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यूपी एसटीएफ ने कछुए की तस्करी करने वाले दो बदमाशों को किया गिरफ्तार, बरामद हुए 390 कछुए

उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ यूनिट ने अंतर-राज्य स्तर पर प्रतिबंधित के कछुए की तस्करी करने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने आरोपियों के पास से 390 कछुए बरामद किए हैं. पकड़े गए आरोपियों की पहचान उत्तम दास और सलीम के तौर पर हुई है. जिन्हें पुलिस ने मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज करहल से गिरफ्तार किया है. पुलिस की जांच में सामने आया है कि पकड़े गए दोनों आरोपी उत्तराखंड के रहने वाले हैं.

कई दिनों से उत्तर प्रदेश की एसटीएफ को प्रतिबंधित कछुए की तस्करी करने वाले तस्करों के सक्रिय होने की सूचनाएं मिल रही थी. जिसको देखते हुए एसटीएफ ने कई टीमों को लगा रखा था और इसी क्रम में एसटीएफ फील्ड इकाई कानपुर ने टीम गठित कर तस्करों को तलाश शुरू कर दी थी. जांच के दौरान एसटीएफ को यह सूचना प्राप्त हुई कि कुछ तस्कर प्रतिबंधित प्रजाति के कछुए को मैनपुरी के विभिन्न स्थान से इकट्ठा करके टाटा सफारी गाड़ी से एटा बरेली होते हुए उत्तराखंड ले जा रहे हैं.

390 जिंदा कछुए बरामद

मुखबिर की सूचना पर तत्काल एसटीएफ एक्टिव हो गई और कार्रवाई करते हुए सब इंस्पेक्टर विनोद कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी गई. सूचना पर वन क्षेत्र अधिकारी रेंज मैनपुरी से बात करते हुए पुलिस ने तस्करों को रविवार सुबह साढ़े चार के आसपास मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज करहल से दो लोगों को गिरफ्तार किया. पकड़े गए आरोपियों के पास से पुलिस को 11 बोरियों में 390 जिंदा कछुए बरामद हुए हैं.

उत्तराखंड ले जा रहे थे कछुए

पुलिस की पूछताछ में तस्करों ने बताया कि वह पिछले काफी समय कछुओं की तस्करी कर रहे हैं. तस्कर मैनपुरी के अशोक कुमार से कछुए लेकर शक्ति फार्म सितारगंज उत्तराखंड जा रहे थे. हालांकि, इसी दौरान पुलिस ने उन्हें रास्तें ही गिरफ्तार कर लिया. पकड़े गए तस्कर उत्तम ने बताया कि सितारगंज उत्तराखंड के रहने वाले विवेक से कछुआ की तस्करी करने के लिए 80 हजार में बात हुई थी. विवेक ने बताया था तस्करी किए जाने वाले प्रतिबंधित कछुआ का मीट खाने में और शक्तिवर्धक दवा बनाने में प्रयोग किया जाता है. उत्तम साल 2024 में कछुआ की तस्करी करने में पहले भी जेल जा चुका है.

गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी ही क्यों, आजादी के जश्न इस दिन क्यों मनाए जाते थे?

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के फैसले के बाद देश की स्वतंत्रता की तारीख भी उन्हें ही तय करनी थी. उन्होंने 15 अगस्त की तारीख चुनी. देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता पश्चात संविधान निर्माण का कार्य 25 नवंबर 1949 को पूर्ण हुआ. 26 नवंबर को संविधान सभा ने उसे स्वीकार किया. इसे लागू कब किया जाए? इसका निर्णय अब अपनी सरकार – सदन को करना था. इसके लिए तारीख 26 जनवरी 1950 चुनी गई. लेकिन 26 जनवरी ही क्यों? इसलिए कि स्वतंत्रता के संघर्ष में इस तारीख का ऐतिहासिक महत्व है. गणतंत्र दिवस के अवसर पर पढ़िए इस तारीख से जुड़े प्रसंग,

31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था. मंच पर बैठे नेताओं से दूर तक फैले कार्यकर्ताओं का जोश उफान मार रहा था. उनका धैर्य चुक रहा था. वे अब और इंतजार को तैयार नहीं थे. मांग थी कि अंग्रेज जल्द देश छोड़ें. जनता को सिर्फ कुछ रियायतें नहीं चाहिए थीं. उसे पूर्ण स्वराज से कुछ भी कम स्वीकार नहीं था. अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहर लाल नेहरू ब्रिटिश राज को चुनौती दे रहे थे. यह भी संदेश दे रहे थे कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी सत्ता से छुटकारा भर नहीं होगा. उन्होंने कहा था, “विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिये अब हमें खुला विद्रोह करना है. देश के सभी नागरिकों को इसमें जुड़ना और मंजिल हासिल करने के लिए जुटना है.”

नेहरू ने यह भी साफ कर दिया था कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी शासन को उखाड़ फेंकना भर नहीं है. उन्होंने कहा था, मुझे स्पष्ट स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं एक समाजवादी और रिपब्लिकन हूं. मेरा राजाओं और महाराजाओं में विश्वास नहीं है. न ही मैं उन उद्योगों में विश्वास रखता हूं जो राजे-महाराजे पैदा करते हैं और जो पुराने राजे-महाराजों से अधिक जनता की जिन्दगी और भाग्य को नियंत्रित करते हैं . लूटपाट और शोषण का तरीका अख्तियार करते हैं.”

पूर्ण स्वराज की तारीख 26 जनवरी

लाहौर अधिवेशन ने पूर्ण स्वराज का लक्ष्य तय किया. इसके लिए 26 जनवरी 1930 की तारीख का ऐलान हुआ. अंग्रेजों को अल्टीमेटम दिया कि अगर इस तारीख तक पूर्ण स्वराज देने का फैसला नहीं करते तो देशवासी खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे. अधिवेशन के फैसलों से साफ था कि कांग्रेस निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार है. इस मौके पर पारित प्रस्तावों में गोलमेज सम्मेलन के बहिष्कार , पूर्ण स्वराज्य को अपना मुख्य लक्ष्य घोषित करने , सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने , करों का भुगतान न करने, काउंसिल के चुनावों में भाग न लेने और मौजूदा सदस्यों के पद त्याग के फैसले शामिल थे. इन सबसे भी आगे 26 जनवरी 1930 को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला था.

26 जनवरी को देश भर में फहराया तिरंगा

31 दिसम्बर 1929 की अर्द्धरात्रि में रावी नदी का जल शांत था. लेकिन तट पर स्वतंत्रता प्रेमियों का प्रवाह हिलोरे मार रहा था. ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों की गूंज धरती से आकाश तक थी. भारी उल्लास और संघर्ष के संकल्प के बीच स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया. यह क्रम यहीं नहीं थमना था. 26 जनवरी की तारीख पास थी और इस तारीख को देश के हर शहर-गांव और डगर पर तिरंगा फहराने की तैयारी थी. 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में जगह-जगह अंग्रेजी राज के दमन चक्र की परवाह किए बिना तिरंगा फहराया गया. सभाओं-सम्मेलनों का आयोजन हुआ. सामूहिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने की शपथ ली गई. इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता मिली. गांवों तथा कस्बों में सभायें आयोजित की गयीं. 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने का क्रम 1947 में आजादी मिलने तक जारी रहा.

