैलता है?

फंगल इंफेक्शन मुख्यतः एस्परजिलस (Aspergillus) नामक फंगस के कारण होता है। यह फंगस वातावरण में मौजूद धूल, मिट्टी और सड़े-गले पौधों में पाया जाता है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में यह संक्रमण तेजी से फैलता है।

जोखिम कौन-कौन झेल सकते हैं?

इम्यूनिटी कमजोर होना: HIV, कैंसर या डायबिटीज के मरीज।

लंबे समय तक दवाओं का सेवन: स्टेरॉयड या एंटीबायोटिक्स।

अस्पताल में लंबा समय बिताना।

हर साल लाखों मौतों का कारण

फेफड़ों का फंगल इंफेक्शन एक गंभीर समस्या है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल दुनियाभर में लगभग 3 लाख लोग इस संक्रमण से जान गंवाते हैं।

न करें इन संकेतों को नजरअंदाज

यदि आपको उपरोक्त लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। शुरुआती स्टेज पर सही इलाज से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

बचाव के उपाय

स्वच्छता बनाए रखें: धूल और गंदगी से बचें।

इम्यूनिटी मजबूत करें: पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम।

डॉक्टर से नियमित जांच कराएं।

मास्क का उपयोग करें: धूल और प्रदूषण से बचाव के लिए।

इस बीमारी को नजरअंदाज करना जानलेवा हो सकता है। जागरूक रहें और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।

రంగుమారుతున్న తుంగభద్ర జలం

ఆంధ్ర, కర్ణాటక, తెలంగాణ రాష్ట్రాల జీవనాడి అయిన తుంగభద్ర(Tungabhadra) జలాశయంలో నీరు రోజురోజుకు రంగుమారుతోంది. దీంతో రైతులు ఆందోళన చెందుతున్నారు. ఖరీఫ్‏లో అల్పపీడనం వల్ల ఇబ్బందులు ఎదుర్కొన్న రైతులు ఈ కలుషిత నీటి వల్ల రబీ పంటలో కూడా దెబ్బతింటాయేమోనని ఆందోళన చెందుతున్నారు.

ఆంధ్ర, కర్ణాటక, తెలంగాణ రాష్ట్రాల జీవనాడి అయిన తుంగభద్ర(Tungabhadra) జలాశయంలో నీరు రోజురోజుకు రంగుమారుతోంది. దీంతో రైతులు ఆందోళన చెందుతున్నారు. ఖరీఫ్‏లో అల్పపీడనం వల్ల ఇబ్బందులు ఎదుర్కొన్న రైతులు ఈ కలుషిత నీటి వల్ల రబీ పంటలో కూడా దెబ్బతింటాయేమోనని ఆందోళన చెందుతున్నారు. కొప్పాళ, విజయనగర, బళ్లారి, రాయచూరు(Koppal, Vijayanagara, Bellary, Raichur) జిల్లాలకు కూడా ఈ జలాశయం నుంచి తాగునీరు అందుతుంది.

కలుషిత నీటి వల్ల ఎక్కడ అనారోగ్యానికి గురవుతామోనని ప్రజలు ఆందోళన చెందుతున్నారు. రైతు సంఘ నాయకులు సింధిగేరి గోవిందప్ప మాట్లాడుతూ జలాశయానికి పైభాగంలో ఉండే హరప్పనహళ్లి, హగరి బొమ్మనళ్లి, తదితర ప్రాంతాల్లోని కర్మాగారాలు వ్యర్థ పదార్థాలను జలాశయంలోకి వదులుతుండటం వల్ల నీరు కలుషితమై పచ్చరంగులోకి మారుతున్నాయన్నారు.

దీని వల్ల ఇటు రైతులు నష్టపోయే పరిస్థితి ఉందన్నారు. అలాగే వేసవి సమయంలో కర్ణాటక, ఆంధ్ర, తెలంగాణ రాష్ట్రాల ప్రజలు తాగునీటికి ఇబ్బందిపడే అవకాశం ఉందన్నారు. అధికారులు స్పందించి జలాశయంలో నీరు కలుషితం కాకుండా చూడాలని కోరారు. లేకపోతే జలాశయం ఎదుటనే నిరసనలు చేపడతామని హెచ్చరించారు.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर के बयान पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पर किया पलटवार: 'यह सबसे बड़ा पाखंड है'

#pakistangetsslammedatunformakingcommentson_kashmir

UNGA Indian diplomat Bhavika Mangalanandan

भारत ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में कश्मीर पर दिए गए बयान पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कड़ी आलोचना करते हुए इसे "सबसे बड़ा पाखंड" बताया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की आम बहस में अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाने वाले शहबाज शरीफ के जवाब में शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने जवाब के अधिकार का इस्तेमाल किया।

यूएनजीए में एक सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय राजनयिक भाविका मंगलनंदन ने कहा कि आतंकवाद, नशीले पदार्थों, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए वैश्विक प्रतिष्ठा वाले सैन्य द्वारा संचालित देश ने "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला करने का दुस्साहस" किया है।

"आज सुबह इस सभा में दुखद रूप से एक हास्यास्पद घटना घटी। मैं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण में भारत के संदर्भ के बारे में बात कर रहा हूँ। जैसा कि दुनिया जानती है, पाकिस्तान ने लंबे समय से अपने पड़ोसियों के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। इसने हमारी संसद, हमारी वित्तीय राजधानी, मुंबई, बाजारों और तीर्थस्थलों पर हमला किया है। यह सूची लंबी है। ऐसे देश के लिए कहीं भी हिंसा के बारे में बात करना सबसे बड़ा पाखंड है। धांधली वाले चुनावों के इतिहास वाले देश के लिए लोकतंत्र में राजनीतिक विकल्पों के बारे में बात करना और भी असाधारण है," भारतीय राजनयिक ने कहा। असली सच्चाई यह है कि पाकिस्तान हमारे क्षेत्र पर लालच करता है और वास्तव में, जम्मू और कश्मीर में चुनावों को बाधित करने के लिए लगातार आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है, जो भारत का अविभाज्य और अभिन्न अंग है," भाविका मंगलनंदन ने कहा।

पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए भारत ने कहा कि पड़ोसी देश को यह समझना चाहिए कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद "अनिवार्य रूप से परिणामों को आमंत्रित करेगा" यह हास्यास्पद है कि एक राष्ट्र जिसने 1971 में नरसंहार किया और जो आज भी अपने अल्पसंख्यकों को लगातार सताता है, असहिष्णुता और भय के बारे में बोलने की हिम्मत करता है। दुनिया खुद देख सकती है कि पाकिस्तान वास्तव में क्या है। हम एक ऐसे देश के बारे में बात कर रहे हैं जिसने लंबे समय तक ओसामा बिन लादेन की मेजबानी की। 

उन्होंने कहा, "एक ऐसा देश जिसकी छाप दुनिया भर में कई आतंकवादी घटनाओं पर है, जिसकी नीतियों के कारण कई समाजों के लोग इसे अपना घर बनाने के लिए आकर्षित होते हैं।" कश्मीर पर शरीफ की टिप्पणी को "अस्वीकार्य" बताते हुए राजनयिक ने कहा कि पाकिस्तान सच्चाई को और झूठ से बदलने की कोशिश करेगा। भाविका मंगलनंदन ने कहा, "दोहराव से कुछ नहीं बदलेगा। हमारा रुख स्पष्ट है और इसे दोहराने की जरूरत नहीं है।" पाकिस्तान लगातार कई संयुक्त राष्ट्र मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा है, तब भी जब उसे अपने बयानों पर कोई समर्थन नहीं मिला। हालांकि, भारत ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख देश का अभिन्न अंग हैं और हमेशा रहेंगे।

 पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने क्या कहा ?

 शुक्रवार को यूएनजीए के 79वें सत्र की आम बहस को संबोधित करते हुए शरीफ ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को उठाया और अनुच्छेद 370 और हिजबुल आतंकवादी बुरहान वानी का जिक्र किया। अपने 20 मिनट से अधिक के भाषण में उन्होंने भारत से "स्थायी शांति सुनिश्चित करने" के लिए अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया। उन्होंने भारत से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्तावों और "कश्मीरी लोगों की इच्छाओं" के अनुसार जम्मू और कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत करने को भी कहा। 

शरीफ ने फिलिस्तीनियों और कश्मीरियों के बीच समानता दर्शाते हुए कहा, "इसी तरह, फिलिस्तीन के लोगों की तरह, जम्मू और कश्मीर के लोगों ने भी अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए एक सदी तक संघर्ष किया है।" उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और दावा किया कि इस्लामोफोबिया का बढ़ना एक परेशान करने वाली वैश्विक घटना है। उन्होंने कहा, "इस्लामोफोबिया की सबसे खतरनाक अभिव्यक्ति भारत में हिंदू वर्चस्ववादी एजेंडा है। यह आक्रामक रूप से 200 मिलियन मुसलमानों को अधीन करने और भारत की इस्लामी विरासत को मिटाने की कोशिश करता है।"

नेतन्‍याहू के यूएनजीए संबोधन में लगे “शर्म करो” के नारे, फिर भी जंग से पीछे हटने से इनकार

#audience_shouts_shame_shame_as_israels_netanyahu_addresses_unga

इजराइल अभी थमने वाला नहीं है। अमेरिका और यूरोप जैसे देश लगातार इजरायल पर सीजफायर का दबाव बना रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे। उन्‍होंने बाइडेन को सीजफायर प्‍लान को रिजेक्‍ट कर दिया है।हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच जारी जंग के चलते अमेरिका, फ्रांस ने 21 दिनों का सीजफायर प्लान बनाया था। इस प्लान को मानने से इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ इनकार कर दिया है। नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी जारी रहेगी।

न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली को संबोधित करते हुए इजराइल के प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका-फ्रांस के 21 दिनों के सीजफायर प्लान को मानने से साफ इनकार कर दिया है। जैसे ही इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने विश्व नेताओं को संबोधित करना शुरू किया, कई प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा छोड़ना शुरू कर दिया। दर्शकों ने 'शर्म करो, शर्म करो' चिल्लाना शुरू कर दिया।

इस दौरान नेतन्याहू ने कहा, "जब मैंने इस मंच पर कई वक्ताओं द्वारा अपने देश पर लगाए गए झूठ और बदनामी को सुना, तो मैंने यहां आने और रिकॉर्ड स्थापित करने का फैसला किया।" इज़रायली पीएम ने ईरान को चेतावनी भी दी कि अगर उसने उनके देश पर हमला करने की हिम्मत की, तो "हम जवाबी हमला करेंगे।" उन्होंने कहा कि ईरान में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इजरायली एजेंसियां नहीं पहुंच सकतीं।

नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी होती रहेगी। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम अपने सभी लक्ष्यों को पूरा नहीं कर लेते, उनमें से मुख्य है उत्तर में रहने वालों की सुरक्षित उनके घरों में वापसी।

बता दें कि, अमेरिका, फ्रांस और अन्य सहयोगी देशों ने 21 दिनों के संघर्ष विराम का संयुक्त आह्वान किया है। लेबनान के विदेश मंत्री ने संघर्ष विराम प्रयासों का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि उनका देश इजरायल की ओर से ‘लेबनान के सीमावर्ती गांवों में मचाई जा रही सुनियोजित तबाही’ की निंदा करता है। इस बीच इजरायली वाहनों, टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों को लेबनान से सटी देश की उत्तरी सीमा पर जाते हुए देखा गया है। कमांडरों ने रिजर्व सैनिकों को बुलाने का आदेश जारी किया है।

तुर्की ने यूएन में नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा, क्यों छोड़ा पाकिस्तान का साथ?

