MUDA स्कैम मामले में कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को बड़ी राहत, लोकायुक्त ने दी क्लीनचिट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ी राहत मिली है। सीएम सिद्धारमैया को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी मुडा लैंड स्कैम केस में एंटी करप्शन वॉचडॉग लोकायुक्त की तरफ से क्लीन चिट मिल गई है। ये मामला मुआवजा के लिए हुए सिद्धारमैया की पत्नी को हुए भूमि आवंटन में कथित गड़बड़ी की शिकायत के बाद सामने आया था। एंटी करप्शन एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया था कि इस गड़बड़ी के कारण राज्य को करीब 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

जांच की फाइनल रिपोर्ट 138 दिनों की लंबी जांच के बाद बेंगलुरु मुख्यालय को सौंपी गई। लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता स्नेहमयीकृष्ण को नोटिस जारी कर कहा है कि साक्ष्य के अभाव में मामला जांच के लायक नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि साक्ष्य के अभाव में भी वो रिपोर्ट दर्ज कराएंगे। इसमें वे मामले भी शामिल हैं, जिन्हें बिना जांच के खारिज कर दिया जाता है। जांच अधिकारी उन्हें सिविल प्रकृति का और जांच के लिए उपयुक्त नहीं पाया है, या तथ्यों या कानून की गलतफहमी के कारण ऐसा किया जाता है। इसमें साक्ष्य का अभाव है। यह मामला जांच के लायक नहीं है। कहा गया है कि यदि उन्हें इस रिपोर्ट पर कोई आपत्ति है तो वे नोटिस प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

इस मामले में जांच सितंबर 2024 में शुरू हुई थी, जब बेंगलुरु में एक विशेष अदालत ने लोकायुक्त को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी साइट आवंटन मामले की जांच का आदेश दिया था। जांच का नेतृत्व मैसूर लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक टीजे उदेश ने किया। इस दौरान 100 से अधिक लोगों से पूछताछ हुई, जिनमें नौकरशाह, राजनेता, सेवानिवृत्त अधिकारी, मुडा के अधिकारी और स्वयं सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और उनके बहनोई बीएम मल्लिकार्जुन स्वामी शामिल थे। सभी बयानों की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और इन्हें रिपोर्ट में शामिल किया गया।

बता दें कि पिछले साल एंटी करप्शन एक्टिविस्ट स्नेहमयी कृष्णा ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत को पत्र लिखकर मुकदमा चलाने की मांग की थी। आरोप है कि सिद्दरमैया की पत्नी को मैसूर के एक पॉश इलाके में प्रतिपूरक साइटें आवंटित की गईं, जिनकी संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत किया गया था। मुडा ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां इसने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था। 3.16 एकड़ जमीन पर पार्वती का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

संसद-हाईकोर्ट-एयरपोर्ट, सब वक्फ की जमीन पर, मुस्लिमों को वापस दे सरकार, वरना अंजाम भुगतना होगा..', अजमल की धमकी से फैली सनसनी

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के प्रमुख और पूर्व सांसद बदरुद्दीन अजमल ने बुधवार को विवादास्पद बयान देकर सनसनी फैला दी है। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में संसद भवन और उसके आसपास का इलाका वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर बना है। उन्होंने कहा कि वसंत विहार से लेकर दिल्ली एयरपोर्ट तक का क्षेत्र वक्फ की जमीन पर बना हुआ है और सरकार इस 9.7 लाख बीघा वक्फ संपत्ति को हड़पना चाहती है। अजमल ने सरकार से मांग की है कि यह जमीन मुस्लिम समाज को वापस दी जाए।

अजमल ने वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों की सूची सामने आ रही है और यह मुद्दा गंभीर होता जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार बिना वक्फ बोर्ड की अनुमति के इन जमीनों का इस्तेमाल कर रही है, जो गलत है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ऐसा जारी रहा, तो मोदी सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दलित नेता और लेखक दिलीप मंडल ने इस मामले को लेकर अजमल और कांग्रेस की आलोचना की है। उधर, विपक्षी सांसदों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की बैठक में संसदीय आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से की है। उन्होंने आरोप लगाया कि JPC के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने समिति की कार्यवाही को पक्षपातपूर्ण ढंग से संचालित किया।

विपक्षी सांसदों का कहना है कि पाल ने कर्नाटक वक्फ घोटाला रिपोर्ट 2012 पर आधारित वक्फ विधेयक के तहत अनवर मणिप्पाडी को समिति के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने का निमंत्रण दिया था, जो समिति के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उनका यह भी दावा है कि JPC की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे और कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोप लगाए गए थे, जो कि विधेयक से संबंधित नहीं थे।

बता दें कि, अनवर ने आरोप लगाए थे कि खड़गे ने अपने राजनितिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए वक्फ की जमीन हड़पी है, जिसके बाद विपक्षी सांसदों ने बैठक से वॉकआउट कर दिया था। वहीं, हाल ही में कांग्रेस प्रमुख खड़गे के परिवार पर कर्नाटक में भी डिफेंस के लिए आवंटित 5 एकड़ जमीन अवैध रूप से हासिल करने का आरोप लगा था, जब इस मामले में भाजपा ने शिकायत की, और जांच का खतरा मंडराने लगा, तो खड़गे परिवार ने चुपचाप 5 एकड़ जमीन सरकार को वापस सौंप दी। वहीं, कर्नाटक के सीएम और दिग्गज कांग्रेस नेता सिद्धारमैया पर भी आरोप लगा था कि उन्होंने MUDA घोटाला यानी अपनी सस्ती जमीन के बदले सरकार से पॉश इलाके में 14 सम्पत्तियाँ ले ली थीं, पहले तो सिद्धारमैया इस आरोप से इंकार करते रहे। फिर जब गवर्नर ने जांच का आदेश दिया, तो सिद्धरमैया हाई कोर्ट पहुंचे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली, और अदालत ने कहा कि तथ्यों और सबूतों को देखते हुए इस मामले की जांच जरूरी है। इसके बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी ने वो 14 सम्पत्तियाँ चुपचाप सरकार को लौटा दी। जिसके बाद से गंभीर सवाल खड़े हुए थे कि, अगर कांग्रेस नेताओं ने घोटाला नहीं किया, तो वो जमीनें वापस क्यों लौटा रहे हैं।

वक्फ बिल पर भारत सरकार के 4 मुख्य संशोधन

इसमें चार मुख्य संशोधन हैं, पहले हम कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए कानून की बात करें तो, इसमें सेक्शन 40 के तहत पहला प्रावधान ये था कि, अगर वक्फ अपने विश्वास के आधार पर किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोंकता है, तो वो संपत्ति वक्फ की हो जाएगी, उसे कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होगी और इस मामले में जिसे आपत्ति हो, वो वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाकर ही गुहार लगाए। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, पीड़ित, रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट आदि जा सकेगा।

कांग्रेस सरकार के कानून में दूसरा प्रावधान ये था कि, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा, यानी वो जो कहे, वही सत्य। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी, इससे वक्फ की मनमानी ख़त्म होगी।

कांग्रेस सरकार के कानून के मुताबिक, तीसरा प्रावधान ये था कि, कहीं कोई मस्जिद है, मजार है, मदरसा है, या जमीन को इस्लामी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, तो जमीन अपने आप वक्फ की हो जाएगी, भले ही उसे किसी ने दान किया हो या नहीं। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बयान में कह ही चुके हैं कि, ''एक बार जब मुस्लिम किसी जगह को इबादतगाह के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर देता है तो वह जगह हमेशा के लिए मुस्लिमों की संपत्ति बन जाती है और अब मोदी सरकार उस प्रावधान को बदल रही है।'' ऐसे में अगर समुदाय, किसी पार्क, मैदान, रेलवे स्टेशन को इबादतगाह मानकर वहां नमाज़ पढ़ने लगेगा, तो क्या वो जमीन वक्फ की हो जाएगी ? इस मामले में भाजपा सरकार का संशोधन ये है कि, जब तक कोई जमीन वक्फ को दान ना की गई हो, तब तक वो संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती, भले ही वहां मस्जिद या मज़ार मौजूद हो।

कांग्रेस सरकार के कानून के चौथे प्रावधान के मुताबिक, वक्फ बोर्ड में महिला और अन्य धर्म के लोगों को सदस्य नहीं बनाया जाएगा। भाजपा सरकार का कहना है कि, बोर्ड में 2 महिला और अन्य धर्म के 2 लोगों को सदस्य बनाया जाएगा।