संविधान रचना और उसकी स्वीकृति

भारत के संविधान का पहला प्रारूप अक्टूबर 1947 में तैयार हो गया था. इस प्रारूप के लिए बहुत सी आधार सामग्री संकलित की गई. “संवैधानिक पूर्वदृष्टान्त” नाम के तीन संकलनों में लगभग 60 देशों के संविधान के महत्वपूर्ण अंश सम्मिलित थे. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाली प्रारूप कमेटी ने इस प्रारूप का परीक्षण किया. 21 फरवरी 1948 को इस कमेटी ने संविधान का प्रारूप पेश किया. ढेर सारी आपत्तियां और संशोधन पेश हुए.

इन पर विचार के लिए गठित विशेष कमेटी ने कतिपय संशोधनों को 26 अक्टूबर 1948 को संविधान सभा में पेश दूसरे प्रारुप में शामिल किया. संविधान का दूसरा वाचन 16 नवम्बर को पूर्ण हुआ. अगले दिन तीसरा वाचन प्रारम्भ हुआ. 26 नवम्बर 1949 को संविधान पारित करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ. इस तरह संविधान सभा के जरिये भारत की जनता ने प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार, अधिनियमित और स्वयं को समर्पित किया. संविधान बनाने में 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा.

26 जनवरी, तब स्वतंत्रता दिवस, अब गणतंत्र दिवस

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 1930 से 1947 तक 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस के आयोजन किए जाते थे. स्वतंत्रता के पूर्व 26 जनवरी की तारीख़ स्वतंत्रता प्राप्त करने के लक्ष्य का स्मरण और संकल्प दिलाती थी. स्वतंत्रता के पश्चात यह तारीख विजय और उस लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति की प्रतीक बन गई. संविधान सभा 26 नवम्बर 1949 को लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार कर चुकी थी.

24 जनवरी 1950 संविधान सभा की आखिरी तारीख थी. 26 जनवरी 1950 से औपचारिक तौर पर संविधान प्रभावी हुआ और क्रियान्वयन में आ गया. भारतीय संविधान की बड़ी विशेषता उसका लचीलापन है. बदलते समय की अपेक्षाओं के अनुरूप उसमें संशोधनों का सिलसिला चला है. संविधान ने जिस लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया, उसने देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया. 1952 से अद्यतन केंद्र से राज्यों तक के चुनाव, शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण और उसके अनुरूप व्यवस्था संचालन संविधान की सफलता और क्षमता प्रमाणित करते हैं .

2024 के चुनाव में संविधान बन गया चुनावी मुद्दा

देश के संविधान की सफलता की बड़ी मिसाल भिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक दलों और प्रत्येक नागरिक में उसके प्रति आदर और संरक्षण का भाव है. पिछले 2024 के लोकसभा चुनाव में तो विपक्ष ने संविधान को बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था. विपक्ष उसे खतरे में बता रहा था तो सत्ता पक्ष भरोसा दे रहा था कि संविधान को कोई छू नहीं सकता.

देश के संविधान की जब चर्चा होती है तो प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीम राव आंबेडकर के 25 नवम्बर 1949 के उस भाषण को जरूर याद किया जाता है, “मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान में अमल लाने का काम सौंपा जाए खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा. दूसरी ओर संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो यदि वे लोग जिन्हें संविधान अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा. “

आंबेडकर और राजेंद्र प्रसाद की नसीहत

डॉक्टर अम्बेडकर ने सचेत किया था, “आजादी मिलने के साथ हमारे वे सारे बहाने खत्म हो गए हैं जिसके तहत हम हर ग़लती के लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार ठहरा देते थे. अगर इसके बाद भी कुछ ग़लत होता है तो हम अपने अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते.” 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का समापन भाषण भी संविधान की सफलता के लिए उसके पालन-संरक्षण से जुड़े हर अंग को नसीहत दे रहा था, ” जो लोग चुनकर आएंगे वे योग्य,चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे. यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नही कर सकता. आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है. इनमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों द्वारा होता है, जो इस पर नियंत्रण करते हैं तथा इसे चलाते हैं. “

क्या कुंभ की भीड़ आजादी की जंग से जुड़ेगी? जानें पंडित नेहरू को किस बात की शंका थी

पंडित नेहरू धार्मिक कर्मकाण्डों और पूजा-पाठ में भरोसा नहीं करते थे. उनकी जन्मभूमि इलाहाबाद थी. गंगा नदी से उन्हें लगाव था लेकिन इसके पीछे वे कोई धार्मिक कारण नहीं मानते थे. 1930 में कुंभ था. जनवरी महीने में नेहरू इलाहाबाद में थे. लाखों की भीड़ उमड़ रही थी. इस भीड़ को देखते नेहरू सोच रहे थे कि क्या इस भीड़ को आजादी के आंदोलन और 26 जनवरी 1930 तक भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देने के आह्वान की जानकारी है? क्या ये भीड़ ऐसा ही उत्साह आजादी की लड़ाई से जुड़ने में भी दिखाएगी?

अपनी आत्मकथा में उन्होंने शंका जाहिर की कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लोगों में कर्मकांड और दकियानूसी विचार इतना भर गए हैं कि दूसरे विचारों के लिए गुंजाइश ही नहीं है. हालांकि, इस भीड़ के तमाम लोग जब नेहरू से मिलते थे और आजादी से जुड़े सवाल करते थे या फिर भीड़ में आंदोलन के नारे गूंजते थे तो उन्हें उम्मीद बंधती थी. भरोसा होता था कि देश जाग रहा है.

गंगा के प्रति लोगों की आस्था चकित करती

कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में अंग्रेजों को 26 जनवरी 1930 तक भारत को पूर्ण स्वतंत्र करने का अल्टीमेटम दिया गया था. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी. कांग्रेस की चेतावनी में साफ किया गया था कि अगर अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया तो देश वासी खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे. कांग्रेस की कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों को आंदोलन से जोड़ने की थी. जनवरी महीने की शुरुआत में पंडित नेहरू इलाहाबाद में थे.

यह कुंभ का साल था. लाखों हिन्दू नर-नारी प्रयागराज में संगम पर स्नान के लिए उमड़ रहे थे. नेहरू उनके उत्साह पर मुग्ध थे. उन्हें आश्चर्य होता था कि हजारों साल से लोगों का विश्वास गंगा मैया में स्नान के लिए उन्हें इलाहाबाद खींच लाता है.

