भारत से टकराव के मूड में है बांग्लादेश? हसीना के तख्तापलट के बाद संबंधों पर पड़ा असर

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भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तल्खियां बढ़ती ही जा रही है। शेख हसीने के बाद बांग्लादेश की सत्ता संभाल रहे मोहम्‍मद यूनुस की कारगुजारियां से और बढ़ा रही हैं। वहां ह‍िन्‍दुओं पर हमले हुए तो बांग्‍लादेश सरकार चुप रही। वहां के नेता भारत के ख‍िलाफ अनर्गल बयानबाजी करते रहे, फ‍िर भी मुहम्‍मद यूनुस कुछ नहीं बोले। उन्‍हीं की सरकार के सलाहकार ने तो भारत के तीन प्रदेशों पर हमले तक की बात कह डाली, लेकिन वहां भी मूनुस की च्पीपी बरकरार रही। अब यूनुस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण की मांग भारत से कर डाली है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख‍िर बांग्‍लादेश भारत के साथ संबंधों को खराब क्यों कर रहा है?

शेख हसीना के सत्‍ता से बाहर होने के बाद बांग्‍लादेश की अंतर‍िम सरकार ने कई ऐसे फैसले ल‍िए, जो भारत विरोधी कहे जा सकते हैं। युनूस जब सरकार के मुख‍िया बने तो पीएम मोदी ने खुद उन्‍हें फोन क‍िया था, लेकिन यूनुस ने न तो प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया है और न ही बातचीत के लिए कोई प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। साफ है क‍ि वे रिश्ते खराब करने में जुटे हुए हैं। वहीं, बांग्लादेश में सबसे बड़ा मुद्दा ह‍िन्‍दुओं पर हमले का है। जिसपर भारत के बार-बार अपील के बाद भी पड़ोसी देश की सरकार ने चुप्पी साध रखी है। दूसरा बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गहरे होते रिश्ते। ज‍िस पाक‍िस्‍तान से बांग्‍लादेश के लोग एक वक्‍त नफरत क‍िया करते थे, अब उसी के साथ बांग्‍लादेश की सरकार गलबह‍ियां कर रही है। उनके नेताओं से रिश्ते बनाए जा रहे हैं। पाकिस्तान से जहाज के कंटेनर लगातार चटगांव बंदरगाह पर आ रहे हैं, जिससे भारत के लिए चिंताएँ बढ़ रही हैं। पाक‍िस्‍तानी आर्मी अब बांग्‍लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग देने वाली है।

अब ताजा मामला शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण का है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है।बांग्लादेश की यह मांग भारत के लिए असहज करने वाली है। शेख हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं और भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, जब वहां राजनीतिक प्रतिशोध का माहौल है।

भारत के पूर्व डिप्लोमैट राजीव डोगरा मानते हैं कि बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं। डोगरा ने सामाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक हैं क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं। अब बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ शेख हसीना प्रतीक बनी हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मकसद यही है कि शेख हसीना उनके क़ब्जे में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें। शेख हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना है।

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर सवाल उठाया है। चेलानी ने एक्स पर लिखा, ''बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है। इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का अधिकार नहीं है।''

यह कोई पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी रही हैं। इससे पहले 1975 में वह भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी चुकी हैं। तब उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या हुई थी। वह दौर भी हसीना के लिए त्रासदियों से भरा था। उस दौरान भी बांग्लादेश की सेना और पाकिस्तान में क़रीबी बढ़ने की बात सामने आई थी। ऐसे में हसीना के लिए वहां की व्यवस्था पर भरोसा करना आसान नहीं था। शेख मुजीब-उर रहमान ने अवामी लीग का गठन किया था और हमेशा से लीग की करीबी भारत से रही।हसीना जब भी सत्ता में रहीं भारत से संबंध स्थिर रहे।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

क्या बांग्लादेश की पहचान मिटाने में लगे मोहम्मद यूनुस? अब 'जॉय बांग्ला' अब नहीं होगा राष्ट्रीय नारा

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शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। शेख हसीना को 5 अगस्त को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जगह मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार 8 अगस्त को अस्तित्व में आई। अंतरिम सरकार हसीना सरकार के दौर में लिए गए कई बड़े फैसलों को पलटने में लगी है। इसी बीच, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने एक हाईकोर्ट के उस फैसले को नकार दिया, जिसमें 'जॉय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था।यह नारा पूर्व पीएम और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया था।

शेख हसीना सरकार के जाने के बाद देश में अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई और हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित करने की मांग की। अंतरिम सरकार ने 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर कर 10 मार्च, 2020 के हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाली अपीलीय खंडपीठ की 4 सदस्यीय बेंच ने मंगलवार को इस आधार पर आदेश पारित किया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मैटर है और न्यायपालिका इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आदेश में कहा गया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत निर्णय का मामला है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुनवाई में सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर हक ने कहा कि इस आदेश के बाद जॉय बांग्ला को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा।

अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” विरोधी!

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था। शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत की सहायता से अपने ही उस मुल्क से आजादी पाई थी, जिस मुल्क के लिए उन्होंने भारत से एक प्रकार से आजादी से पहले जंग लड़ी थी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को क्या माना जाए?

