राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने लेधी गांव में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर जयंती मनाया
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: इंजीनियर रशीद और जमात ने मिलाया हाथ, क्या हैं इसके सियासी मायने?
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जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले दौर का मतदान 18 सितंबर को होना है। इससे पहले इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तिहाद पार्टी ने प्रतिबंधित संगठन जमात ए इस्लामी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ गठबंधन कर लिया है। अवामी इत्तिहाद पार्टी और जमात के इस गठबंधन को कश्मीर घाटी में होने वाले चुनाव के लिहाज से बहुत अहम माना जा रहा है।इस नए गठजोड़ से घाटी में चुनाव परिणामों में भारी उलटफेर की संभावना जताई जा रही है।
इंजीनियर रशीद के मुताबिक़ जमात के साथ गठबंधन का मक़सद कश्मीरियों की आवाज़ को बुलंद करना और कश्मीर की समस्या का समाधान ढूंढना है। उन्होंने कहा, "हम जमात के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे और वो हमारे उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे, जबकि कुछ सीटों पर दोस्ताना मुक़ाबला भी होगा और दोनों के उम्मीदवार मौजूद होगें।"
दोनों पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग के मुताबिक एआईपी कुलगाम व पुलवामा जिले में जमात समर्थित उम्मीदवारों का समर्थन करेगी, जबकि जमात पूरे कश्मीर में एआईपी प्रत्याशियों का समर्थन करेगा। उत्तरी कश्मीर के लंगेट तथा दक्षिण कश्मीर के देवसर व जैनापोरा में दोनों पार्टियों के बीच दोस्ताना लड़ाई होगी।
इस नए गठजोड़ से नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन तथा पीडीपी को घाटी में झटका लग सकता है।विश्लेषकों का भी मानना है कि इंजीनियर रशीद की पार्टी और जमात ए इस्लामी का गठबंधन दरअसल कांग्रेस, एनसी और पीडीपी के ख़िलाफ़ एक मोर्चा है, जो इनके वोट बैंक को तोड़ने की एक कोशिश हो सकती है। जमात का दक्षिण कश्मीर तो एआईपी का उत्तर कश्मीर में खासा प्रभाव है। कुलगाम व पुलवामा के कई इलाके जमात के गढ़ रहे हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव में नेकां, कांग्रेस और माकपा के बीच गठबंधन में हैं। गठबंधन के तहत विधानसभा की 90 सीटों में 51 पर नेकां व 32 पर कांग्रेस लड़ रही है। माकपा तथा पैंथर्स भीम के लिए एक-एक सीट छोड़ी गई है। कुछ सीटों पर नेकां-कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार हैं।
बता दें कि जमात पिछले तीन दशक से चुनावों का बहिष्कार करती रही है। जमात-ए-इस्लामी ने आख़िरी बार साल 1987 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया था। क़रीब 37 साल बाद यह पहला मौक़ा है जब जमात चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है।
वहीं, इंजीनियर राशिद हालिया लोकसभा चुनाव में उत्तरी कश्मीर में दो दिग्गज (पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपल्स कांफ्रेंस के मुखिया सज्जाद लोन) को हराकर सुर्खियों में बने हुए हैं।
Buoyant Chennaiyin FC lock horns with upbeat Odisha FC in a challenging away trip
Sports News
KKNB: Odisha FC will kick-start their Indian Super League (ISL) 2024-25 campaign at home against former champions Chennaiyin FC at the Kalinga Stadium in Bhubaneswar on Saturday, September 14, at 5:00 pm.
Odisha FC have a superb record against Chennaiyin FC at home in the ISL, winning all of their three home meetings against the Marina Machans. Contrastingly, Chennaiyin FC had a middling start to the campaign last year, winning twice and losing thrice in their first five games and would want to get on a strong footing right from the onset in the current campaign.
Sergio Lobera has been an ISL veteran, ever since coming to India in 2017. He joined Odisha FC last season and made an instant impact. Under the Spanish tactician’s leadership, they reached the ISL semi-finals for the first time, whilst also reaching the Super Cup final.
“This is my sixth season in India and with every season the difficulty keeps on rising. Every year the teams are getting stronger, the league is improving, more foreign players are coming and the level of Indian players is also improving a lot. I feel this will be another amazing season with many strong teams and we hope to compete very well against them,” Lobera told ISL.