धर्म के अलावा भी लोग क्या कुछ सोच रहे ?

उस भीड़ को देखते नेहरू के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उनकी सोच का विषय इस भीड़ के धार्मिक विश्वास और गंगा मैया के प्रति उनकी आस्था नहीं थी. वे फिक्रमंद थे कांग्रेस के देश को पूर्ण स्वतंत्र घोषित करने के अल्टीमेटम की कामयाबी को लेकर. कांग्रेस जनता से हर साल 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाने की अपील कर चुकी थी. अंग्रेजों को जनता की ताकत का अहसास दिलाने के लिए जरूरी था कि स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम में जनता ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी करे. कुंभ की भीड़ को निहारते नेहरू सोच रहे थे कि क्या इसमें शामिल लोगों को इसकी जानकारी है? क्या वे जैसा उत्साह गंगा मैया में स्नान के लिए दिखा रहे हैं, वैसा ही आजादी के आंदोलन से जुड़ने में ही दिखाएंगे? यह सब सोचते नेहरू को इस बात की शंका थी कि कहीं कर्मकांडों और दकियानूसी विचारों ने लोगों के दिमागों पर ऐसा पहरा तो नहीं लगा दिया है कि उसमें दूसरे विषयों के बारे में सोचने की गुंजाइश ही नहीं बची हो?

क्या सत्याग्रह में भी देंगे साथ?

पंडित नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “जनवरी के शुरू में मैं इलाहाबाद में था. यह एक बड़े भारी मेले का वक्त था. शायद यह कुम्भ का साल था और लाखों स्त्री-पुरुष लगातार इलाहाबाद या यात्रियों की भाषा में प्रयागराज आ रहे थे. इसमें सब तरह के लोग थे. इनमें खासतौर पर किसान थे. मजदूर, दुकानदार, कारीगर, व्यापारी, औद्योगिक और ऊंचे पेशे वाले भी लोग थे.

वास्तव में हिंदुओं में से सभी तरह के लोग आए थे. जब मैं इस बड़ी भीड़ को संगम की ओर जाते और आते अटूट धारा को देखता तो मैं सोचा करता कि ये लोग सत्याग्रह और शान्तिपूर्ण सीधे हमले की पुकार का कितना साथ देंगे? इनमें से कितने लाहौर के प्रस्तावों को जानते हैं या उनकी परवाह करेंगे? उनका यह विश्वास कितना आश्चर्यजनक और मजबूत था, जिसमें वे और बुजुर्ग हजारों वर्षों से हिंदुस्तान के हर हिस्से से पवित्र गंगा मैया में स्नान करने के लिए चले आते रहे. क्या वे इस अदम्य उत्साह को अपनी जिंदगी सुधारने के लिए राजनीतिक और आर्थिक कार्य में नही लगा सकते? या उनके दिमागों में कर्मकांड और दकियानूसी इतनी भर चुकी है कि दूसरे विचारों की गुंजाइश ही नही रही ?

संगम पर मालवीय के साथ

कुंभ से ही जुड़े एक दूसरे प्रसंग से भी साफ होता है कि गंगा स्नान से किसी प्रकार के पुण्य लाभ में नेहरू का भरोसा नहीं था. यह 1930 के पहले के 1924 के अर्धकुंभ का अवसर था. फिसलन और सुरक्षा के नाम पर अधिकारियों ने संगम स्नान पर रोक लगा दी थी. इस रोक के लिए पुलिस की तैनाती और बैरिकेडिंग भी की गई थी. प्रतिबंध के खिलाफ पंडित मदन मोहन मालवीय संगम पर पहुंचकर धरने पर बैठ गए थे. तीर्थ यात्रियों को संगम पर स्नान की उनकी मांग थी. उन दिनों नेहरू इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष थे. जानकारी मिलने पर नेहरू भी वहां पहुंच गए थे.

गंगा में नहा पुण्य कमाने की इच्छा नहीं

इस मौके पर जो कुछ घटित हुआ उसका अपनी आत्मकथा “मेरी कहानी” में उल्लेख करते हुए नेहरू ने लिखा, “खबर पढ़ने के बाद मैं संगम के लिए निकल गया. मेरा स्नान का कोई इरादा नहीं था, क्योंकि ऐसे मौकों पर गंगा नहाकर पुण्य कमाने की चाह मुझे नहीं थी. मेला पहुंचने पर मैंने देखा कि मालवीय जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ जल सत्याग्रह कर रहे हैं. 200 लोग उनके साथ थे. जोश में आकर मैं भी सत्याग्रह दल में शामिल हो गया. मैदान के उस पार लकड़ियों का बड़ा सा घेरा बनाया गया था, ताकि लोग संगम नहीं पहुंच सकें. हम आगे बढ़े, तो पुलिस ने रोका, हमारे हाथ से सीढ़ी छीन ली. विरोध में हम रेत पर बैठकर धरना देने लगे. धूप बढ़ती जा रही थी. दोनों तरफ पैदल और घुड़सवार पुलिस खड़ी थी.

मेरा धैर्य अब टूटने लगा था. इसी बीच घुड़सवार पुलिस को कुछ ऑर्डर दिया गया. मुझे लगा कि ये लोग कहीं हमें कुचल न दें. पीटना न शुरू कर दें. मैंने सोचा क्यों न हम घेरे के ऊपर से ही फांद जाएं. मेरे साथ बीसों आदमी चढ़ गए. कुछ लोगों ने बल्लियां भी निकाल लीं. इससे रास्ता जैसा बन गया. मुझे बहुत गर्मी लग रही थी, सो मैंने गंगा में गोता लगा दिया.”

नहा के निकलने के बाद भी नेहरू ने दिखा कि मालवीय का धरना जारी था. वे काफी खिन्न थे. एक बार फिर नेहरू उनके साथ बैठ गए. नेहरू ने आगे लिखा,”अचानक बिना किसी से कुछ कहे मालवीय उठे और पुलिस के बीच से निकलकर गंगा में कूद पड़े. मालवीय जैसे दुर्बल और बूढ़े शरीर वाले व्यक्ति को इस तरह गोता लगाते देखकर मैं हैरान रह गया. इसके बाद तो पूरी भीड़ गंगा में डुबकी लगाने के लिए टूट पड़ी. हमें लग रहा था कि सरकार कुछ करेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. “

राख गंगा में बहा देना

गंगा-जमुना से नेहरू का लगाव लेकिन उसके पीछे कोई धार्मिक आधार न होने का उल्लेख पंडित नेहरू ने अपनी वसीयत में भी किया है. मृत्यु के लगभग एक दशक पहले लिखी अपनी वसीयत में नेहरू ने लिखा था कि उनके मरने के बाद कोई धार्मिक अनुष्ठान न किए जाएं, क्योंकि ऐसा करना पाखंड और अपने को धोखा देना होगा. विदेश में मरने पर दाह संस्कार वहीं कर देने लेकिन राख इलाहाबाद भेज दिए जाने की उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी.