#turkey_erdogan_not_raise_kashmir_issue_in_unga_know_why

मोदी सरकार ने पाँच अगस्त 2109 को जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। चीन और तुर्की ने भारत के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 से हर साल संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाते थे और भारत की आलोचना करते थे। भारत अर्दोआन के बयान पर आपत्ति जताता था और पाकिस्तान स्वागत करता था। लेकिन इस बार अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया।

आम तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वार्षिक संबोधन में कश्मीर का जिक्र जरूर करते थे। संयुक्त महासभा में पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन फिर एक बार कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे,लेकिन उन्होंने तो इस बार इसका नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएन की महासभा को संबोधित तो किया पर कश्मीर पर एक लफ्ज नहीं बोले। तुर्की के इस रुख ने पाकिस्तान को हैरान कर दिया। तुर्की के इस रुख के बाद लोग कई तरह के कयास लगाने लगे हैं। एर्दोगन की इस चुप्पी को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

कयास लगाया जा रहा है कि तुर्की के कश्मीर पर एक शब्द न बोलने के पीछे ब्रिक्स है। ऐसा कहना है कि तुर्की ब्रिक्स देशों के साथ खुद को खड़ा देखना चाहता है, उसे इसमें शामिल होना है और यही वजह है कि उनके राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बार भी अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।

न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम ब्रिक्स के साथ अपने संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा को बनाए रखते हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।”

ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ़्रीका हैं. भारत इस गुट का संस्थापक सदस्य देश है। इस गुट के विस्तार की बात हो रही है और कई देशों ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। तुर्की भी इसी लाइन में है। तुर्की का यूएन महासभा में कश्मीर के मुद्दे को न उठाना भारत को खुश करना भी है।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन यह भलीभांति जानते हैं कि अगर उन्हें ब्रिक्स का सदस्य बनना है तो भारत को खुश कर के रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री भारत की मंजूरी के बाद ही मिल सकती है। तुर्की को यह भी पता है कि अगर भारत ने मना कर दिया तो उसका ब्रिक्स का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा। तो इसका लब्बोलुआब यह है कि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री तभी मिलेगी जब वह भारत के करीब आए और उसे खुश करने की कोशिश करे।

तुर्की को पता है कि भारत का कश्मीर को लेकर रुख साफ है। वह किसी भी कीमत पर कश्मीर पर समझौता नहीं करेगा। यही नहीं भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि पीओके जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उसे भी लेने की प्लानिंग है।

इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के बीच गाजा में युद्ध : बंधकों की रिहाई, संवाद और संघर्षविराम..! पीएम मोदी ने बताया गाजा संकट का निदान


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यूयॉर्क के लोटे न्यूयॉर्क पैलेस होटल में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की। यह बैठक ऐसे समय में हुई जब इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के बीच गाजा में लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। पीएम मोदी ने गाजा की मानवीय स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए फिलिस्तीनी लोगों के प्रति भारत के निरंतर समर्थन की पुष्टि की।


विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के इतर अब्बास से मुलाकात की, जिसमें भारत की इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद पर स्थायी नीति को दोहराया गया। पीएम मोदी ने संघर्ष विराम, बंधकों की रिहाई और कूटनीतिक संवाद के ज़रिए विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की अपील की। उन्होंने दो राष्ट्र समाधान को ही क्षेत्र में स्थायी शांति का रास्ता बताया। साथ ही, पीएम मोदी ने यह भी याद दिलाया कि भारत, फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था और फिलिस्तीन की संयुक्त राष्ट्र (UN) में सदस्यता के लिए भारत का समर्थन लगातार जारी रहेगा। दोनों नेताओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य और क्षमता निर्माण में भारत द्वारा दी जा रही सहायता पर चर्चा की और भारत-फिलिस्तीन संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई।

इसी दिन प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच भी एक मुलाकात हुई, जिसमें दोनों नेताओं के बीच की गर्मजोशी और आत्मीयता भारत-अमेरिका के संबंधों के साथ-साथ मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ व्यक्तिगत तालमेल को भी दर्शाती है। आज पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र के फ्यूचर समिट को भी संबोधित करेंगे, जहां भविष्य की चुनौतियों और अवसरों पर बात होगी और भारत के लिए यूएनएससी की स्थायी सदस्यता एक प्रमुख मुद्दा हो सकता है।
भारत ने इजराइल के साथ निभाई दोस्ती! यूएनजीए में फिलिस्तीन से जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग में नहीं लिया हिस्सा

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में फिलिस्तीन से जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा कर लिया। इस प्रस्ताव में मांग की गई थी कि इजराइल ने फिलिस्तीन के क्षेत्र में जो अवैध कब्जा किया है, उसे जल्द से जल्द हटाए और वो भी बिना किसी देरी के 12 महीने के अंदर। इस प्रस्ताव पर भारत ने वोटिंग नहीं किया।

भारत का कहना है कि हम बातचीत और कूटनीति के जरिए विवाद को सुलझाने के समर्थक हैं। भारत ने कहा कि हमें विभाजन बढ़ाने के बजाय मतभेद मिटाने की दिशा में काम करना चाहिए। 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में बुधवार को फिलिस्तीन पर प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव में मांग की गई है कि इजराइल को कब्जाए गए फिलिस्तीन के इलाकों को 12 महीनों में खाली कर देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने मतदान किया। वहीं 14 देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। 43 देश वोटिंग से दूर रहे, जिनमें भारत भी शामिल है।

इन देशों ने मतदान से बनाई दूरी

मतदान में जिन देशों ने भाग नहीं लिया, उनमें भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, इटली, नेपाल, यूक्रेन और ब्रिटेन शामिल हैं। वहीं इजराइल और अमेरिका ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने इजराइल-फिलिस्तीन विवाद की शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और स्थानीय समाधान की वकालत की और दोहराया कि प्रत्यक्ष और सार्थक बातचीत के जरिए ही दोनों देशों के बीच दो राज्य समाधान ही स्थायी शांति ला सकता है।

फिलिस्तीन के प्रस्ताव में क्या?

