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आज का पंचांग- 6 अक्टूबर 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- आश्विन

तिथि

तृतीया - 07:49 ए एम तक

नक्षत्र

विशाखा - 12:11 ए एम, अक्टूबर 07 तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 06:16 ए एम

सूर्यास्त- 06:02 पी एम

चन्द्रोदय- 09:15 ए एम

चन्द्रास्त- 07:53 पी एम

अशुभ काल

राहू- 04:33 पी एम से 06:01 पी एम

यम गण्ड- 12:09 पी एम से 01:37 पी एम

कुलिक- 03:05 पी एम से 04:33 पी एम

दुर्मुहूर्त- 04:27 पी एम से 05:14 पी एम

वर्ज्यम्- 04:33 ए एम, अक्टूबर 07 से 06:18 ए एम, अक्टूबर 07

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:33 पी एम

अमृत काल- 08:45 ए एम से 10:33 ए एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:27 ए एम

शुभ योग

रवि योग- 06:17 ए एम से 12:11 ए एम, अक्टूबर 07

शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा देवी की होती पूजा ,इस पूजा से लोगों का होता है कल्याण, आइये जानते हैं क्या है पूजा

शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर, 2024 से आरंभ हो चुकी है। इसके साथ ही मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में से तीन स्वरूपों की पूजा की जा चुकी है। वहीं चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा देवी की पूजा करने का विधान है। आज रविवार 6 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन है। आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की पूजा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और भोग।

कब है नवरात्रि का चौथा दिन?


आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि सुबह 7 बजकर 49 मिनट से आरंभ हो रही है, जो 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 47 मिनट तक समाप्त हो रही है। 

ऐसे में सूर्योदय के समय उदयातिथि न होने के कारण 7 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन पड़ेगा। ऐसे में मां कुष्मांडा देवी की पूजा 7 अक्टूबर को की जाएगी।

मां कूष्मांडा की पूजा से लाभ

मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने सृष्टि की रचना की थी। कूष्मांडा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है कुम्हड़ा। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि मां कूष्मांडा की पूजा विधिवत तरीके से करने से व्यक्ति हर तरह के दुख-दरिद्रता से निजात पा लेता है और जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है।

 मां कुष्मांडा की पूजा करने से सभी दुखों से छुटकारा मिलता है। घर में धन संपदा की प्राप्ति भी होती है।

कैसा है मां कूष्मांडा का स्वरूप?


देवी भगवती पुराण के अनुसार, मां दुर्गा के चौथा स्वरूप देवी कूष्मांडा का है। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां के एक हाथ में जपमाला और अन्य सात हाथों में धनुष, बाण, कमंडल, कमल, अमृत पूर्ण कलश, चक्र और गदा शामिल है। वे सिंह पर सवार हैं।

माता कूष्मांडा को ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि जब सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हुई थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य यानी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

अष्टभुजा वाली मां कूष्मांडा की को पीला रंग बेहद ही प्रिय होता है। इसलिए पीले कमल का फूल अर्पित करने से मां कुष्मांडा प्रसन्न होती है।

मां कूष्मांडा देवी की पूजा विधि


नवरात्रि के चौथे दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। सबसे पहले कलश आदि से पुराने फूल, भोग आदि हटा दें और फिर पूजा आरंभ करें। फिर मां दुर्गा और उनके स्वरूपों की पूजा करें।

सिंदूर, फूल, माला, अक्षत, कुमकुम, रोली आदि चढ़ाने के साथ मां कुष्मांडा का प्रिय भोग मालपुआ लगाएं। मां कूष्ठमांडा हरी इलाइची औऱ सौंफ से प्रसन्न होती है।

इसके बाद जल चढ़ाएं। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर मां दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ के साथ मां कूष्मांडा के मंत्र, स्तोत्र आदि का पाठ कर लें। करें। अंत में विधिवत आरती के बाद भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

मां कूष्मांडा की पूजा के लिए मंत्र


1. सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

2. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कूष्मांडा बीज मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:

आज का राशिफल,5 अक्टूबर 2024:जानिये राशिफल के अनुसार आप का दिन कैसा रहेगा..?