राख का ज्यादातर हिस्सा हवाई जहाज से देश के खेतों में बिखेरने के लिए उन्होंने लिखा, क्योंकि उस मिट्टी से उन्हें बहुत प्यार था. मुट्ठी भर राख इलाहाबाद में गंगा जी में प्रवाहित करने की उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी. लेकिन उन्होंने साफ किया,ऐसा करने के पीछे कोई धार्मिक महत्व नहीं है. मुझे बचपन से गंगा और जमुना से लगाव रहा और जैसे-जैसे में बड़ा हुआ मेरा ये लगाव लगातार बढ़ता गया.

बेशक नेहरू का धार्मिक अनुष्ठानों में भरोसा न रहा हो और अपनी मृत्यु बाद भी उन्होंने ऐसा करने की मनाही की हो. लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हुआ. दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार हिन्दू धर्म के विधि विधान के साथ पूर्ण हुआ. अनुष्ठानों के लिए काशी के पंडित बुलाए गए. संगम पर अस्थि विसर्जन भी पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण के बीच हुआ था.

कौन हैं श्रीराम की स्तुति गाने वालीं बतूल बेगम? जिन्हें मिला पद्मश्री अवॉर्ड

आज गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2025) से एक दिन पहले केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है. इस लिस्ट में 139 शख्सियतों के नाम शामिल हैं. इस लिस्ट में एक नाम राजस्थान की जानी मानी मांड गायिका बतूल बेगम का भी है. बतूल बेगम को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. बतूल बेगम को भजनों की बेगम के नाम से भी जाना जाता है. वह मिरासी समुदाय की गायिका हैं. मांड गायकी के लिए बतूल बेगम की पहचान देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है.

बेतूल बेगम मुस्लिम होकर भी श्रीराम और भगवान गणेश के भजन गाती हैं. इनकी आवाज का जादू ऐसा है कि उनके गाए गए मांड लोक गीत धूम मचाते रहे हैं. बता दें कि पेरिस में वाले यूरोप के सबसे बड़े होली फेस्टिवल में बेगम बेतूल 5 साल से प्रस्तुति दे रही हैं.

कौन हैं बतूल बेगम?

जानकारी के मुताबिक नागौर जिले के केराप गांव से ताल्लुक रखने वाली बतूल बेगम का बचपन कठिनाइयों में बीता. उनकी पढ़ाई 5वीं क्लास में छूट चुकी थी. 16 साल की उम्र में तो बेतूल बेगम की निकाह फिरोज खान के साथ हुआ था. फिरोज एक कंडक्टर थे. बेतूल बेगम के तीन बेटे हुए. वहीं गरीबी के बावजूद बेतूल बेगम ने हिम्मत नहीं हारी और खुद का हौसला बनाए रखा.

भजन गाकर शुरू हुआ संगीत का सफर

बतूल बेगम ने महज 8 साल की उम्र में ठाकुरजी के मंदिर में भजन गाकर अपने संगीत का सफर शुरू किया था. संघर्षों से भरे जीवन के बावजूद उन्होंने अपने गायकी को जारी रखा.

55 से ज्यादा देशों में गाने गाए

बतूल बेगम ने लोक संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उन्होंने अब तक 55 से अधिक देशों में अपनी गायकी पेश की है. जिनमें इटली, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, और ट्यूनेशिया जैसे देश शामिल हैं. मांड और फाग में बेगम की गायकी ने दुनिया भर में लाखों दिलों को छुआ. अपनी गायकी से बतूल बेगम ने लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर विशेष पहचान दिलाई. पेरिस के टाउन हॉल में प्रस्तुति देने वाली वह राजस्थान की पहली महिला लोक गायिका हैं.

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल

हिंदू भजनों और मुस्लिम मांड के जरिए बतूल बेगम सांप्रदायिक सौहार्द का भी संदेश देती हैं. बिना माइक के तबला और हारमोनियम के साथ फाल्गुन के लोक गीतों को गाने की उनकी कला श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है.

बतूल बेगम को मिले सम्मान

बतूल बेगम को 2022 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया था. फ्रांस और ट्यूनेशिया की सरकारों ने भी उन्हें सम्मानित किया. वहीं, GOPIO अचीवर्स अवार्ड और सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेंस अवार्ड भी मिल चुका है

पद्म अवार्ड से सम्मानित लोगों को क्या सुविधाएं देती है सरकार, क्या इनाम में पैसे भी मिलते हैं?

पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण, इनमें से कोई भी अवार्ड जब किसी को मिलता है तो उसके परिवार, गांव, जिले और प्रदेश के लिए यह गौरव का विषय होता है. यह सम्मान हर साल केद्र सरकार गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) से एक दिन पहले घोषित करती है. बाद में राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में इसे दिया जाता है. इस दौरान प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, केन्द्रीय मंत्री समेत तमाम हस्तियां शामिल होते हैं.

वहीं साल 2025 के लिए भी शनिवार को केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है. इन नागरिक पुरस्कारों में सात पद्म विभूषण, 19 पद्म भूषण और 113 पद्मश्री पुरस्कार शामिल हैं. क्या आप जानते हैं कि पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं? क्या इसके साथ पैसे भी मिलते हैं?

कब हुई पद्म पुरस्कारों की शुरुआत?

भारत रत्न के बाद भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान में पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री आते हैं. इनमें हर साल सबसे ज्यादा पद्मश्री सम्मान दिए जाते हैं. बता दें कि भारत सरकार ने साल 1954 में पद्म सम्मान की शुरुआत की थी. साल 1955 में इसे पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण नाम दिया गया

किन हस्तियों को मिलता है पद्म सम्मान?

यह सम्मान कला, साहित्य, शिक्षा, खेल, मेडिसिन, सामाजिक कार्य, विज्ञान, तकनीक, सिविल सेवा, व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में असाधारण काम करने वाली हस्तियों को दिए जाते हैं. इनमें डॉक्टर और साइंटिस्ट दो ऐसे लोग हैं, जिन्हें सरकारी सेवा में रहते हुए भी यह सम्मान दिया जा सकता है.

सम्मानित लोगों को क्या मिलती हैं सुविधाएं?

बता दें कि राष्ट्रपति पद्म पुरस्कार से सम्मानित शख्स को एक प्रमाणपत्र और पदक देते हैं. पैसे की बात करें तो पद्म पुरस्कारों से सम्मानित लोगों को किसी भी तरह की धनराशि नहीं दी जाती है. यह सिर्फ एक सम्मान है. पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण, तीनों ही पुरस्कारों में पैसे नहीं दिए जाते हैं. न ही किसी भी तरह की रेलवे या एयर फेयर में छूट या कोई और सुविधा मिलती है.