आज वक्फ के पास देश की 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन है, जो भारतीय सेना और भारतीय रेलवे के बाद तीसरे नंबर पर है।

लोकसभा चुनाव में लगाया 'वाल्मीकि कल्याण' का पैसा! कांग्रेस विधायक नागेंद्र निकले मास्टरमाइंड, चार्जशीट दाखिल

कर्नाटक में वाल्मीकि कल्याण निगम घोटाले ने हलचल मचा दी है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी जांच रिपोर्ट विशेष अदालत में प्रस्तुत की है। यह मामला सरकारी धन के दुरुपयोग से जुड़ा है, जिसमें पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक बी. नागेंद्र को धोखाधड़ी का मुख्य आरोपी माना गया है। घोटाला तब उजागर हुआ जब वाल्मीकि विकास निगम में फंड ट्रांसफर और उपयोग में अनियमितताएं पाई गईं। यह निगम कर्नाटक के वाल्मीकि समुदाय की सहायता के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन इसमें वित्तीय विसंगतियों की जांच के दौरान कई सरकारी अधिकारियों और नागेंद्र के सहयोगियों की संलिप्तता सामने आई। ED ने दावा किया है कि इस घोटाले में निगम से 187 करोड़ रुपये का अवैध हस्तांतरण हुआ, जिसमें 97.32 करोड़ रुपये का गबन किया गया और 12 करोड़ रुपये का धन 2024 के लोकसभा चुनावों के प्रचार में डायवर्ट किया गया। ED की रिपोर्ट में नागेंद्र को मुख्य आरोपी के रूप में पहचाना गया है और उनकी वित्तीय हेरफेर के तरीकों का विवरण दिया गया है। रिपोर्ट में 24 अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता का भी उल्लेख है, जिनमें नागेंद्र के करीबी सहयोगी शामिल हैं। ED ने कोर्ट को यह भी बताया कि गबन की गई धनराशि को बिना अनुमति के बैंकों में स्थानांतरित किया गया और कई बैंक अधिकारियों पर भी संदेह है कि वे इन अवैध लेनदेन में शामिल थे। नागेंद्र के एक सहयोगी का मोबाइल फोन जब्त किया गया, जिससे अवैध वित्तीय लेनदेन के महत्वपूर्ण सबूत प्राप्त हुए। जबकि SIT ने मुख्य रूप से प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता पर ध्यान केंद्रित किया था, ED की रिपोर्ट ने नागेंद्र के राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को भी उजागर किया। नागेंद्र, जिन्हें जुलाई 2024 में गिरफ्तार किया गया था, अभी न्यायिक हिरासत में हैं। उन्होंने घोटाले में शामिल होने से इनकार किया है और आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है। इस घोटाले ने जनता और राजनीतिक स्तर पर व्यापक आक्रोश पैदा किया है, और विपक्षी दलों ने इसे कर्नाटक के राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक उदाहरण बताया है। आने वाले महीनों में विशेष न्यायालय में सुनवाई जारी रहेगी, और इस मामले के परिणाम न केवल नागेंद्र और उनके सहयोगियों के लिए, बल्कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे। इस घोटाले की जांच से मिलने वाले निष्कर्ष सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के खिलाफ जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस घोटाले का खुलासा तब हुआ था, जब वाल्मीकि कल्याण निगम में काम करने वाले एक दलित अधिकारी ने ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि ''उन पर दबाव डालकर भ्रष्टाचार करवाया गया है, इसमें उच्च अधिकारी और मंत्री भी शामिल हैं।'' अब वाल्मीकि विभाग तत्कालीन कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र के अंतर्गत ही आता था। इस घोटाले के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हुई और बी नागेंद्र को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि, इसके बाद जांच हुई तो और परतें खुलने लगीं, अब कांग्रेस विधायक नागेंद्र ही इस पूरे घोटाले के मास्टरमाइंड के रूप में सामने आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी MUDA घोटाले में बुरी तरह घिरे हुए हैं। गवर्नर ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दे दिया है, जिसे रुकवाने के लिए कांग्रेसी मुक्यमंत्री हाई कोर्ट भी गए थे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने तमाम तथ्य देखने के बाद कहा था कि, सबूतों को देखते हुए ये लगता है कि गड़बड़ी हुई है और इस मामले में जांच की सख्त आवश्यकता है। इसके बाद सिद्धारमैया की पत्नी ने मुआवज़े के रूप में मिले 14 प्लॉट वापस करने की पेशकश कर दी थी। हालाँकि, जांच शुरू हो चुकी है। ये पूरा मामला जमीन से जुड़ा है। आरोप है कि, मुख्यमंत्री ने अपनी गाँव की कम कीमत की जमीन को सरकार को देकर, बदले में मुआवज़े के तौर पर प्राइम लोकेशन में 14 प्लॉट हासिल कर लिए थे, जिनकी कीमत गाँव की जमीन से कई गुना जयादा है।
विपक्ष के झूठे आरोपों के आधार पर इस्तीफा नहीं देंगे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार को दोहराया कि वह विपक्षी दलों के ‘झूठे आरोपों’ के आधार पर अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि वह राज्य की जनता के सामने वास्तविक स्थिति पेश करेंगे। सिद्धारमैया ने संवाददाताओं से कहा, “अगर विपक्षी दल झूठे आरोपों के आधार पर इस्तीफा मांगते हैं, तो क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए? हम झूठे आरोपों का जवाब देंगे। हम लोगों को सच्चाई बताएंगे।”

कांग्रेस के भीतर व्यस्त राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, जहां दलित और अनुसूचित जनजाति के नेता MUDA साइट आवंटन मामले के प्रकाश में आने के बाद बैठक कर रहे थे, सिद्धारमैया ने कहा कि लोग अनावश्यक रूप से अटकलें लगा रहे हैं। “मंत्री चर्चा करेंगे लेकिन क्या आपको अटकलें लगानी चाहिए? लोग अटकलें तब लगाते हैं जब राज्य के लोक निर्माण मंत्री सतीश जरकीहोली AICC अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलते हैं या विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री एन एस बोसराजू किसी मंत्री से मिलते हैं। अतीत में भी ऐसी बैठकें हुई हैं और अभी भी चल रही हैं, लेकिन ऐसी अटकलें क्यों जोर पकड़ रही हैं?” सिद्धारमैया ने आश्चर्य जताया।

मैसूर में दशहरा समारोह के उद्घाटन के दौरान जेडी (युनाइटेड) के वरिष्ठ विधायक जी टी देवेगौड़ा द्वारा उनका समर्थन करने पर, सीएम ने कहा कि उन्होंने केवल सच समझाया है। “जी टी देवेगौड़ा जेडी (युनाइटेड) की कोर कमेटी के अध्यक्ष और मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने केवल सच कहा। इसमें गलत क्या है?” उन्होंने पूछा।

25 सितंबर को एक विशेष अदालत द्वारा लोकायुक्त पुलिस को MUDA साइट आवंटन मामले में सिद्धारमैया की जांच करने का आदेश दिए जाने के बाद विपक्षी दलों की ओर से सिद्धारमैया पर अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा है। तदनुसार, लोकायुक्त पुलिस ने 27 सितंबर को सिद्धारमैया, उनकी पत्नी पार्वती, साले मल्लिकार्जुन स्वामी, देवराजू (जिनसे मल्लिकार्जुन स्वामी ने जमीन खरीद कर पार्वती और अन्य को उपहार में दी थी) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। विशेष अदालत का आदेश उच्च न्यायालय द्वारा सिद्धारमैया के खिलाफ जांच करने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी को बरकरार रखने के एक दिन बाद आया।

ईडी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ MUDA द्वारा उनकी पत्नी को 14 भूखंड आवंटित करने में कथित अनियमितताओं के लिए पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के बराबर प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की है। MUDA ने मंगलवार को सिद्धारमैया की पत्नी को आवंटित 14 भूखंडों को वापस लेने का फैसला किया, क्योंकि उन्होंने उनका स्वामित्व और कब्ज़ा छोड़ने का फैसला किया था। MUDA के आयुक्त ए एन रघुनंदन ने कहा कि MUDA ने इन भूखंडों की बिक्री विलेख को रद्द करने का आदेश दिया है।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की बढ़ीं मुश्किलें, ईडी ने दर्ज की नई शिकायत, मुडा मामले में सबूत नष्ट करने का आरोप