मेष राशि- मन आनंदित रहेगा। प्रेम में लिप्त रहेंगे। संबंधों में लिप्त रहेंगे। नौकरी चाकरी की स्थिति बहुत अच्छी रहेगी। व्यापार अच्छा रहेगा। सुखद दिन का निर्माण हो रहा है। हरी वस्तु का दान करें और शुभ होगा।

वृषभ राशि- शत्रु स्वयं नतमस्तक होंगे। बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलेगा। गुण-ज्ञान की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य थोड़ा ऊपर-नीचे रहेगा। प्रेम संतान भी अच्छा रहेगा। एक सुखद समय। लेकिन थोड़ा परेशानी भरा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

मिथुन राशि- नव प्रेम का आगमन होगा। बच्चों की स्थिति में सुधार। प्रेम में बहुत अपनापन। विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा समय। कलाकारों के लिए बहुत अच्छा समय। थोड़ा अद्भुत दिख रहा है। थोड़ा स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिएगा। लाल वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- लग्जरीपूर्ण जीवन रहेगा। भूमि, भवन वाहन की खरीदारी संभव है। घर में कुछ उत्सव संभव है। स्वास्थ्य में सुधार, प्रेम-संतान व व्यापार अभी मध्यम रहेगा। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- पराक्रम रंग लाएगा। अपनों का साथ होगा। व्यावसायिक सफलता मिलेगा। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम, संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा है। पीली वस्तु पास रखें।

कन्या राशि- धन का आवक बढ़ेगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। मन प्रफुल्लित रहेगा। अच्छे भोजन का रसास्वादन करेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

तुला राशि- समाज में आपका कद बढ़ेगा। समाज में आप सराहे जाएंगे। जरूरत के हिसाब से जीवन में वस्तुएं उपलब्ध होंगी। महफिल की शान होंगे आप। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। नीली वस्तु पास रखें।

वृश्चिक राशि- खर्च की अधिकता रहेगी लेकिन आभूषण, फैशन व जेवर इत्यादि में खर्चे होंगे। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम। प्रेम, संतान अच्छा, व्यापार अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

धनु राशि- धन आगमन होगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। यात्रा में लाभ होगा। रुका हुआ धन वापस मिलेगा। शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य अच्छा है, प्रेम-संतान बहुत अच्छा व व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु पास रखें।

मकर राशि- व्यापारिक स्थिति दूर-दूर तक पहुंचेंगी। कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। उच्चाधिकारियों का आशीर्वाद मिलेगा। पिता का साथ होगा। जीवनसाथी भी व्यावसायिक तरक्की कर रहे हैं। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कुंभ राशि- भाग्यवश कुछ काम बनेंगे। कार्यों की विघ्न बाधा खत्म होगी। स्वास्थ्य अच्छा, प्रेम-संतान अच्छा, व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- बचकर पार करें। चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। बच्चों की सेहत पर ध्यान दें। प्रेम में किसी बड़े झगड़े से बचें। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार मध्यम। काली जी को प्रणाम करते रहें।

आज का पंचांग- 5 अक्टूबर 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रह योग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- आश्विन

तिथि

तृतीया - पूर्ण रात्रि तक

नक्षत्र

स्वाती - 09:33 पी एम तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 06:16 ए एम

सूर्यास्त- 06:02 पी एम

चन्द्रोदय- 08:19 ए एम

चन्द्रास्त- 07:18 पी एम

अशुभ काल

राहू- 09:13 ए एम से 10:41 ए एम

यम गण्ड- 01:37 पी एम से 03:06 पी एम

कुलिक- 06:16 ए एम से 07:44 ए एम

दुर्मुहूर्त- 06:16 ए एम से 07:03 ए एम, 07:03 ए एम से 07:50 ए एम

वर्ज्यम्- 03:46 ए एम, अक्टूबर 06 से 05:32 ए एम, अक्टूबर 06

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:33 पी एम

अमृत काल- 08:45 ए एम से 10:33 ए एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:27 ए एम

शुभ योग

सर्वार्थ सिद्धि योग- 06:16 ए एम से 09:33 पी एम

रवि योग- 09:33 पी एम से 06:17 ए एम, अक्टूबर 06

नवरात्रि का तीसरा दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा, जानिये मां चंद्रघंटा की शुभ मुहूर्त, पूजा का महत्व


 

नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा विधि से लेकर आरती तक पूरी जानकारी.

नवरात्रि का तीसरा दिन आज, जान लें मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि, भोग, मंत्र, आरती और महत्व

नवरात्रि का तीसरा दिन कल, जान लें मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त

 नवरात्रि के तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित हैं. इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. मां चंद्रघंटा के स्वरूप की बात की जाए तो मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला और इनका वाहन सिंह है. इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और इनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्रों से सुसज्जित हैं. मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है. माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं. 

मान्यता है कि नवरात्रि के तीसरे दिन मां मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति पराक्रमी और निर्भय हो जाता है, इसके अलावा जीवन के सभी संकट भी दूर हो जाते हैं.

मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त 

वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा.

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि

मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. फिर मां चंद्रघंटा का ध्यान और स्मरण करें. माता चंद्रघंटा की मूर्ति को लाल या पीले कपड़े पर रखें. मां को कुमकुम और अक्षत का लगाएं. विधिपूर्वक मां की पूजा करें. मां चंद्रघंटा को पीला रंग अर्पित करें. मां चंद्रघंटा देवी को मिठाई और दूध से बनी खीर बहुत पसंद है. देवी चंद्रघंटा की पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें. दुर्गा सप्तशती और चंद्रघंटा माता की आरती का पाठ करें.