सरकार वापस ले सकती है पुरस्कार

जानकारी के मुताबिक यह पुरस्कार कोई पदवी नहीं है कि सम्मानित व्यक्ति इसको अपने नाम के साथ इस्तेमाल करे. अगर कोई अपने नाम के साथ पद्म पुरस्कार का जिक्र करता है तो सरकार उनसे पुरस्कार को वापस ले सकती है.

कैसे मिलता है पद्म सम्मान?

इसके लिए सरकार हर साल आवेदन मांगती है. जिसको भी ऐसा लगता है कि उसने तय क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है तो आवेदन कर सकता है. सरकार आवेदन की जांच करती है. वहीं कोई व्यक्ति, संस्था, सांसद, विधायक, मंत्री भी किसी के नाम की सिफारिश कर सकते हैं. हालांकि इस पर अंतिम फैसला भारत सरकार की ओर से गठित कमेटी करती है.

113 हस्तियों को पद्मश्री

इस बार 113 हस्तियों को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा. जिसमें अद्वैत चरण गडनायक, अच्युत रामचन्द्र पालव,अजय वी भट्ट,अनिल कुमार बोरो,अरिजीत सिंह,अरुंधति भट्टाचार्य,अरुणोदय साहा,अरविन्द शर्मा,अशोक महापात्रा,अशोक लक्ष्मण,आशुतोष शर्मा,अश्विनी भिड़े देशपांडे,बैजनाथ महाराज,बैरी गॉडफ्रे जॉन,बेगम बतूल,भरत गुप्त,भेरू सिंह चौहान,भीम सिंह भावेश,भीमव्वा डोड्डाबलप्पा,बुधेन्द्र जैन,सीएस वैद्यनाथन,चैतराम देवचंद,चंद्रकांत शेठ (मरणोपरांत),चंद्रकांत सोमपुरासचेतन चिटनीस,डेविड सिम्लिह,दुर्गाचरण रणबीर,फारूक अहमद मीर,गणेश्वर शास्त्री द्रविड़, गीता उपाध्याय,गोकुल चन्द्र दास,गुरुवयूर दोराई,हरचंदन सिंह भट्टी,हरिमन शर्मा,हरजिंदर सिंह श्रीनगर वाले,हरविंदर सिंह,हसन रघु, हेमन्त कुमार,हृदय नारायण दीक्षित,ह्यूग और कोलीन गैंटजर (मरणोपरांत) (जोड़ी) शामिल हैं.

इनके अलावा इनिवलाप्पिल विजयन, जगदीश जोशीला, जसपिंदर नरूला, जोनास मसेटी, जोयनाचरण बाथरी, जुमदे योमगाम गामलिन, के. दामोदरन, केएल कृष्णा, के ओमानकुट्टी अम्मा, किशोर कुणाल (मरणोपरांत), एल हैंगथिंग, लक्ष्मीपति रामसुब्बैयर, ललित कुमार मंगोत्रा, लामा लोबजंग (मरणोपरांत), लीबिया लोबो सरदेसाई, एमडी श्रीनिवास, मदुगुला नागफनी सरमा, महाबीर नायक, ममता शंकर, मंदा कृष्णा मडिगा, मारुति भुजंगराव चितामपल्ली, मिरियाला अप्पाराव (मरणोपरांत), नागेंद्र नाथ राय, नारायण (भुलई भाई) (मरणोपरांत), नरेन गुरुंग, नीरजा भाटला, निर्मला देवी, नितिन नोहरिया, ओंकार सिंह पाहवा, पी दत्चानमूर्ति, पंडीराम मंडावी, परमार लवजीभाई नागजीभाई, पवन गोयनका, प्रशांत प्रकाश, प्रतिभा सत्पथी, पुरीसाई कन्नप्पा संबंदन और आर अश्विन को भी पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा.

वहीं आरजी चंद्रमोगन, राधा बहिन भट्ट, राधाकृष्णन देवसेनापति, रामदरश मिश्र, रणेन्द्र भानु मजूमदार, रतन कुमार परिमू, रेबा कांता महंत, रेंथली लालरावना, रिकी ज्ञान केज, सज्जन भजनका, सैली होल्कर, संतराम देसवाल, सत्यपाल सिंह, सीनी विश्वनाथन, सेथुरमन पंचनाथन, शेखा शेखा अली अल-जबर अल-सबा, शीन काफ़ निज़ाम (शिव किशन बिस्सा), श्याम बिहारी अग्रवाल, सोनिया नित्यानंद, स्टीफ़न नैप, सुभाष खेतुलाल शर्मा, सुरेश हरिलाल सोनी, सुरिंदर कुमार वासल, स्वामी प्रदीप्तानन्द (कार्तिक महाराज), सैयद ऐनुल हसन, तेजेन्द्र नारायण मजूमदार, थियाम सूर्यमुखी देवी, तुषार दुर्गेशभाई शुक्ला, वदिराज राघवेंद्राचार्य पंचमुखी, वासुदेव कामथ, वेलु आसन, वेंकप्पा अम्बाजी सुगतेकर, विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज, विजयालक्ष्मी देशमाने, विलास डांगरे और विनायक लोहानी भी पद्मश्री से सम्मानित लोगों की लिस्ट में शामिल हैं.

19 लोगों को मिलेगा पद्म भूषण?

पद्म भूषण से सम्मानित होने वालों की लिस्ट में 19 लोगों के नाम हैं. जिसमें ए. सूर्या प्रकाश साहित्य और शिक्षा पत्रकारिता (कर्नाटक), अनंत नाग, कला (कर्नाटक), बिबेक देब रॉय (मरणोपरांत) साहित्य और शिक्षा (एनसीटी दिल्ली), जतिन गोस्वामी, कला (असम), जोस चाको पेरियप्पुरम, चिकित्सा (केरल), कैलाश नाथ दीक्षित, पुरातत्व (एनसीटी दिल्ली), मनोहर जोशी (मरणोपरांत) लोक कार्य (महाराष्ट्र), नल्ली कुप्पुस्वामी चेट्टी, व्यापार और उद्योग (तमिलनाडु), नंदामुरी बालकृष्ण, कला (आंध्र प्रदेश), पीआर श्रीजेश, खेल (केरल), पंकज पटेल, व्यापार और उद्योग (गुजरात), पंकज उधास (मरणोपरांत) कला (महाराष्ट्र), रामबहादुर राय, साहित्य और शिक्षा (पत्रकारिता) (उत्तर प्रदेश), साध्वी ऋतंभरा, सामाजिक कार्य (उत्तर प्रदेश), एस. अजित कुमार, कला (तमिलनाडु), शेखर कपूर, कला (महाराष्ट्र), शोभना चंद्रकुमार, कला (तमिलनाडु), सुशील कुमार मोदी (मरणोपरांत) लोक कार्य (बिहार) और विनोद धाम, विज्ञान और इंजीनियरिंग (अमेरिका) शामिल हैं.

7 लोगों को पद्म विभूषण?