Odisha FC goalkeeper Amrinder Singh opened up on the team’s approach towards the season, saying, “Our focus will be on our style of play, on how we want to go about our offensive and defensive game-plans. It’s football, eventually one team will play better than the other, but we are an attacking side and we will like to maintain that game-plan.”
Pic Courtesy by: ISL
Bengaluru FC meet rejuvenated East Bengal FC in their opening clash
Sports News
ISL Football match
KKNB: As Bengaluru FC prepares to take on East Bengal FC in their opening clash of the Indian Super League (ISL) season, both teams will be aiming to make a statement at the Sree Kanteerava Stadium in Bengaluru, on Saturday, September 14, at 7:30 PM.
যুবভারতীতে আজ আইএসএল শুরু হচ্ছে মোহনবাগান ও মুম্বইয়ের দ্বৈরথ দিয়েই
খেলা
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খবর কলকাতা: কলকাতার বিবেকানন্দ যুবভারতীতে ক্রীড়াঙ্গনে আজ আইএসএল শুরু হচ্ছে মোহনবাগান ও মুম্বইয়ের দ্বৈরথ দিয়েই।গত মরসুমে ঘরের মাঠে মুম্বই সিটি এফসি-কে হারিয়েই আইএসএলের লিগ-শিল্ড জিতেছিল মোহনবাগান। আবার মুম্বই প্রতিশোধ নেয় মোহনবাগানকে হারিয়ে আইএসএলের কাপ জিতে।
তবে এই মরসুমে গত মরসুমের থেকে দুই দলেই অনেক পরিবর্তন হয়েছে। হর্হে পেরেরা দিয়াস-সহ একাধিক ফুটবলার দল বদল করে যোগ দিয়েছে বেঙ্গালুরুতে। অন্য দিকে, মুম্বই থেকে মোহনবাগানে এসেছেন আপুইয়া। মোহনবাগানও নতুন ভাবে শুরু করছে কোচ হোসে মোলিনার অধীনে। আনোয়ার আলিকে হারানো ছাড়া তাদের দলে অবশ্য খুব বেশি বদল হয়নি। বৃহস্পতিবার এক সাংবাদিক সম্মেলনে মোলিনা অবশ্য সাফ জানালেন, "গত মরসুমে কী হয়েছিল তা তাঁর মাথায় নেই।"বৃহস্পতিবার মোহনবাগান তাঁবুতে সাংবাদিক বৈঠকে তিনি বলেন, “গত বারের বেশ কিছু ম্যাচ দেখেছি ঠিকই। কিন্তু এটা নতুন মরসুম। নতুন অধ্যায় শুরু হতে চলেছে। নতুন ফুটবলারেরাও এসেছে। আমি নিজেও ছিলাম না গতবার। তাই পরিস্থিতি সম্পূর্ণ আলাদা। গত বার কী হয়েছে তা মাথাতেই রাখছি না।”
তবে মোহনবাগান-মুম্বই ম্যাচ গত কয়েক বছর ধরেই অন্য মাত্রা পেয়েছে। দু’দলেই তারকা ফুটবলার ভর্তি।ডুরান্ড কাপের ফাইনালে উঠলেও ট্রফি জিততে পারেনি মোহনবাগান। তবে ৬’টি ম্যাচ খেলতে পেরেছে। যদিও তাতে সঠিক প্রস্তুতি হয়েছে এমনটা মানতে রাজি নন মোলিনা। প্রস্তুতির খামতির কথা স্পেনীয় কোচ মেনে নিয়েছেন।মোলিনার কথায়, “দলের ফুটবলারেরা যে ভাবে পরিশ্রম করেছে তাতে আমি খুশি। ওরা প্রত্যেকে নিজেদের দায়িত্ব পালন করেছে। তবে এখনও অনেক উন্নতি করতে হবে। ডুরান্ড কাপ প্রস্তুতির সঠিক মঞ্চ নয়। মাত্র ৬’সপ্তাহ কোনও দলকে ফিটনেস বা বোঝাপড়ার দিক থেকে সেরা পর্যায়ে তুলে আনা যায় না। আরও সময় দরকার।এখন যাবতীয় নজর আইএসএলে।”
মোলিনার সঙ্গে এদিন সাংবাদিক বৈঠকে উপস্থিত ছিলেন আপুইয়া, যিনি এবারই মুম্বই থেকে মোহনবাগানে এসেছেন। আপুইয়া বললেন, “এত দিন মুম্বইয়ের হয়ে খেলেছি। এবার ওদের বিরুদ্ধে খেলব ভেবে উত্তেজনা হচ্ছে। মোহনবাগানের হয়ে খেলা আমার স্বপ্ন ছিল। মুম্বই ছেড়ে আসলেও ওদের প্রতি কোনও রাগ নেই।”
ছবি:সঞ্জয় হাজরা।
क्या बदल जाएगा बांग्लादेश का राष्ट्रगान? कट्टरपंथियों ने उठाई मांग, जानें भारत से क्या है कनेक्शन
