दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और भी ऊंची होती जा रही है, जानें क्यों


माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलाव होता है, तिब्बती में ‘चोमोलुंगमा’ और नेपाली में ‘सागरमाथा’ के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट करीब 5 करोड़ साल पहले तब बनना शुरू हुआ था, जब भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट से टकराया था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस चोटी की ऊंचाई और बढ़ती जा रही है.

कितनी बढ़ गई एवरेस्ट की ऊंचाई

माउंट एवरेस्ट 8,849 मीटर (29,032 फीट) ऊंचा है. 30 सितंबर को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक पिछले 89,000 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 15 से 50 मीटर तक बढ़ी है. 

स्टडी में कहा गया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. हर साल एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग 2 मिलीमीटर बढ़ रही है. इस स्टडी को को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में अर्थ साइंसेज के पीएचडी छात्र एडम स्मिथ कहते हैं, “माउंट एवरेस्ट एक किंवदंती है, जो हर साल और ऊंचा होता जा रहा है..’

बीजिंग में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज (China University of Geosciences) के भू-वैज्ञानिक और स्टडी के लेखक जिन-जेन दाई कहते हैं कि माउंट एवरेस्ट, हिमालय की अन्य सबसे ऊंची चोटियों के मुकाबले लगभग 250 मीटर ऊपर फैला हुआ है. हमें लगता है कि पहाड़ जस के तस हैं, लेकिन वास्तव में उनकी ऊंचाई बढ़ती रहती है. माउंट एवरेस्ट इसका उदाहरण है.

क्यों बढ़ रही एवरेस्ट की ऊंचाई?

नेपाल और चीन के बॉर्डर पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह नदियों के प्रवाह में बदलाव (River Capture) है. लगभग 89,000 साल पहले, हिमालय में कोसी नदी ने अपनी सहायक नदी अरुण नदी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज एवरेस्ट के उत्तर में स्थित है. स्टडी के मुताबिक रिवर कैप्चर एक दुर्लभ घटना है. ऐसा तब होता है जब एक नदी अपना मार्ग बदलती है और दूसरी नदी से जा मिलती है या उसके रास्ते में आ जाती है.

कैसे नदी इसके लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों नदियां आपस में मिल गईं, तो एवरेस्ट के पास नदी का कटाव बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में चट्टानें और मिट्टी बह गई. इससे अरुण नदी घाटी का निर्माण हुआ. अध्ययन के लेखकों में से एक दाई कहते हैं, “एवरेस्ट क्षेत्र में नदियों की एक दिलचस्प प्रणाली है. ऊपर की ओर बहने वाली अरुण नदी समतल घाटी के साथ पूर्व की ओर बहती है. फिर यह अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर कोसी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. नदियों की प्रणाली में यह बदलाव एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है.

आसान उदाहरण से समझिये

जैसे ही अरुण नदी, कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा बनी, दोनों और अधिक कटाव होने लगा. पिछली कई सदी में अरुण नदी ने अपने किनारों से अरबों टन मिट्टी को बहा दिया, जिससे एक बड़ी घाटी बन गई. मिट्टी के कटाव से आसपास की जमीन ऊपर उठ गई, जिसे आइसोस्टेटिक रिबाउंड कहते हैं. भू-वैज्ञानिक दाई कहते हैं कि “जब कोई भारी चीज जैसे कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा या घिसी हुई चट्टान, पृथ्वी की पपड़ी से हटाई जाती है, तो उसके नीचे की जमीन धीरे-धीरे प्रतिक्रिया में ऊपर उठती है, ठीक वैसे ही जैसे माल उतारने पर नाव पानी में ऊपर उठती है. एवरेस्ट के साथ ही यही हुआ.

पर्वतारोहियों को क्या नुकसान

माउंट एवरेस्ट के आपसापस हो रहे ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ ने हिमालयी की दूसरी चोटियों को भी प्रभावित किया है. जैसे लोत्से और मकालू, जो क्रमशः दुनिया की चौथी और पांचवीं सबसे ऊंची चोटियां हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि माउंट मकालू, जो अरुण नदी के सबसे करीब है, उसके चलते यह चोटी और ऊंची हो सकती है. द गार्जियन के अनुसार, दाई ने कहा, “चोटियों की ऊंचाई अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ती रहेगी. जब नदी प्रणाली एक संतुलित स्थिति में पहुंच जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी.