पद्म विभूषण अवार्ड पाने वालों में दुव्वूर नागेश्वर रेड्डी, चिकित्सा (तेलंगाना), न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जगदीश सिंह खेहर, लोक कार्य (चंडीगढ़), कुमुदिनी रजनीकांत लाखिया, कला (गुजरात), लक्ष्मीनारायण सुब्रमण्यम, कला (कर्नाटक), एमटी वासुदेवन नायर (मरणोपरांत) साहित्य और शिक्षा (केरल), ओसामु सुजुकी (मरणोपरांत) व्यापार और उद्योग (जापान) और शारदा सिन्हा (मरणोपरांत) कला (बिहार) शामिल हैं.

पहले गणतंत्र दिवस परेड की अनसुनी कहानी: जानें कैसा था भारत का पहला गणतंत्र दिवस समारोह

भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भव्य परेड के साथ ही देश भर में तरह-तरह के आयोजन किए जाएंगे. स्कूल-कॉलेजों में तिरंगा लहराने के साथ परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा. दिल्ली की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति मौजूद रहेंगे और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू परेड की सलामी लेंगी. इस दौरान भारत की तरक्की और शक्ति का प्रदर्शन किया जाएगा. पर क्या आप जानते हैं कि पहले गणतंत्र दिवस की परेड कैसी थी? आइए जान लेते हैं.

भारत वैसे तो 15 अगस्त 1947 को ही आजाद हो गया था. हालांकि, तब देश का अपना संविधान था. 2 साल 11 महीने 18 दिनों में संविधान तैयार किया गया. इसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया. तभी तय किया गया कि संविधान 26 जनवरी को लागू किया जाएगा. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया. तत्कालीन गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने सुबह 10:18 बजे संविधान लागू होने के साथ ही भारत को गणराज्य घोषित किया. इसके छह मिनट के भीतर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की और गवर्नर जनरल की व्यवस्था समाप्त हो गई.

नेशनल स्टेडियम में किया गया था आयोजन

इसके बाद गणतंत्र भारत की पहली परेड निकाली गई, जिसकी कहानी काफी दिलचस्प है. यह परेड दिल्ली में पुराने किले के सामने बने ब्रिटिश स्टेडियम में हुई थी, जहां अब नेशनल स्टेडियम है. पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार गणतंत्र दिवस समारोह मनाया गया. दोपहर 2:30 बजे डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन (तब गवर्मेंट हाउस) से निकले. बग्घी में 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े जुते थे. बग्घी से ही कनॉट प्लेस जैसे नई दिल्ली के कई इलाकों का चक्कर लगाते हुए 3:45 बजे नेशनल स्टेडियम (तब इरविन स्टेडियम) पहुंचे. वहां उन्होंने तिरंगा फहराया और 31 तोपों की सलामी दी गई. इसके साथ ही परेड की शुरुआत हो गई.

तीन हजार जवानों ने की थी परेड

गणतंत्र दिवस की पहली परेड भले ही आज जैसी भव्य नहीं थी, पर तब देश की आजादी के बार पहली बार ऐसा हो रहा था, इसलिए हर भारतीय गौरवान्तिव था. भारतीयों के दिल पर इसने अमिट छाप छोड़ी थी. पहली बार परेड में किसी तरह की झांकी शामिल नहीं थी. इसमें थल सेना, वायु सेना और जल सेना की टुकड़ियों ने हिस्सा लिया था. इन टुकड़ियों में तीन हजार जवान शामिल थे. इन जवानों की अगुवाई परेड कमांडर ब्रिगेडियर जेएस ढिल्लन ने की थी. इसमें इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था.

वायु सेना के सौ विमान हुए थे शामिल

पहली परेड में आज की तरह करतब दिखाने वाले विमान जेट या थंडरबोल्ट तो नहीं थे पर डकोटा और स्पिटफायर जैसे छोटे विमानों ने खूब जलवे बिखेरे थे. वायु सेना के सौ विमानों को परेड का हिस्सा बनाया गया था. भारतीय सेना की कमान तब जनरल फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा के पास थी.

दोपहर 3:45 बजे राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के तिरंगा फहराने के साथ ही भारतीय वायु सेना के बमवर्षक विमानों ने सलामी उड़ान भरी थी. इसके लिए खास व्यवस्था की गई थी. इस परेड समारोह में झंडारोहण के समय ही विमानों के स्टेडियम के ठीक ऊपर उड़ान भरने में मदद करने के लिए जमीन पर एक स्पेशल कार स्टेडियम में खड़ी की गई थी. इस कार में दृश्य-नियंत्रण की सुविधा थी और इसमें तैनात सैनिक बमवर्षक विमानों के बेड़े के कमांडर के साथ सीधे रेडियो संपर्क में थे. झंडारोहरण होते ही विंग कंमाडर एचएसआर गुहेल की अगुवाई में चार बमवर्षक लिबरेटर विमानों ने स्टेडियम के ऊपर आकाश में उड़ान भरते हुए राष्ट्रपति को सलामी उड़ान दी थी.

कई सालों तक तय नहीं था रूट

पहली बार गणतंत्र दिवस परेड दिल्ली के कई प्रमुख इलाकों से होते हुए नेशनल स्टेडियम तक पहुंची थी. हालांकि, कई सालों तक परेड की जगह और रूट सुनिश्चित नहीं थे. इसके कारण यह अलग-अलग जगहों से होकर निकलती रही. साल 1950 से 1954 तक गणतंत्र दिवस परेड इरविन स्टेडियम, किंग्सवे (राजपथ), लालकिला और रामलीला मैदान पर हुई. साल 1955 में तय किया गया कि इसका आयोजन राजपथ पर होगा. राजपथ से निकलकर परेड लालकिले तक जाएगी.

न्याय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग… राष्ट्र के नाम संबोधन में बोलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र की पूर्व संख्या पर देश को संबोधित कर रही हैं. राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा है कि विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में शामिल भारत को ज्ञान और विवेक का उद्गम माना जाता था लेकिन भारत को एक अंधकारमय दौर से गुजरना पड़ा.आज के दिन हम सबसे पहले उन सूर वीरों को याद करते हैं जिन्होंने देश को आजाद करने में बड़ी से बड़ी कुर्बानी दी. इस साल हम भगवान बिरसा मुंडा की 150 जयंती मना रहे हैं.

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के गणतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब हमारी संविधान सभा की संरचना में भी दिखाई देता है. उस सभा में देश के सभी हिस्सों और सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व था. सबसे अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि संविधान सभा में सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, सुचेता कृपलानी, हंसाबेन मेहता और मालती चौधरी जैसी 15 असाधारण महिलाएं भी शामिल थीं.

