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*বারাসাত ৪-এর পল্লী সার্বজনীন দুর্গাপুজোর ভার্চুয়াল উদ্ভোধন মুখ্যমন্ত্রীর*

নিজস্ব প্রতিনিধি: উত্তর ২৪ পরগনার বারাসাত ৪-এর পল্লী সার্বজনীন দুর্গাপুজো কমিটির বীরগাঁথার থিমের পুজোমণ্ডপ রবিবার সন্ধ্যায় ভার্চুয়াল উদ্বোধন করেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জি।এই অনুষ্ঠানে উপস্থিত ছিলেন বারাসাতের সাংসদ ডাঃ কাকলি ঘোষ দস্তিদার, রাজ্যের ভারপ্রাপ্ত খাদ্যমন্ত্রী রথীন ঘোষ, উত্তর ২৪ পরগনা জেলা পরিষদের সভাধিপতি নারায়ণ গোস্বামী, উত্তর ২৪ পরগনার জেলাশাসক শরদ কুমার দ্বিবেদি, বারাসাত পুলিশ জেলার পুলিশ সুপার প্রতীক্ষা ঝড়খড়িয়া, বারাসাত পুরসভার পুরপ্রধান অশনি মুখার্জী, পুর পারিষদ সদস্য অভিজিৎ নাগচৌধুরী,ক্লাব সভাপতি আশিষ ভরদ্বাজ সহ বিশিষ্টজনেরা। বর্ণাঢ্য এই উদ্বোধনী অনুষ্ঠান দেখতে এদিন বারাসাতবাসীর মধ্যে উৎসাহ উদ্দীপনা ছিল চোখে পড়ার মতো।

ব্যারাকপুর ভোলানন্দ বৃদ্ধাশ্রমে কাউন্সিলরের উদ্যোগে মহালয়ায় ইলিশ উৎসব ও বস্ত্র বিতরণ

নিজস্ব প্রতিনিধি: গত ১৯ বছর ধরে ব্যারাকপুরের শ্রীগুরু ভোলানন্দ আশ্রম পরিচালিত ভোলানন্দ বৃদ্ধাশ্রমে আবাসিকদের সঙ্গে ইলিশ উৎসব ও বস্ত্র বিতরণ কর্মসূচি পালন করে আসছেন স্থানীয় এক তৃণমূল কাউন্সিলর। এদিন ব্যারাকপুর পৌরসভার ২নম্বর ওয়ার্ডের পৌর পিতা তথা রাজ্য যুব তৃণমূল কংগ্রেসের প্রাক্তন সাধারণ সম্পাদক ডঃ সম্রাট তপাদার আশ্রমিকদের পুজোর উপহার সামগ্রী বিতরণ করলেন। পাশাপাশি, আয়োজন করা হয় ইলিশ উৎসবের। সম্রাট বাবু জানান,"মহালয়ার দিন নিজের পিতৃ পুরুষের প্রতি তর্পণের পর প্রতি এই কর্মসূচি আয়োজন করে খুব তৃপ্তি পাই"।

*কলকাতার পুজোর থিম (দ্বিতীয় পর্ব )*

ডেস্ক: এখন তো মহালয়া থেকেই পুজো শুরু। এমন কি মুখ্যমন্ত্রী পিতৃপক্ষেই পুজোর উদ্বোধন করে দেন। কলকাতার বড়ো বড়ো পুজোগুলো তাদের পুজোকে সাজিয়ে তুলেছে নানা থিমে। আজ দ্বিতীয় পর্বে তেমন কিছু উল্লেখযোগ্য থিম –

আলিপুর সার্বজনীন: চা-পান-উতার-

চা এখানে দর্শনে পরিণত হয়েছে। অনির্বাণ প্যান্ডেলওয়ালার পরিকল্পনায় এই থিমটি চায়ের আবিষ্কার, পৌরাণিক কাহিনী এবং সংস্কৃতি উদযাপন করে, একই সঙ্গে স্বীকার করে যে এই কোমল পাতাই কীভাবে যুদ্ধ, ঔপনিবেশিক বাণিজ্য এবং সাংস্কৃতিক পরিবর্তনের সাক্ষী হয়েছে।