फिलिस्तीन की ओर से तैयार प्रस्ताव में इजराइल सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत अपने दायित्वों की अवहेलना किए जाने की भी कड़ी निंदा की गई। इस बात पर जोर दिया गया कि ऐसे उल्लंघनों से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को गंभीर खतरा है। इसमें कहा गया है कि इजराइल को कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के किसी भी उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

आज है अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस, जानें इसका महत्व और इतिहास


नयी दिल्ली : अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए प्रेरित करता है। यह शांति, सामाजिक न्याय और सतत विकास के साझा उद्देश्यों की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक आह्वान के रूप में कार्य करता है।

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए प्रेरित करता है। यह शांति, सामाजिक न्याय और सतत विकास के साझा उद्देश्यों की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक आह्वान के रूप में कार्य करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 20 दिसंबर 2005 को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस घोषित किया। हर साल, नागरिकों के बीच सहयोग और एकता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए यह दिन मनाया जाता है। यह दिन विविधता में एकता का जश्न मनाता है और हमें गरीबी उन्मूलन के लिए नई पहल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

इसके पीछे का इतिहास 

अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस 20 दिसंबर को मनाया जाता है। इसकी नींव 2000 में संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित की गई थी। 

विश्व नेताओं के नेतृत्व में इस ऐतिहासिक दस्तावेज ने "एकजुटता" को 21वीं सदी के लिए एक आधार और प्रोत्साहन के रूप में माना। इसने माना कि वैश्वीकरण ने अवसर प्रदान किए, लेकिन इसके लाभ और भार असमान रूप से फैले हुए थे, जिससे काफी संख्या में लोग पीछे छूट गए। 

इसलिए, घोषणापत्र में एक संयुक्त वैश्विक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया गया, जहां जो लोग पीड़ित हैं या जिनकी सबसे कम मदद की जाती है, वे उन व्यक्तियों से सहायता के हकदार हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिलता है। इस साझा जिम्मेदारी के विचार के परिणामस्वरूप 2002 में विश्व एकजुटता कोष की स्थापना की।

क्या है इस दिन का महत्व?

संयुक्त राष्ट्र इस दिवस को इस उद्देश्य से मनाता है कि गरीबी से लड़ने के लिए एकजुटता की संस्कृति और साझा करने की भावना को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। यह दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक विकास, मानवाधिकार और शांति को बढ़ावा देने के लिए विश्व के देशों और लोगों को एक साथ लाना है।

यह दिन यह जानकारी फैलाता है कि वैश्विक साझेदारी भी वैश्विक सहयोग और एकजुटता की नींव पर ही बनाई जा सकती है, जैसे संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास एजेंडा लोगों और ग्रह पर केंद्रित है, जो लोगों को गरीबी, भुखमरी और बीमारी से बाहर निकालने के लिए दृढ़ संकल्पित वैश्विक साझेदारी द्वारा समर्थित है।

2005 अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की हुई स्थापना

साल 2005 में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की आधिकारिक घोषणा हुई। यह एक वार्षिक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि हमारी परस्पर जुड़ी दुनिया एक-दूसरे को ऊपर उठाने, व्यक्तिगत सफलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूरे मानव परिवार की समृद्धि के लिए समग्र प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है।

दुनिया में फिर दिखा भारत का दमः विश्व ध्यान दिवस के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में सभी देशों ने लगाई मुहर

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वैश्विक स्तर पर एक बार फिर भारत का कद बढ़ा है।संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के एक सह-प्रायोजित प्रस्ताव पर एकमत से मुहर लगी है। प्रस्ताव में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया गया है। सभी देशों ने प्रस्ताव को स्वीकारते हुए एकमत से वोटिंग की। अब पूरी दुनिया में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस मनाया जाएगा।

भारत के साथ लिकटेंस्टीन, श्रीलंका, नेपाल, मैक्सिको और अंडोरा उन देशों के मुख्य समूह के सदस्य थे जिन्होंने 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘विश्व ध्यान दिवस’ शीर्षक वाले प्रस्ताव को शुक्रवार को सर्वसम्मति से पारित करने में अहम भूमिका निभाई। इन्हीं देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव को लेकर सभी जानकारियां साथी देशों के सामने रखीं। लिक्टेन्सटाइन की तरफ से संयुक्त राष्ट्र के पटल पर रखे गए इस प्रस्ताव को बांग्लादेश, बल्गेरिया, बुरुंडी, द डॉमिनिकन रिपब्लिक, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, मॉरीशस, मोनाको, मंगोलिया, मोरक्को, पुर्तगाल और स्लोवेनिया की तरफ से सह-प्रायोजित किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘‘व्यापक कल्याण और आंतरिक परिवर्तन का दिन! मुझे खुशी है कि भारत ने कोर समूह के अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाए जाने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया।’’ उन्होंने कहा कि समग्र मानव कल्याण के लिए भारत का नेतृत्व ‘‘हमारे सभ्यतागत सिद्धांत-वसुधैव कुटुम्बकम’’ पर आधारित है।

21 दिसंबर शीत संक्रांति

यूएन में भारत के राजदूत ने कहा कि 21 दिसंबर शीत संक्रांति का दिन है और भारतीय परंपरा के अनुसार यह दिन 'उत्तरायण' की शुरुआत का दिन है, जो कि साल के शुभ दिनों में से है, खासकर आंतरिक विचारों और ध्यान लगाने के लिए।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से ठीक छह महीने बाद ध्यान दिवस