देश को विश्व व्यवस्था में उचित स्थान मिला

मुर्मू ने कहा कि देश ने विश्व व्यवस्था में उचित स्थान पाया है. बाबा साहब ने देश को मजबूत संविधान दिया. न्याय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है. हमारे देश का ये सौभाग्य था कि यहां महात्मा गांधी हुए. संविधान सभा में सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व था. नैतिकता हमारे जीवन का प्रमुख तत्व है.

राष्ट्रपति ने संबोधन में आगे कहा कि देश में विकास की ये रफ्तार आगे भी बनी रहेगी. भारत का आर्थिक विकास तेजी से हुआ है. महिलाएं और बच्चे विकास के केंद्र में हैं. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का कद भी बढ़ा है. देश में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोगों के समग्र विकास के प्रयास किए जा रहे हैं. सड़क, बंदरगाह का तेजी से विकास हो रहा है.

राष्ट्रपति के संबोधन की अहम बातें-

हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ हमारा जुड़ाव और अधिक गहरा हुआ है.

इस समय आयोजित हो रहे प्रयागराज महाकुंभ को उस समृद्ध विरासत की प्रभावी अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है.

हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने तथा उनमें नई ऊर्जा का संचार करने के लिए संस्कृति के क्षेत्र में अनेक उत्साह-जनक प्रयास किए जा रहे हैं.

एक राष्ट्र एक चुनाव योजना शासन में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, नीतिगत पंगुता को रोक सकती है.

हम औपनिवेशिक मानसिकता को बदलने के लिए हाल में ठोस प्रयास देख रहे हैं. साहसिक और दूरदर्शी आर्थिक सुधार आने वाले वर्षों में इस प्रवृत्ति को बनाए रखेंगे.

शिक्षा की गुणवत्ता, भौतिक अवसंरचना और डिजिटल समावेशन के मामले में पिछले दशक में शिक्षा में काफी बदलाव आया है.

प्रयागराज महाकुंभ हमारी विरासत का परिचय, बोलीं राष्ट्रपति

उन्होंने कहा कि बिजली के क्षेत्र में नई टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा है. उन्होंने कहा कि डीबीटी के जरिए लोगों को बहुत लाभ मिला है. इससे सिस्टम में पारदर्शिता भी बढ़ी है. देश में शास्त्रीय भाषाओं में शोध कार्य को बढ़ावा दिया गया. प्रयागराज महाकुंभ हमारी विरासत का परिचय है. देश में डिजिटल शिक्षा के भी प्रयास किए जा रहे हैं. शिक्षा के जरिए ही युवाओं की प्रतिभा निखरती है. विद्यार्थियों के प्रदर्शन में काफी सुधार देखने को मिला है. सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया है.

पंजाब पुलिस ने गैंगस्टर विशाल खान को पकड़ा, सिद्धू मूसेवाला मर्डर में किए थे हथियार सप्लाई

पंजाब की एंटी-गैंगस्टर टास्क फोर्स (SGTF) और एसएएस नगर पुलिस ने संयुक्त रूप से कार्रवाई करते हुए गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई और गैंगस्टर गोल्डी बराड़ के एक प्रमुख साथी को गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस ने बताया कि जिस गैंगस्टर को गिरफ्तार किया गया है उसकी पहचान महफूज उर्फ विशाल खान के रूप में हुई है. पुलिस ने आरोपी से एक अवैध पिस्तौल और 5 जिंदा कारतूस भी बरामद किए हैं. आरोप है कि विशाल खान ने ही सिद्धू मूसेवाला के हत्यारों के लिए हथियार और रसद मुहैया कराई थी.

पुलिस ने बताया कि गैंगस्टर विशाल खान को पंजाब के मोहाली स्थित एसएएस नगर थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया गया है. पुलिस अब आरोपी को कोर्ट में पेश करने की तैयारी में जुट गई है. जिसके बाद गैंगस्टर विशाल खान के रिमांड की मांग की जाएगी. पुलिस रिमांड में लेकर यह जानने की कोशिश में है कि आखिर विशाल खान हथियार कहां से लाता है और वह गोल्डी बराड़ से किन नंबरों से बात करता है.

कई केस हैं विशाल खान पर

पंजाब पुलिस के डीजीपी गौरव यादव ने बताया कि गैंगस्टर विशाल खान को एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स ने स्थानीय पुलिस के साथ संयुक्त ऑपरेशन चलाकर पकड़ा है. पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी जिसके बाद इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया है. पुलिस ने रेड मारकर गैंगस्टर को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने बताया कि विशाल खान किसी साजिश के तहत मोहाली पहुंचा था जिसे पुलिस ने नाकाम कर दिया है.

डीजीपी ने बताया कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि गैंगस्टर विशाल खान ट्राइसिटी में किसी वारदात को अंजाम देने के लिए आया था. गैंगस्टर विशाल पर 10 से ज्यादा अपराधिक मामले दर्ज हैं और वह 2023 से विदेश में बैठे लॉरेंस गैंग के गैंगस्टर गोल्डी बराड़ के निर्देशन में काम कर रहा है. विशाल खान कुख्यात गैंगस्टर जोगिंदर उर्फ जोगा (एचआर) से हथियारों की खेप इकट्ठा करता था.

शरद पवार का 4 दिन का दौरा रद्द, तबियत खराब होने के बाद डॉक्टरों ने दी आराम की सलाह

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी शरद पवार ग्रुप के अध्यक्ष शरद पवार ने अपना अगले 4 दिनों का दौरा रद्द कर दिया है. बताया जा रहा है कि उनकी तबीयत खराब हो गई है. डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है. जिसके बाद पवार ने अपने 4 दिन के दौरे को रद्द कर दिया है. डॉक्टरों ने शरद पवार को कुछ दिनों तक लगातार व्यस्त रहने से बचने की सलाह भी दी है. फिलहाल शरद पवार घर पर ही आराम करेंगे क्योंकि वह सर्दी से पीड़ित हैं. शरद पवार फिलहाल पुणे में हैं. सूत्रों के मुताबिक जल्द ही वो मुंबई लौट सकते हैं.

एनसीपी में फूट अजित पवार की बगावत के बाद एनसीपी में दो गुट बंट गए. एनसीपी शरद पवार गुट और दूसरा एनसीपी अजित पवार गुट एनसीपी के कई विधायकों ने अजित पवार का समर्थन किया. इसके बाद अजित पवार को एनसीपी का सिंबल और पार्टी का नाम भी मिल गया. शरद पवार को नया चुनाव चिन्ह अलॉट हुआ, लेकिन नए सिंबल पर चुनाव लड़कर भी शरद पवार ने लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवादी अजित पवार गुट और महागठबंधन को बड़ा झटका दिया. बारामती में ही महागठबंधन की उम्मीदवार सुनेत्रा पवार हार गईं, जबकि सुप्रिया सुले जीत गईं.