টালা প্রত্যয়ের শতবর্ষ: সভ্যতার বীজ

এই বছরের সবচেয়ে প্রত্যাশিত প্যান্ডেলগুলির মধ্যে একটি হল তালা প্রত্যয়, যার ১০০তম বর্ষ উদযাপন করা হচ্ছে বীজ অঙ্গন থিম নিয়ে। শিল্পী ভবতোষ সুতারের ধারণা এবং পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় কর্তৃক প্রদত্ত এই স্থাপনাটি বীজকে রূপক এবং স্মৃতিস্তম্ভ উভয় হিসাবেই বিবেচনা করেছে। একটি বীজের মধ্যে সভ্যতার সুপ্ত সারাংশ লুকিয়ে থাকে- ধারাবাহিকতা, বেঁচে থাকা এবং ভবিষ্যত জীবনের প্রতিশ্রুতি মিশে থাকে। টালা প্রত্যয়ের শতবর্ষের থিমটি কীভাবে বীজ এক বাস্তুতন্ত্র এবং দর্শনকে টিকিয়ে রাখে তা তুলে ধরে।

বেহালা ফ্রেন্ডস: নবান্ন – ক্ষত, যুদ্ধ এবং ক্ষুধা

যুদ্ধ এখন আর দূরের যুদ্ধক্ষেত্র নয়; এটি ঘরে ঘরে সরাসরি সম্প্রচারিত হয়। শিল্পী প্রদীপ দাস কীভাবে দুর্ভোগের অন্তহীন ফুটেজ আমাদের সহানুভূতিকে ম্লান করে দিয়েছে সেদিকে দৃষ্টি আকর্ষণ করেন। এই প্যান্ডেলের মাধ্যমে দর্শকরা যুদ্ধের দৃশ্য এবং এর অদৃশ্য পরিণতির মুখোমুখি হবেন।

সন্তোষপুর লেকপল্লী: জলচিত্র (ওয়াশ)

অবনীন্দ্রনাথ ঠাকুরের প্রবর্তিত বেঙ্গল স্কুলের ওয়াশর কৌশলটি এখানে অনির্বাণ দাস পুনরুজ্জীবিত করেছেন। স্তর স্তরে জলরঙের মাধ্যমে প্যান্ডেলটি এমন একটি শিল্পরূপকে সম্মান জানায় যা একসময় ভারতের সাংস্কৃতিক নবজাগরণকে সংজ্ঞায়িত করেছিল, কিন্তু এখন স্মৃতি থেকে মুছে যাচ্ছে।

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*আদিকবি বাল্মীকির প্রথম শ্লোক*

ডেস্ক : রামায়ণে, ঋষি বাল্মীকির অভিশাপ হলো প্রথম সংস্কৃত কাব্যিক শ্লোক, যা তিনি এক শিকারীকে এক জোড়া পাখিকে মেরে ফেলার পর রাগে ও দুঃখে উচ্চারণ করেছিলেন। এই শ্লোকটিই ছিল প্রথম এবং এর ওপর ভিত্তি করে বাল্মীকি রামায়ণ রচনা করেন। ভগবান ব্রহ্মা তাঁর এই শ্লোক শুনে তাঁকে রামায়ণের পুরো কাহিনী লিখতে নির্দেশ দেন, যার ফলে বাল্মীকি ‘আদিকবি’ বা প্রথম কবি হিসেবে পরিচিতি লাভ করেন।

# ঘটনা: বাল্মীকি যখন তমসা নদীর তীরে ছিলেন, তখন তিনি এক শিকারীকে একটি পুরুষ পাখিকে তীর মেরে ফেলে দিতে দেখেন।

প্রতিক্রিয়া: মৃত পাখিটির শোকে কাতর সঙ্গী পাখিটিকে দেখে বাল্মীকির মনে গভীর দুঃখ ও ক্রোধের সৃষ্টি হয়।