शोधकर्ता कहते हैं कि सबसे बड़ा प्रभाव उन पर्वतारोहियों पर पड़ेगा जिन्हें एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 20 मीटर या उससे अधिक की चढ़ाई करनी होगी. यह खर्चीला, थकाऊ और पहले के मुकाबले ज्यादा जानलेवा होगा।

भारत के खिलाफ नई-नई चालें चल रहा चीन, अब तिब्बत में ऊंचाई वाले हेलीपोर्ट का निर्माण

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वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन के साथ पिछले करीब साढ़े 4 साल से जारी तनाव अभी कम नहीं हुआ है। हालांकि, चीन लगातार भारत के खिलाफ नई-नई चालें चलता रहा है। चीन पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों पर सैकड़ों मॉडर्न गांव बसा चुका है, जिसे जियाओकांग कहा जाता है। इन गांवों को उसने ऐसे बसाया है ताकि उनका सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सके। अब एक बार फिर चीन ने कुछ ऐसा किया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है।

चीन, तिब्बत में हेलिकॉप्टर बेस का जाल बिछा रहा है। तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तिब्बत में चीन के लगभग 90% हेलीपैड समुद्र तल से 3,300 से 5,300 मीटर (10,000 से 17,400 फीट) की ऊंचाई पर हैं। इनमें से 80% हेलीपैड 3,600 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर हैं। यह खुलासा भारत के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों को तेजी से सीमा पर पहुंचाने के लिए कर सकता है।

रिसर्च में यह भी बताया गया है कि चीन इन हेलीपैड का निर्माण भारत और भूटान के साथ लगती सीमा के पास कर रहा है। ये हेलीपैड चीन की सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा हैं और इनसे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है। रिसर्च में 109 हेलीपैड का अध्ययन किया गया है। इनमें से केवल दो हेलीपैड 780 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर हैं। 32 हेलीपैड 2700 से 3600 मीटर, 44 हेलीपैड 3700 से 4300 मीटर और 25 हेलीपैड 4400 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। छह हेलीपैड 4800 से 5400 मीटर की ऊंचाई पर हैं।

बेंगलुरु स्थित तक्षशिला इंस्टिट्यूशन में भूस्थानिक अनुसंधान कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर वाई नित्यानंदम ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस पर लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा कि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैन्य अभियानों के लिए कर सकता है। नया हेलीपोर्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी और टोही गतिविधियों को तेज करने की अनुमति देगा।

यह घने जंगलों वाले क्षेत्र में रसद संबंधी चुनौतियों को कम करता है, जहां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ सैन्य आवाजाही को मुश्किल बनाते हैं। हेलीपोर्ट के निर्माण से 'दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों की तेजी से तैनाती, गश्त को मजबूत करना और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, दूरदराज के स्थानों में चीन की समग्र सैन्य उपस्थिति को बढ़ाना' संभव हो गया है।

चीन ने लद्दाख में दिल्ली जितनी जमीन पर कब्जा किया, यूएस में राहुल गांधी का दावा

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कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर है। पिछले तीन दिनों से राहुल गांधी अमेरिका में अलग-अलग जगहों पर लोगों को संबोधित कर रहे हैं। इस दौरान उनके बयानों ने भारत में सियासी पारा हाई कर रखा है। यहां देश में उनके बयानों पर बहस छिड़ी हुई है। मंगलवार को आरक्षण खत्म करने को लेकर दिए गे बयान के बाद राहुल गांधी ने चीन को लेकर ऐसा दावा किया है, जिससे एक बार फिर सियासी भूचाल आना तय है। राहुल गांधा का दावा है कि चीनी सैनिकों ने लद्दाख में दिल्ली के आकार की जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है।

4,000 वर्ग किलोमीटर में चीनी सैनिकों कब्जा-राहुल गांधी

अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब में बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा, अगर आप कहते हैं कि हमारे क्षेत्र के 4,000 वर्ग किलोमीटर में चीनी सैनिकों का होना किसी चीज़ से ठीक से निपटना है, तो शायद हमने लद्दाख में दिल्ली के आकार की ज़मीन पर चीनी सैनिकों का कब्ज़ा कर रखा है। मुझे लगता है कि यह एक आपदा है।

पीएम मोदी ने चीन से ठीक से नहीं निपटा-राहुल गांधी

राहुल गांधी ने इसके साथ ही कहा, अगर कोई पड़ोसी देश आपकी 4000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्ज़ा करले तो अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या कोई राष्ट्रपति यह कहकर बच निकल पाएगा कि उसने इसे ठीक से संभाला है? इसलिए मुझे नहीं लगता कि पीएम मोदी ने चीन से ठीक से निपटा है। मुझे लगता है कि कोई कारण नहीं है कि चीनी सैनिक हमारे क्षेत्र में बैठे रहें।

ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस नेता ने चीन को लेकर ऐसा दावा किया हो। पिछले साल भी राहुल गांधी ने इसी तरह का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर लद्दाख में भारत-चीन सीमा की स्थिति पर विपक्ष से झूठ बोलने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि चीन ने भारतीय जमीन छीन ली है। हालांकि, केन्द्र की बीजेपी सरकार कांग्रेस के इस दावे को बार-बार खारिज करती आ रही है।

समुद्र में बढ़ी हलचलः श्रीलंका में भारत ने एक तो चीन ने तीन युद्धपोत किए तैनात

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हिंद महासागर एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जहां चीन और भारत अपना-अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। इस बीच एक हैरान कर देने वाली घटना घटी है। भारतीय नौसेना का पोत आईएनएस मुंबई श्रीलंका की तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार को कोलंबो बंदरगाह पहुंचा। संयोग से चीनी नौसेना के तीन युद्धपोत भी आज कोलंबो बंदरगाह पहुंचे।यानी श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक ही दिन भारत और चीन के 4 वॉरशिप पहुंचे। जिसने हलचल पैदा कर दी है।