विधानसभा चुनाव में लगा करारा झटका

लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में महायुति ने जोरदार वापसी की, राज्य में महायुति को स्पष्ट बहुमत मिला, महायुति की 232 सीटें चुनी गईं. 131 सीटों के साथ बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी को बड़ा झटका लगा, महाविकास अघाड़ी की तीनों पार्टियां मिलकर सिर्फ 50 सीटें ही जीत पाईं

शरद पवार गुट को मिली केवल 10 सीटें

एनसीपी शरद पवार ग्रुप को सबसे कम सीटें मिलीं, एनसीपी शरद पवार ग्रुप को सिर्फ 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. लेकिन उसके बाद भी शरद पवार ने हार नहीं मानी, उन्होंने एक बार फिर राज्य भर में दौरा शुरू किया. महागठबंधन पर करारा हमला बोला गया. अब भी उनके दौरे जारी हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि उनकी तबीयत खराब होने के कारण अगले चार दिनों के दौरे रद्द कर दिए गए हैं.

शरद पवार अगले चार दिनों में राज्य के अलग-अलग जिलों का दौरा करने वाले थे. विधानसभा चुनाव के बाद से ही लोगों से लगातार मिल रहे हैं और समय-समय पर सरकार को लेकर अपनी बात भी रखते हैं

मोकामा को मिलेगा ‘नया सरकार’? 3 सिनेरियो दे रहे हैं संकेत

मोकामा फायरिंग के बाद अनंत सिंह पर जहां कानूनी शिकंजा लगातार कसता जा रहा है. वहीं सियासी तौर पर भी अनंत सिंह अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव के बाद अनंत सिंह की जनता दल यूनाइटेड से नजदीकी बढ़ती जा रही थी. कहा जा रहा था कि जेडीयू के टिकट पर ही छोटे सरकार मोकामा से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन अब बदले समीकरण में छोटे सरकार की राह आसान नहीं है.

फायरिंग की घटना और पुलिस पर सवाल उठाने की वजह से जनता दल यूनाइटेड ने अनंत सिंह से दूरी बना ली है. मुंगेर के सांसद और केंद्र में मंत्री ललन सिंह ने कहा कि दहशत फैलाने वालों को पुलिस किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी. ललन ने 2020 में अनंत को आरजेडी से टिकट मिलने पर भी सवाल उठाया.

अनंत सिंह मोकामा में छोटे सरकार के नाम से मशहूर हैं. कहा जा रहा है कि क्या इस बार मोकामा को नया सरकार मिलेगा? यह इसलिए भी क्योंकि सोनू-मोनू गैंग ने दावा कर दिया है कि अब मोकामा में अनंत सिंह का दौर खत्म हो चुका है.

अनंत के लिए जेडीयू का दरवाजा बंद

जनता दल यूनाइटेड जिस तरीके से अनंत सिंह के खिलाफ मुखर है, उससे कहा जा रहा है कि अनंत सिंह के लिए पार्टी का दरवाजा बंद है. लोकसभा चुनाव में अनंत सिंह ने खुलकर जेडीयू उम्मीदवार ललन सिंह का सपोर्ट किया था, जिसके कारण आरजेडी से उनके रिश्ते खराब हो गए.

2015 का चुनाव छोड़ दें तो अभी तक अनंत सिंह किसी न किसी पार्टी से ही जीत हासिल करते रहे है. 2005 और 2010 में अनंत जेडीयू और 2020 में आरजेडी के सिंबल पर चुनाव जीते. 2022 में अनंत की सदस्यता गई तो उनकी पत्नी ने आरजेडी सिंबल पर जीत हासिल की.

हालांकि, अनंत सिंह यह बात लगातार कहते रहे हैं कि उन्हें विधायक बनने के लिए किसी भी पार्टी की जरूरत नहीं है, लेकिन जिस तरीके से मोकामा का सियासी समीकरण लगातार बदलता जा रहा है, उससे बिना पार्टी छोटे सरकार की राह आसान हो, इसकी गुंजाइश कम है.

सूरजभान एक्टिव, सोनू-मोनू भी मुखर

गैंगवार के बाद जहां अनंत सिंह के धुर-विरोधी सूरजभान एक्टिव हो गए हैं. वहीं दूसरी तरफ सोनू-मोनू भी मुखर है. सोनू ने खुले तौर पर कहा है कि अब मोकामा में अनंत सिंह छोटे सरकार नहीं रह गए हैं.

सूरजभान भी बैकडोर से सोनू-मोनू के समर्थन में हैं. पशुपति पारस की पार्टी में शामिल सूरजभान को आरजेडी गठबंधन से लड़ने की चर्चा है. हाल ही में लालू ने पारस के साथ गठबंधन करने की बात कही थी.

सोनू-मोनू भी मोकामा के कई गांव में अपना प्रभाव रखता है. ऐसे में सूरजभान के साथ अगर दोनों का मेल होता है, तो अनंत का खेल भी हो सकता है. इतना ही नहीं, सांसदी चुनाव लड़ चुके अशोक सम्राट भी अनंत से बदला लेने के मूड में हैं.

अशोक सम्राट की पत्नी के खिलाफ लोकसभा चुनाव 2024 में अनंत ने सीधा मोर्चा खोल रखा था.

बेटे के राजनीति में आने की चर्चा

अनंत सिंह के दो जुड़वा बेटे हैं- अभिषेक और अंकित. दोनों राजनीति शास्त्र से पढ़ाई भी कर चुके हैं. अनंत जेल में थे, तब मां के साथ इलाके में घूमते थे. कहा जा रहा है कि अनंत अपने किसी एक बेटे को सियासत में उतार सकते हैं.

अनंत सिंह भी इसी तरह राजनीति में आए थे. उस वक्त उनका भाई दिलीप सिंह सरकारी शिकंजे में थे. जब अनंत के सियासत में आने की चर्चा हुई तो दिलीप ने मोकामा की सीट भाई के लिए छोड़ दी. अनंत इसके बाद इलाके में छोटे सरकार के नाम से मशहूर हो गए.

2022 में अनंत जेल में थे, तब अपनी पत्नी को उतार दिया. उनकी पत्नी जीत तो गई, लेकिन सियासत में सक्रिय नहीं रही. ऐसे में अब चर्चा उनके बेटे की राजनीति में आने की है.

शुक्रवार को अनंत सिंह जब जेल गए, तब उनके दोनों बेटे बेऊर पर मौजूद थे.

मोकामा में घट रहा अनंत का जनाधार

मोकामा सीट पर अनंत सिंह ने 2020 के चुनाव में 35 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी. अनंत ने इस चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को हराया था. 2022 के उपचुनाव में अनंत की पत्नी ने जीत तो दर्ज की, लेकिन मार्जिन 16 हजार पर पहुंच गया.

2024 के लोकसभा चुनाव में अनंत के समर्थन के बावजूद जेडीयू उम्मीदवार ललन सिंह मोकामा में पिछड़ गए. आरजेडी उम्मीदवार ने यहां 1100 वोटों की बढ़त हासिल की.