यह था हाईकोर्ट का फैसला

उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2020 को 'जॉय बांग्ला' को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया था। कोर्ट ने सरकार को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था ताकि नारे का इस्तेमाल सभी राज्य समारोहों और शैक्षणिक संस्थानों की सभाओं में किया जा सके। इसके बाद 20 फरवरी 2022 को हसीना के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में मान्यता देते हुए एक नोटिस जारी किया और अवामी लीग सरकार ने 2 मार्च 2022 को एक गजट अधिसूचना जारी की।

तख्तापलट के बाद कई बड़े बदलाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर को 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 13 अगस्त को अंतरिम सरकार की सलाहकार परिषद ने फैसला लिया था कि 15 अगस्त को कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होगा। कुछ दिन पहले बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने करेंसी नोटों से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया था। बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली। इसके बाद बंगबंधु रहमान और शेख हसीना के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

भारत' विरोधी मोहम्मद यूनुस हर बीतते पल के साथ दिखा रहे तेवर, अब बांग्लादेश में शेख हसीना के भाषणों पर प्रतिबंध

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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बुधवार को पहली बार मोर्चा संभालते हुए, देश में अल्पसंख्यकों के कथित उत्पीड़न को लेकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला किया था। शेख हसीना ने कहा था कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों के प्रसारण पर रोक लगा दी है।

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने बृहस्पतिवार को अधिकारियों को मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के सभी ''घृणास्पद भाषणों'' के प्रसार पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। न्यायाधिकरण पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध दर्ज मानवता के खिलाफ अपराध के विभिन्न मामलों की सुनवाई शुरू करेगा।

सोशल मीडिया से भी हसीना के भाषणों को हटाने का आदेश

बांग्लादेश संगबाद संस्था के मुताबिक न्यायाधीश एमडी गोलाम मुर्तजा मौजूमदार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने एक आदेश जारी किया। आदेश में अधिकारियों को हसीना के भड़काऊ भाषण को सोशल मीडिया से हटाने और भविष्य में इसके प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अभियोजक अधिवक्ता अब्दुल्लाह अल नोमान ने कहा कि न्यायाधिकरण ने आईसीटी विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग को आदेश का पालन करने के निर्देश दिए। अभियोजक ने दायर याचिका में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों को हटाया जाए। क्योंकि गवाहों और पीड़ितों को डर लग सकता है या जांच में बाधा आ सकती है।

क्या कहा था हसीना ने?

बांग्लादेश के ट्रिब्यूनल का फैसला न्यूयॉर्क में वीडियो लिंक के जरिये हुए हसीना के संबोधन के बाद आया है। हसीना ने न्यूयॉर्क में मौजूद अपने समर्थकों को भारत ही से वीडियो लिंक के जरिये संबोधित किया था। हसीना ने अपने संबोधन में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर सामूहिक हत्या का आरोप जड़ा था।न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में वर्चुअल संबोधन में उन्होंने मोहम्मद यूनुस पर 'नरसंहार' करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की योजना बनाई गई थी। उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों किया जा रहा है? उन्हें बेरहमी से क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है? लोगों को अब न्याय का अधिकार नहीं है... मुझे कभी इस्तीफा देने का समय भी नहीं मिला। शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा को रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हसीना के खिलाफ कम से कम 60 मुकदमें दायर

हसीना को इस साल जुलाई व अगस्त में विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार व मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में आईसीटी में दायर कम से कम 60 मुकदमों का सामना करना पड़ेगा। अभियोजन पक्ष की टीम ने हाल की परिस्थितियों के मद्देनजर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति मोहम्मद गुलाम मुर्तुजा मजूमदार की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया।

जिसने दिलाई आजादी उसी से दुश्मनी निभा रहा बांग्लादेश, बीएनपी सुलगा रही 'बॉयकॉट इंडिया' की आग

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बांग्लादेश किसकी बोली बोलने लगा है? अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है।बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की फैसला किया है। साथ ही लोगों से भी ऐसा ही करने की अपील कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया।रिजवी ने यह विरोध त्रिपुरा में बांग्लादेश के उच्चायोग में कथित तोड़फोड़ और बांग्लादेशी झंडे के अपमान के खिलाफ किया।

आत्मनिर्भर बनने जा रहा बांग्लादेश!

बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने ढाका में प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए कहा कि भारत के त्रिपुरा में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में तोड़फोड़ कर हमारे झंड़े को जलाया गया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ना हमारा अपमान है। रिजवी ने अपील किया कि कोई भी बांग्लादेशी भारतीय सामानों को न खरीदे। उन्होंने अपनी पत्नी की भारत की साड़ी को सार्वजनिक मंच पर जलाया और लोगों से भारतीय सामनों का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि हमारा देश आत्मनिर्भर है। हम भारत के किसी भी सामान को नहीं खरीदेंगे। एक वक्त का खाना खा लेंगे लेकिन भारतीय सामान नहीं लेंगे। रिजवी ने कहा कि भारतीय साबुन, टूथपेस्ट से लगायत हम भारत से आने वाला मिर्च और पपीता भी इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम मिर्च और पपीता खुद उगा लेंगे।

भारत पर गलत खबरें फैलाने का आरोप

भारत विरोझी प्रदर्शन के दौरान रिजवी ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर भी निशाना साधते हुए गलत खबरें फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता के सम्मान की बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश किसी भी प्रकार के गलत आचरण को सहन नहीं करेगा।

क्या ऐसे बदहाली से उबर पाएगा बांग्लादेश?

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद, उदारवादियों का एक वर्ग था, जिसने इस बात की दुहाई दी थी कि अब मुल्क के हालात बदलेंगे और बदहाली से निकलकर बांग्लादेश विकास के रास्ते पर चलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में मुल्क अशांति की चपेट में है। जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुल्क में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं, अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दुश्मनी निभाई जा रही है।

शांति का नोबेल...फिर अशांत बांग्लादेश को क्यों नहीं संभाल पा रहे मोहम्मद यूनुस?