# শ্লোক: এই গভীর আবেগ থেকে তাঁর মুখ থেকে প্রথম শ্লোকটি বের হয়, যা ছিল একটি অভিশাপ, “মা নিষাদ প্রতিমাং ত্বমগমাঃ শাশ্বতীঃ সমাঃ” (হে নিষাদ, তুমি আর কখনও এক সাথে থাকার মর্যাদা পাবে না)।

# প্রথম কাব্যিক শ্লোক: এই অভিশাপটিই ছিল প্রথম সংস্কৃত কাব্যিক শ্লোক বা ছন্দ, যার মধ্যে একটি নির্দিষ্ট পরিমাণ অক্ষর ও চরণ ছিল।

# রামায়ণের সৃষ্টি: এই শ্লোক শুনে ভগবান ব্রহ্মা আবির্ভূত হন এবং বাল্মীকিকে এই ছন্দে ভগবান রামের সমগ্র জীবন কাহিনী রচনা করার নির্দেশ দেন।

# আদিকবি: এই ঘটনার মধ্য দিয়েই বাল্মীকি প্রথম কবি বা আদিকবি হিসেবে পরিচিতি লাভ করেন এবং এই প্রথম শ্লোকটিই পরবর্তীকালে পুরো রামায়ণের ভিত্তি হয়ে দাঁড়ায়।

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*पिछले साल के कोलकाता लीग में ईस्ट बंगाल को चैंपियन घोषित किया गया: आईएफए ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद लिया निर्णय*

Sports Desk : कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार दोपहर को फैसला सुनाया था। उसके 24 घंटों के भीतर ही आईएफए ने औपचारिक रूप से पिछले साल के कोलकाता लीग में ईस्ट बंगाल को चैंपियन घोषित कर दिया। दोपहर में लीग कमिटी की बैठक के बाद ईस्ट बंगाल को विजेता घोषित करने का निर्णय लिया गया। रनर-अप डायमंड हार्बर एफसी रहा।

आईएफए सचिव अनिर्बाण दत्त ने मीडिया को बताया, "शुक्रवार रात को हमें अदालत का आदेश मिला। आदेश मिलते ही हमने सोचा कि इस पर देर नहीं कर तुरंत निर्णय लेना चाहिए। उसी के अनुसार शनिवार को लीग कमिटी की बैठक बुलाई गई। बैठक में निर्णय हुआ कि ईस्ट बंगाल को चैंपियन और डायमंड हार्बर को रनर-अप घोषित किया जाएगा। अब कहने में कोई हिचक नहीं है कि पिछले साल का चैंपियन ईस्ट बंगाल है।"

उन्होंने आगे कहा, "पॉइंट्स टेबल और अदालत के निर्देश को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया गया है। आज ही संबंधित क्लबों को पत्र भेज दिए जाएंगे। हमारी कमिटी में एक वकील हैं, जिन्होंने सभी के सामने मामले का विश्लेषण किया। सबकी सहमति से ईस्ट बंगाल को चैंपियन बनाने का निर्णय लिया गया है। आईएफए की छवि को नुकसान हो रहा था, उसे दूर करना जरूरी था।"

अनिर्बाण ने बताया कि चर्चा के बाद ईस्ट बंगाल को ट्रॉफी दी जाएगी। आईएफए के सोशल मीडिया पर भी ईस्ट बंगाल को विजेता घोषित कर दिया गया है।

आगामी सोमवार को यूनाइटेड स्पोर्ट्स के खिलाफ इस सीजन के कोलकाता लीग के चैंपियनशिप राउंड में ईस्ट बंगाल का आखिरी मैच है। उस मैच में ड्रॉ करने पर ही ईस्ट बंगाल लीग जीत जाएगा। ऐसे में दो दिनों के अंतराल में वे लगातार दो कोलकाता लीग जीत सकते हैं।

*कोलकाता पूजा थीम (भाग 1* )

डेस्क:पिछले कई वर्षों से पुरानी परंपरा के अनुसार थीम पूजाएँ होती आ रही हैं। धीरे-धीरे, लगभग सभी पूजाएँ थीम पूजा की ओर मुड़ गई हैं। इस वर्ष, कोलकाता की कुछ प्रसिद्ध पूजा थीम पहले ही सामने आ चुकी हैं। उदाहरण के लिए -