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मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री मूडा में कथित घोटाले को लेकर लगातार घिरते जा रहे हैं। अब उनके और अन्य लोगों के खिलाफ एक नई शिकायत दर्ज कराई गई है। मुडा मामले में सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगा है। मूडा मामले में सुबूतों को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री और उनके बेटे यतीन्द्रा के खिलाफ ईडी ने एक और शिकायत को दर्ज किया है।

प्रदीप कुमार नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने सिद्धारमैया एवं अन्य के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ के लिए जांच और मामला दर्ज करने की मांग की।इस शिकायत में दावा किया गया है कि मुडा अधिकारियों की संलिप्तता से साइटों को पुनः प्राप्त करके साक्ष्य नष्ट कर दिए गए हैं। प्रदीप कुमार ने जांच का अनुरोध किया है और साक्ष्यों से छेड़छाड़ के लिए मामला दर्ज करने की मांग की है।

25 सितंबर को विशेष अदालत ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था। इस आदेश के बाद 27 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उनकी पत्नी पार्वती बीएम सिद्धरमैया, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी एवं देवराजू सहित अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। ईडी ने भी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में मामला दर्ज किया है। वहीं पार्वती ने भूखंड लौटाने की पेशकश की तो एमयूडीए ने उनको आवंटित 14 भूखंडों को वापस ले लिया है।

कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है?

मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।

मुख्यमंत्री की पत्नी का 50:50 योजना से क्या संबंध?

आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी।

मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया था, जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित की गई थीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं।

सिद्धारमैया की बढ़ी मुश्किलें तो पत्नी ने उठाया बड़ा कदम, क्या प्लॉट सरेंडर करने से कम होगी मुश्किल?

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कर्नाटक के चर्चित मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सिद्धारमैया के खिलाफ केस दर्ज किया है। मुडा स्कैम में सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी की जांच शुरू कर दी है। इस बीच सिद्धारमैया की पत्नी ने बड़ा कदम उठाया है। पार्वती ने मुडा को पत्र लिखकर उन्हें आवंटित 14 प्लॉट वापस करने की बात कही है। अब सवाल उठता है कि जमीन लौटाने का दांव कारगर साबित होगा? 

सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण मुडा को पत्र लिखा है। पार्वती ने कहा है कि मुडा से मुझे जो प्लॉट मिले हैं, वो मैं वापस करना चाहती हूं। पार्वती ने मुडा से कहा है कि उनके लिए पति ज्यादा जरूरी है, इसलिए मैं उन 14 साइटों को वापस करना चाहती हूं, जो मुझे आवंटित की गई है। पार्वती के इस फैसले पर मुडा की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं सिद्धारमैया ने पार्वती के इस पत्र पर कहा है कि ये उनका फैसला है, लेकिन मैं लंबी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार हूं।

बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुडा भूमि मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पार्वती और अन्य पर मामला दर्ज किया है। एफआईआर में पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन स्वामी भी शामिल हैं। आरोप है कि उन्होंने जमीन खरीदी थी और बाद में उसे पार्वती को तोहफे में दे दिया था। यह मामला लोकायुक्त की एफआईआर के बाद दर्ज किया गया है। ईडी का मामला इस आरोप पर आधारित है कि पार्वती को मैसूरु के एक प्रमुख स्थान पर मुआवजे के 14 प्लॉट आवंटित किए गए थे। इस प्लॉट आवंटन में लेनदेन की वैधता पर सवाल उठे हैं। 

पिछले हफ्ते बेंगलुरु की एक विशेष अदालत द्वारा मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस जांच का आदेश देने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी। कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार, सिद्धारमैया को पूछताछ के लिए बुलाने के लिए ईडी अधिकृत है और जांच के दौरान उनकी संपत्ति भी कुर्क कर सकता है। पिछले हफ्ते एक बयान में, सिद्धारमैया ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि राजनीतिक प्रतिशोध के परिणामस्वरूप मामले में उन्हें अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

साल 2020 में मुडा ने एक स्कीम की शुरुआत की। स्कीम में कहा गया कि जिन लोगों की जमीन विकास के काम के लिए लिया जाएगा, उन्हें 50-50 पॉलिसी के तहत मैसूर शहर में प्लॉट और मुआवजा दिया जाएगा। बीजेपी सरकार की तरफ से शुरू की गई इस स्कीम की खूब आलोचना हुई, जिसके बाद 2023 में इसे रद्द कर दिया गया। सिद्धारमैया परिवार पर फर्जी दस्तावेज और पावर का दुरुपयोग कर इस स्कीम का लाभ लेने का आरोप है। सिद्धारमैया की पत्नी पर करीब 55 करोड़ रुपए का लाभ लेने का आरोप है। हालांकि, सिद्धारमैया इस पूरे मामले को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर, MUDA स्कैम मामले में बढ़ सकती हैं मुश्किलें

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज की है। कर्नाटक के एक स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है। याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जन प्रतिनिधि कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक लोकयुक्त से इस मामले की जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद आज मैसूरु लोकयुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया।

लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम और भूमि कब्जा निवारण अधिनियम के तहत अदालत द्वारा निर्धारित आईपीसी धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की। सीएम सिद्धारमैया पर आरोप A 1 है, पत्नी पार्वती पर आरोप A 2 है। वहीं, मुख्यमंत्री के साले मल्लिकार्जुन स्वामी को आरोपी नम्बर 3 और देवराज को आरोपी नम्बर 4 बनाया गया है। मुख्यमंत्री पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करके उनकी पत्नी के नाम मैसुरु में MUDA साइट आवंटित करने का आरोप लगा है।

सिद्धरमैया ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को दावा किया कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन मामले में उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे डरता है। इसके साथ ही, सिद्धरमैया ने कहा कि यह उनके खिलाफ पहला राजनीतिक मामला है। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि मामले में अदालत द्वारा उनके खिलाफ जांच का आदेश दिये जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कानूनी रूप से लड़ाई लड़ेंगे।

केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और देश भर में विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में राज्यपाल के ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की जरूरत है।

खरगे ने क्या कहा?

इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि MUDA के लोग जो चाहें वे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह जरूरी नहीं है कि सरकार उसके सभी सवालों का जवाब दें, क्योंकि वह एक स्वायत्त निकाय होने के कारण कार्रवाई कर ही सकता है।

खरगे ने सीएम सिद्धारमैया का समर्थन करते हुए कहा कि उनलोगों निजी तौर पर कोई भी अपराध यदि किया हो तो इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं, लेकिन वह ऐसा मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कोई भी अपराध नहीं किया है। उन्हें बदनाम किया जा रहा है। पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

जांच की जरूरत, MUDA घोटाले में सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।

दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।

कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

कर्नाटक सीएम सिद्दरमैया की बढ़ी मुश्किलें, कोर्ट ने लोकायुक्त को सौंपी जांच; तीन महीने में देनी होगी रिपोर्ट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को बुधवार को एमपी/एमएलए कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। विशेष अदालत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला में सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ लोकायुक्त जांच की मंजूरी दी है। कर्नाटक लोकायुक्त की मैसूरु जिला पुलिस को MUDA घोटाले की जांच कर 3 महीने में रिपोर्ट सौंपनी होगी।

न्यायाधीश संतोष गजानन भट ने मामले की जांच मैसूर जिले के लोकायुक्त अधीक्षक को सौंपी है। उन्हें तीन महीने यानी 24 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।जांच अधिकारी के पास सीएम से पूछताछ करने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार होगा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि मामले की जांच सीआरपीसी की धारा 156 (3) के प्रावधानों के तहत की जाएगी। सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू की जाएगी।

बता दें, याचिकाकर्ता कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने एक निजी शिकायत के साथ जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसी पर कोर्ट ने जांच का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सामने मुडा घोटाला उठाया था। राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी दी थी। मगर 19 अगस्त को सीएम सिद्दरमैया ने राज्यपाल के आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। मगर वहां भी राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को बरकरार रखा।

अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कल धारा 17 ए के तहत जांच का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जन प्रतिनिधि अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलने के बाद मैं जवाब दूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं। मुझे जांच से कोई डर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे आदेश की कॉपी मिलने के बाद अगला निर्णय लिया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद वह वकील से चर्चा करेंगे और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।

*కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పుతో సీఎం సిద్ధరామయ్య కుర్చీకి చిక్కు! రాజీనామా చేయాలని బీజేపీ డిమాండ్*

ముడా (మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ) కేసులో కర్నాటక ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్యకు ఎదురుదెబ్బ తగిలింది. గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాల్ చేస్తూ ఆయన వేసిన పిటిషన్‌ను కోర్టు తోసిపుచ్చింది. హైకోర్టు తీర్పు తర్వాత ఇప్పుడు బీజేపీ ఆయనపై విరుచుకుపడుతోంది. ఆయన రాజీనామా చేయాలని ప్రతిపక్షాలు నిరంతరం డిమాండ్ చేస్తున్నాయి.

సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలని డిమాండ్

కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పు చారిత్రాత్మకమని కేంద్ర మంత్రి ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. ప్రభుత్వం, సిద్ధరామయ్య తప్పు చేశారన్నారు. ముందుగా సీఎం పదవికి రాజీనామా చేసి ఉండాల్సింది కానీ నిజానిజాలు తెలుసుకుని విచారణ నుంచి తప్పించుకోవాలన్నారు. అందుకే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాలు చేశారు. గవర్నర్ ఫోటోను చెప్పులతో కొట్టారు. టెర్రర్ సృష్టించేందుకు ఇలా చేశారన్నారు. ఏమాత్రం ఆలస్యం చేయకుండా సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలి. వివరణాత్మక మరియు నిష్పక్షపాత దర్యాప్తు జరగాలి, దాని కోసం అతను రాజీనామా చేయాలి.

కర్ణాటక ప్రభుత్వాన్ని కూల్చే ఉద్దేశం బీజేపీకి లేదు - ప్రహ్లాద్ జోషి

రాజకీయ అధికారం లేకుండా ఇది జరగదని ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. దీనిపై సీబీఐతో విచారణ జరిపించాలి. కర్నాటక ప్రభుత్వాన్ని పడగొట్టాలన్నా, అస్థిరపరచాలన్నా బీజేపీకి ఎలాంటి ఉద్దేశం లేదు, అలాంటి ప్రయత్నాలేవీ చేయడం లేదు. ఎవరు సీఎం అవుతారో తేల్చుకోవాల్సింది కాంగ్రెస్సే. కాంగ్రెస్ మరొకరిని సీఎం చేయాలి. బీజేపీ మాత్రం ప్రతిపక్షంలో కూర్చుంటుంది.

త్వరలోనే నిజం బయటకు వస్తుందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు

అదే సమయంలో, కోర్టు ఈ ఆదేశాల తర్వాత సిద్ధరామయ్య స్పందన వెలుగులోకి వచ్చింది. బీజేపీ, జేడీఎస్‌లను టార్గెట్ చేస్తూ ఇది రాజకీయ పోరు అని అన్నారు. రాష్ట్ర ప్రజలు నా వెంటే ఉన్నారు. మరికొద్ది రోజుల్లో నిజానిజాలు బయటకు వస్తాయని, విచారణ రద్దవుతుందని విశ్వసిస్తున్నాను. సెక్షన్ 218 కింద గవర్నర్ జారీ చేసిన ఉత్తర్వులను కోర్టు పూర్తిగా తిరస్కరించిందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు. గవర్నర్ ఉత్తర్వుల్లోని సెక్షన్ 17ఎకి మాత్రమే న్యాయమూర్తులు పరిమితమయ్యారు. అటువంటి విచారణ చట్టం ప్రకారం అనుమతించబడుతుందా లేదా అనే దానిపై నేను నిపుణులను సంప్రదిస్తాను. న్యాయ నిపుణులతో చర్చించిన తర్వాత పోరాట రూపురేఖలు నిర్ణయిస్తాను.

సిద్ధరామయ్యకు సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లే అవకాశం ఉంది

అయితే, ఈ కేసులో ముఖ్యమంత్రిపై దర్యాప్తునకు ఆమోదం తెలిపే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని ఆమోదించడం ద్వారా సిద్ధరామయ్యను హైకోర్టు తీవ్ర ఇబ్బందుల్లోకి నెట్టింది. ఇప్పటి వరకు, హైకోర్టు నుండి స్టే ఆర్డర్ కారణంగా, దిగువ కోర్టు ద్వారా ఈ కేసులో చర్యలు ప్రారంభించబడలేదు. ఇప్పుడు ఈ స్టే ఆర్డర్ వల్ల స్టే ఎత్తివేయడంతో సిద్ధరామయ్యపై చట్టపరమైన చర్యలు తీసుకునే అవకాశం ఉంది. ఇప్పటికే ఆయన పదవి నుంచి వైదొలగాలని విపక్షాలు ఒత్తిడి చేస్తుండగా, కాంగ్రెస్ పార్టీలో కూడా దీనిపై తీవ్ర దుమారం చెలరేగింది. ప్రస్తుతం సిద్ధరామయ్య ముందున్న మొదటి ఆప్షన్ సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లి మళ్లీ ఈ కేసులో స్టే ఆర్డర్ తెచ్చుకునే ప్రయత్నం చేయడమే.

ఆరోపించిన ముడా భూ కుంభకోణం ఏమిటి?

పట్టణాభివృద్ధిలో భూములు కోల్పోయిన వారి కోసం ముడ ఒక పథకాన్ని తీసుకొచ్చింది. 50:50 అనే ఈ పథకంలో, భూమి కోల్పోయిన వ్యక్తులు అభివృద్ధి చేసిన భూమిలో 50% అర్హులు. ఈ పథకం మొదటిసారిగా 2009లో అమలులోకి వచ్చింది. దీన్ని 2020లో అప్పటి బీజేపీ ప్రభుత్వం మూసివేసింది.

ఈ పథకాన్ని ప్రభుత్వం నిలిపివేసిన తర్వాత కూడా ముడ 50:50 పథకం కింద భూములను సేకరించి కేటాయిస్తూనే ఉంది. వివాదమంతా దీనికి సంబంధించినదే. ఇందులోభాగంగా ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి బెనిఫిట్‌లు ఇచ్చారని ఆరోపించారు.

మూడా అంటే ఏమిటి?

మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ లేదా MUDA అనేది కర్ణాటక రాష్ట్ర స్థాయి అభివృద్ధి సంస్థ, ఇది మే 1988లో ఏర్పడింది. MUDA యొక్క విధి పట్టణ అభివృద్ధిని ప్రోత్సహించడం, నాణ్యమైన పట్టణ మౌలిక సదుపాయాలను అందించడం, సరసమైన గృహాలను అందించడం, గృహనిర్మాణం మొదలైనవి.

ఆరోపణ ఏమిటి?

ముఖ్యమంత్రి భార్యకు చెందిన 3 ఎకరాల 16 గుంటల భూమిని ముడ కబ్జా చేసిందని ఆరోపించారు. ప్రతిఫలంగా ఉన్నతస్థాయి ప్రాంతంలో 14 స్థలాలు కేటాయించారు. మైసూరు శివార్లలోని కేసరేలోని ఈ భూమిని 2010లో ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి ఆయన సోదరుడు మల్లికార్జున స్వామి కానుకగా ఇచ్చారు. ఈ భూమిని సేకరించకుండానే దేవనూరు మూడోదశకు ముడ ప్రణాళిక రూపొందించిందని ఆరోపించారు.

ముఖ్యమంత్రి కె పార్వతి పరిహారం కోసం దరఖాస్తు చేసుకున్నారు, దాని ఆధారంగా ముడ విజయనగరం III మరియు IV ఫేజ్‌లలో 14 స్థలాలను కేటాయించింది. రాష్ట్ర ప్రభుత్వం యొక్క 50:50 నిష్పత్తి పథకం కింద మొత్తం 38,284 చదరపు అడుగుల కేటాయింపు జరిగింది. ముఖ్యమంత్రి సతీమణి పేరున కేటాయించిన 14 స్థలాల్లో కుంభకోణం జరిగినట్లు ఆరోపణలు వస్తున్నాయి. పార్వతికి ముడ ద్వారా ఈ స్థలాల కేటాయింపులో అక్రమాలు జరిగాయని ప్రతిపక్షాలు అంటున్నాయి.