माना जाता है कि मां चंद्रघंटा को खीर बहुत पसंद है इसलिए मां को केसर या साबूदाने की खीर का भोग लगा सकते हैं. पंचामृत का मिश्रण इन सभी पांच गुणों का प्रतीक है. पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण होता है. यह मां चंद्रघंटा को अत्यंत प्रिय है. यह मिश्रण पांच पवित्र पदार्थों से बना होता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है. दूध को शुद्धता और पोषण का भी प्रतीक माना जाता है. इसलिए आप मां चंद्रघंटा को कच्चा दूध भी चढ़ा सकते हैं. दही भी मां चंद्रघंटा को बहुत प्रिय है. आप दही को सादा या फिर फलों के साथ मिलाकर भी चढ़ा सकते हैं.

मां चंद्रघंटा पूजा मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे काम।।

चंद्र समान तू शीतल दाती।

चंद्र तेज किरणों में समाती।।

क्रोध को शांत बनाने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली।।

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।

सुंदर भाव को लाने वाली।

हर संकट मे बचाने वाली।।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।

सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।

शीश झुका कहे मन की बाता।

पूर्ण आस करो जगदाता।।

कांची पुर स्थान तुम्हारा।

करनाटिका में मान तुम्हारा।।

नाम तेरा रटू महारानी।

भक्त की रक्षा करो भवानी।।

मां चंद्रघंटा पूजा का महत्व 

मान्यता के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को शौर्य, पराक्रम और साहस की प्राप्ति होती है. माता रानी के आशीर्वाद से व्यक्ति जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति मिलती है. इसके अलावा मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है.

आज का राशिफल, 4अक्टूबर 2024:जानिये राशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा

ग्रहों की स्थिति : गुरु वृषभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, सूर्य, बुध,केतु कन्या राशि में, शुक्र और चंद्रमा तुला राशि में, शनि वक्री होकर के कुंभ राशि में और राहु मीन राशि के गोचर में चल रहे हैं। राशिफल देखते हैं-

मेष राशि- जीवनसाथी के साथ आनंददायक जीवन गुजारेंगे। नौकरी-चाकरी की स्थिति बहुत अच्छी है स्वास्थ्य में सुधार। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात। संतान थोड़ा मध्यम रहेगा, व्यापार बहुत अच्छा रहेगा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

वृषभ राशि- शत्रु भी मित्रवत व्यवहार करेंगे। स्वास्थ्य थोड़ा नरम-गरम। प्रेम संतान बहुत अच्छा। बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मिथुन राशि- लिखने-पढ़ने में समय व्यतीत करें। विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा समय। लेखकों के लिए, कलाकारों के लिए, कवियों के लिए बहुत अच्छा। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम, प्रेम- संतान अच्छा। व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- भूमि, भवन वाहन की खरीदारी की प्रबल योग बन रहा है। स्वास्थ्य बहुत अच्छा, प्रेम, संतान की अभी मध्यम है, व्यापार भी मध्यम है। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- पराक्रम रंग लाएगा। रोजी-रोजगार में तरक्की करेंगे। स्वास्थ्य में सुधार। प्रेम, संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कन्या राशि- धन का आवक बढ़ेगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। आपको शब्दों से अमृत टपकेंगे। आप अपने शब्दों के माध्यम से कोई भी कार्य कर बैठेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

तुला राशि- आकर्षण के केंद्र बने रहेंगे। जो चाहेंगे, वैसा होगा। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

वृश्चिक राशि- फैशन इत्यादि में खर्च की अधिकता रहेगी। कर्ज की स्थिति आ सकती है। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम। प्रेम, संतान अच्छा, व्यापार अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

धनु राशि- आय के नवीन सोर्स बनेंगे। यात्रा का योग बनेगा। शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु पास रखें।

मकर राशि- व्यापारिक स्थिति बहुत अच्छी रहेगी। पिता का साथ होगा। स्वास्थ्य अच्छा, प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार बहुत अच्छा है। सफेद वस्तु पास रखें।

कुंभ राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा का योग बनेगा। धर्म-कर्म में हिस्सा लेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। प्रेम, संतान मध्यम। व्यापार लगभग ठीक रहेगा। काली जी को सफेद वस्तु अर्पित करना ठीक रहेगा।

आज का पंचांग- 4 अक्टूबर 2024:जानिये पंचाग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- आश्विन

तिथि

द्वितीया - 05:30 ए एम, अक्टूबर 05 तक

नक्षत्र

चित्रा - 06:38 पी एम तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 06:15 ए एम

