14 दिसंबर 2025 की रात्रि को दिखाई देंगे टूटते हुए तारे / उल्का वृष्टि
अलविदा होते हुए वर्ष 2025 में अंतरिक्ष प्रेमियों को मिलेगा एक और शानदार खगोलीय घटना देखने का मौका
गोरखपुर।खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है और पृथ्वी अपने अक्ष पर सतत घूमते हुए सूर्य का चक्कर भी लगाती है, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण ही हमें दिन और रात का अनुभव होता है, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने को घूर्णन ( रोटेशन) कहा जाता है, और पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने को परिभ्रमण ( रिवोल्यूशन) कहा जाता है, पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय को हम बर्ष कहते हैं, जब पृथ्वी अपने वार्षिक परिभ्रमणीय यात्रा के दौरान सूर्य का चक्कर लगाते हुए किसी धूमकेतु द्वारा जोकि लंबी दीर्घब्रत्ताकर कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं उनसे निकले हुए छोटे एवं बड़े कण उनकी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं उनके द्वारा छोड़े गए मलबे से गुजरती है तो उसी दौरान छोटे, बड़े आकार के ये टुकड़े जो कि कंकड़ पत्थर, जलवाष्प, गैसों ,धूल कणों आदि के बने हुए होते हैं ।
ये अंतरिक्षीय मलबे के टुकड़े जब पृथ्वी के वायुमंडल में अचानक से दाखिल होने पर गुरूत्वाकर्षण बल और वायुमंडलीय घर्षण के कारण क्षण भर के लिए चमक लिए जल उठते हैं और रात्रि के आकाश में चमकते हुए दिखाई देते हैं और फिर कुछ समय में ही गायब हो जाते हैं , उसे ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्का और सामान्य भाषा में टूटता हुआ तारा ( शूटिंग स्टार) कहा जाता है जिनकी गति लगभग 70 किलोमीटर प्रति सेकंड से भी अधिक हो सकती है, इसी वजह से अधिकांश उल्काएं 130 से 180 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही जलकर राख हो जाती हैं।
यही आकाश में टूटते हुए तारों का आभास कराते हैं, जिन्हें ही आम बोलचाल की भाषा में टूटते हुए तारे भी कहा जाता है, जबकि बास्तब में ये टूटते हुए तारे नहीं होते हैं, इन्हें ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्काएं कहा जाता है, जो कि वैसे तो छिटपुट तौर से तो वर्षभर होता रहता है लेकिन ये कुछ ख़ास महीनों में ज्यादा नज़र आती हैं, जैसे दिसम्बर में होने वाली मिथुन (जैमिनिड्स ) उल्का वृष्टि उनमें से एक महत्वपूर्ण उल्का बर्षा होती है।
कब दिखाई देंगी उल्काएं _ खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि वैसे तो लगभग रात्रि आठ बजे के बाद से ही यह नज़ारा दिखना शुरू हो जाएगा लेकिन गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में 14 दिसंबर 2025 की मध्य रात्रि से चार बजे भोर तक यह उल्का ब्रष्टि का नज़ारा बेहद ही शानदार नज़र आएगा, दिसंबर माह में होने बाली उल्का ब्रष्टि को जैमिनिड्स ( मिथुन ) उल्का ब्रष्टि कहा जाता है, क्योंकि यह उल्काएं मिथुन (जेमिनी) तारामंडल से आती हुई दिखाई देती हैं, उल्काएं जिस तारामंडल के बिंदु की तरफ़ से आती हुई दिखाई देती हैं उसे खगोल विज्ञान की भाषा में मीटियर रेडिएंट प्वाइंट ( उल्का बिकीर्णक बिंदु) कहा जाता है ।
मगर यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि किसी तारामंडल के एक बिंदु से उल्काओँ के बिकीर्णन का यह नज़ारा सिर्फ़ एक दृष्टि भ्रम है, वास्तव में तारे हमसे बहुत दूर हैं, लेकिन उल्काएं करीब 100 से 120 किलोमीटर ऊपर ही बायुमंडल में पहुंचने पर उद्दीप्त हो जाती हैं, वैसे तो उल्का ब्रष्टि किसी न किसी धूमकेतु से ही संबन्धित होती हैं, लेकिन दिसंबर माह के मिथुन (जैमिनिड्स) उल्का ब्रष्टि के सम्बंध में सबसे अनोखी बात यह है कि ये किसी धूमकेतु (Comet) से नहीं, बल्कि एक क्षुद्रग्रह 3200 फेथॉन (Asteroid 3200 Phaethon) से आती हैं। इसे दुनिया की उन गिनी-चुनी उल्का वर्षाओं में शामिल करता है, जिनका स्रोत क्षुद्रग्रह (asteroid ) है, न कि धूमकेतु (comet )से। यह इसको और ख़ास बनाती है।
क्या है खासियत और कितनी उल्काएं दिखेंगी इस बार_खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि इस बार दिसंबर 14 की रात्रि में गोरखपुर से एक घण्टे में कम से कम लगभग 40–70 उल्काएँ/घंटा भी दिख सकती हैं जबकि इनका दिखना मौसमी घटनाओं पर भी निर्भर करता है,
कब से कब तक होता है यह अनोखा नज़ारा _ इस बर्ष दिसंबर माह में गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में 14 तारीख की रात्रि के दौरान यह उल्का ब्रष्टि अपने चरम सीमा पर होंगी, जिस से इन उल्काओं की ब्रष्टि को और भी अच्छे से देखा जा सकता है,
आकाश में किस तरफ़ से आती हुई दिखाई देंगी उल्काएं _
खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि वैसे तो आकाश में किसी भी दिशा से आती हुई दिख सकती हैं, लेकिन दिसंबर माह में होने वाली उल्का मिथुन (जैमिनिड्स) उल्का ब्रष्टि को देखने के लिए आपको रात्रि के आकाश में उत्तर-पूर्व (North-East) से शुरुआत कर सकते हैं, फिर पूरा आसमान में देखें लेकिन आकाश में उत्तर-पूर्व दिशा की ओर से आती हुई कुछ ज्यादा दिखाई देंगी , और इनकी दृश्यता भी उच्च कोटि की होगी,
कैसे देखें _
खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि आप रात्रि के आकाश का अनुसरण करें और इन्हें देखने के लिए बिना किसी ख़ास दूरबीन या बायनोक्यूलर्स या अन्य सहायक उपकरणों के भी यह नज़ारा स्पष्ट दिखाई देगा, इसके लिए किसी भी प्रकार के खास उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी,आप सीधे तौर पर अपने घरों से ही किसी भी साफ़ स्वच्छ अंधेरे वाली जगह से सावधानी पूर्वक ही अपनी साधारण आंखों से ही इस नजारे का लुत्फ उठा सकते हैं, शहरी क्षेत्रों में अधिक प्रकाश प्रदूषण होने के कारण कुछ व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में निवास करने वाले लोगों को यह नज़ारा और भी मनोहारी दृश्य जैसा दिखाई देगा,
नोट _ध्यान रखें यदि अचानक से बादल, आंधी, बरसात , तूफ़ान आदि की स्थिति उत्पन्न होती हैं तो यह खूबसूरत नज़ारा दिखाई देना कठिन भी हो सकता है।
2 hours and 15 min ago
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