हाटीबागान नवीन पल्ली: हमारा देश, हमारी दुर्गा

भारत छोड़ो आंदोलन की महिलाओं की स्मृति में अभिजीत घटक की थीम उन अनगिनत गुमनाम वीरों को याद करती है जिन्होंने मातृभूमि की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। यहाँ, औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध अडिग रहने वाली प्रत्येक महिला में देवी दुर्गा को देखा जा सकता है।

हिंदुस्तान पार्क पब्लिक: चैडोर बडोनी

यहाँ, बंगाल की लाल धरती पर कभी फलती-फूलती रही एक लगभग विलुप्त लोक कला को दर्शाया गया है। चादर बदोनी, चार सहस्राब्दियों से चली आ रही एक परंपरा, अब लगभग विस्मृत हो चुकी है। पंडाल इसे विलुप्ति के कगार से बचाने का प्रयास करता है, और आगंतुकों को याद दिलाता है कि सांस्कृतिक स्मृतियाँ नाज़ुक होती हैं और उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए।

सोशल वेलफेयर एसोसिएशन: पाथेर पांचाली 1946

बंगाल के सामाजिक इतिहास से प्रेरणा लेते हुए, प्रदीप दास उन संघर्षों को पुनर्जीवित करते हैं जिन्होंने शहर के लचीलेपन को परिभाषित किया। यह पंडाल राजनीतिक अशांति से लेकर आर्थिक तंगी तक, उन संकटों का वृत्तांत बन जाता है जिन्होंने कोलकाता के लोगों और वास्तुकला को आकार दिया है।

दक्षिणाधारी युवा: दहन (द फायरबॉर्न )

इस सशक्त विषय के केंद्र में एसिड अटैक पीड़ितों को रखता है। कलाकार अनिरबन पंडालवाला ने महिलाओं के जख्मी चेहरों को हिंसा और लचीलेपन की याद दिलाते हुए चित्रित किया है, जो पितृसत्ता की सबसे गहरी क्रूरता का सामना कर रही हैं।

Courtesy by: www.machinnamasta.in

*কলকাতার পুজোর থিম (প্রথম পর্ব)*

ডেস্ক : বেশ কয়েক বছর ধরেই সাবেকিয়ানার সঙ্গে চলেছে থিম পুজো। ধীরে ধীরে প্রায় সব পুজোই থিম পুজোর দিকে ঝুঁকেছে। এ বছর কলকাতার কিছু বিখ্যাত পুজোর থিম ইতিমধ্যে প্রকাশ পেয়েছে। যেমন –

হাতিবাগান নবীন পল্লী:

আমাদের দেশ, আমাদের দুর্গা

ভারত ছাড়ো আন্দোলনের নারীদের স্মরণে অভিজিৎ ঘটকের থিম অগণিত অখ্যাত বীরাঙ্গনাদের স্মরণ করছে যাঁরা মাতৃভূমির স্বাধীনতার জন্য নিরাপত্তা এবং জীবন উৎসর্গ করেছিলেন। এখানে, ঔপনিবেশিক নিপীড়নের মুখে দৃঢ়প্রতিজ্ঞ প্রতিটি নারীর মধ্যে দেবী দুর্গাকে দেখা যাবে।

হিন্দুস্থান পার্ক সর্বজনীন: চাদর বাদোনি

এখানে বাংলার লাল মাটিতে একসময় বিকশিত হয়ে ওঠা লুপ্তপ্রায় লোকশিল্পের এক ধারার উপর আলোকপাত করা হয়েছে। চার সহস্রাব্দ ধরে বিস্তৃত ঐতিহ্যের অধিকারী চাদর বাদোনি এই সময়ে প্রায় বিস্মৃত। প্যান্ডেলটি এটিকে স্মৃতির বিলুপ্তি থেকে উদ্ধার করার চেষ্টা করেছে, দর্শনার্থীদের মনে করিয়ে দিতে চাইছে যে সাংস্কৃতিক স্মৃতি ভঙ্গুর বলেই রক্ষা করার যোগ্য।