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बांग्लादेश में अगस्त में तख्तापलट हुआ था। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रदर्शन हो रहे थे। अगस्त में प्रदर्शन इतना भयावह हो गया कि शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश के हालात बेहतर होंगे। अगस्त के बाद यानी शेख हसीना के जाने के बाद चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल बद से बद्दतर होते जा रहे हैं। यूनुस सरकार से बांग्लादेश नहीं संभल रहा। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। न केवल हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा, बल्कि हिंदुओं पर अत्याचार भी हो रहे हैं। इस हालात में मोहम्मदपर ये कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था।”

बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया में सवेल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस सरकार क्या कर रही है? किसके इशारे पर यूनुस हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले करवा रहे हैं? क्यों वह इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है? कुछ तो यूनुस के शांति के नोबेल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।

कट्टरपथियों को बढ़ावा दे रही

बांग्लादेश में 4 अगस्त के बाद से कट्टरपंथियों का राज कायम हो गया है। मोहम्मद यूनुस इन इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। हिंदुओं पर हमले के 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम रही है। कट्टरपथियों को बढ़ावा देने और उनके सामने घुटने टेकने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा सरकार की इस वक्त पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।

हमलों के पीछे किनका हाथ?

अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए। चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है। इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं।

अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे। इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए।

यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से रिश्तों के मायने

एक बड़ी चिंता ये है कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। कम से कम उनके हालिया राजनैतिक फैसलों से यही झलकता है। अंतरिम सरकार के लीडर बतौर उन्होंने इस गुट पर लगी पाबंदियां हटा दीं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी राजनैतिक गुट है, जिसके खिलाफ खुद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उसके चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। पॉलिटिकल गतिविधियों के अलावा वो कोई सभा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन अंतरिम सरकार के आते ही उसपर से सारी रोकटोक खत्म हो गई।

हेफाजत-ए-इस्लाम से भी मेल-मिलाप

हेफाजत-ए-इस्लाम भी एक कट्टरपंथी संगठन है, जिससे यूनुस से रिश्ते सामने आ रहे हैं। इस गुट की विचारधारा महिलाओं के बिल्कुल खिलाफ है, यहां तक कि इसके नेता भी अपनी भारत-विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। यूनुस का हाल में इन नेताओं से संपर्क बढ़ा है। अगस्त 2024 में, उन्होंने इसके नेता ममनुल हक से मुलाकात की थी।

बांग्लादेश में इस्कॉन पर बवाल जारी, अब चिन्मय प्रभु के सचिव लापता, 17 लोगों के बैंक खाते भी फ्रीज

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बांग्लादेश में चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को लेकर शुरू हुआ विवाद नहीं थम रहा। इस्कॉन के चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद से कई हिंदू संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच, चिन्मय प्रभु के सचिव के भी लापता होने खबर आ रही है। वहीं बांग्लादेश सरकार ने कथित तौर पर देश के बैंकों को इस्कॉन से जुड़े 17 लोगों के खातों को फ्रीज करने का आदेश दिया है।

कोलकाता इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने दावा किया है कि चिन्मय प्रभु के सचिव भी शुक्रवार से लापता हैं। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि चिन्मय दास के लिए प्रसाद लेकर गए दो भक्तों को मंदिर से लौटते समय अरेस्ट किया गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा कि एक बुरी खबर आई है। चिन्मय दास के लिए प्रसाद लेकर गए दो भक्तों को मंदिर लौटते समय गिरफ्तार कर लिया गया और चिन्मय दास के सचिव भी लापता हैं।

17 लोगों के बैंक खाते फ्रीज किए गए

इधर, ढाका में स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को बताया कि ‘बांग्लादेश वित्तीय खुफिया इकाई’ (बीएफआईयू) ने इस्कॉन बांग्लादेश से जुड़े 17 व्यक्तियों के बैंक खातों को 30 दिनों के लिए फ्रीज करने का आदेश दिया है। इसमें जेल में बंद इसके नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी भी शामिल हैं। रिपोर्टों से पता चला है, कि देश के कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों को खातों से एक महीने के लिए सभी लेन-देन को निलंबित करने का सरकारी निर्देश भेजा गया है।

चिन्मय दास के अलावा इन लोगों पर आरोप

आपको बता दें कि चिन्मय कृष्ण दास को सोमवार को ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया था। हिरासत के एक दिन बाद जेल भेज दिया गया था। कृष्ण दास के अलावा, बांग्लादेश सरकार द्वारा निशाना बनाए गए अन्य 16 हिंदुओं में कार्तिक चंद्र डे, अनिक पाल, सरोज रॉय, सुशांत दास, विश्व कुमार सिंघा, चंदिदास बाला, जयदेव करमाकर, लिपि रानी करमाकर, सुधामा गौर दास, लक्ष्मण कांति दास, प्रियतोष दास, रूपन दास, रूपन कुमार धर, आशीष पुरोहित, जगदीश चंद्र अधिकारी और साजल दास शामिल हैं।

कैसे शुरू हुआ मामला?

चटगांव में ‘सनातन जागरण जोत’ के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। उन पर आरोप है कि उन्होंने पिछले महीने भगवा झंडा फहराने के लिए बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। इसके बाद हिंदू समुदाय के विरोध प्रदर्शन के बीच दास को मंगलवार को चटगांव की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। अदालत परिसर में दास की पेशी के दौरान हिंसा भड़क गई।

शेख हसीना के जाने के बाद समुद्री रास्ते करीब आ रहे पाकिस्तान-बांग्लादेश, भारत को कैसे हो सकता है ख़तरा?