श्रीलंका नौसेना ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि भारतीय नौसेना का जहाज 'मुंबई' श्रीलंका की तीन दिवसीय यात्रा पर है। इस बीच, श्रीलंका नौसेना ने कहा कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना के तीन युद्धपोत हे फेई, वुझिशान और किलियानशान भी सोमवार सुबह औपचारिक यात्रा पर कोलंबो बंदरगाह पहुंचे।

क्यों दोनों देश के युद्धपोत कोलंबो पहुंचे हैं

बता दें कि कोलंबो में श्रीलंका ने आईएन मुंबई का स्वागत किया, जिसकी कमान कैप्टन संदीप कुमार के हाथों में है और जिसमें 410 नाविकों का दल है। साथ ही कोलंबों ने चीनी युद्धपोतों का भी स्वागत किया। हे फेई 144.50 मीटर लंबा युद्धपोत है, जिस पर चालक दल के 267 सदस्य सवार हैं, जबकि वुझिशान 210 मीटर लंबा युद्धपोत है, जिस पर चालक दल के 872 सदस्य हैं वहीं किलियानशान 210 मीटर लंबा युद्धपोत है, जिसमें चालक दल के 334 सदस्य सवार हैं। आईएनएस मुंबई और चीनी युद्धपोतों को श्रीलंकाई युद्धपोतों के साथ अलग-अलग “पैसेज अभ्यास” करने का कार्यक्रम है, जो 29 अगस्त को ही होगा।

विज्ञप्ति के अनुसार आईएनएस मुंबई श्रीलंकाई नौसेना के साथ संयुक्त गतिविधियों जैसे खेल, योग और तटीय क्षेत्र की सफाई आदि में भी शामिल होगा। आईएनएस मुंबई 29 अगस्त को कोलंबो तट पर श्रीलंका नौसेना के एक जहाज के साथ 'पैसेज एक्सरसाइज' में भी भाग लेगा।

श्रीलंकाई द्वीप पर चीनी जहाज के रुकने को लेकर चिंतित भारत

द हिन्दू बिजनेसलाइन के मुताबिक दोनों देशों के वॉरशिप का एक ही दिन कोलंबो पोर्ट पर आना काफी अनोखा है। दरअसल भारत लंबे समय से श्रीलंकाई द्वीप पर चीनी जहाज के रुकने को लेकर चिंता जताता रहा है। पिछले साल भारत ने कहा था कि चीन अपने रिसर्च वैसल्स के जरिए भारत की जासूसी करने की कोशिश कर रहा है। इसके बाद श्रीलंका ने सितंबर 2023 में चीन के जहाजों को अपने देश में रुकने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि कुछ महीने पहले श्रीलंका ने ये रोक हटा दी थी।

रिसर्च शिप के नाम पर चीन करता है जासूसी!

चीन के पास कई जासूसी जहाज हैं। वो भले ही कहता हो कि वो इन शिप का इस्तेमाल रिसर्च के लिए करता है, लेकिन इनमें पावरफुल मिलिट्री सर्विलांस सिस्टम होते हैं। जासूसी जहाजों को चीन की सेना ऑपरेट करती हैचीनी जासूसी जहाज पूरे प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में काम करने में सक्षम हैं। मालदीव और श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने वाले चीनी जहाजों की जद में आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु के कई समुद्री तट आ जाते हैं।

अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस शिप को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स यानी एसएसएफ ऑपरेट करती है। एसएसएफ थिएटर कमांड लेवल का ऑर्गेनाइजेशन है। यह पीएलए को स्पेस, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, इन्फॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और साइकोलॉजिकल वारफेयर मिशन में मदद करती है।

चीन के जासूसी जहाज पावरफुल ट्रैकिंग शिप हैं। शिप में हाईटेक ईव्सड्रॉपिंग इक्विपमेंट (छिपकर सुनने वाले उपकरण) लगे हैं। इससे यह 1,000 किमी दूर हो रही बातचीत को सुन सकता है। मिसाइल ट्रैकिंग शिप में रडार और एंटीना से बना इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लगा होता है। ये सिस्टम अपनी रेंज में आने वाली मिसाइल को ट्रैक कर लेता है और उसकी जानकारी एयर डिफेंस सिस्टम को भेज देता है। यानी, एयर डिफेंस सिस्टम की रेंज में आने से पहले ही मिसाइल की जानकारी मिल जाती है और हमले को नाकाम किया जा सकता है।

क्या युद्ध की तैयारी कर रहा है चीन? जरूरत से कई गुना ज्यादा तेल जमा करना दे रहे इसके संकेत