विश्व ध्यान दिवस के साथ एक खास बात यह जुड़ी है कि यह 21 जून को पड़ने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से ठीक छह महीने बाद मनाया जाएगा। विश्व ध्यान दिवस से उलट योग दिवस ग्रीष्म संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस तथ्य का जिक्र करते हुए हरीश ने कहा कि 2014 में भी भारत ने नेतृत्व करते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर घोषित करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। अब एक दशक बाद विश्व योग दिवस पूरी दुनिया में आम लोगों के लिए योग को उनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनाने का वैश्विक आंदोलन बन गया है।

भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में फिलिस्तीन का किया समर्थन, इजराइल के खिलाफ दिया वोट

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भारत ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर अपने पुराने रुख को बरकरार रखा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में इजराइल के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पूर्वी यरुशलम सहित 1967 से कब्जाए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र से इजराइल से वापस जाने का आह्वान किया गया है तथा पश्चिम एशिया में व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने के आह्वान को दोहराया गया है।

यह प्रस्ताव "फिलिस्तीन के सवाल का शांतिपूर्ण समाधान" शीर्षक से पेश किया गया था, जिसे सेनेगल ने प्रस्तावित किया। इसे 157 देशों का समर्थन मिला, जबकि 8 देशों - इजराइल, अमेरिका, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, अर्जेंटीना और हंगरी ने इसका विरोध किया। कई देशों ने मतदान से दूरी बनाई, जिनमें यूक्रेन, जॉर्जिया और चेकिया शामिल हैं। 

यूएन में पेश हुए इस प्रस्ताव में मांग की गई कि इजराइल 1967 से कब्जाई गए फिलिस्तीन के क्षेत्र, जिसमें पूर्वी यरुशलम का हिस्सा भी शामिल है को खाली करे। प्रस्ताव में फिलिस्तीन के लोगों के अधिकारों, खासकर उनके आत्मनिर्णय के अधिकारों और स्वतंत्र शासन का समर्थन किया गया। इस प्रस्ताव के तहत यूएन महासभा ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इजराइल-फलस्तीन के बीच दो शासन से जुड़े हल (टू स्टेट सॉल्यूशन) का समर्थन किया। इसके तहत दोनों देशों के 1967 से पहले वाली सीमा के आधार पर शांति-सुरक्षा के साथ रहने की वकालत की जाती है।

प्रस्ताव में गाजा पट्टी में जनसांख्यिकीय या क्षेत्रीय परिवर्तन के किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया गया, जिसमें गाजा के क्षेत्र को सीमित करने वाली कोई भी कार्रवाई शामिल है। प्रस्ताव में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गाजा पट्टी 1967 में कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और यह ‘द्वि-राष्ट्र समाधान के दृष्टिकोण की पुष्टि करता है, जिसमें गाजा पट्टी फिलिस्तीन का हिस्सा होगी।’

संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से इजराइल से फिलिस्तीनी क्षेत्रों को छोड़ने की मांग करता रहा है। यह विवाद दशकों पुराना है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच विभाजन का कारण बना हुआ है। हालांकि, अमेरिका जैसे देश इस तरह के प्रस्तावों का विरोध करते रहे हैं और इजराइल का समर्थन करते हैं।

बिना खांसी-बलगम के सीने में दर्द: फेफड़ों में फंगस का खतरा,हर साल 3 लाख लोगों की लेता है जान ये संक्रमण, न करें अनदेखा



 

फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां अक्सर खांसी और बलगम के साथ आती हैं, लेकिन अगर आपको बिना खांसी या बलगम के भी सीने में दर्द महसूस हो रहा है, तो यह गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है। 

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन (Fungal Infection in Lungs) एक ऐसी स्थिति है, जो समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा हो सकती है। हर साल यह समस्या लाखों लोगों की मौत का कारण बनती है।

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन के प्रमुख लक्षण

सीने में दर्द

बिना खांसी और बलगम के यदि लगातार सीने में दर्द बना रहे, तो यह फेफड़ों में फंगस का शुरुआती संकेत हो सकता है।

सांस लेने में कठिनाई

फंगस इंफेक्शन से फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है, जिससे सांस फूलने या घुटन जैसी समस्या हो सकती है।

थकान और कमजोरी

यदि बिना मेहनत के अत्यधिक थकावट या कमजोरी महसूस हो रही हो, तो यह इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है।

वजन कम होना

फेफड़ों के इंफेक्शन में अक्सर व्यक्ति का वजन तेजी से कम होने लगता है।

हल्का बुखार

लगातार हल्का बुखार रहना और इसका दवा से ठीक न होना फंगल इंफेक्शन का संकेत हो सकता है।

फेफड़ों में फंगस इंफेक्शन कैसे फैलता है?

फंगल इंफेक्शन मुख्यतः एस्परजिलस (Aspergillus) नामक फंगस के कारण होता है। यह फंगस वातावरण में मौजूद धूल, मिट्टी और सड़े-गले पौधों में पाया जाता है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में यह संक्रमण तेजी से फैलता है।

जोखिम कौन-कौन झेल सकते हैं?

