India

Jun 21 2024, 15:47

दलाई लामा के बाद पीएम मोदी से मिला अमेरिकी कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल, चीन को दिया ये संदेश

#pm_modi_meets_us_congress_mp_team 

अमेरिका के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुलाक़ात की थी। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया और तिब्बतियों के प्रति अमेरिका के साथ को अटूट बताया। यही नही, दूसरे दिन इसी प्रतिनिधिमंडल ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भू मुलाकात की। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का यह दौरा आधिकारिक है या नहीं? इसे लेकर फ़िलहाल कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की तस्वीरों ने काफी कुछ कह दिया।

चीन ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को तिब्बत के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा से नहीं मिलने की चेतावनी दी थी, हालांकि चीन की चेतावनी के बावजूद अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा से मुलाकात की थी। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की दलाई लामा से मुलाकात और फिर पीएम मोदी से मुलाकात राजनीति रूप से काफी अहम मानी जा रही है। पीएम मोदी और अमेरिकी सांसदों के मुलाकात वाली तस्वीर देखकर साफ है कि तिब्बत पर भारत का स्टैंड अमेरिका जैसा ही है। भारत भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर रहा है।

यही नहीं, भारत ने बिना कुछ कहे ही चीन को भविष्य के लिए चेता दिया है। भारत की तरफ से पहले भी दोनों देशों के रिश्ते को लेकर नसीहत दी जा चुकी है। अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूजवीक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था, कि "भारत के लिए, चीन के साथ संबंध महत्वपूर्ण और सार्थक हैं। मेरा माननाहै, कि हमें अपनी सीमाओं पर लंबे समय से चली आ रही स्थिति को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे द्विपक्षीय संबंधों में असामान्यता को पीछे छोड़ा जा सके।" प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, कि "भारत और चीन के बीच स्थिर और शांतिपूर्ण संबंध न केवल हमारे दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।" उन्होंने आगे कहा था, कि "मुझे उम्मीद है, और मेरा माननाहै, कि कूटनीतिक और सैन्य स्तरों पर सकारात्मक और रचनात्मक द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से, हम अपनी सीमाओं पर शांति और स्थिरता बहाल करने और बनाए रखने में सक्षम होंगे। 

वहीं, तिब्बत मामले पर अमेरिका ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है। अमेरिका यह दिखाना चाहता है कि तिब्बत के लोगों के साथ अमेरिका मजबूती से खड़ा है। अमेरिका चाहता है कि चीन का तिब्बत में कोई दखल न हो। यही वजह है कि अमेरिका ने ‘तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम 2020’ पारित कर दिया है। तिब्बत पर यह अमेरिका की आधिकारिक नीति है कि दलाई लामा का उत्तराधिकार एक पूर्णतः धार्मिक मुद्दा है, जिस पर केवल दलाई लामा और उनके फॉलोअर्स ही फैसला ले सकते हैं। इस पर अब केवल जो बाइडन के सिग्नेचर का इंतजार है।

अमेरिका ने बिल पास करके चीन को यही संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर है। यही वजह है कि अमेरिका का तिब्बत के प्रति स्टैंड और अमेरिकी सांसदों का तिब्बत के बाद सीधे पीएम मोदी से मिलना चीन को साफ-साफ ये संदेश है भारत भी उसके साथ है। यही नहीं, प्रतिनिधिमंडल में मौजूद माइकल मैककॉल ने साफ कहा कि हम साथ मिलकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को एक कड़ा संदेश भेज सकते हैं। जब दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र एक साथ खड़े होते हैं तो निरंकुशता और दमन पर स्वतंत्रता की जीत होती है।

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Jun 21 2024, 15:47

दलाई लामा के बाद पीएम मोदी से मिला अमेरिकी कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल, चीन को दिया ये संदेश

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अमेरिका के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुलाक़ात की थी। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया और तिब्बतियों के प्रति अमेरिका के साथ को अटूट बताया। यही नही, दूसरे दिन इसी प्रतिनिधिमंडल ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भू मुलाकात की। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का यह दौरा आधिकारिक है या नहीं? इसे लेकर फ़िलहाल कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी से अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की तस्वीरों ने काफी कुछ कह दिया।

चीन ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को तिब्बत के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा से नहीं मिलने की चेतावनी दी थी, हालांकि चीन की चेतावनी के बावजूद अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा से मुलाकात की थी। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की दलाई लामा से मुलाकात और फिर पीएम मोदी से मुलाकात राजनीति रूप से काफी अहम मानी जा रही है। पीएम मोदी और अमेरिकी सांसदों के मुलाकात वाली तस्वीर देखकर साफ है कि तिब्बत पर भारत का स्टैंड अमेरिका जैसा ही है। भारत भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर रहा है।

यही नहीं, भारत ने बिना कुछ कहे ही चीन को भविष्य के लिए चेता दिया है। भारत की तरफ से पहले भी दोनों देशों के रिश्ते को लेकर नसीहत दी जा चुकी है। अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूजवीक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था, कि "भारत के लिए, चीन के साथ संबंध महत्वपूर्ण और सार्थक हैं। मेरा माननाहै, कि हमें अपनी सीमाओं पर लंबे समय से चली आ रही स्थिति को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे द्विपक्षीय संबंधों में असामान्यता को पीछे छोड़ा जा सके।" प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, कि "भारत और चीन के बीच स्थिर और शांतिपूर्ण संबंध न केवल हमारे दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।" उन्होंने आगे कहा था, कि "मुझे उम्मीद है, और मेरा माननाहै, कि कूटनीतिक और सैन्य स्तरों पर सकारात्मक और रचनात्मक द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से, हम अपनी सीमाओं पर शांति और स्थिरता बहाल करने और बनाए रखने में सक्षम होंगे। 

वहीं, तिब्बत मामले पर अमेरिका ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है। अमेरिका यह दिखाना चाहता है कि तिब्बत के लोगों के साथ अमेरिका मजबूती से खड़ा है। अमेरिका चाहता है कि चीन का तिब्बत में कोई दखल न हो। यही वजह है कि अमेरिका ने ‘तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम 2020’ पारित कर दिया है। तिब्बत पर यह अमेरिका की आधिकारिक नीति है कि दलाई लामा का उत्तराधिकार एक पूर्णतः धार्मिक मुद्दा है, जिस पर केवल दलाई लामा और उनके फॉलोअर्स ही फैसला ले सकते हैं। इस पर अब केवल जो बाइडन के सिग्नेचर का इंतजार है।

अमेरिका ने बिल पास करके चीन को यही संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी तिब्बत की आजादी का पक्षधर है। यही वजह है कि अमेरिका का तिब्बत के प्रति स्टैंड और अमेरिकी सांसदों का तिब्बत के बाद सीधे पीएम मोदी से मिलना चीन को साफ-साफ ये संदेश है भारत भी उसके साथ है। यही नहीं, प्रतिनिधिमंडल में मौजूद माइकल मैककॉल ने साफ कहा कि हम साथ मिलकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को एक कड़ा संदेश भेज सकते हैं। जब दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र एक साथ खड़े होते हैं तो निरंकुशता और दमन पर स्वतंत्रता की जीत होती है।