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बांग्लादेश में अब राष्ट्रगीत 'आमार सोनार बांग्ला' को लेकर विवाद शुरू हो गया है। शेख हसीना के शासन के पतन के बाद कट्टरपंथी राष्ट्रगीत बदलने की मांग कर रहे हैं।बांग्लादेश की कट्टरपंथी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने ये मांग उठाई है। जमात-ए-इस्लामी पार्टी के पूर्व प्रमुख के बेटे अब्दुल्लाह अमान आजमी ने देश के राष्ट्रगीत को बदलने की मांग की है। आजमी ने रवींद्रनाथ टैगोर रचित 'आमार सोनार बांग्ला' को बदलने की मांग करते हुए कहा कि भारत ने इसे 1971 में हम पर थोपा था।
अब्दुल्लाह अमान आजमी ने देश के राष्ट्रगान और संविधान में बदलाव की मांग की थी। उन्होंने कहा, मैं राष्ट्रगान का मामला इस सरकार पर छोड़ता हूं। हमारा वर्तमान राष्ट्रगान हमारे स्वतंत्र बांग्लादेश के अस्तित्व के विपरीत है।यह बंगाल विभाजन और दो बंगालों के विलय के समय को दर्शाता है। दो बंगालों को एकजुट करने के लिए बनाया गया एक राष्ट्रगान एक स्वतंत्र बांग्लादेश का राष्ट्रगान कैसे बन सकता है?
आजमी ने आगे कहा कि 'यह राष्ट्रगान 1971 में भारत ने हम पर थोपा था। कई गीत राष्ट्रगान के रूप में काम कर सकते हैं। सरकार को एक नया राष्ट्रगान चुनने के लिए एक नया आयोग बनाना चाहिए।
*क्या बोली सरकार?*
हालांकि, बांग्लादेश में मोहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में धार्मिक मामलों के सलाहकार अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन ने कहा है कि देश के राष्ट्रगान को बदलने की कोई योजना नहीं है। अंतरिम सरकार विवाद पैदा करने के लिए कुछ नहीं करेगी, हम सभी के सहयोग से एक सुंदर बांग्लादेश का निर्माण करना चाहते हैं।
*पहले भी उठ चुकी है राष्ट्रगान बदले की मांग*
बांग्लादेश के मौजूदा राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ को बदलने की मांग और कोशिश यह कोई पहली बार नहीं है। बांग्लादेश बनने के बाद साल 1975 में पहले तख्तापलट के बाद भी इसे बदने प्रक्रिया शुरू हुई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति मुश्ताक अहमद ने एक समिति गठित की थी, जिसने काजी नजरूल इस्लाम के “नोतुनेर गान” या फारुख अहमद के “पंजेरी” को राष्ट्रगान बनाने का प्रस्ताव दिया था। साल 2002 में बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के अमीर मोतीउर रहमान निज़ामी ने ‘आमार सोनार बांग्ला’ को इस्लामी मूल्यों और भावना के खिलाफ बताया था। उन्होंने इसे बदलने के लिए प्रस्ताव भी रखा था। लेकिन कैबिनेट डिवीजन ने इस मांग को खारिज कर दिया था।
*किसने लिखा ‘आमार सोनार बांग्ला’ ?*
बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने इसी नाम से लिखे गए गीत से लिया गया है। उन्होंने इसे साल 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ लिखा था। 19 जुलाई 1905 को वायसरॉय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को धर्म के आधार पर बांटने का ऐलान किया था। उसी साल 16 अक्टूबर को लागू हुआ। जिसके बाद गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने बंगाल की एकता के लिए इस गीत की पंक्तियां लिखी। जो उसी साल सितंबर में ‘बंगदर्शन’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुईं। साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्र बांग्लादेश बनने के बाद इस गीत की 10 पंक्तियों को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया।
जमात-ए-इस्लामी का उदय और बांग्लादेश की राजनीतिक पहेली, भारत पर क्या होगा इनका असर ?