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हाल में पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची से कंटेनरों से लदे एक जहाज ने करीब 53 साल बाद बांग्लादेश के सबसे बड़े चटगांव बंदरगाह पर लंगर डाला। 53 साल बहुत लंबा समय है, जब दोनों देशों के बीच पहला सीधा समुद्री संपर्क हुआ है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधा समुद्री संपर्क एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद खराब हुए रिश्तों को फिर से बहाल करने की कोशिश है। इसने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की उम्मीदें बढ़ी हैं। हालांकि, इसने भारत की चिंता ज़रूर बढ़ा दी है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। बांग्लादेश की भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से निकटता के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल भी है।

क्या आया जहाज में

एक 182 मीटर (597 फुट) लंबा कंटेनर जहाज युआन जियांग फा झान पाकिस्तान के कराची से बांग्लादेश के चटगांव के लिए रवाना हुआ था। एएफपी ने चटगांव के शीर्ष अधिकारी उमर फारूक के हवाले से बताया कि जहाज ने बंदरगाह छोड़ने से पहले 11 नवंबर को बांग्लादेश में अपना माल उतार दिया था। चटगांव बंदरगाह अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि जहाज पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात से सामान लेकर आया है, जिसमें बांग्लादेश के प्रमुख कपड़ा उद्योग के लिए कच्चा माल और बुनियादी खाद्य पदार्थ शामिल हैं।

पाकिस्तान ने बताया बड़ा कदम

पाकिस्तानी माल को बांग्लादेश ले जाने से पहले आमतौर पर श्रीलंका, मलेशिया या सिंगापुर में फीडर जहाजों पर भेजा जाता था। हालांकि, सितंबर में बांग्लादेश ने मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार के तहत, पाकिस्तानी सामानों पर आयात प्रतिबंधों में ढील दे दी थी। सीधे समुद्री संपर्क को खोलने को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। ढाका में पाकिस्तान के दूत सैयद अहमद मारूफ की एक सोशल मीडिया पोस्ट की बांग्लादेश में सोशल मीडिया की खूब चर्चा हुई है, जिसमें सीधे शिपिंग मार्ग को दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए "एक बड़ा कदम" बताया गया है।

दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम हुआ है।सीधे समुद्री लिंक स्थापित कर यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहती है। सवाल उठता है आखिर क्यों?

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती नज़दीकियों को समझने के लिए हमें अतीत में झांकना होगा।1971 के युद्ध और बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर उभरने के बाद पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में हमेशा खटास रही है। नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान सेना के अत्याचार की यादें बांग्लादेश के लोगों के मन में गहराई तक बसी हैं। पाकिस्तानी सेना के हाथों करीब 30 लाख लोग मारे गए और हज़ारों को अत्याचार और बलात्कार झेलना पड़ा। इससे बचने के लिए लाखों लोग देश छोड़कर पलायन कर गए थे।

बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा

1971 की जंग में भारत ने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी। तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाने वाला बांग्लादेश पश्चिमी पाकिस्तान के साथ नौ महीने के युद्ध के बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। बांग्लादेश का जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेहरू-गांधी परिवार से निजी संबंध थे। युद्ध के बाद बने बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा। रहमान की अवामी लीग का केंद्रीय राजनीतिक एजेंडा ही क्रूर युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए न्याय की मांग करना था। 1996-2001 और फिर 2009-2024 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना, उन्हीं रहमान की बेटी हैं। वह भारत की हिमायती रही हैं और पाकिस्तान को लेकर सतर्क।

हसीना की भारत से नज़दीकियां बहुतों को खली

सत्ता में रहने के दौरान शेख़ हसीना ने 1971 के युद्ध अपराधियों को चुन-चुन कर सज़ा दी। वर्ष 2010 में उन्होंने ऐसे लोगों को सज़ा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगा दी। हसीना के सत्ता में रहते हुए बांग्लादेश और भारत के संबंध काफी मजबूत बने। ये नई दिल्ली से दोस्ताना रिश्‍ते ही थे। लेकिन बांग्लादेश में एक तबका ऐसा भी था जिसे हसीना की भारत से बढ़ती नज़दीकियां पसंद नहीं थीं। यही आगे चलकर वहां भारत-विरोधी अभियान की वजह बनी।

बांग्लादेश में हुए हालिया प्रदर्शनों से भी संकेत मिला कि शायद बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी अवामी लीग के विचारों से सहमत नहीं है। हसीना की भारत से नजदीकियां भी बहुतों को अखर रही थीं। बांग्लादेश में बढ़ती 'भारत विरोधी' भावना तब खुलकर सामने आई जब अगस्त में भीड़ ने ढाका के इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़ की और आग लगा दी।

पाकिस्तान से सहयोग मजबूत करना चाहते हैं यूनुस

हसीना के जाने के बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार गठित की गई। जमात-ए-इस्लामी, जिसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध किया था, की ढाका में हसीना के बाद की सरकार में मजबूत उपस्थिति है। यूनुस सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करने चाहे। इसी साल सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और यूनुस ने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की थी।

भारत को कैसे खतरा?

भारत पहले से ही पाकिस्तान से चलने वाली आतंकी ट्रेनिंग कैंपों और नारकोटिक्स ट्रेड से परेशान है। ऐसे में इस्लामाबाद और ढाका के बीच बढ़ते संबंध भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय बन सकते हैं। भारत की चिंता की वजह यह है कि दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम होने से खासकर पूर्वोत्तर में सुरक्षा और उग्रवाद को नया ईंधन मिलने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी इलाका पूर्वोत्तर से सटा है। नई दिल्ली के लिए एक और सुरक्षा चिंता क्षेत्र को अस्थिर करने वाली गतिविधियों में पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई की भागीदारी है। आईएसआई इन नजदीकियों का फायदा उठाकर क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश कर सकती है। पहले भी बांग्लादेश के जरिए भारत में खलबली मचाने की कोशिश होती रही है। वर्षों से, भारत ने चटगांव बंदरगाह पर गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए शेख हसीना के साथ अपने संबंधों का उपयोग किया है।