সমাজসেবী সংঘ: পথের পাঁচালী ১৯৪৬

বাংলার সামাজিক ইতিহাস থেকে অনুপ্রেরণা নিয়ে প্রদীপ দাস সেই সংগ্রামগুলিকে পুনরুজ্জীবিত করেছেনন যা শহরের স্থিতিস্থাপকতাকে সংজ্ঞায়িত করেছিল। প্যান্ডেলটি রাজনৈতিক অস্থিরতা থেকে শুরু করে অর্থনৈতিক দুর্দশা পর্যন্ত সংকটের একটি ইতিহাস হয়ে ওঠে যা কলকাতার মানুষ এবং স্থাপত্যকে রূপ দিয়েছে ।

দক্ষিণদাঁড়ি ইয়ুথস: দহন (দ্য ফায়ারবর্ন)

এই শক্তিশালী থিমের কেন্দ্রবিন্দুতে অ্যাসিড হামলার শিকাররা দাঁড়িয়ে আছেন। শিল্পী অনির্বাণ প্যান্ডেলওয়ালা পুরুষতন্ত্রের অন্ধকারতম নিষ্ঠুরতার মুখোমুখি দাঁড়িয়ে নারীদের ক্ষতবিক্ষত মুখগুলিকে সহিংসতা এবং স্থিতিস্থাপকতার স্মারক হিসেবে দেখিয়েছেন।

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*শরীরের কোন কোন অংশে তিল থাকা শুভ*

ডেস্ক: বাস্তুশাস্ত্রের একটি বিশেষ অধ্যায় হলো -‘সমুদ্র শাস্ত্র’। এই সমুদ্র শাস্ত্র তিল তত্ত্ব নিয়ে আলোচনা করে। গবেষণায় দেখা গেছে এই তিল তত্ত্ব যথেষ্ট কার্যকরি। বাস্তু শাস্ত্র মতে কারও শরীরে কোথায় তিল আছে তার উপরে অনেক কিছু নির্ভর করে। বাস্তু শাস্ত্রের একটা অংশ সমুদ্র শাস্ত্র অনুসারে কোমড়, গলা, গাল, হাত, পা এমনকি গোপনাঙ্গেও তিল থাকতে পারে। সেই সব তিল অর্থ বহন করে। তবে সব তিল যে শুভ এমনটা নয়। জানেন শরীরের কোথায় কোথায় তিল থাকা শুভ? গালে তিল – সমুদ্রবিজ্ঞান অনুসারে, যদি কারওর ডান গালে তিল থাকে তবে তা খুব শুভ বলে মনে করা হয়। এই স্থানে তিল থাকলে তিনি খুব ভাগ্যবান।

এখানেই শেষ নয়। এছাড়াও সমুদ্র শাস্ত্র জানাচ্ছে, বাম গালে তিল থাকার অর্থ হল সেই ব্যক্তি খুব শৌখিন ও বিলাসপ্রিয়। কপালে তিল – অনেকের কপালে তিল থাকে। সমুদ্রবিজ্ঞান অনুসারে, কপালে তিল থাকার একটি বিশেষ অর্থ রয়েছে। কপালে তিল থাকলে সম্পদ বৃদ্ধি ঘটে। কঠোর পরিশ্রমে সাফল্য পান হাতে-নাতে। তালুতে তিল – খুব কম মানুষের হাতের তালুতে তিল দেখা যায়। কিন্তু যাদের হাতের তালুতে তিল থাকে তারা জীবনে সাফল্য পান দ্রুত। ভাগ্যও সবসময় পক্ষে থাকে।

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*কলকাতা স্পোর্টস জার্নালিস্টস ক্লাবে ভিশন অফ বেঙ্গলের পক্ষ থেকে সিএবি সভাপতি স্নেহাশিস গঙ্গোপাধ্যায়কে সংবর্ধনা*