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क्या चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है? चीन जिस तरह से युद्ध के दौरान जरूरत पड़ने वाली चीजों का स्टॉक करने में जुटा है, उससे इस तरह के सवाल उठ रहे है। यही नहीं चीन के तेवर जिस तरह से दिख रहे हैं, उससे भी ये आशंका जताई जा रही है। नवंबर 2022 में चीन के राष्ट्रपति के तौर पर तीसरी बार चुने जाने के बाद शी जिनपिंग ने सैन्यकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा था कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ती अस्थिरता और अनिश्चितता का सामना कर रही है। ऐसे में हमें युद्ध लड़ने और जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए। पिछले दो दशक में भारत से लेकर दक्षिण चीन सागर तक विभिन्‍न क्षेत्रों में अप्रत्‍याशित तरीके से आक्रामक दावे करने शुरू किए हैं। चीन ने खरबों डॉलर खर्च करके अपनी सेना को हाइपरसोनिक मिसाइलों से लेकर पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट से लैस किया है। सबसे बड़ी आशंका ड्रैगन के कच्चे तेल के भंडारण को लेकर है

पूर्वी चीन के डोंगयिंग बंदरगाह पर, 2024 की शुरुआत में कई टैंकर एक साथ रूसी कच्चे तेल को उतारते हुए देखे गए हैं। जिसके बाद चीन ने पिछले साल के अंत तक 31.5 मिलियन बैरल का भंडारण कर लिया है। चीन शांति काल में प्रतिदिन लगभग 14 मिलियन बैरल तेल की खपत करता है। हालाँकि, जिस तरह के हालात है स्पष्ट प्रतीत होता है कि चीन जानबूझकर तेजी से भंडारण कर रहा है। जो आवश्यक कच्चे माल और संसाधन को इकट्ठा करने के एक बहुत व्यापक राष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है। 

यह एक ऐसा कदम है जिसके बारे में कुछ लोगों को संदेह है कि इसका उद्देश्य बीजिंग को भविष्य के किसी भी युद्ध या अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचाना है, जैसे कि ताइवान पर संभावित चीनी आक्रमण से उत्पन्न होने वाले प्रतिबंध। युद्ध के दौरान उसे कच्चे तेल की सप्लाई में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है या फिर उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लग सकते हैं, जिससे उसकी फैक्ट्रियों की कमर टूट जाएगी। इसीलिए वह अपनी जरूरत से कई गुना ज्यादा तेल स्टोर करने में लगा है, जिससे हालात विपरीत भी हों तो भी देश के उद्योग धंधे काम करते रहें।

जिनपिंग अपने देश को टकराव के लिए तैयार कर रहे!

17 अप्रैल को प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय मामलों और संघर्ष ब्लॉगिंग साइट "वॉर ऑन द रॉक्स" के लिए एक लेख में, अमेरिकी नौसेना खुफिया और खुफिया कार्यालय के पूर्व कमांडर और यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड के निदेशक माइक स्टडमैन ने तर्क दिया कि यह एक बहुत व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा था। उन्होंने लिखा, "शी जिनपिंग अपने देश को टकराव के लिए तैयार कर रहे हैं," उन्होंने चीनी नेता को "चीनी समाज का सैन्यीकरण करने और अपने देश को संभावित उच्च तीव्रता वाले युद्ध के लिए तैयार करने" के रूप में वर्णित किया। उन्होंने सुझाव दिया कि इसका एक हिस्सा आवश्यक वस्तुओं और संसाधनों के रणनीतिक भंडार का निर्माण करना, यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से चीन की रक्षा करना - या, वास्तव में, क्षेत्रीय या वैश्विक युद्ध के हिस्से के रूप में सैन्य रूप से लागू की गई नाकाबंदी शामिल है। उन्होंने कहा कि बढ़ी हुई तैयारियों के अन्य उदाहरणों में ताइवान के आसपास चीनी सैन्य अभियानों की बहुत अधिक गति शामिल है - जिसका उद्देश्य चीन की सेना का अभ्यास करना और ताइपे में सरकार को अपनी कुल सैन्य नाकाबंदी के परिणामों से धमकाना है। 

अन्य प्रमुख संकेतक

केवल कच्चे तेल का भंडारण ही नहीं, अन्य महत्वपूर्ण संकेतक भी हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। पिछले पांच सालों में चीनी सेना का विस्तार और आधुनिकिकरण तेजी से हुआ है और हाइपरसोनिक सिलाइल प्रौद्योगिकी में इसकी प्रगति बीजिंग को लाभ की स्थिति में रखती है, क्योंकि अमेरिका ने अभी तक इसके समकक्ष कोई मिसाइल तैनात नहीं की है।

चीन का इरादा ताइवान का एकीकरण

चीन का इरादा साल 2025 तक ताइवान का मुख्‍य भूमि से एकीकरण करने का है। ताइवान में नए राष्‍ट्रपति के आने के बाद चीनी सेना ने बहुत बड़े पैमाने पर सैन्‍य ड्रिल शुरू की है। विश्‍लेषकों का कहना है कि यह ताइवानी राष्‍ट्रपति को डराने की कोशिश है जो खुलकर चीन का विरोध कर रहे हैं। चीन की पहले कोशिश थी कि शांतिपूर्ण तरीके से एकीकरण हो जाए लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। ताइवान की रणनीति है कि अमेरिका की मदद से यथास्थिति को बहाल रखा जाए। वहीं चीन अमेरिका से लेकर ताइवान तक को आंखें दिखा रहा है और बड़े पैमाने पर हथियार बना रहा है।