MUDA स्कैम मामले में कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को बड़ी राहत, लोकायुक्त ने दी क्लीनचिट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ी राहत मिली है। सीएम सिद्धारमैया को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी मुडा लैंड स्कैम केस में एंटी करप्शन वॉचडॉग लोकायुक्त की तरफ से क्लीन चिट मिल गई है। ये मामला मुआवजा के लिए हुए सिद्धारमैया की पत्नी को हुए भूमि आवंटन में कथित गड़बड़ी की शिकायत के बाद सामने आया था। एंटी करप्शन एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया था कि इस गड़बड़ी के कारण राज्य को करीब 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

जांच की फाइनल रिपोर्ट 138 दिनों की लंबी जांच के बाद बेंगलुरु मुख्यालय को सौंपी गई। लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता स्नेहमयीकृष्ण को नोटिस जारी कर कहा है कि साक्ष्य के अभाव में मामला जांच के लायक नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि साक्ष्य के अभाव में भी वो रिपोर्ट दर्ज कराएंगे। इसमें वे मामले भी शामिल हैं, जिन्हें बिना जांच के खारिज कर दिया जाता है। जांच अधिकारी उन्हें सिविल प्रकृति का और जांच के लिए उपयुक्त नहीं पाया है, या तथ्यों या कानून की गलतफहमी के कारण ऐसा किया जाता है। इसमें साक्ष्य का अभाव है। यह मामला जांच के लायक नहीं है। कहा गया है कि यदि उन्हें इस रिपोर्ट पर कोई आपत्ति है तो वे नोटिस प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

इस मामले में जांच सितंबर 2024 में शुरू हुई थी, जब बेंगलुरु में एक विशेष अदालत ने लोकायुक्त को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी साइट आवंटन मामले की जांच का आदेश दिया था। जांच का नेतृत्व मैसूर लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक टीजे उदेश ने किया। इस दौरान 100 से अधिक लोगों से पूछताछ हुई, जिनमें नौकरशाह, राजनेता, सेवानिवृत्त अधिकारी, मुडा के अधिकारी और स्वयं सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और उनके बहनोई बीएम मल्लिकार्जुन स्वामी शामिल थे। सभी बयानों की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और इन्हें रिपोर्ट में शामिल किया गया।

बता दें कि पिछले साल एंटी करप्शन एक्टिविस्ट स्नेहमयी कृष्णा ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत को पत्र लिखकर मुकदमा चलाने की मांग की थी। आरोप है कि सिद्दरमैया की पत्नी को मैसूर के एक पॉश इलाके में प्रतिपूरक साइटें आवंटित की गईं, जिनकी संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत किया गया था। मुडा ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां इसने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था। 3.16 एकड़ जमीन पर पार्वती का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

संसद-हाईकोर्ट-एयरपोर्ट, सब वक्फ की जमीन पर, मुस्लिमों को वापस दे सरकार, वरना अंजाम भुगतना होगा..', अजमल की धमकी से फैली सनसनी

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के प्रमुख और पूर्व सांसद बदरुद्दीन अजमल ने बुधवार को विवादास्पद बयान देकर सनसनी फैला दी है। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में संसद भवन और उसके आसपास का इलाका वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर बना है। उन्होंने कहा कि वसंत विहार से लेकर दिल्ली एयरपोर्ट तक का क्षेत्र वक्फ की जमीन पर बना हुआ है और सरकार इस 9.7 लाख बीघा वक्फ संपत्ति को हड़पना चाहती है। अजमल ने सरकार से मांग की है कि यह जमीन मुस्लिम समाज को वापस दी जाए।

अजमल ने वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों की सूची सामने आ रही है और यह मुद्दा गंभीर होता जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार बिना वक्फ बोर्ड की अनुमति के इन जमीनों का इस्तेमाल कर रही है, जो गलत है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ऐसा जारी रहा, तो मोदी सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दलित नेता और लेखक दिलीप मंडल ने इस मामले को लेकर अजमल और कांग्रेस की आलोचना की है। उधर, विपक्षी सांसदों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की बैठक में संसदीय आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से की है। उन्होंने आरोप लगाया कि JPC के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने समिति की कार्यवाही को पक्षपातपूर्ण ढंग से संचालित किया।

विपक्षी सांसदों का कहना है कि पाल ने कर्नाटक वक्फ घोटाला रिपोर्ट 2012 पर आधारित वक्फ विधेयक के तहत अनवर मणिप्पाडी को समिति के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने का निमंत्रण दिया था, जो समिति के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उनका यह भी दावा है कि JPC की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे और कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोप लगाए गए थे, जो कि विधेयक से संबंधित नहीं थे।

बता दें कि, अनवर ने आरोप लगाए थे कि खड़गे ने अपने राजनितिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए वक्फ की जमीन हड़पी है, जिसके बाद विपक्षी सांसदों ने बैठक से वॉकआउट कर दिया था। वहीं, हाल ही में कांग्रेस प्रमुख खड़गे के परिवार पर कर्नाटक में भी डिफेंस के लिए आवंटित 5 एकड़ जमीन अवैध रूप से हासिल करने का आरोप लगा था, जब इस मामले में भाजपा ने शिकायत की, और जांच का खतरा मंडराने लगा, तो खड़गे परिवार ने चुपचाप 5 एकड़ जमीन सरकार को वापस सौंप दी। वहीं, कर्नाटक के सीएम और दिग्गज कांग्रेस नेता सिद्धारमैया पर भी आरोप लगा था कि उन्होंने MUDA घोटाला यानी अपनी सस्ती जमीन के बदले सरकार से पॉश इलाके में 14 सम्पत्तियाँ ले ली थीं, पहले तो सिद्धारमैया इस आरोप से इंकार करते रहे। फिर जब गवर्नर ने जांच का आदेश दिया, तो सिद्धरमैया हाई कोर्ट पहुंचे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली, और अदालत ने कहा कि तथ्यों और सबूतों को देखते हुए इस मामले की जांच जरूरी है। इसके बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी ने वो 14 सम्पत्तियाँ चुपचाप सरकार को लौटा दी। जिसके बाद से गंभीर सवाल खड़े हुए थे कि, अगर कांग्रेस नेताओं ने घोटाला नहीं किया, तो वो जमीनें वापस क्यों लौटा रहे हैं।

वक्फ बिल पर भारत सरकार के 4 मुख्य संशोधन

इसमें चार मुख्य संशोधन हैं, पहले हम कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए कानून की बात करें तो, इसमें सेक्शन 40 के तहत पहला प्रावधान ये था कि, अगर वक्फ अपने विश्वास के आधार पर किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोंकता है, तो वो संपत्ति वक्फ की हो जाएगी, उसे कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होगी और इस मामले में जिसे आपत्ति हो, वो वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाकर ही गुहार लगाए। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, पीड़ित, रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट आदि जा सकेगा।

कांग्रेस सरकार के कानून में दूसरा प्रावधान ये था कि, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा, यानी वो जो कहे, वही सत्य। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी, इससे वक्फ की मनमानी ख़त्म होगी।

कांग्रेस सरकार के कानून के मुताबिक, तीसरा प्रावधान ये था कि, कहीं कोई मस्जिद है, मजार है, मदरसा है, या जमीन को इस्लामी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, तो जमीन अपने आप वक्फ की हो जाएगी, भले ही उसे किसी ने दान किया हो या नहीं। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बयान में कह ही चुके हैं कि, ''एक बार जब मुस्लिम किसी जगह को इबादतगाह के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर देता है तो वह जगह हमेशा के लिए मुस्लिमों की संपत्ति बन जाती है और अब मोदी सरकार उस प्रावधान को बदल रही है।'' ऐसे में अगर समुदाय, किसी पार्क, मैदान, रेलवे स्टेशन को इबादतगाह मानकर वहां नमाज़ पढ़ने लगेगा, तो क्या वो जमीन वक्फ की हो जाएगी ? इस मामले में भाजपा सरकार का संशोधन ये है कि, जब तक कोई जमीन वक्फ को दान ना की गई हो, तब तक वो संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती, भले ही वहां मस्जिद या मज़ार मौजूद हो।

कांग्रेस सरकार के कानून के चौथे प्रावधान के मुताबिक, वक्फ बोर्ड में महिला और अन्य धर्म के लोगों को सदस्य नहीं बनाया जाएगा। भाजपा सरकार का कहना है कि, बोर्ड में 2 महिला और अन्य धर्म के 2 लोगों को सदस्य बनाया जाएगा।