Khabar kolkata sports Desk: কলকাতা স্পোর্টস জার্নালিস্টস ক্লাবে ভিশন অফ বেঙ্গলের পক্ষ থেকে সিএবি সভাপতি স্নেহাশিস গঙ্গোপাধ্যায়কে সংবর্ধনা দেওয়া হল। বৃহস্পতিবার এই অনুষ্ঠানে ক্রিকেটে তাঁর অবদানের জন্য বাংলার গর্ব হিসেবে স্নেহাশিস গঙ্গোপাধ্যায়কে সম্মানিত করা হয়। তাঁকে একটি স্মারক উপহার দেওয়া হয় এবং ক্রিকেটার ও প্রশাসক হিসেবে তাঁর কৃতিত্বের স্মরণে ইন্ডিয়া পোস্টের সহযোগিতায় একটি বিশেষ ডাকটিকিট প্রকাশ করা হয়।স্নেহাশিস গঙ্গোপাধ্যায় বাংলা ক্রিকেটে একজন উল্লেখযোগ্য ব্যক্তিত্ব, তিনি সৌরভ গঙ্গোপাধ্যায়ের দাদা।

*ডেনমার্কের ‘বেঙ্গলিজ ইন ডেনমার্ক’-এর পুজো ১৩ বছরে পা দিলো*

ডেস্ক : সারা বিশ্বজুড়ে কাশফুল না থাকলেও আছে পুজোর আনন্দ। এবার ডেনমার্কের অন্যতম পুজো ‘বেঙ্গলিজ ইন ডেনমার্ক’-এর ১৩ বছর পদার্পন করে। ঠিক তেরো বছর আগে, শারদীয়ার প্রাক্কালে এক জটলায় গুটিকয়েক প্রবাসী বাঙালির মন মোচড় দিয়েছিল পুজোয় বাড়িতে ফিরতে না পারা যন্ত্রণায়। তাঁদের না হয় ছুটি নিয়ে ঘরে ফেরা হল না, কিন্তু তা বলে মাকে কি আনা যায় না নিজেদের কাছে? যেমন ভাবনা, তেমন কাজ। সালটা ২০১৩। মৃৎশিল্পী মোহনবাঁশি রুদ্রপাল ও প্রদীপ রুদ্রপালের হাতের ছোঁয়ায় প্রতিমা পেল প্রাণ। কৈলাস ছেড়ে উমা শুধু বঙ্গে নয়, পাড়ি দিলেন সমুদ্র পেরিয়ে প্রবাসেও। তরী এসে নোঙর করল বাল্টিক সাগরের তীরে।

সূচনা হল ‘বেঙ্গলিজ ইন ডেনমার্কে’র দুর্গোৎসবের। যা আজ স্ক্যান্ডিনেভিয়ার বৃহত্তম শারদোৎসব। বছর দুয়েক আগে বাংলার প্রান্তিক গ্রাম করিমপুর থেকে আমি আসি এই নর্ডিক দেশে। তারপরই আমি ও কর্তামশাই জুড়ে গেলাম এই পুজোর সঙ্গে। পুজোর ঠিক আগে এই শহরে পৌঁছছিলাম। মন খারাপ। সঙ্গে শঙ্কা মায়ের দর্শন হবে তো। হল, তবে শুধু মায়ের দর্শনই নয়। পুজোয় হাত লাগানো থেকে, সাংস্কৃতিক অনুষ্ঠানে যোগদান, সিঁদূর খেলা, সবেতেই মিশে গেলাম। মনেই হল না হেথায় আমি নতুন। বর্তমান প্রেসিডেন্ট তথা প্রধান পুরোহিত দেবর্ষি মুখোপাধ্যায় বলেন বাঙালির দুর্গোৎসব ‘সার্বজনীন।’ প্রবাসের মাটিতেও বাঙালিয়ানার সেই মূলমন্ত্র যেন কোনও অংশে ম্লান না হয়, তার দিকে ক্ষুরধার দৃষ্টি রাখেন এই অর্গানাইজেশনের সঙ্গে যুক্ত সকল সদস্যবৃন্দ।

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