गोह शिक्षण संस्थान के निदेशक के निधन पर जताया शोक।
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गोह । सोमवार को प्रखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत दधपी में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर शोक सभा का आयोजन किया गया।जिसकी अध्यक्षता पूर्व मुखिया राजेंद्र प्रसाद वर्मा ने किया। उन्होंने कहा कि निजी संस्थान तपोभूमि के निदेशक सह दधपी गांव निवासी 55 वर्षीय सुदामा शर्मा एक कुशल ग्रामीण शिक्षक थे। उनका अकास्मिक निधन होने से शिक्षा जगत में अपूर्णनिए क्षति हुई है। कम समय में चले जाने से प्रखंड क्षेत्र के लोगों में काफी गहरी संवेदना है।वे अपने पीछे एक पुत्र ,दो पुत्री व पत्नी को छोड़ गए हैं। उनका एकलौता पुत्र ज्ञयान प्रकाश एयर लाइंस सर्विस में कार्यरत हैं। पिता के निधन से पुत्र काफी विचलित है।उनके निधन पर शामिल लोगों ने स्वजनों को संतावना दिया है। शिक्षक के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दिया ।इस शोक सभा में उपस्थित ओमप्रकाश शर्मा उर्फ रामकेवल, धर्मेंद्र कुमार, लक्ष्मण शर्मा, यमुना प्रसाद, अमन कुमार, विजय यादव,अवधेश कुमार, सत्यनारायण राम, वकील कुमार, सहित दर्जनों समाजसेवी मौजूद थे।
गोह से श्रवण कुमार के रिपोर्ट


गोह । सोमवार को प्रखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत दधपी में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर शोक सभा का आयोजन किया गया।जिसकी अध्यक्षता पूर्व मुखिया राजेंद्र प्रसाद वर्मा ने किया। उन्होंने कहा कि निजी संस्थान तपोभूमि के निदेशक सह दधपी गांव निवासी 55 वर्षीय सुदामा शर्मा एक कुशल ग्रामीण शिक्षक थे। उनका अकास्मिक निधन होने से शिक्षा जगत में अपूर्णनिए क्षति हुई है। कम समय में चले जाने से प्रखंड क्षेत्र के लोगों में काफी गहरी संवेदना है।वे अपने पीछे एक पुत्र ,दो पुत्री व पत्नी को छोड़ गए हैं। उनका एकलौता पुत्र ज्ञयान प्रकाश एयर लाइंस सर्विस में कार्यरत हैं। पिता के निधन से पुत्र काफी विचलित है।उनके निधन पर शामिल लोगों ने स्वजनों को संतावना दिया है। शिक्षक के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दिया ।इस शोक सभा में उपस्थित ओमप्रकाश शर्मा उर्फ रामकेवल, धर्मेंद्र कुमार, लक्ष्मण शर्मा, यमुना प्रसाद, अमन कुमार, विजय यादव,अवधेश कुमार, सत्यनारायण राम, वकील कुमार, सहित दर्जनों समाजसेवी मौजूद थे।

लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा के तहत बुधवार को 36 घंटे तक रखा जाने वाला निर्जला व्रत शुरू हो गया। व्रतियों ने शाम को खरना कर व्रत शुरू किया। अब अगले 36 घंटे तक छठ व्रती बिना अन्न जल ग्रहण किए भगवान भास्कर की आराधना में लीन रहेंगे। गुरुवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को पहला तथा शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत संपन्न होगा। तीर्थनगरी ऋषिकेश और आसपास के क्षेत्रों में चार दिवसीय छठ पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। छठ पर्व के दूसरे दिन बुधवार को छठ व्रतियों ने सुबह से व्रत रख शाम को मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से गुड़ के साथ अरवा चावल मिलाकर खीर बनाई। खीर के साथ घी लगी रोटी और कटे हुए फलों का प्रसाद भगवान को चढ़ाया। दूध और गंगाजल से प्रसाद में अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने इसे ग्रहण किया। इस बीच घर की अन्य महिलाएं छठ गीत गाती रहीं। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत भी शुरू हो गया,जो शुक्रवार सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होगा। खरना के बाद व्रतियों ने अपने परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों को प्रसाद वितरित किया। औरंगाबाद छठ व्रति मिन्नी कुमारी, पूजा ,प्रभा ,न्यू एरिया निवासी पिंकी सिंह ,शकुंतला देवी ने बताया कि छठ चार दिन तक चलने वाला लोक महापर्व है। इसमें कार्तिक मास की षष्टी तिथि यानी छठ पर्व के तहत गुरुवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर (डूबते सूर्य) को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद सप्तमी यानी शुक्रवार को उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद यह पर्व संपन्न होगा।
बिहार के रहने वाले लोगों के लिए आस्था के महापर्व छठ की कल नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो चुकी है. आज खरना पूजा है. चार दिवसीय इस पर्व के दौरान छठी मैया और भगवान भास्कर की पूजा का विधान है. आज इस चार दिवसीय पूजा दूसरा दिन है. आज के दिन खरना पूजा होती है. खरना का अर्थ है शुद्धता. यह पूजा नहाए खाए के अगले दिन मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन अंतरमन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है. खरना पूजा इस महापर्व के दौरान की जाने वाली अहम पूजा है. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन छठी मैया का आगमन होता है, जिसके बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. *चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाने का विधान* आज खरना पूजा के दिन व्रती नहाने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करती हैं. शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर साठी के चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाई जाती है. जिसे भोग के रूप में सबसे पहले छठ माता को अर्पित किया जाता है. आज के दिन व्रती उपवास रख कर रात में खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं. फिर घर के सदस्यों को प्रसाद दिया जाता है. इस पूजा के बाद से ही 36 घंटे के लिए निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है, जिसका समापन छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है. *पारण के साथ पूरा होता है उपवास* 6 नवंबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 7 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा. फिर 8 नवंबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उदयगामी सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा. *छठ पूजा विधान* नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस महापर्व का विधान चार दिनों तक चलता है. भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है. इस तिथि में व्रती महिलाएं शाम के समय नदी, तालाब-सरोवर या कृत्रिम रूप से बनाए गए जलाशय में खड़ी होकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना करती हैं. उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. दीप जलाकर रात्रि पर्यंत जागरण के साथ गीत एवं कथा के जरिए भगवान सूर्य की महिमा का बखान का श्रवण किया जाता है. इसके बाद सप्तमी की तिथि में प्रातः काल में उगते हुए सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है. फिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ इस महापर्व का समापन होता है.
औरंगाबाद से धिरेन्द्र पाण्डेय
Nov 11 2024, 21:16
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