मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?
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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।
सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है
19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।
बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'
भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी
दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।
पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है
यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।
बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?
यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"
क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?
हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।
5 hours ago