अगले 50 साल में कई युद्धों के लिए तैयारी

खुद चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी चाइना न्‍यूज सर्विस ने साल 2013 में अपने एक लेख में खुलासा किया था कि अगले 50 साल में चीन को 6 युद्ध लड़ने होंगे। चाइना न्‍यूज सर्विस का इशारा चीन के उन इलाकों को वापस हासिल करने की ओर था जिसे उसने साल 1840-42 के अफीम युद्ध के दौरान खो दिया था। इससे चीन की काफी बेइज्‍जती हुई थी। अब आर्थिक और सैन्‍य महाशक्ति बन चुका चीन इन इलाकों को वापस लेना चाहता है। इस लेख के मुताबिक चीन का इरादा इन देशों के साथ युद्ध लड़ने का है

चीन को क्यों आई पंचशील समझौते की याद, भारत समेत कई देशों के साथ संघर्ष के बीच जिनपिंग की ये कौन सी चाल?

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अमेरिका और यूरोपीय संघ से बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और अमेरिकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगे चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है। यही नहीं, विस्तारवादी चीन के अपने पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं।भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में लगातार तनाव बढ़ा है। पूर्वी लद्दाख और कई स्थानों पर भारतीय जमीन पर कब्जा किए बैठा चीन अब विश्व से उस समझौते पर चलने की अपेक्षा कर रहा है जिसका पहला बिंदु संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान है। बात हो रही है पंचशील के सिद्धांतों की।

दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्तमान समय के संघर्षों के अंत के लिए पंचशील के सिद्धांतों की वकालत की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को बीजिंग में पंचशील सिद्धांत के जारी होने की 70वीं वर्षगांठ मनाई। इस दौरान उन्होंने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की तारीफ करते हुए इसे दुनिया में जारी संघर्षों को खत्म करने के लिए आज भी अहम बताया। शी ने कहा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था।

निःसंदेश, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पंचशील की तारीफ कर सबको हैरान कर दिया। हैरानी, इसलिए क्यों राष्ट्रपति जिनपिंग ने पंचशील सिद्धांतों की वकालत पश्चिमी देशों और कई क्षेत्रीय देशों के साथ चल रहे चीन के साथ टकराव के बीच की है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी इसमें आश्चर्य जैसा नहीं देखते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शी जिनपिंग ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की प्रशंसा की है। चेलानी ने आगे लिखा, अपने भाषण में जो बात चीन ने नहीं बताई वह यह है कि लगभग (पंचशील समझौते के) आठ साल बाद 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके सभी पंचशील सिद्धांतों का खुलेआम उल्लंघन किया। ये सिद्धांत थे- एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ' तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व'।

ब्रह्म चेलानी ने आगे लिखा, चीन अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों में उन सिद्धांतों का उल्लंघन करना लगातार जारी रखे हुए है। उन्होंने 1954 के पंचशील समझौते को आजादी के बाद भारत की सबसे बड़ी भूलों में से एक बताया। उस समझौते के माध्यम से भारत ने बिना कुछ हासिल किए तिब्बत में अपने ब्रिटिश विरासत वाले क्षेत्रीय अधिकारों को छोड़ दिया और चीन के तिब्बत क्षेत्र को मान्यता दी। समझौते की शर्तों के तहत, भारत ने तिब्बत से अपने मिलिट्री एस्कॉर्ट को वापस बुला लिया और वहां संचालित डाक, टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवाओं को चीन को सौंप दिया।

बता दें कि पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था। अतीत में चीनी नेतृत्व ने पहली बार पांच सिद्धांतों यानी 'एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ', तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' को संपूर्णता के साथ निर्दिष्ट किया था।'

शी ने सम्मेलन में कहा, 'उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यामांर संयुक्त वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था।' शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि पंचशील सिद्धांत आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समान संपत्ति बन चुके हैं।

क्या है पंचशील समझौता या पंचशील सिद्धांत

पंचशील के सिद्धांतो को पहली बार 1954 में तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था। चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था। वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का समुच्चय तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके। पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत निम्नानुसार हैं-

• प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।

• गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।

• समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

• इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।

• सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ (Peaceful Coexistence) का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।