इम्यूनिटी कमजोर होना: HIV, कैंसर या डायबिटीज के मरीज।

लंबे समय तक दवाओं का सेवन: स्टेरॉयड या एंटीबायोटिक्स।

अस्पताल में लंबा समय बिताना।

हर साल लाखों मौतों का कारण

फेफड़ों का फंगल इंफेक्शन एक गंभीर समस्या है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल दुनियाभर में लगभग 3 लाख लोग इस संक्रमण से जान गंवाते हैं।

न करें इन संकेतों को नजरअंदाज

यदि आपको उपरोक्त लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। शुरुआती स्टेज पर सही इलाज से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

बचाव के उपाय

स्वच्छता बनाए रखें: धूल और गंदगी से बचें।

इम्यूनिटी मजबूत करें: पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम।

डॉक्टर से नियमित जांच कराएं।

मास्क का उपयोग करें: धूल और प्रदूषण से बचाव के लिए।

इस बीमारी को नजरअंदाज करना जानलेवा हो सकता है। जागरूक रहें और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।

రంగుమారుతున్న తుంగభద్ర జలం

ఆంధ్ర, కర్ణాటక, తెలంగాణ రాష్ట్రాల జీవనాడి అయిన తుంగభద్ర(Tungabhadra) జలాశయంలో నీరు రోజురోజుకు రంగుమారుతోంది. దీంతో రైతులు ఆందోళన చెందుతున్నారు. ఖరీఫ్‏లో అల్పపీడనం వల్ల ఇబ్బందులు ఎదుర్కొన్న రైతులు ఈ కలుషిత నీటి వల్ల రబీ పంటలో కూడా దెబ్బతింటాయేమోనని ఆందోళన చెందుతున్నారు.

ఆంధ్ర, కర్ణాటక, తెలంగాణ రాష్ట్రాల జీవనాడి అయిన తుంగభద్ర(Tungabhadra) జలాశయంలో నీరు రోజురోజుకు రంగుమారుతోంది. దీంతో రైతులు ఆందోళన చెందుతున్నారు. ఖరీఫ్‏లో అల్పపీడనం వల్ల ఇబ్బందులు ఎదుర్కొన్న రైతులు ఈ కలుషిత నీటి వల్ల రబీ పంటలో కూడా దెబ్బతింటాయేమోనని ఆందోళన చెందుతున్నారు. కొప్పాళ, విజయనగర, బళ్లారి, రాయచూరు(Koppal, Vijayanagara, Bellary, Raichur) జిల్లాలకు కూడా ఈ జలాశయం నుంచి తాగునీరు అందుతుంది.

కలుషిత నీటి వల్ల ఎక్కడ అనారోగ్యానికి గురవుతామోనని ప్రజలు ఆందోళన చెందుతున్నారు. రైతు సంఘ నాయకులు సింధిగేరి గోవిందప్ప మాట్లాడుతూ జలాశయానికి పైభాగంలో ఉండే హరప్పనహళ్లి, హగరి బొమ్మనళ్లి, తదితర ప్రాంతాల్లోని కర్మాగారాలు వ్యర్థ పదార్థాలను జలాశయంలోకి వదులుతుండటం వల్ల నీరు కలుషితమై పచ్చరంగులోకి మారుతున్నాయన్నారు.

దీని వల్ల ఇటు రైతులు నష్టపోయే పరిస్థితి ఉందన్నారు. అలాగే వేసవి సమయంలో కర్ణాటక, ఆంధ్ర, తెలంగాణ రాష్ట్రాల ప్రజలు తాగునీటికి ఇబ్బందిపడే అవకాశం ఉందన్నారు. అధికారులు స్పందించి జలాశయంలో నీరు కలుషితం కాకుండా చూడాలని కోరారు. లేకపోతే జలాశయం ఎదుటనే నిరసనలు చేపడతామని హెచ్చరించారు.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर के बयान पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पर किया पलटवार: 'यह सबसे बड़ा पाखंड है'

#pakistangetsslammedatunformakingcommentson_kashmir

UNGA Indian diplomat Bhavika Mangalanandan

भारत ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में कश्मीर पर दिए गए बयान पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कड़ी आलोचना करते हुए इसे "सबसे बड़ा पाखंड" बताया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की आम बहस में अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाने वाले शहबाज शरीफ के जवाब में शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने जवाब के अधिकार का इस्तेमाल किया।

यूएनजीए में एक सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय राजनयिक भाविका मंगलनंदन ने कहा कि आतंकवाद, नशीले पदार्थों, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए वैश्विक प्रतिष्ठा वाले सैन्य द्वारा संचालित देश ने "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला करने का दुस्साहस" किया है।

"आज सुबह इस सभा में दुखद रूप से एक हास्यास्पद घटना घटी। मैं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण में भारत के संदर्भ के बारे में बात कर रहा हूँ। जैसा कि दुनिया जानती है, पाकिस्तान ने लंबे समय से अपने पड़ोसियों के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। इसने हमारी संसद, हमारी वित्तीय राजधानी, मुंबई, बाजारों और तीर्थस्थलों पर हमला किया है। यह सूची लंबी है। ऐसे देश के लिए कहीं भी हिंसा के बारे में बात करना सबसे बड़ा पाखंड है। धांधली वाले चुनावों के इतिहास वाले देश के लिए लोकतंत्र में राजनीतिक विकल्पों के बारे में बात करना और भी असाधारण है," भारतीय राजनयिक ने कहा। असली सच्चाई यह है कि पाकिस्तान हमारे क्षेत्र पर लालच करता है और वास्तव में, जम्मू और कश्मीर में चुनावों को बाधित करने के लिए लगातार आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है, जो भारत का अविभाज्य और अभिन्न अंग है," भाविका मंगलनंदन ने कहा।

पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए भारत ने कहा कि पड़ोसी देश को यह समझना चाहिए कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद "अनिवार्य रूप से परिणामों को आमंत्रित करेगा" यह हास्यास्पद है कि एक राष्ट्र जिसने 1971 में नरसंहार किया और जो आज भी अपने अल्पसंख्यकों को लगातार सताता है, असहिष्णुता और भय के बारे में बोलने की हिम्मत करता है। दुनिया खुद देख सकती है कि पाकिस्तान वास्तव में क्या है। हम एक ऐसे देश के बारे में बात कर रहे हैं जिसने लंबे समय तक ओसामा बिन लादेन की मेजबानी की। 