आज वक्फ के पास देश की 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन है, जो भारतीय सेना और भारतीय रेलवे के बाद तीसरे नंबर पर है।

लोकसभा चुनाव में लगाया 'वाल्मीकि कल्याण' का पैसा! कांग्रेस विधायक नागेंद्र निकले मास्टरमाइंड, चार्जशीट दाखिल

कर्नाटक में वाल्मीकि कल्याण निगम घोटाले ने हलचल मचा दी है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी जांच रिपोर्ट विशेष अदालत में प्रस्तुत की है। यह मामला सरकारी धन के दुरुपयोग से जुड़ा है, जिसमें पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक बी. नागेंद्र को धोखाधड़ी का मुख्य आरोपी माना गया है। घोटाला तब उजागर हुआ जब वाल्मीकि विकास निगम में फंड ट्रांसफर और उपयोग में अनियमितताएं पाई गईं। यह निगम कर्नाटक के वाल्मीकि समुदाय की सहायता के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन इसमें वित्तीय विसंगतियों की जांच के दौरान कई सरकारी अधिकारियों और नागेंद्र के सहयोगियों की संलिप्तता सामने आई। ED ने दावा किया है कि इस घोटाले में निगम से 187 करोड़ रुपये का अवैध हस्तांतरण हुआ, जिसमें 97.32 करोड़ रुपये का गबन किया गया और 12 करोड़ रुपये का धन 2024 के लोकसभा चुनावों के प्रचार में डायवर्ट किया गया। ED की रिपोर्ट में नागेंद्र को मुख्य आरोपी के रूप में पहचाना गया है और उनकी वित्तीय हेरफेर के तरीकों का विवरण दिया गया है। रिपोर्ट में 24 अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता का भी उल्लेख है, जिनमें नागेंद्र के करीबी सहयोगी शामिल हैं। ED ने कोर्ट को यह भी बताया कि गबन की गई धनराशि को बिना अनुमति के बैंकों में स्थानांतरित किया गया और कई बैंक अधिकारियों पर भी संदेह है कि वे इन अवैध लेनदेन में शामिल थे। नागेंद्र के एक सहयोगी का मोबाइल फोन जब्त किया गया, जिससे अवैध वित्तीय लेनदेन के महत्वपूर्ण सबूत प्राप्त हुए। जबकि SIT ने मुख्य रूप से प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता पर ध्यान केंद्रित किया था, ED की रिपोर्ट ने नागेंद्र के राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को भी उजागर किया। नागेंद्र, जिन्हें जुलाई 2024 में गिरफ्तार किया गया था, अभी न्यायिक हिरासत में हैं। उन्होंने घोटाले में शामिल होने से इनकार किया है और आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया है। इस घोटाले ने जनता और राजनीतिक स्तर पर व्यापक आक्रोश पैदा किया है, और विपक्षी दलों ने इसे कर्नाटक के राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक उदाहरण बताया है। आने वाले महीनों में विशेष न्यायालय में सुनवाई जारी रहेगी, और इस मामले के परिणाम न केवल नागेंद्र और उनके सहयोगियों के लिए, बल्कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे। इस घोटाले की जांच से मिलने वाले निष्कर्ष सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के खिलाफ जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस घोटाले का खुलासा तब हुआ था, जब वाल्मीकि कल्याण निगम में काम करने वाले एक दलित अधिकारी ने ख़ुदकुशी कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि ''उन पर दबाव डालकर भ्रष्टाचार करवाया गया है, इसमें उच्च अधिकारी और मंत्री भी शामिल हैं।'' अब वाल्मीकि विभाग तत्कालीन कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र के अंतर्गत ही आता था। इस घोटाले के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हुई और बी नागेंद्र को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि, इसके बाद जांच हुई तो और परतें खुलने लगीं, अब कांग्रेस विधायक नागेंद्र ही इस पूरे घोटाले के मास्टरमाइंड के रूप में सामने आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी MUDA घोटाले में बुरी तरह घिरे हुए हैं। गवर्नर ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दे दिया है, जिसे रुकवाने के लिए कांग्रेसी मुक्यमंत्री हाई कोर्ट भी गए थे, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने तमाम तथ्य देखने के बाद कहा था कि, सबूतों को देखते हुए ये लगता है कि गड़बड़ी हुई है और इस मामले में जांच की सख्त आवश्यकता है। इसके बाद सिद्धारमैया की पत्नी ने मुआवज़े के रूप में मिले 14 प्लॉट वापस करने की पेशकश कर दी थी। हालाँकि, जांच शुरू हो चुकी है। ये पूरा मामला जमीन से जुड़ा है। आरोप है कि, मुख्यमंत्री ने अपनी गाँव की कम कीमत की जमीन को सरकार को देकर, बदले में मुआवज़े के तौर पर प्राइम लोकेशन में 14 प्लॉट हासिल कर लिए थे, जिनकी कीमत गाँव की जमीन से कई गुना जयादा है।
विपक्ष के झूठे आरोपों के आधार पर इस्तीफा नहीं देंगे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार को दोहराया कि वह विपक्षी दलों के ‘झूठे आरोपों’ के आधार पर अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि वह राज्य की जनता के सामने वास्तविक स्थिति पेश करेंगे। सिद्धारमैया ने संवाददाताओं से कहा, “अगर विपक्षी दल झूठे आरोपों के आधार पर इस्तीफा मांगते हैं, तो क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए? हम झूठे आरोपों का जवाब देंगे। हम लोगों को सच्चाई बताएंगे।”

कांग्रेस के भीतर व्यस्त राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, जहां दलित और अनुसूचित जनजाति के नेता MUDA साइट आवंटन मामले के प्रकाश में आने के बाद बैठक कर रहे थे, सिद्धारमैया ने कहा कि लोग अनावश्यक रूप से अटकलें लगा रहे हैं। “मंत्री चर्चा करेंगे लेकिन क्या आपको अटकलें लगानी चाहिए? लोग अटकलें तब लगाते हैं जब राज्य के लोक निर्माण मंत्री सतीश जरकीहोली AICC अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलते हैं या विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री एन एस बोसराजू किसी मंत्री से मिलते हैं। अतीत में भी ऐसी बैठकें हुई हैं और अभी भी चल रही हैं, लेकिन ऐसी अटकलें क्यों जोर पकड़ रही हैं?” सिद्धारमैया ने आश्चर्य जताया।

मैसूर में दशहरा समारोह के उद्घाटन के दौरान जेडी (युनाइटेड) के वरिष्ठ विधायक जी टी देवेगौड़ा द्वारा उनका समर्थन करने पर, सीएम ने कहा कि उन्होंने केवल सच समझाया है। “जी टी देवेगौड़ा जेडी (युनाइटेड) की कोर कमेटी के अध्यक्ष और मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने केवल सच कहा। इसमें गलत क्या है?” उन्होंने पूछा।

25 सितंबर को एक विशेष अदालत द्वारा लोकायुक्त पुलिस को MUDA साइट आवंटन मामले में सिद्धारमैया की जांच करने का आदेश दिए जाने के बाद विपक्षी दलों की ओर से सिद्धारमैया पर अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा है। तदनुसार, लोकायुक्त पुलिस ने 27 सितंबर को सिद्धारमैया, उनकी पत्नी पार्वती, साले मल्लिकार्जुन स्वामी, देवराजू (जिनसे मल्लिकार्जुन स्वामी ने जमीन खरीद कर पार्वती और अन्य को उपहार में दी थी) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। विशेष अदालत का आदेश उच्च न्यायालय द्वारा सिद्धारमैया के खिलाफ जांच करने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी को बरकरार रखने के एक दिन बाद आया।

ईडी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ MUDA द्वारा उनकी पत्नी को 14 भूखंड आवंटित करने में कथित अनियमितताओं के लिए पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के बराबर प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की है। MUDA ने मंगलवार को सिद्धारमैया की पत्नी को आवंटित 14 भूखंडों को वापस लेने का फैसला किया, क्योंकि उन्होंने उनका स्वामित्व और कब्ज़ा छोड़ने का फैसला किया था। MUDA के आयुक्त ए एन रघुनंदन ने कहा कि MUDA ने इन भूखंडों की बिक्री विलेख को रद्द करने का आदेश दिया है।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की बढ़ीं मुश्किलें, ईडी ने दर्ज की नई शिकायत, मुडा मामले में सबूत नष्ट करने का आरोप