सूर्यास्त- 06:04 पी एम

चन्द्रोदय- 07:25 ए एम

चन्द्रास्त- 06:47 पी एम

अशुभ काल

राहू- 10:41 ए एम से 12:09 पी एम

यम गण्ड- 03:06 पी एम से 04:35 पी एम

कुलिक- 07:44 ए एम से 09:13 ए एम

दुर्मुहूर्त- 08:37 ए एम से 09:24 ए एम, 12:33 पी एम से 01:20 पी एम

वर्ज्यम्- 12:55 ए एम, अक्टूबर 05 से 02:42 ए एम, अक्टूबर 05

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:33 पी एम

अमृत काल- 08:45 ए एम से 10:33 ए एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:27 ए एम

आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन, ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

आज 4 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है।आज मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस पूजा से मां की कृपा बनी रहती है और उसको कार्यों में सफलता मिलती है। 

आज के दिन वैधृति योग, चित्रा नक्षत्र का संयोग बना है और तुला राशि का चंद्रमा है। मां ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र में कमंडल एवं जप की माला धारण करने वाली हैं। वे अपनी कठोर साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। इस वजह से उनको ब्रह्मचारिणी कहते हैं। वे दूसरी नवदुर्गा हैं। 

पूजा के दौरान मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत और शक्कर का भोग लगाना चाहिए. इससे देवी प्रसन्न होती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

नवरात्रि के दूसरे दिन सुबह में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत और मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का संकल्प करते हैं। उसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अक्षत्, कुमकुम, फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करते हैं। 

पूजा के समय उनके मंत्रों का उच्चारण करें। मां ब्रह्मचारिणी को चमेली के फूलों की माला पहनाएं। उसके बाद शक्कर और पंचामृत का भोग लगाएं। दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती भी पढ़ें। पूजा के अंत में मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें।

इधर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति व्रत रखकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि विधान से करता है। उसको कार्यों में सफलता मिलती है। उसके अंदर जप, तप, त्याग आदि जैसे सात्विक गुणों का विकास होता है। वह विषम परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम बन सकता है।

इस बाऱ डोली पर सवार होकर आयीं जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा,

नवरात्र के पहले दिन के आधार पर मां दुर्गा की सवारी के बारे में पता चलता है। नवरात्र में माता की सवारी का विशेष महत्त्व होता है। अगर नवरात्र का आरम्भ सोमवार या रविवार को हो, तो इसका मतलब है कि माता हाथी पर आयेंगी। 

शनिवार और मंगलवार को माता अश्व ; अर्थात घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र का आरम्भ हो रहा हो, तब माता डोली या पालकी पर आती हैं।बुधवार के दिन नवरात्र पूजा आरम्भ होने पर माता नाव पर आरूढ़ होकर आती हैं।

 शारदीय नवरात्र गुरुवार 03 अक्टूबर 2024 से आरम्भ होगा। मां दुर्गा की सवारी जब डोली या पालकी पर आती है, तो यह अच्छा संकेत नहीं है। मां दुर्गा का पालकी पर आना सभी के लिए चिन्ता बढ़ाने वाला माना जा रहा है।

नवरात्र का पहला दिन विशेष महत्त्व रखता है

नवरात्र का पहला दिन विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन को माता रानी के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना का विधान है। नवरात्र पूजा की शुरुआत घटस्थापना के साथ होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि पूरे विधि-विधान के साथ घटस्थापना की जाये, तो इससे माता रानी का साधक के घर में आगमन होता है। 

ऐसे में घटस्थापना की सामग्री में इन चीजों को जरूर शामिल करें, ताकि आपकी पूजा में किसी तरह की बाधा न पंहुचे।

शारदीय नवरात्रःपहले दिन हो रही शैलपुत्री स्वरूप की पूजा, जानें क्या है कथा

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नवरात्रि, देवी दुर्गा को समर्पित नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इन दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती आ रही है। इसमें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, रक्तदंतिका, शाकुंभरी देवी, दुर्गा, भ्रामरी देवी व चंडिका प्रमुख हैं। इन नौ रूपों को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से जाना जाता है।

शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और नवमी तिथि तक चलता है। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का विधान है। इस दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

ऐसा है मां शैलपुत्री का स्वरूप

शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो मां के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वे नंदी बैल की सवारी करती हैं।

मां शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा

मां दुर्गा अपने पहले स्वरुप में 'शैलपुत्री' के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।

देवी सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं,तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। भगवान शिव ने कहा-''प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं,अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'' शंकर जी के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।

सती ने खुद को योगाग्नि में खुद को भस्म कर दिया

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है,दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं, उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया।

शैलपुत्री के रूप में फिर शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं

इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती,हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।