भारत से टकराव के मूड में है बांग्लादेश? हसीना के तख्तापलट के बाद संबंधों पर पड़ा असर

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भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तल्खियां बढ़ती ही जा रही है। शेख हसीने के बाद बांग्लादेश की सत्ता संभाल रहे मोहम्‍मद यूनुस की कारगुजारियां से और बढ़ा रही हैं। वहां ह‍िन्‍दुओं पर हमले हुए तो बांग्‍लादेश सरकार चुप रही। वहां के नेता भारत के ख‍िलाफ अनर्गल बयानबाजी करते रहे, फ‍िर भी मुहम्‍मद यूनुस कुछ नहीं बोले। उन्‍हीं की सरकार के सलाहकार ने तो भारत के तीन प्रदेशों पर हमले तक की बात कह डाली, लेकिन वहां भी मूनुस की च्पीपी बरकरार रही। अब यूनुस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण की मांग भारत से कर डाली है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख‍िर बांग्‍लादेश भारत के साथ संबंधों को खराब क्यों कर रहा है?

शेख हसीना के सत्‍ता से बाहर होने के बाद बांग्‍लादेश की अंतर‍िम सरकार ने कई ऐसे फैसले ल‍िए, जो भारत विरोधी कहे जा सकते हैं। युनूस जब सरकार के मुख‍िया बने तो पीएम मोदी ने खुद उन्‍हें फोन क‍िया था, लेकिन यूनुस ने न तो प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया है और न ही बातचीत के लिए कोई प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। साफ है क‍ि वे रिश्ते खराब करने में जुटे हुए हैं। वहीं, बांग्लादेश में सबसे बड़ा मुद्दा ह‍िन्‍दुओं पर हमले का है। जिसपर भारत के बार-बार अपील के बाद भी पड़ोसी देश की सरकार ने चुप्पी साध रखी है। दूसरा बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गहरे होते रिश्ते। ज‍िस पाक‍िस्‍तान से बांग्‍लादेश के लोग एक वक्‍त नफरत क‍िया करते थे, अब उसी के साथ बांग्‍लादेश की सरकार गलबह‍ियां कर रही है। उनके नेताओं से रिश्ते बनाए जा रहे हैं। पाकिस्तान से जहाज के कंटेनर लगातार चटगांव बंदरगाह पर आ रहे हैं, जिससे भारत के लिए चिंताएँ बढ़ रही हैं। पाक‍िस्‍तानी आर्मी अब बांग्‍लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग देने वाली है।

अब ताजा मामला शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण का है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है।बांग्लादेश की यह मांग भारत के लिए असहज करने वाली है। शेख हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं और भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, जब वहां राजनीतिक प्रतिशोध का माहौल है।

भारत के पूर्व डिप्लोमैट राजीव डोगरा मानते हैं कि बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं। डोगरा ने सामाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक हैं क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं। अब बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ शेख हसीना प्रतीक बनी हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मकसद यही है कि शेख हसीना उनके क़ब्जे में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें। शेख हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना है।

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर सवाल उठाया है। चेलानी ने एक्स पर लिखा, ''बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है। इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का अधिकार नहीं है।''

यह कोई पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी रही हैं। इससे पहले 1975 में वह भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी चुकी हैं। तब उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या हुई थी। वह दौर भी हसीना के लिए त्रासदियों से भरा था। उस दौरान भी बांग्लादेश की सेना और पाकिस्तान में क़रीबी बढ़ने की बात सामने आई थी। ऐसे में हसीना के लिए वहां की व्यवस्था पर भरोसा करना आसान नहीं था। शेख मुजीब-उर रहमान ने अवामी लीग का गठन किया था और हमेशा से लीग की करीबी भारत से रही।हसीना जब भी सत्ता में रहीं भारत से संबंध स्थिर रहे।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

क्या बांग्लादेश की पहचान मिटाने में लगे मोहम्मद यूनुस? अब 'जॉय बांग्ला' अब नहीं होगा राष्ट्रीय नारा

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शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। शेख हसीना को 5 अगस्त को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जगह मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार 8 अगस्त को अस्तित्व में आई। अंतरिम सरकार हसीना सरकार के दौर में लिए गए कई बड़े फैसलों को पलटने में लगी है। इसी बीच, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने एक हाईकोर्ट के उस फैसले को नकार दिया, जिसमें 'जॉय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था।यह नारा पूर्व पीएम और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया था।

शेख हसीना सरकार के जाने के बाद देश में अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई और हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित करने की मांग की। अंतरिम सरकार ने 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर कर 10 मार्च, 2020 के हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाली अपीलीय खंडपीठ की 4 सदस्यीय बेंच ने मंगलवार को इस आधार पर आदेश पारित किया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मैटर है और न्यायपालिका इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आदेश में कहा गया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत निर्णय का मामला है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुनवाई में सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर हक ने कहा कि इस आदेश के बाद जॉय बांग्ला को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा।

अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” विरोधी!

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था। शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत की सहायता से अपने ही उस मुल्क से आजादी पाई थी, जिस मुल्क के लिए उन्होंने भारत से एक प्रकार से आजादी से पहले जंग लड़ी थी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को क्या माना जाए?