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Nobel laureate Muhammad Yunus salutes to the attendees upon arrival at the Bangabhaban,Bangladesh (REUTERS)
शेख हसीना को सत्ता से हटाए जाने के एक महीने बाद, पश्चिम समर्थक मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकर-उस-ज़मान की अगुआई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में कानून और व्यवस्था बहाल करने में विफल रही है, जबकि खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कीमत पर भी इस्लामी जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) का तेजी से उदय हो रहा है।
जेईआई का उदय, जिसका मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ गहरा वैचारिक संबंध है, और कट्टरपंथी हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामी राज्य समर्थक अंसार-उल-बांग्ला टीम के साथ रणनीतिक रूप से हाथ मिलाना बांग्लादेश की लोकतांत्रिक साख के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि खुफिया जानकारी से संकेत मिलता है कि छात्र नेता भी इस्लामवादियों द्वारा नियंत्रित या शायद प्रभावित हैं।
रिपोर्ट्स से पता चलता है कि न तो बांग्लादेश की सेना और न ही यूनुस देश में अवामी लीग के कार्यकर्ता विरोधी और हिंदू विरोधी हिंसा को नियंत्रित करने में सक्षम रहे हैं, क्योंकि सेना अपराधियों से निपटने के लिए तैयार नहीं है और केवल मूकदर्शक बनकर रह गई है।
जम्मू-कश्मीर और भारत के अंदरूनी इलाकों में जमात का प्रभाव होने के कारण, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने जेईआई के उदय को देखा है, क्योंकि इसका भारत के भीतर सुरक्षा पर असर पड़ता है। 1990 के दशक में, जमात पूरे भारत में विशेष रूप से यूपी, महाराष्ट्र, अविभाजित आंध्र प्रदेश में सिमी के उदय के पीछे थी और बाद में पाकिस्तान ने इस समूह को इंडियन मुजाहिदीन के रूप में हथियारबंद कर दिया। जमात ने घाटी में युवाओं को हथियार उठाने के लिए कट्टरपंथी बनाकर पाकिस्तान समर्थक भावना को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जबकि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार चुनावों की घोषणा करने की जल्दी में नहीं है, एक कमजोर सरकार, बढ़ती इस्लामी कट्टरता और अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति ढाका के लिए आपदा का कारण बन रही है। दूसरी ओर, वर्तमान में आवामी लीग के भयभीत कार्यकर्ता आने वाले महीनों में फिर से संगठित होकर हाथ मिला सकते हैं और बीएनपी तथा इसके अधिक मजबूत सहयोगी जेईआई को चुनौती दे सकते हैं। इनपुट संकेत देते हैं कि वास्तव में 5 अगस्त के बाद बांग्लादेश में जेईआई ने बीएनपी की कीमत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।
जबकि भारत हिंसा तथा हिंदुओं और आवामी लीग कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से निशाना बनाए जाने के बारे में चिंतित है, वह स्थिति पर नजर रख रहा है, क्योंकि एक अनिर्णायक अंतरिम सरकार उन युवाओं में असंतोष को जन्म देगी, जिन्होंने शेख हसीना को बाहर किया था। इसके साथ ही आर्थिक संकट, कपड़ा मिलों तथा परिधान विनिर्माण इकाइयों के बंद होने से बेरोजगारी तथा राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ेगी। पहले ही, बांग्लादेश का बाह्य तथा आंतरिक ऋण 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है। बांग्लादेश राजनीतिक रूप से बारूद के ढेर पर बैठा है और एक वर्ष के भीतर एक बार फिर विस्फोट हो सकता है।
बांग्लादेश स्तिथि का आंकलन करना भारत के लिए भी ज़रूरी है क्योकि इसका असर भारत को भी झेलना पड़ सकता है। बॉर्डर पर माइग्रेशन जैसी गतिविधियों में बढ़ोतरी हो सकती है।
7 hours ago