ट्रंप ने बढ़ाई भारत की मुश्किलें, चाबहार में निवेश पर प्रतिबंध के बाद भारतीय कंपनी पर लगाया बैन
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही हड़कंप मचा रखा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने को लेकर फिर से अभियान शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में भी इस देश पर दबाव बनाने के लिए तमाम प्रतिबंध लगाए थे। ट्रंप ने मंगलवार रात एक आदेश पर हस्ताक्षर किए। आदेश के तहत ईरान के तेल निर्यात को रोकने और ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को फिर से लागू करने का आह्वान किया गया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह उन प्रतिबंधों को लागू नहीं करना चाहते और ईरान के साथ एक समझौते पर पहुंचना चाहते हैं। इसी क्रम में अमेरिका ने ईरान के चाबहार पोर्ट पर भारत को दी गई छूट को जहां खत्म करने का फैसला किया है, वहीं अब भारत की कंपनी मार्शल शिप मैनेजमेंट कंपनी और एक नागरिक पर भी बैन लगा दिया है।
ट्रंप ने क्यों उठाया ये कदम?
अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने भारतीय कंपनी पर आरोप लगाया है कि वह ईरान को चीन को तेल बेचने में मदद कर रही है। अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने गुरुवार को इन नए प्रतिबंधों का ऐलान किया है। इसमें एक पूरे अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को निशाना बनाया गया है। बयान में अमेरिका ने कहा कि यह तेल ईरान की सेना की कंपनी की ओर से भेजे जा रहे थे और इस पर प्रतिबंध लगा हुआ था। इस प्रतिबंध के दायरे में चीन, भारत और यूएई की कई कंपनियां और जहाज शामिल हैं। इस अमेरिकी बयान में कहा गया है कि ईरान हर साल तेल बेचकर अरबों डॉलर कमा रहा है और इससे पूरे इलाके में अस्थिरता फैलाने वाली गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। ईरान हमास, हिज्बुल्लाह और हूतियों को मदद दे रहा है जो इजरायल और अमेरिका पर हमले कर रहे हैं। ईरानी सेना विदेशी में बनी छद्म कंपनियों की मदद से यह तेल बेच पा रही है।
ईरान के प्रभाव को भी कम करने की कोशिश
इससे पहले 4 फरवरी को अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने ईरान के खिलाफ अधिकतम आर्थिक दबाव बनाने का आदेश दिया था। भारतीय कंपनी और अधिकारी के खिलाफ उठाया गया यह ताजा कदम ट्रंप के इसी आदेश का हिस्सा है। अमेरिका चाहता है कि इन दबावों के जरिए ईरान के प्रभाव को भी कम किया जा सके।
भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती
ट्रंप के इस कदम से भारत के सामने नई कूटनीतिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत की सामरिक और व्यापारिक रणनीति के लिए अहम है। भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह पर 10 साल का समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) इस बंदरगाह का संचालन करेगी। यह समझौता 13 मई, 2024 को हुआ था। अब देखना होगा कि भारत इस नए दबाव के बीच अपनी रणनीति कैसे तय करता है।
भारत का चाबहार बंदरगाह के लिए 10 साल का समझौता
ईरान के चाबहार में शाहिद बेहेशती पोर्ट को भारत ने 10 साल के लिए लीज पर ले लिया है। इससे पोर्ट का पूरा मैनेजमेंट भारत के पास होगा। भारत को इसके जरिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से व्यापार करने के लिए नया रूट मिला है। जिससे कि पाकिस्तान की जरूरत खत्म हो जाएगी। यह पोर्ट भारत और अफगानिस्तान को व्यापार के लिए वैकल्पिक रास्ता है। डील के तहत भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) चाबहार पोर्ट में 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी।
चाबहार पोर्ट के समझौते के लिए भारत से केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को ईरान भेजा गया था। भारत और ईरान दो दशक से चाबहार पर काम कर रहे हैं। चाबहार विदेश में लीज पर लिया गया भारत का पहला पोर्ट है।
चाबहार पोर्ट भारत के लिए क्यों जरूरी है ?
भारत दुनियाभर में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहता है। चाबाहार पोर्ट इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। भारत इस पोर्ट की मदद से ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। ईरान और भारत ने 2018 में चाबहार पोर्ट तैयार करने का समझौता किया था। पहले भारत से अफगानिस्तान कोई भी माल भेजने के लिए उसे पाकिस्तान से गुजरना होता था। हालांकि, दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते भारत को पाकिस्तान के अलावा भी एक विकल्प की तलाश थी। चाबहार बंदरगाह के विकास के बाद से अफगानिस्तान माल भेजने का यह सबसे अच्छा रास्ता है। भारत अफगानिस्तान को गेंहू भी इस रास्ते से भेज रहा है।
अफगानिस्तान के अलावा यह पोर्ट भारत के लिए मध्य एशियाई देशों के भी रास्ते खोलेगा इन देशों से गैस और तेल भी इस पोर्ट के जरिए लाया जा सकता है। वहीं ये बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी जरूरी है। क्योंकि ग्वादर को बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत चीन विकसित कर रहा है। ऐसे में ये रूट भारत को चीन खिलाफ यहां से एक रणनीतिक बढ़त भी दे रहा है।
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