यह था हाईकोर्ट का फैसला

उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2020 को 'जॉय बांग्ला' को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया था। कोर्ट ने सरकार को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था ताकि नारे का इस्तेमाल सभी राज्य समारोहों और शैक्षणिक संस्थानों की सभाओं में किया जा सके। इसके बाद 20 फरवरी 2022 को हसीना के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में मान्यता देते हुए एक नोटिस जारी किया और अवामी लीग सरकार ने 2 मार्च 2022 को एक गजट अधिसूचना जारी की।

तख्तापलट के बाद कई बड़े बदलाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर को 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 13 अगस्त को अंतरिम सरकार की सलाहकार परिषद ने फैसला लिया था कि 15 अगस्त को कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होगा। कुछ दिन पहले बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने करेंसी नोटों से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया था। बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली। इसके बाद बंगबंधु रहमान और शेख हसीना के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

भारत' विरोधी मोहम्मद यूनुस हर बीतते पल के साथ दिखा रहे तेवर, अब बांग्लादेश में शेख हसीना के भाषणों पर प्रतिबंध

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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बुधवार को पहली बार मोर्चा संभालते हुए, देश में अल्पसंख्यकों के कथित उत्पीड़न को लेकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला किया था। शेख हसीना ने कहा था कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों के प्रसारण पर रोक लगा दी है।

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने बृहस्पतिवार को अधिकारियों को मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के सभी ''घृणास्पद भाषणों'' के प्रसार पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। न्यायाधिकरण पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध दर्ज मानवता के खिलाफ अपराध के विभिन्न मामलों की सुनवाई शुरू करेगा।

सोशल मीडिया से भी हसीना के भाषणों को हटाने का आदेश

बांग्लादेश संगबाद संस्था के मुताबिक न्यायाधीश एमडी गोलाम मुर्तजा मौजूमदार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने एक आदेश जारी किया। आदेश में अधिकारियों को हसीना के भड़काऊ भाषण को सोशल मीडिया से हटाने और भविष्य में इसके प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अभियोजक अधिवक्ता अब्दुल्लाह अल नोमान ने कहा कि न्यायाधिकरण ने आईसीटी विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग को आदेश का पालन करने के निर्देश दिए। अभियोजक ने दायर याचिका में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों को हटाया जाए। क्योंकि गवाहों और पीड़ितों को डर लग सकता है या जांच में बाधा आ सकती है।

क्या कहा था हसीना ने?

बांग्लादेश के ट्रिब्यूनल का फैसला न्यूयॉर्क में वीडियो लिंक के जरिये हुए हसीना के संबोधन के बाद आया है। हसीना ने न्यूयॉर्क में मौजूद अपने समर्थकों को भारत ही से वीडियो लिंक के जरिये संबोधित किया था। हसीना ने अपने संबोधन में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर सामूहिक हत्या का आरोप जड़ा था।न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में वर्चुअल संबोधन में उन्होंने मोहम्मद यूनुस पर 'नरसंहार' करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की योजना बनाई गई थी। उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों किया जा रहा है? उन्हें बेरहमी से क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है? लोगों को अब न्याय का अधिकार नहीं है... मुझे कभी इस्तीफा देने का समय भी नहीं मिला। शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा को रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हसीना के खिलाफ कम से कम 60 मुकदमें दायर

हसीना को इस साल जुलाई व अगस्त में विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार व मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में आईसीटी में दायर कम से कम 60 मुकदमों का सामना करना पड़ेगा। अभियोजन पक्ष की टीम ने हाल की परिस्थितियों के मद्देनजर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति मोहम्मद गुलाम मुर्तुजा मजूमदार की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया।

जिसने दिलाई आजादी उसी से दुश्मनी निभा रहा बांग्लादेश, बीएनपी सुलगा रही 'बॉयकॉट इंडिया' की आग

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बांग्लादेश किसकी बोली बोलने लगा है? अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है।बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की फैसला किया है। साथ ही लोगों से भी ऐसा ही करने की अपील कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया।रिजवी ने यह विरोध त्रिपुरा में बांग्लादेश के उच्चायोग में कथित तोड़फोड़ और बांग्लादेशी झंडे के अपमान के खिलाफ किया।

आत्मनिर्भर बनने जा रहा बांग्लादेश!

बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने ढाका में प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए कहा कि भारत के त्रिपुरा में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में तोड़फोड़ कर हमारे झंड़े को जलाया गया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ना हमारा अपमान है। रिजवी ने अपील किया कि कोई भी बांग्लादेशी भारतीय सामानों को न खरीदे। उन्होंने अपनी पत्नी की भारत की साड़ी को सार्वजनिक मंच पर जलाया और लोगों से भारतीय सामनों का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि हमारा देश आत्मनिर्भर है। हम भारत के किसी भी सामान को नहीं खरीदेंगे। एक वक्त का खाना खा लेंगे लेकिन भारतीय सामान नहीं लेंगे। रिजवी ने कहा कि भारतीय साबुन, टूथपेस्ट से लगायत हम भारत से आने वाला मिर्च और पपीता भी इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम मिर्च और पपीता खुद उगा लेंगे।

भारत पर गलत खबरें फैलाने का आरोप

भारत विरोझी प्रदर्शन के दौरान रिजवी ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर भी निशाना साधते हुए गलत खबरें फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता के सम्मान की बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश किसी भी प्रकार के गलत आचरण को सहन नहीं करेगा।

क्या ऐसे बदहाली से उबर पाएगा बांग्लादेश?

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद, उदारवादियों का एक वर्ग था, जिसने इस बात की दुहाई दी थी कि अब मुल्क के हालात बदलेंगे और बदहाली से निकलकर बांग्लादेश विकास के रास्ते पर चलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में मुल्क अशांति की चपेट में है। जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुल्क में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं, अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दुश्मनी निभाई जा रही है।

शांति का नोबेल...फिर अशांत बांग्लादेश को क्यों नहीं संभाल पा रहे मोहम्मद यूनुस?