उन्होंने कहा, "एक ऐसा देश जिसकी छाप दुनिया भर में कई आतंकवादी घटनाओं पर है, जिसकी नीतियों के कारण कई समाजों के लोग इसे अपना घर बनाने के लिए आकर्षित होते हैं।" कश्मीर पर शरीफ की टिप्पणी को "अस्वीकार्य" बताते हुए राजनयिक ने कहा कि पाकिस्तान सच्चाई को और झूठ से बदलने की कोशिश करेगा। भाविका मंगलनंदन ने कहा, "दोहराव से कुछ नहीं बदलेगा। हमारा रुख स्पष्ट है और इसे दोहराने की जरूरत नहीं है।" पाकिस्तान लगातार कई संयुक्त राष्ट्र मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा है, तब भी जब उसे अपने बयानों पर कोई समर्थन नहीं मिला। हालांकि, भारत ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख देश का अभिन्न अंग हैं और हमेशा रहेंगे।

 पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने क्या कहा ?

 शुक्रवार को यूएनजीए के 79वें सत्र की आम बहस को संबोधित करते हुए शरीफ ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को उठाया और अनुच्छेद 370 और हिजबुल आतंकवादी बुरहान वानी का जिक्र किया। अपने 20 मिनट से अधिक के भाषण में उन्होंने भारत से "स्थायी शांति सुनिश्चित करने" के लिए अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया। उन्होंने भारत से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्तावों और "कश्मीरी लोगों की इच्छाओं" के अनुसार जम्मू और कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत करने को भी कहा। 

शरीफ ने फिलिस्तीनियों और कश्मीरियों के बीच समानता दर्शाते हुए कहा, "इसी तरह, फिलिस्तीन के लोगों की तरह, जम्मू और कश्मीर के लोगों ने भी अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए एक सदी तक संघर्ष किया है।" उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और दावा किया कि इस्लामोफोबिया का बढ़ना एक परेशान करने वाली वैश्विक घटना है। उन्होंने कहा, "इस्लामोफोबिया की सबसे खतरनाक अभिव्यक्ति भारत में हिंदू वर्चस्ववादी एजेंडा है। यह आक्रामक रूप से 200 मिलियन मुसलमानों को अधीन करने और भारत की इस्लामी विरासत को मिटाने की कोशिश करता है।"

नेतन्‍याहू के यूएनजीए संबोधन में लगे “शर्म करो” के नारे, फिर भी जंग से पीछे हटने से इनकार

#audience_shouts_shame_shame_as_israels_netanyahu_addresses_unga

इजराइल अभी थमने वाला नहीं है। अमेरिका और यूरोप जैसे देश लगातार इजरायल पर सीजफायर का दबाव बना रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे। उन्‍होंने बाइडेन को सीजफायर प्‍लान को रिजेक्‍ट कर दिया है।हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच जारी जंग के चलते अमेरिका, फ्रांस ने 21 दिनों का सीजफायर प्लान बनाया था। इस प्लान को मानने से इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ इनकार कर दिया है। नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी जारी रहेगी।

न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली को संबोधित करते हुए इजराइल के प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका-फ्रांस के 21 दिनों के सीजफायर प्लान को मानने से साफ इनकार कर दिया है। जैसे ही इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने विश्व नेताओं को संबोधित करना शुरू किया, कई प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा छोड़ना शुरू कर दिया। दर्शकों ने 'शर्म करो, शर्म करो' चिल्लाना शुरू कर दिया।

इस दौरान नेतन्याहू ने कहा, "जब मैंने इस मंच पर कई वक्ताओं द्वारा अपने देश पर लगाए गए झूठ और बदनामी को सुना, तो मैंने यहां आने और रिकॉर्ड स्थापित करने का फैसला किया।" इज़रायली पीएम ने ईरान को चेतावनी भी दी कि अगर उसने उनके देश पर हमला करने की हिम्मत की, तो "हम जवाबी हमला करेंगे।" उन्होंने कहा कि ईरान में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इजरायली एजेंसियां नहीं पहुंच सकतीं।

नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी होती रहेगी। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम अपने सभी लक्ष्यों को पूरा नहीं कर लेते, उनमें से मुख्य है उत्तर में रहने वालों की सुरक्षित उनके घरों में वापसी।

बता दें कि, अमेरिका, फ्रांस और अन्य सहयोगी देशों ने 21 दिनों के संघर्ष विराम का संयुक्त आह्वान किया है। लेबनान के विदेश मंत्री ने संघर्ष विराम प्रयासों का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि उनका देश इजरायल की ओर से ‘लेबनान के सीमावर्ती गांवों में मचाई जा रही सुनियोजित तबाही’ की निंदा करता है। इस बीच इजरायली वाहनों, टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों को लेबनान से सटी देश की उत्तरी सीमा पर जाते हुए देखा गया है। कमांडरों ने रिजर्व सैनिकों को बुलाने का आदेश जारी किया है।

तुर्की ने यूएन में नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा, क्यों छोड़ा पाकिस्तान का साथ?