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मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री मूडा में कथित घोटाले को लेकर लगातार घिरते जा रहे हैं। अब उनके और अन्य लोगों के खिलाफ एक नई शिकायत दर्ज कराई गई है। मुडा मामले में सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगा है। मूडा मामले में सुबूतों को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री और उनके बेटे यतीन्द्रा के खिलाफ ईडी ने एक और शिकायत को दर्ज किया है।

प्रदीप कुमार नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने सिद्धारमैया एवं अन्य के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ के लिए जांच और मामला दर्ज करने की मांग की।इस शिकायत में दावा किया गया है कि मुडा अधिकारियों की संलिप्तता से साइटों को पुनः प्राप्त करके साक्ष्य नष्ट कर दिए गए हैं। प्रदीप कुमार ने जांच का अनुरोध किया है और साक्ष्यों से छेड़छाड़ के लिए मामला दर्ज करने की मांग की है।

25 सितंबर को विशेष अदालत ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था। इस आदेश के बाद 27 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उनकी पत्नी पार्वती बीएम सिद्धरमैया, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी एवं देवराजू सहित अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। ईडी ने भी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में मामला दर्ज किया है। वहीं पार्वती ने भूखंड लौटाने की पेशकश की तो एमयूडीए ने उनको आवंटित 14 भूखंडों को वापस ले लिया है।

कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है?

मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।

मुख्यमंत्री की पत्नी का 50:50 योजना से क्या संबंध?

आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी।

मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया था, जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित की गई थीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं।

सिद्धारमैया की बढ़ी मुश्किलें तो पत्नी ने उठाया बड़ा कदम, क्या प्लॉट सरेंडर करने से कम होगी मुश्किल?

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कर्नाटक के चर्चित मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सिद्धारमैया के खिलाफ केस दर्ज किया है। मुडा स्कैम में सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी की जांच शुरू कर दी है। इस बीच सिद्धारमैया की पत्नी ने बड़ा कदम उठाया है। पार्वती ने मुडा को पत्र लिखकर उन्हें आवंटित 14 प्लॉट वापस करने की बात कही है। अब सवाल उठता है कि जमीन लौटाने का दांव कारगर साबित होगा? 

सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण मुडा को पत्र लिखा है। पार्वती ने कहा है कि मुडा से मुझे जो प्लॉट मिले हैं, वो मैं वापस करना चाहती हूं। पार्वती ने मुडा से कहा है कि उनके लिए पति ज्यादा जरूरी है, इसलिए मैं उन 14 साइटों को वापस करना चाहती हूं, जो मुझे आवंटित की गई है। पार्वती के इस फैसले पर मुडा की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं सिद्धारमैया ने पार्वती के इस पत्र पर कहा है कि ये उनका फैसला है, लेकिन मैं लंबी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार हूं।

बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुडा भूमि मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पार्वती और अन्य पर मामला दर्ज किया है। एफआईआर में पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन स्वामी भी शामिल हैं। आरोप है कि उन्होंने जमीन खरीदी थी और बाद में उसे पार्वती को तोहफे में दे दिया था। यह मामला लोकायुक्त की एफआईआर के बाद दर्ज किया गया है। ईडी का मामला इस आरोप पर आधारित है कि पार्वती को मैसूरु के एक प्रमुख स्थान पर मुआवजे के 14 प्लॉट आवंटित किए गए थे। इस प्लॉट आवंटन में लेनदेन की वैधता पर सवाल उठे हैं। 

पिछले हफ्ते बेंगलुरु की एक विशेष अदालत द्वारा मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस जांच का आदेश देने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी। कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार, सिद्धारमैया को पूछताछ के लिए बुलाने के लिए ईडी अधिकृत है और जांच के दौरान उनकी संपत्ति भी कुर्क कर सकता है। पिछले हफ्ते एक बयान में, सिद्धारमैया ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि राजनीतिक प्रतिशोध के परिणामस्वरूप मामले में उन्हें अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

साल 2020 में मुडा ने एक स्कीम की शुरुआत की। स्कीम में कहा गया कि जिन लोगों की जमीन विकास के काम के लिए लिया जाएगा, उन्हें 50-50 पॉलिसी के तहत मैसूर शहर में प्लॉट और मुआवजा दिया जाएगा। बीजेपी सरकार की तरफ से शुरू की गई इस स्कीम की खूब आलोचना हुई, जिसके बाद 2023 में इसे रद्द कर दिया गया। सिद्धारमैया परिवार पर फर्जी दस्तावेज और पावर का दुरुपयोग कर इस स्कीम का लाभ लेने का आरोप है। सिद्धारमैया की पत्नी पर करीब 55 करोड़ रुपए का लाभ लेने का आरोप है। हालांकि, सिद्धारमैया इस पूरे मामले को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर, MUDA स्कैम मामले में बढ़ सकती हैं मुश्किलें

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज की है। कर्नाटक के एक स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है। याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जन प्रतिनिधि कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक लोकयुक्त से इस मामले की जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद आज मैसूरु लोकयुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया।

लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम और भूमि कब्जा निवारण अधिनियम के तहत अदालत द्वारा निर्धारित आईपीसी धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की। सीएम सिद्धारमैया पर आरोप A 1 है, पत्नी पार्वती पर आरोप A 2 है। वहीं, मुख्यमंत्री के साले मल्लिकार्जुन स्वामी को आरोपी नम्बर 3 और देवराज को आरोपी नम्बर 4 बनाया गया है। मुख्यमंत्री पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करके उनकी पत्नी के नाम मैसुरु में MUDA साइट आवंटित करने का आरोप लगा है।

सिद्धरमैया ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को दावा किया कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन मामले में उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे डरता है। इसके साथ ही, सिद्धरमैया ने कहा कि यह उनके खिलाफ पहला राजनीतिक मामला है। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि मामले में अदालत द्वारा उनके खिलाफ जांच का आदेश दिये जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कानूनी रूप से लड़ाई लड़ेंगे।

केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और देश भर में विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में राज्यपाल के ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की जरूरत है।

खरगे ने क्या कहा?

इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि MUDA के लोग जो चाहें वे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह जरूरी नहीं है कि सरकार उसके सभी सवालों का जवाब दें, क्योंकि वह एक स्वायत्त निकाय होने के कारण कार्रवाई कर ही सकता है।

खरगे ने सीएम सिद्धारमैया का समर्थन करते हुए कहा कि उनलोगों निजी तौर पर कोई भी अपराध यदि किया हो तो इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं, लेकिन वह ऐसा मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कोई भी अपराध नहीं किया है। उन्हें बदनाम किया जा रहा है। पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

जांच की जरूरत, MUDA घोटाले में सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।

दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।

कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

कर्नाटक सीएम सिद्दरमैया की बढ़ी मुश्किलें, कोर्ट ने लोकायुक्त को सौंपी जांच; तीन महीने में देनी होगी रिपोर्ट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को बुधवार को एमपी/एमएलए कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। विशेष अदालत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला में सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ लोकायुक्त जांच की मंजूरी दी है। कर्नाटक लोकायुक्त की मैसूरु जिला पुलिस को MUDA घोटाले की जांच कर 3 महीने में रिपोर्ट सौंपनी होगी।

न्यायाधीश संतोष गजानन भट ने मामले की जांच मैसूर जिले के लोकायुक्त अधीक्षक को सौंपी है। उन्हें तीन महीने यानी 24 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।जांच अधिकारी के पास सीएम से पूछताछ करने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार होगा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि मामले की जांच सीआरपीसी की धारा 156 (3) के प्रावधानों के तहत की जाएगी। सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू की जाएगी।

बता दें, याचिकाकर्ता कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने एक निजी शिकायत के साथ जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसी पर कोर्ट ने जांच का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सामने मुडा घोटाला उठाया था। राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी दी थी। मगर 19 अगस्त को सीएम सिद्दरमैया ने राज्यपाल के आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। मगर वहां भी राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को बरकरार रखा।

अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कल धारा 17 ए के तहत जांच का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जन प्रतिनिधि अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलने के बाद मैं जवाब दूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं। मुझे जांच से कोई डर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे आदेश की कॉपी मिलने के बाद अगला निर्णय लिया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद वह वकील से चर्चा करेंगे और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।

*కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పుతో సీఎం సిద్ధరామయ్య కుర్చీకి చిక్కు! రాజీనామా చేయాలని బీజేపీ డిమాండ్*

ముడా (మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ) కేసులో కర్నాటక ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్యకు ఎదురుదెబ్బ తగిలింది. గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాల్ చేస్తూ ఆయన వేసిన పిటిషన్‌ను కోర్టు తోసిపుచ్చింది. హైకోర్టు తీర్పు తర్వాత ఇప్పుడు బీజేపీ ఆయనపై విరుచుకుపడుతోంది. ఆయన రాజీనామా చేయాలని ప్రతిపక్షాలు నిరంతరం డిమాండ్ చేస్తున్నాయి.

సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలని డిమాండ్

కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పు చారిత్రాత్మకమని కేంద్ర మంత్రి ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. ప్రభుత్వం, సిద్ధరామయ్య తప్పు చేశారన్నారు. ముందుగా సీఎం పదవికి రాజీనామా చేసి ఉండాల్సింది కానీ నిజానిజాలు తెలుసుకుని విచారణ నుంచి తప్పించుకోవాలన్నారు. అందుకే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాలు చేశారు. గవర్నర్ ఫోటోను చెప్పులతో కొట్టారు. టెర్రర్ సృష్టించేందుకు ఇలా చేశారన్నారు. ఏమాత్రం ఆలస్యం చేయకుండా సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలి. వివరణాత్మక మరియు నిష్పక్షపాత దర్యాప్తు జరగాలి, దాని కోసం అతను రాజీనామా చేయాలి.

కర్ణాటక ప్రభుత్వాన్ని కూల్చే ఉద్దేశం బీజేపీకి లేదు - ప్రహ్లాద్ జోషి

రాజకీయ అధికారం లేకుండా ఇది జరగదని ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. దీనిపై సీబీఐతో విచారణ జరిపించాలి. కర్నాటక ప్రభుత్వాన్ని పడగొట్టాలన్నా, అస్థిరపరచాలన్నా బీజేపీకి ఎలాంటి ఉద్దేశం లేదు, అలాంటి ప్రయత్నాలేవీ చేయడం లేదు. ఎవరు సీఎం అవుతారో తేల్చుకోవాల్సింది కాంగ్రెస్సే. కాంగ్రెస్ మరొకరిని సీఎం చేయాలి. బీజేపీ మాత్రం ప్రతిపక్షంలో కూర్చుంటుంది.

త్వరలోనే నిజం బయటకు వస్తుందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు

అదే సమయంలో, కోర్టు ఈ ఆదేశాల తర్వాత సిద్ధరామయ్య స్పందన వెలుగులోకి వచ్చింది. బీజేపీ, జేడీఎస్‌లను టార్గెట్ చేస్తూ ఇది రాజకీయ పోరు అని అన్నారు. రాష్ట్ర ప్రజలు నా వెంటే ఉన్నారు. మరికొద్ది రోజుల్లో నిజానిజాలు బయటకు వస్తాయని, విచారణ రద్దవుతుందని విశ్వసిస్తున్నాను. సెక్షన్ 218 కింద గవర్నర్ జారీ చేసిన ఉత్తర్వులను కోర్టు పూర్తిగా తిరస్కరించిందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు. గవర్నర్ ఉత్తర్వుల్లోని సెక్షన్ 17ఎకి మాత్రమే న్యాయమూర్తులు పరిమితమయ్యారు. అటువంటి విచారణ చట్టం ప్రకారం అనుమతించబడుతుందా లేదా అనే దానిపై నేను నిపుణులను సంప్రదిస్తాను. న్యాయ నిపుణులతో చర్చించిన తర్వాత పోరాట రూపురేఖలు నిర్ణయిస్తాను.

సిద్ధరామయ్యకు సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లే అవకాశం ఉంది

అయితే, ఈ కేసులో ముఖ్యమంత్రిపై దర్యాప్తునకు ఆమోదం తెలిపే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని ఆమోదించడం ద్వారా సిద్ధరామయ్యను హైకోర్టు తీవ్ర ఇబ్బందుల్లోకి నెట్టింది. ఇప్పటి వరకు, హైకోర్టు నుండి స్టే ఆర్డర్ కారణంగా, దిగువ కోర్టు ద్వారా ఈ కేసులో చర్యలు ప్రారంభించబడలేదు. ఇప్పుడు ఈ స్టే ఆర్డర్ వల్ల స్టే ఎత్తివేయడంతో సిద్ధరామయ్యపై చట్టపరమైన చర్యలు తీసుకునే అవకాశం ఉంది. ఇప్పటికే ఆయన పదవి నుంచి వైదొలగాలని విపక్షాలు ఒత్తిడి చేస్తుండగా, కాంగ్రెస్ పార్టీలో కూడా దీనిపై తీవ్ర దుమారం చెలరేగింది. ప్రస్తుతం సిద్ధరామయ్య ముందున్న మొదటి ఆప్షన్ సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లి మళ్లీ ఈ కేసులో స్టే ఆర్డర్ తెచ్చుకునే ప్రయత్నం చేయడమే.

ఆరోపించిన ముడా భూ కుంభకోణం ఏమిటి?

పట్టణాభివృద్ధిలో భూములు కోల్పోయిన వారి కోసం ముడ ఒక పథకాన్ని తీసుకొచ్చింది. 50:50 అనే ఈ పథకంలో, భూమి కోల్పోయిన వ్యక్తులు అభివృద్ధి చేసిన భూమిలో 50% అర్హులు. ఈ పథకం మొదటిసారిగా 2009లో అమలులోకి వచ్చింది. దీన్ని 2020లో అప్పటి బీజేపీ ప్రభుత్వం మూసివేసింది.

ఈ పథకాన్ని ప్రభుత్వం నిలిపివేసిన తర్వాత కూడా ముడ 50:50 పథకం కింద భూములను సేకరించి కేటాయిస్తూనే ఉంది. వివాదమంతా దీనికి సంబంధించినదే. ఇందులోభాగంగా ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి బెనిఫిట్‌లు ఇచ్చారని ఆరోపించారు.

మూడా అంటే ఏమిటి?

మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ లేదా MUDA అనేది కర్ణాటక రాష్ట్ర స్థాయి అభివృద్ధి సంస్థ, ఇది మే 1988లో ఏర్పడింది. MUDA యొక్క విధి పట్టణ అభివృద్ధిని ప్రోత్సహించడం, నాణ్యమైన పట్టణ మౌలిక సదుపాయాలను అందించడం, సరసమైన గృహాలను అందించడం, గృహనిర్మాణం మొదలైనవి.

ఆరోపణ ఏమిటి?

ముఖ్యమంత్రి భార్యకు చెందిన 3 ఎకరాల 16 గుంటల భూమిని ముడ కబ్జా చేసిందని ఆరోపించారు. ప్రతిఫలంగా ఉన్నతస్థాయి ప్రాంతంలో 14 స్థలాలు కేటాయించారు. మైసూరు శివార్లలోని కేసరేలోని ఈ భూమిని 2010లో ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి ఆయన సోదరుడు మల్లికార్జున స్వామి కానుకగా ఇచ్చారు. ఈ భూమిని సేకరించకుండానే దేవనూరు మూడోదశకు ముడ ప్రణాళిక రూపొందించిందని ఆరోపించారు.

ముఖ్యమంత్రి కె పార్వతి పరిహారం కోసం దరఖాస్తు చేసుకున్నారు, దాని ఆధారంగా ముడ విజయనగరం III మరియు IV ఫేజ్‌లలో 14 స్థలాలను కేటాయించింది. రాష్ట్ర ప్రభుత్వం యొక్క 50:50 నిష్పత్తి పథకం కింద మొత్తం 38,284 చదరపు అడుగుల కేటాయింపు జరిగింది. ముఖ్యమంత్రి సతీమణి పేరున కేటాయించిన 14 స్థలాల్లో కుంభకోణం జరిగినట్లు ఆరోపణలు వస్తున్నాయి. పార్వతికి ముడ ద్వారా ఈ స్థలాల కేటాయింపులో అక్రమాలు జరిగాయని ప్రతిపక్షాలు అంటున్నాయి.