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बांग्लादेश में अगस्त में तख्तापलट हुआ था। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रदर्शन हो रहे थे। अगस्त में प्रदर्शन इतना भयावह हो गया कि शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश के हालात बेहतर होंगे। अगस्त के बाद यानी शेख हसीना के जाने के बाद चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल बद से बद्दतर होते जा रहे हैं। यूनुस सरकार से बांग्लादेश नहीं संभल रहा। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। न केवल हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा, बल्कि हिंदुओं पर अत्याचार भी हो रहे हैं। इस हालात में मोहम्मदपर ये कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था।”

बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया में सवेल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस सरकार क्या कर रही है? किसके इशारे पर यूनुस हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले करवा रहे हैं? क्यों वह इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है? कुछ तो यूनुस के शांति के नोबेल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।

कट्टरपथियों को बढ़ावा दे रही

बांग्लादेश में 4 अगस्त के बाद से कट्टरपंथियों का राज कायम हो गया है। मोहम्मद यूनुस इन इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। हिंदुओं पर हमले के 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम रही है। कट्टरपथियों को बढ़ावा देने और उनके सामने घुटने टेकने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा सरकार की इस वक्त पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।

हमलों के पीछे किनका हाथ?

अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए। चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है। इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं।

अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे। इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए।

यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से रिश्तों के मायने

एक बड़ी चिंता ये है कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। कम से कम उनके हालिया राजनैतिक फैसलों से यही झलकता है। अंतरिम सरकार के लीडर बतौर उन्होंने इस गुट पर लगी पाबंदियां हटा दीं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी राजनैतिक गुट है, जिसके खिलाफ खुद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उसके चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। पॉलिटिकल गतिविधियों के अलावा वो कोई सभा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन अंतरिम सरकार के आते ही उसपर से सारी रोकटोक खत्म हो गई।

हेफाजत-ए-इस्लाम से भी मेल-मिलाप

हेफाजत-ए-इस्लाम भी एक कट्टरपंथी संगठन है, जिससे यूनुस से रिश्ते सामने आ रहे हैं। इस गुट की विचारधारा महिलाओं के बिल्कुल खिलाफ है, यहां तक कि इसके नेता भी अपनी भारत-विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। यूनुस का हाल में इन नेताओं से संपर्क बढ़ा है। अगस्त 2024 में, उन्होंने इसके नेता ममनुल हक से मुलाकात की थी।

बांग्लादेश में इस्कॉन पर बवाल जारी, अब चिन्मय प्रभु के सचिव लापता, 17 लोगों के बैंक खाते भी फ्रीज

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बांग्लादेश में चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को लेकर शुरू हुआ विवाद नहीं थम रहा। इस्कॉन के चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद से कई हिंदू संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच, चिन्मय प्रभु के सचिव के भी लापता होने खबर आ रही है। वहीं बांग्लादेश सरकार ने कथित तौर पर देश के बैंकों को इस्कॉन से जुड़े 17 लोगों के खातों को फ्रीज करने का आदेश दिया है।

कोलकाता इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने दावा किया है कि चिन्मय प्रभु के सचिव भी शुक्रवार से लापता हैं। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि चिन्मय दास के लिए प्रसाद लेकर गए दो भक्तों को मंदिर से लौटते समय अरेस्ट किया गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा कि एक बुरी खबर आई है। चिन्मय दास के लिए प्रसाद लेकर गए दो भक्तों को मंदिर लौटते समय गिरफ्तार कर लिया गया और चिन्मय दास के सचिव भी लापता हैं।

17 लोगों के बैंक खाते फ्रीज किए गए

इधर, ढाका में स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को बताया कि ‘बांग्लादेश वित्तीय खुफिया इकाई’ (बीएफआईयू) ने इस्कॉन बांग्लादेश से जुड़े 17 व्यक्तियों के बैंक खातों को 30 दिनों के लिए फ्रीज करने का आदेश दिया है। इसमें जेल में बंद इसके नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी भी शामिल हैं। रिपोर्टों से पता चला है, कि देश के कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों को खातों से एक महीने के लिए सभी लेन-देन को निलंबित करने का सरकारी निर्देश भेजा गया है।

चिन्मय दास के अलावा इन लोगों पर आरोप

आपको बता दें कि चिन्मय कृष्ण दास को सोमवार को ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया था। हिरासत के एक दिन बाद जेल भेज दिया गया था। कृष्ण दास के अलावा, बांग्लादेश सरकार द्वारा निशाना बनाए गए अन्य 16 हिंदुओं में कार्तिक चंद्र डे, अनिक पाल, सरोज रॉय, सुशांत दास, विश्व कुमार सिंघा, चंदिदास बाला, जयदेव करमाकर, लिपि रानी करमाकर, सुधामा गौर दास, लक्ष्मण कांति दास, प्रियतोष दास, रूपन दास, रूपन कुमार धर, आशीष पुरोहित, जगदीश चंद्र अधिकारी और साजल दास शामिल हैं।

कैसे शुरू हुआ मामला?

चटगांव में ‘सनातन जागरण जोत’ के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। उन पर आरोप है कि उन्होंने पिछले महीने भगवा झंडा फहराने के लिए बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। इसके बाद हिंदू समुदाय के विरोध प्रदर्शन के बीच दास को मंगलवार को चटगांव की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। अदालत परिसर में दास की पेशी के दौरान हिंसा भड़क गई।

शेख हसीना के जाने के बाद समुद्री रास्ते करीब आ रहे पाकिस्तान-बांग्लादेश, भारत को कैसे हो सकता है ख़तरा?