पंचशील समझौता और भारत-चीन युद्ध

1954 में चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि पंचशील सिद्धांत उपनिवेशवाद के अंत और एशिया व अफ्रीका के नए राष्ट्रों के उद्भव में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। इस दौर से ही भारत ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया और चीन पर अत्यधिक भरोसा किया। भारत ने वर्ष 1955 में चीन को इंडोनेशिया में आयोजित होने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में भी आमंत्रित किया था। इसी बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के मध्य विवाद चल रहा था। चीन इन दोनों ही भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता था। इन विवादों के कारण भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे थे। चीन संपूर्ण तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था और इसी बीच भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी, इससे चीन अत्यधिक रुष्ट हो गया था। भारत और चीन के बीच वर्ष 1954 में हस्ताक्षरित हुए इस पंचशील समझौते की समयावधि 8 वर्षों की थी, लेकिन 8 वर्षों के बाद इसे पुनः आगे बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। पंचशील समझौते की समयावधि समाप्त होते ही ऊपर वर्णित मुद्दों को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भारत न सिर्फ पराजित हुआ, बल्कि उसके विभिन्न हिस्सों पर चीन ने कब्ज़ा भी कर लिया। भारत के वे हिस्से आज भी चीन के कब्जे में ही हैं।

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GDP Growth: China Vs India Wish we could have taken our economy more seriously in the 1980s and '90s

GDP Growth: China Vs India
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पटना साहिब एवं पाटलिपुत्र लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के लिए खुशखबरी, मतदान का रिकॉर्ड दिखाने पर ये कंपनी देगी यह छूट

पटना : पटना साहिब एवं पाटलिपुत्र लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान दिनांक 01.06.2024 को निर्धारित है। मतदान करने वाले सभी मतदाताओं द्वारा उंगली पर अमिट स्याही का निशान दिखाने पर फिट गैलेक्सी जिम द्वारा वार्षिक सदस्यता की खरीद पर फ्लैट 45% की छूट दी जाएगी। यह छूट मतदान दिवस अर्थात 01.06.2024 को सभी मतदाता ले सकते हैं।

वीटीआर उन्नयन हेतु फिट नेस्ट जिम, श्रीकृष्णा पुरी ने भी सदस्यता की खरीद पर फ्लैट 20% की छूट देने की घोषणा की है जो कोई भी मतदाता अमिट स्याही का निशान अपनी उंगली पर दिखा कर इस्तेमाल कर सकते हैं।

साथ ही Yo! China Take Away Express तथा 9 to 9 Spa and Saloon ने घोषणा की है कि मतदान करने वालों को उनके द्वारा दिनांक 02 जून,2024 से 06 जून,2024 तक किसी भी खरीद पर 10% की छूट दी जाएगी। 

इसके पूर्व सिनेमाघर के संचालकों द्वारा सिनेमा टिकट में मतदान करने वालों को 50 प्रतिशत की छूट दी जाने की घोषणा की गई। यह छूट दिनांक 01.06.2024 एवं दिनांक 02.06.2024 को प्रत्येक सिनेमा हॉल के हरेक शो में दिया जाएगा। मोंगिनिस द्वारा 01 जून को मतदान करने वाले सभी मतदाताओं को मतदान तिथि को केक एवं बेकरी की खरीद पर 10 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। रैपिडो द्वारा 01 जून को मतदाताओं को घर से बूथ तक ले जाने एवं वापस घर लाने की निःशुल्क व्यवस्था की गई है।

पटना से मनीष प्रसाद

भारत की यात्रा रद्द कर चीन पहुंचे एलन मस्क, आखिर क्या है वजह?

#elonmuskmakessurprisevisittochina

अरबपति कारोबारी एलन मस्क आज बीजिंग के दौरे पर हैं। टेस्ला सीईओ और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के मालिक एलन मस्क रविवार, 28 अप्रैल को चीन के दौरे पर रवाना हुए।हैरानी वाली बात ये है कि एलन मस्क का चीन दौरा ऐसे समय पर हो रहा है, जब कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने भारत दौरे को टाल दिया था। उन्होंने कहा था कि टेस्ला के काम की वजह से वह भारत नहीं आ पाएंगे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा कौन सा काम था कि मस्क ने भारत दौरे को टाल कर चीन की यात्रा की है।

चीन के सरकारी चैनल सीटीजीएन के अनुसार, स्पेसएक्स और टेस्ला के प्रमुख ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चीन परिषद (सीसीपीआईटी) के निमंत्रण पर चीन की यात्रा की है। इस दौरान उन्होंने चीन के साथ आगे के सहयोग पर चर्चा करने के लिए सीसीपीआईटी अध्यक्ष रेन होंगबिन से मुलाकात की है। बीजिंग की अपनी औचक यात्रा के दौरान अरबपति कारोबारी एलन मस्क ने रविवार को चीन में टेस्ला वाहनों को कुछ संवदेनशील स्थानों पर ले जाने पर लगे प्रतिबंधों को हटाने पर चर्चा करने के लिए चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग एवं अन्य अधिकारियों से मुलाकात की। सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी।

हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन में टेस्ला कार चालक सरकार से संबंधित भवनों में प्रवेश पर पाबंदी से जूझ रहे हैं क्योंकि अमेरिका के साथ सुरक्षा चिंताएं बढ़ रही हैं। संवदेनशील एवं रणनीतिक डेटा के सामने आ जाने के डर से इन कारों पर ऐसी जगहों पर प्रतिबंध है। निक्की एशिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में बड़ी संख्या में सभागार एवं प्रदर्शनी केंद्र टेस्ला वाहनों को अपने यहां नहीं आने दे रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले इन वाहनों पर प्रतिबंध आम तौर पर सैन्य अड्डों तक सीमित था लेकिन अब राजमार्ग संचालक, स्थानीय प्राधिकरण एजेंसी, सांस्कृतिक केंद्र भी इन वहानों पर कथित रूप से प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं।

चीनी पीएम ने चीन-अमेरिका संबंध पर कही ये बात

मुलाकात के दौरान चीनी पीएम ली कियांग ने एलन मस्क से कहा कि चीन का विशाल बाजार विदेशी वित्तपोषित उद्यमों के लिए हमेशा खुला रहेगा। उन्होंने कहा कि चीन विदेशी वित्तपोषित उद्यमों को बेहतर कारोबारी माहौल और मजबूत समर्थन प्रदान करने के लिए बाजार पहुंच का विस्तार करने और सेवाओं में सुधार करने पर कड़ी मेहनत करेगा ताकि सभी देशों की कंपनियां शांत मन से चीन में निवेश कर सकें। ली ने कहा कि चीन में टेस्ला के विकास को चीन-अमेरिका आर्थिक सहयोग का एक सफल उदाहरण कहा जा सकता है।

एलन मस्क ने कैंसिल किया था भारत का दौरा

एलन मस्क इसी महीने 21 और 22 तारीख को भारत की यात्रा करने वाले थे और उनकी यात्रा की योजना काफी पहले तैयार की गई थी। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से भी उनकी मुलाकात प्रस्तावित थी, जिसमें वो दक्षिण एशियाई बाजार में प्रवेश करने की योजना की घोषणा करने वाले थे। एलन मस्क ने पिछले साल जून में कहा था, कि वह 2024 में भारत का दौरा करने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा था, कि उन्हें विश्वास है कि इलेक्ट्रिक कार निर्माता भारत में होगा और "जितनी जल्दी संभव हो सके" भारत में फैक्ट्री लगाने की कोशिश करेगा। पीएम मोदी ने भी अरबपति कारोबारी को भारत आने का निमंत्रण भी दिया था। मस्क ने इस दौरान कहा था, कि "मैं पीएम मोदी को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, और उम्मीद है कि हम भविष्य में कुछ घोषणा कर पाएंगे।" लेकिन, भारत का दौरा करने से ठीक एक दिन पहले एलन मस्क ने टेस्ला के लिए जरूरी काम का हवाला देकर भारत का दौरा कैंसिल कर दिया और कहा, कि वो इस साल में आगे भारत यात्रा करने के लिए उत्सुक हैं।

*উত্তরবঙ্গ সফর পথে দমদম বিমানবন্দরে শুভেন্দু অধিকারী জানালেন*
#Shuvendu_ Adhikari _is _the Leader of the Opposition _in the _BJP _Legislative Assembly


*এসবি নিউজ ব্যুরো:*

*চপারে আয়কর হানা প্রসঙ্গে*

যেদিন কমিশনের ফুল বেঞ্চ দিল্লিতে প্রেসমিট করেছিল সেদিনই তারা বলেছিল, রাজনৈতিক নেতারা যে চাটার্ড ফ্লাইট বা চপার ব্যবহার করবেন সেখানে তল্লাশি করা হবে। সেই দায়িত্ব আয়কর বিভাগ কে দেওয়া হয়েছিল। একবার মনে করে দেখুন। স্বাভাবিক ভাবেই দেশের আইন সবার জন্য সমান। আইন আলাদা হতে পারেনা। এখানে পিসি ও ভাইপোর জন্য আলাদা আইন হবে না। আপনারও একটা ভোট। দেশের রাষ্ট্রপতিরও একটা ভোট। তিনি ভিডিওগ্রাফি করেছেন, করতে পারেন।

*জোর করে বয়ান আদায়ের চেষ্টা : শেখ শাহাজাহান*
আমি বলতে পারব না। ওটা ওদের অভ্যন্তরীণ বক্তব্য। তদন্তকারী সংস্থার অভ্যন্তরীণ বিষয়। তবে শেখ শাহাজাহান যে অভিযুক্ত এটা সন্দেশখালির লোকেরাই বলেছে। গতকালও আমার পদযাত্রা ছিল ওখানে। মা বোনেরা বলেছেন তারা নতুন করে পয়লা বৈশাখ পালন করেছেন। স্বাভাবিকভাবেই প্রমাণিত, যা যা অভিযোগ হয়েছে তাতে শেখ শাহাজাহান যুক্ত‌

*উত্তরবঙ্গের ত্রাণ বিতর্ক*
ওরা মিথ্যাবাদী। পিসি মিথ্যাবাদী। ভাইপো মিথ্যাবাদী।৯ তারিখ অনুমতি পেয়ে গেছে। ১২ তারিখ হাওয়া গরম করছে যে অনুমতি দেওয়া হয়নি। পিসি ভাইপো দুজন মিলে বাজার গরম করছে। আমাকে নবান্ন থেকে লোক কাল এটা পাঠিয়ে দিয়েছে। আমি ট্যুইট করে দিয়েছি। সব অফিসাররা এখনও পিসি ভাইপোর পে রোলে যায়নি। এখনও মেরুদন্ড অনেকের সোজা আছে।
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और भी ऊंची होती जा रही है, जानें क्यों


माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलाव होता है, तिब्बती में ‘चोमोलुंगमा’ और नेपाली में ‘सागरमाथा’ के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट करीब 5 करोड़ साल पहले तब बनना शुरू हुआ था, जब भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट से टकराया था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस चोटी की ऊंचाई और बढ़ती जा रही है.

