उल्फा नेता पर “मेहरबान” बांग्लादेश, पहले मौत की सजा रद्द, अब आजीवन कारावास घटाकर किया 14 साल
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बांग्लादेश की अदालत पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोपों में बरी करने के बाद अब उल्फा नेता पर भी मेहरबान हो गई। उच्च न्यायालय ने देश के शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में उल्फा नेता परेश बरुआ की उम्रकैद की सजा को 14 साल की कैद में बदल दिया है, जबकि कई अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है। इससे पहले कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को रद्द कर दिया था और उसे आजीवन कारावास में बदल दिया था।
बता दें कि असम के यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट के सैन्य कमांडर बरुआ भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की मोस्ट वांटेड सूची में शामिल है। वह फिलहाल चीन में है और उसकी अनुपस्थिति में बांग्लादेश हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। बुधवार को बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने दो दशक पहले असम में अलगाववादी समूह के ठिकानों पर हथियारों से भरे ट्रकों की तस्करी करने के प्रयास के सिलसिले में उल्फा नेता परेश बरुआ की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 14 वर्ष कारावास में बदल दिया।
अटॉर्नी जनरल ब्यूरो के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया, दो न्यायाधीशों की पीठ ने बरुआ और चार बांग्लादेशी दोषियों की उम्रकैद की सजा में कटौती की है। अधिकारी के मुताबिक, उच्च न्यायालय ने मंगलवार को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के पूर्व गृह राज्य मंत्री लुत्फुज्जमां बाबर और पांच अन्य को बरी कर दिया, जिन्हें इसी मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने बताया कि अदालत ने बरुआ सहित पांच अन्य दोषियों की जेल की सजा में कटौती की और तीन अन्य आरोपियों की मौत के कारण उनकी अपील निरस्त (समाप्त) घोषित कर दी।
परेश बरुआ को 2014 में उसकी गैरमौजूदगी में चलाए गए मुकदमे में मौत की सजा सुनाई गई थी। तब बांग्लादेश में शेख हसीना प्रधानमंत्री थीं। हालांकि, मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद पिछले महीने, अदालत ने बरुआ की मौत की सजा को कम कर उम्रकैद में बदला था।
अप्रैल 2004 में चट्टोग्राम (अब चटगांव) के रास्ते पूर्वोत्तर भारत में उल्फा के ठिकानों पर 10 ट्रक हथियार पहुंचाने के कुछ 'प्रभावशाली लोगों' के कथित प्रयासों को नाकाम कर दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों ने इन ट्रक पर लदे हथियार जब्त कर लिए थे, जिनमें 27,000 से अधिक ग्रेनेड, 150 रॉकेट लॉन्चर, 11 लाख से अधिक गोला-बारूद, 1,100 सब मशीन गन और 1.14 करोड़ गोलियां शामिल थीं। घटना के सिलसिले में हथियारों की तस्करी के लिए विशेष शक्तियां अधिनियम 1974 के तहत एक मामला और अवैध रूप से हथियार रखने के लिए शस्त्र अधिनियम के तहत दूसरा मामला दर्ज किया गया था।
दोनों मामलों में पूर्व गृह राज्य मंत्री लुत्फुज्जमां बाबर, सेना खुफिया महानिदेशालय के पूर्व प्रमुख जनरल रजाकुल हैदर चौधरी, सरकारी उर्वरक संयंत्र के पूर्व प्रबंध निदेशक मोहसिन तालुकदार, इसके महाप्रबंधक इनामुल हक, उद्योग मंत्रालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव नुरूल अमीन और जमात-ए-इस्लामी नेता मोतिउर रहमान निजामी को मौत की सजा सुनाई गई थी। वहीं, बरुआ सहित पांच आरोपियों के लिए उम्रकैद की सजा मुकर्रर की गई थी।
Jan 17 2025, 10:02