लखनऊ में भी झांसी जैसा हो सकता है अग्निनकांड, कई सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में आग से निपटने के नहीं हैं पुख्ता इंतजाम
लखनऊ । झांसी ही नहीं यूपी की राजधानी लखनऊ में भी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में आग से निपटने के इंतजाम नहीं है। यहां भी झांसी जैसा अग्निकांड हो सकता है। चूंकि राजधानी के अंदर बड़े पैमाने पर अस्पतालों में आग से निपटने का इंतजाम ही नहीं है। आज भी 29 सरकारी अस्पताल में आग से बचाव के इंतजाम वेंटिलेटर पर हैं। बिना अग्निशमन के अनापत्ति प्रमाणपत्र के ये अस्पताल चल रहे हैं। साफ है कि घटनाओं के बाद भी जिम्मेदार नहीं चेते। महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज झांसी में आग लगने से 10 नवजातों की मौत हो गई। इस घटना ने सबको झकझोर दिया। अस्पतालों में आग से बचाव के इंतजाम और मानकों का पालन सवालों के घेरे में है। राजधानी की बात करें तो यहां 29 सरकारी अस्पतालों के पास ही फायर एनओसी नहीं है।
इस कतार में बड़े अस्पतालों में शुमार सिविल अस्पताल, डफरिन, झलकारीबाई, बीआरडी, रानीलक्ष्मीबाई, रामगसागर मिश्रा, जानकीपुरम ट्रॉमा सेंटर, ठाकुरगंज संयुक्त चिकित्सालय शामिल हैं। यही नहीं इन अस्पतालों में स्मोक अलार्म तक बंद पड़े हैं। वार्डों में अग्निशामक यंत्र नहीं लगे हैँ। यही नहीं इन अस्पतालों के बाहर जाम जैसे हालात रहते हैं। जो किसी भी हादसे की भयावहता को बढ़ा सकते हैं।सीएमओ के अधीन 21 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें अलीगंज, रेडक्रॉस, इंदिरानगर, आलमबाग चंदरनगर, गोसाईंगंज, गुडंबा, बेहटा, हजरतगंज एनके रोड, सिल्वर जुबली, मोहनलालगंज, इटौंजा, बीकेटी, चिनहट, ऐशबाग, टुड़ियागंज, माल, मलिहाबाद, काकोरी, नगराम व अन्य सीएचसी शामिल हैं। इनमें से किसी के पास फायर एनओसी नहीं है। सरकारी के साथ ही अगर निजी अस्पतालों को जोड़ दिया जाए तो बगैर अनापत्ति प्रमाणपत्र के चल रहे अस्पतालों की संख्या 650 तक पहुंच जाती है। स्वास्थ्य विभाग छोटे निजी अस्पतालों से शपथ पत्र लेकर उनका पंजीकरण कर लेता है। निजी केंद्रों में अग्निशामक यंत्र दिखाकर खानापूर्ति की जाती है। अहम बात यह है निजी अस्पतालों में प्रवेश-निकास का गेट भी एक है। इसके बाद भी उनके संचालन पर विभाग मुहर लगा रहा है।
शपथ पत्र दिया...सिस्टम ने मान लिया...और हो जाता है अस्पताल का पंजीकरण
स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है 50 बेड से अधिक अस्पतालों के लिए फायर एनओसी जरूरी है। इससे कम बेड वाले अस्पतालों के लिए एनओसी की जरूरत नहीं है। इसका फायदा निजी अस्पताल उठाते हैं। मानक पूरे करने के नाम पर आग बुझाने में काम आने वाले सिलिंडर टांगकर खानापूर्ति कर लेते हैं। ज्यादातर निजी अस्पतालों में स्मोक अलार्म सिस्टम नहीं है। ये निजी अस्पताल शपथ पत्र देकर पंजीकरण करा लेते हैं। शपथ पत्र में हवाला देते हैं कि अगर अस्पताल में आग लगने से जन हानि हुई तो इसके लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे।
कब-कब हादसे
2024 : 2 जनवरी सिविल अस्पताल की पैथोलॉजी में आग लगी।
23 मई को गोमतीनगर के ऋषि हॉस्पिटल में आग लगी।
2 नवंबर को क्वीन मेरी अस्पताल में आग लगी। इसी दिन गोमतीनगर में डॉक्टर के क्लीनिक में भी आग लगी थी।
2023 : 9 जुलाई को आलमबाग के सिटी हॉस्पिटल एंड ट्रॉमा सेंटर में आग लगी।
19 सितंबर को रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल की इमरजेंसी में आग लगी।
2023 में ही 18 दिसंबर को आग लगने से पीजीआई में एक महिला और एक बच्चे की मौत हो गई थी।
2020 : केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में 8 अप्रैल को आग लगी थी। गनीमत रही जनहानि नहीं हुई।
2018 : 19 मई को ग्लोब हॉस्पिटल निरालानगर में घटना।
Nov 18 2024, 10:44