कितनी बढ़ गई एवरेस्ट की ऊंचाई

माउंट एवरेस्ट 8,849 मीटर (29,032 फीट) ऊंचा है. 30 सितंबर को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक पिछले 89,000 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 15 से 50 मीटर तक बढ़ी है. 

स्टडी में कहा गया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. हर साल एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग 2 मिलीमीटर बढ़ रही है. इस स्टडी को को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में अर्थ साइंसेज के पीएचडी छात्र एडम स्मिथ कहते हैं, “माउंट एवरेस्ट एक किंवदंती है, जो हर साल और ऊंचा होता जा रहा है..’

बीजिंग में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज (China University of Geosciences) के भू-वैज्ञानिक और स्टडी के लेखक जिन-जेन दाई कहते हैं कि माउंट एवरेस्ट, हिमालय की अन्य सबसे ऊंची चोटियों के मुकाबले लगभग 250 मीटर ऊपर फैला हुआ है. हमें लगता है कि पहाड़ जस के तस हैं, लेकिन वास्तव में उनकी ऊंचाई बढ़ती रहती है. माउंट एवरेस्ट इसका उदाहरण है.

क्यों बढ़ रही एवरेस्ट की ऊंचाई?

नेपाल और चीन के बॉर्डर पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह नदियों के प्रवाह में बदलाव (River Capture) है. लगभग 89,000 साल पहले, हिमालय में कोसी नदी ने अपनी सहायक नदी अरुण नदी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज एवरेस्ट के उत्तर में स्थित है. स्टडी के मुताबिक रिवर कैप्चर एक दुर्लभ घटना है. ऐसा तब होता है जब एक नदी अपना मार्ग बदलती है और दूसरी नदी से जा मिलती है या उसके रास्ते में आ जाती है.

कैसे नदी इसके लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों नदियां आपस में मिल गईं, तो एवरेस्ट के पास नदी का कटाव बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में चट्टानें और मिट्टी बह गई. इससे अरुण नदी घाटी का निर्माण हुआ. अध्ययन के लेखकों में से एक दाई कहते हैं, “एवरेस्ट क्षेत्र में नदियों की एक दिलचस्प प्रणाली है. ऊपर की ओर बहने वाली अरुण नदी समतल घाटी के साथ पूर्व की ओर बहती है. फिर यह अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर कोसी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. नदियों की प्रणाली में यह बदलाव एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है.

आसान उदाहरण से समझिये

जैसे ही अरुण नदी, कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा बनी, दोनों और अधिक कटाव होने लगा. पिछली कई सदी में अरुण नदी ने अपने किनारों से अरबों टन मिट्टी को बहा दिया, जिससे एक बड़ी घाटी बन गई. मिट्टी के कटाव से आसपास की जमीन ऊपर उठ गई, जिसे आइसोस्टेटिक रिबाउंड कहते हैं. भू-वैज्ञानिक दाई कहते हैं कि “जब कोई भारी चीज जैसे कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा या घिसी हुई चट्टान, पृथ्वी की पपड़ी से हटाई जाती है, तो उसके नीचे की जमीन धीरे-धीरे प्रतिक्रिया में ऊपर उठती है, ठीक वैसे ही जैसे माल उतारने पर नाव पानी में ऊपर उठती है. एवरेस्ट के साथ ही यही हुआ.

पर्वतारोहियों को क्या नुकसान

माउंट एवरेस्ट के आपसापस हो रहे ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ ने हिमालयी की दूसरी चोटियों को भी प्रभावित किया है. जैसे लोत्से और मकालू, जो क्रमशः दुनिया की चौथी और पांचवीं सबसे ऊंची चोटियां हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि माउंट मकालू, जो अरुण नदी के सबसे करीब है, उसके चलते यह चोटी और ऊंची हो सकती है. द गार्जियन के अनुसार, दाई ने कहा, “चोटियों की ऊंचाई अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ती रहेगी. जब नदी प्रणाली एक संतुलित स्थिति में पहुंच जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी.

शोधकर्ता कहते हैं कि सबसे बड़ा प्रभाव उन पर्वतारोहियों पर पड़ेगा जिन्हें एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 20 मीटर या उससे अधिक की चढ़ाई करनी होगी. यह खर्चीला, थकाऊ और पहले के मुकाबले ज्यादा जानलेवा होगा।