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हाल में पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची से कंटेनरों से लदे एक जहाज ने करीब 53 साल बाद बांग्लादेश के सबसे बड़े चटगांव बंदरगाह पर लंगर डाला। 53 साल बहुत लंबा समय है, जब दोनों देशों के बीच पहला सीधा समुद्री संपर्क हुआ है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधा समुद्री संपर्क एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद खराब हुए रिश्तों को फिर से बहाल करने की कोशिश है। इसने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की उम्मीदें बढ़ी हैं। हालांकि, इसने भारत की चिंता ज़रूर बढ़ा दी है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। बांग्लादेश की भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से निकटता के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल भी है।

क्या आया जहाज में

एक 182 मीटर (597 फुट) लंबा कंटेनर जहाज युआन जियांग फा झान पाकिस्तान के कराची से बांग्लादेश के चटगांव के लिए रवाना हुआ था। एएफपी ने चटगांव के शीर्ष अधिकारी उमर फारूक के हवाले से बताया कि जहाज ने बंदरगाह छोड़ने से पहले 11 नवंबर को बांग्लादेश में अपना माल उतार दिया था। चटगांव बंदरगाह अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि जहाज पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात से सामान लेकर आया है, जिसमें बांग्लादेश के प्रमुख कपड़ा उद्योग के लिए कच्चा माल और बुनियादी खाद्य पदार्थ शामिल हैं।

पाकिस्तान ने बताया बड़ा कदम

पाकिस्तानी माल को बांग्लादेश ले जाने से पहले आमतौर पर श्रीलंका, मलेशिया या सिंगापुर में फीडर जहाजों पर भेजा जाता था। हालांकि, सितंबर में बांग्लादेश ने मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार के तहत, पाकिस्तानी सामानों पर आयात प्रतिबंधों में ढील दे दी थी। सीधे समुद्री संपर्क को खोलने को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। ढाका में पाकिस्तान के दूत सैयद अहमद मारूफ की एक सोशल मीडिया पोस्ट की बांग्लादेश में सोशल मीडिया की खूब चर्चा हुई है, जिसमें सीधे शिपिंग मार्ग को दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए "एक बड़ा कदम" बताया गया है।

दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम हुआ है।सीधे समुद्री लिंक स्थापित कर यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहती है। सवाल उठता है आखिर क्यों?

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती नज़दीकियों को समझने के लिए हमें अतीत में झांकना होगा।1971 के युद्ध और बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर उभरने के बाद पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में हमेशा खटास रही है। नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान सेना के अत्याचार की यादें बांग्लादेश के लोगों के मन में गहराई तक बसी हैं। पाकिस्तानी सेना के हाथों करीब 30 लाख लोग मारे गए और हज़ारों को अत्याचार और बलात्कार झेलना पड़ा। इससे बचने के लिए लाखों लोग देश छोड़कर पलायन कर गए थे।

बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा

1971 की जंग में भारत ने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी। तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाने वाला बांग्लादेश पश्चिमी पाकिस्तान के साथ नौ महीने के युद्ध के बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। बांग्लादेश का जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेहरू-गांधी परिवार से निजी संबंध थे। युद्ध के बाद बने बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा। रहमान की अवामी लीग का केंद्रीय राजनीतिक एजेंडा ही क्रूर युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए न्याय की मांग करना था। 1996-2001 और फिर 2009-2024 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना, उन्हीं रहमान की बेटी हैं। वह भारत की हिमायती रही हैं और पाकिस्तान को लेकर सतर्क।

हसीना की भारत से नज़दीकियां बहुतों को खली

सत्ता में रहने के दौरान शेख़ हसीना ने 1971 के युद्ध अपराधियों को चुन-चुन कर सज़ा दी। वर्ष 2010 में उन्होंने ऐसे लोगों को सज़ा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगा दी। हसीना के सत्ता में रहते हुए बांग्लादेश और भारत के संबंध काफी मजबूत बने। ये नई दिल्ली से दोस्ताना रिश्‍ते ही थे। लेकिन बांग्लादेश में एक तबका ऐसा भी था जिसे हसीना की भारत से बढ़ती नज़दीकियां पसंद नहीं थीं। यही आगे चलकर वहां भारत-विरोधी अभियान की वजह बनी।

बांग्लादेश में हुए हालिया प्रदर्शनों से भी संकेत मिला कि शायद बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी अवामी लीग के विचारों से सहमत नहीं है। हसीना की भारत से नजदीकियां भी बहुतों को अखर रही थीं। बांग्लादेश में बढ़ती 'भारत विरोधी' भावना तब खुलकर सामने आई जब अगस्त में भीड़ ने ढाका के इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़ की और आग लगा दी।

पाकिस्तान से सहयोग मजबूत करना चाहते हैं यूनुस

हसीना के जाने के बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार गठित की गई। जमात-ए-इस्लामी, जिसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध किया था, की ढाका में हसीना के बाद की सरकार में मजबूत उपस्थिति है। यूनुस सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करने चाहे। इसी साल सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और यूनुस ने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की थी।

भारत को कैसे खतरा?

भारत पहले से ही पाकिस्तान से चलने वाली आतंकी ट्रेनिंग कैंपों और नारकोटिक्स ट्रेड से परेशान है। ऐसे में इस्लामाबाद और ढाका के बीच बढ़ते संबंध भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय बन सकते हैं। भारत की चिंता की वजह यह है कि दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम होने से खासकर पूर्वोत्तर में सुरक्षा और उग्रवाद को नया ईंधन मिलने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी इलाका पूर्वोत्तर से सटा है। नई दिल्ली के लिए एक और सुरक्षा चिंता क्षेत्र को अस्थिर करने वाली गतिविधियों में पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई की भागीदारी है। आईएसआई इन नजदीकियों का फायदा उठाकर क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश कर सकती है। पहले भी बांग्लादेश के जरिए भारत में खलबली मचाने की कोशिश होती रही है। वर्षों से, भारत ने चटगांव बंदरगाह पर गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए शेख हसीना के साथ अपने संबंधों का उपयोग किया है।