#turkey_erdogan_not_raise_kashmir_issue_in_unga_know_why

मोदी सरकार ने पाँच अगस्त 2109 को जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। चीन और तुर्की ने भारत के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 से हर साल संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाते थे और भारत की आलोचना करते थे। भारत अर्दोआन के बयान पर आपत्ति जताता था और पाकिस्तान स्वागत करता था। लेकिन इस बार अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया।

आम तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वार्षिक संबोधन में कश्मीर का जिक्र जरूर करते थे। संयुक्त महासभा में पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन फिर एक बार कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे,लेकिन उन्होंने तो इस बार इसका नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएन की महासभा को संबोधित तो किया पर कश्मीर पर एक लफ्ज नहीं बोले। तुर्की के इस रुख ने पाकिस्तान को हैरान कर दिया। तुर्की के इस रुख के बाद लोग कई तरह के कयास लगाने लगे हैं। एर्दोगन की इस चुप्पी को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

कयास लगाया जा रहा है कि तुर्की के कश्मीर पर एक शब्द न बोलने के पीछे ब्रिक्स है। ऐसा कहना है कि तुर्की ब्रिक्स देशों के साथ खुद को खड़ा देखना चाहता है, उसे इसमें शामिल होना है और यही वजह है कि उनके राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बार भी अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।

न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम ब्रिक्स के साथ अपने संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा को बनाए रखते हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।”

ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ़्रीका हैं. भारत इस गुट का संस्थापक सदस्य देश है। इस गुट के विस्तार की बात हो रही है और कई देशों ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। तुर्की भी इसी लाइन में है। तुर्की का यूएन महासभा में कश्मीर के मुद्दे को न उठाना भारत को खुश करना भी है।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन यह भलीभांति जानते हैं कि अगर उन्हें ब्रिक्स का सदस्य बनना है तो भारत को खुश कर के रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री भारत की मंजूरी के बाद ही मिल सकती है। तुर्की को यह भी पता है कि अगर भारत ने मना कर दिया तो उसका ब्रिक्स का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा। तो इसका लब्बोलुआब यह है कि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री तभी मिलेगी जब वह भारत के करीब आए और उसे खुश करने की कोशिश करे।

तुर्की को पता है कि भारत का कश्मीर को लेकर रुख साफ है। वह किसी भी कीमत पर कश्मीर पर समझौता नहीं करेगा। यही नहीं भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि पीओके जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उसे भी लेने की प्लानिंग है।

इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के बीच गाजा में युद्ध : बंधकों की रिहाई, संवाद और संघर्षविराम..! पीएम मोदी ने बताया गाजा संकट का निदान


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यूयॉर्क के लोटे न्यूयॉर्क पैलेस होटल में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की। यह बैठक ऐसे समय में हुई जब इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के बीच गाजा में लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। पीएम मोदी ने गाजा की मानवीय स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए फिलिस्तीनी लोगों के प्रति भारत के निरंतर समर्थन की पुष्टि की।


विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के इतर अब्बास से मुलाकात की, जिसमें भारत की इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद पर स्थायी नीति को दोहराया गया। पीएम मोदी ने संघर्ष विराम, बंधकों की रिहाई और कूटनीतिक संवाद के ज़रिए विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की अपील की। उन्होंने दो राष्ट्र समाधान को ही क्षेत्र में स्थायी शांति का रास्ता बताया। साथ ही, पीएम मोदी ने यह भी याद दिलाया कि भारत, फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था और फिलिस्तीन की संयुक्त राष्ट्र (UN) में सदस्यता के लिए भारत का समर्थन लगातार जारी रहेगा। दोनों नेताओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य और क्षमता निर्माण में भारत द्वारा दी जा रही सहायता पर चर्चा की और भारत-फिलिस्तीन संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई।

इसी दिन प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच भी एक मुलाकात हुई, जिसमें दोनों नेताओं के बीच की गर्मजोशी और आत्मीयता भारत-अमेरिका के संबंधों के साथ-साथ मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ व्यक्तिगत तालमेल को भी दर्शाती है। आज पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र के फ्यूचर समिट को भी संबोधित करेंगे, जहां भविष्य की चुनौतियों और अवसरों पर बात होगी और भारत के लिए यूएनएससी की स्थायी सदस्यता एक प्रमुख मुद्दा हो सकता है।
भारत ने इजराइल के साथ निभाई दोस्ती! यूएनजीए में फिलिस्तीन से जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग में नहीं लिया हिस्सा

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में फिलिस्तीन से जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा कर लिया। इस प्रस्ताव में मांग की गई थी कि इजराइल ने फिलिस्तीन के क्षेत्र में जो अवैध कब्जा किया है, उसे जल्द से जल्द हटाए और वो भी बिना किसी देरी के 12 महीने के अंदर। इस प्रस्ताव पर भारत ने वोटिंग नहीं किया।

भारत का कहना है कि हम बातचीत और कूटनीति के जरिए विवाद को सुलझाने के समर्थक हैं। भारत ने कहा कि हमें विभाजन बढ़ाने के बजाय मतभेद मिटाने की दिशा में काम करना चाहिए। 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में बुधवार को फिलिस्तीन पर प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव में मांग की गई है कि इजराइल को कब्जाए गए फिलिस्तीन के इलाकों को 12 महीनों में खाली कर देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने मतदान किया। वहीं 14 देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। 43 देश वोटिंग से दूर रहे, जिनमें भारत भी शामिल है।

इन देशों ने मतदान से बनाई दूरी

मतदान में जिन देशों ने भाग नहीं लिया, उनमें भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, इटली, नेपाल, यूक्रेन और ब्रिटेन शामिल हैं। वहीं इजराइल और अमेरिका ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने इजराइल-फिलिस्तीन विवाद की शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और स्थानीय समाधान की वकालत की और दोहराया कि प्रत्यक्ष और सार्थक बातचीत के जरिए ही दोनों देशों के बीच दो राज्य समाधान ही स्थायी शांति ला सकता है।

फिलिस्तीन के प्रस्ताव में क्या?

फिलिस्तीन की ओर से तैयार प्रस्ताव में इजराइल सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत अपने दायित्वों की अवहेलना किए जाने की भी कड़ी निंदा की गई। इस बात पर जोर दिया गया कि ऐसे उल्लंघनों से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को गंभीर खतरा है। इसमें कहा गया है कि इजराइल को कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के किसी भी उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।