झारखंड में चुनावी घमासान में हेमंत सोरेन के रडार पर बाबूलाल, चम्पाई और अर्जुन मुंडा के बजाय हिमंत विश्व सरमा क्यों...?
झारखंड डेस्क
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारी पूरी हो गयी है। कभी भी चुनाव की तिथि घोषित हो सकती है। इस चुनावी सुगबुगाहट के बीच नेताओं की बयानबाजी तेज हो गई है। बीजेपी की तरफ से प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी, पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा और पूर्व सीएम चंपई सोरेन,लोबिन हेम्ब्रम,सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार पर हमलावर हैं.
वहीं, दूसरी तरफ झामुमो के हेमंत सोरेन अलग रणनीति अपनाते हुए मरांडी, मुंडा और चंपई को छोड़कर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को निशाने पर ले रहे हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा को भाजपा ने झारखंड में बीजेपी की तरफ से चुनाव के सह प्रभारी बनाया हैं। प्रभारी मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं।और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के राजनीति को काट करने के लिए इन दोनों नेताओं को यहां का रणनीतिकार बनाया गया है।
अब इस घड़ी दोनों पक्ष के लिए चुनौती की घड़ी है।अगर झारखंड को फतह करने में शिवराज सिंह चौहान और हिमंत चूकते हैं तो उनके लिए भी आगे आने वाले दिनों में भाजपा के आलाकमान के सामने स्थिति कमजोर होगी ।
वहीं झामुमो को सत्ता में बरकरार रहना और इतने महारथियों को एक साथ पराजय का मुह दिखाना उनके लिए भी कड़ी चुनौती है।
झारखंड में हेमन्त सोरेन के प्रभाव को डगमगाने के लिए कई बड़े आदिवासी चेहरा हैं। बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और चंपई सोरेन बीजेपी के बड़े नेता हैं। अमर कुमार बाउरी भी नेता प्रतिपक्ष हैं, लेकिन हेमंत सोरेन को लगता है कि जनता स्थानीय नेताओं की तुलना में उनके साथ ज्यादा मजबूती से हैं।इस लिए इन नेताओं को टारगेट करने के बजाय जनता के माइंड में यह बात बैठाया जाय कि झारखंड में भाजपा अपने लोगों पर भरोसा करने के बजाय बाहरी लोगों पर ज्यादा भरोसा करती है।
इसी लिए यहां की रणनीति तय करने के लिए असम और एमपी से नेता भेज रही है।इन्ही सभी कारणों से झामुमों पार्टी की रडार पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा हैं और शिवराज सिंह चौहान है।
पिछले महीने जब हिमंत झारखंड दौरे पर लगातार आने लगे तो हेमंत ने उन्हें बाहरी बताते हुए बीजेपी की घेराबंदी शुरू कर दी। हेमंत लगातार अपनी रैली में हिमंत के लिए बाहरी शब्द का प्रयोग कर रहे थे।
इतना ही नहीं, हेमंत की सरकार ने हिमंत के सुरक्षा में खर्च होने वाले पैसे का भी जिक्र किया था। सरकार का कहना था कि हिमंत संवेदनशील राज्य असम के मुख्यमंत्री हैं और उनके बार-बार झारखंड आने से प्रोटोकॉल लागू करना पड़ता है, जिसमें पैसे खर्च होते हैं।
हेमंत सोरेन हिमंत को सियासी तौर पर भी घेर रहे हैं। पिछले दिन उन्होंने असम के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था। इसमें हेमंत ने कहा था कि चाय बागान में काम करने वाले टी-ट्राइब को आदिवासियों का दर्जा दिया जाए। असम में इन समुदाय को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है।
इधर राजनीति के जानकारों का मानना है कि हेमंत सोरेन के रडार पर हिमंत विश्व सरमा क्यों, है इसके कई कारण हैं …
,बैकफुट पर असम के सीएम को धकेलने कि कोशिश
सबसे पहला कारण है कि हिमंत मुखर नेता हैं और जब से वे झारखंड के भाजपा ने उन्हें सह प्रभारी नियुक्त किया वे लहर हेमंत सोरेन पर हमालावर हैं.
हिमंत विश्व सरमा का हर डिविजन के लिए अलग-अलग प्लान तैयार हैं. संथाल में उन्होंने डेमोग्राफी को बड़ा मुद्दा बनाया है. इसी तरह कोल्हान में जेएमएम के भीतर ही सेंध लगा दिया. हिमंत लगातार नाराज नेताओं को भी साध रहे हैं.
ऐसे में हेमंत पर सीधे हिमंत की घेराबंदी कर उन्हें बैकफुट पर धकेलने के कोशिश में झारखंड मुक्ति मोर्चा लग गयी है.
दूसरा कारण है स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दे को हवा देने की कोशिश!
झारखंड में शुरुआत से ही स्थानीय बनाम बाहरी एक बड़ा मुद्दा रहा है. राज्य में स्थानीय नीति की भी मांग लंबे वक्त से हो रही है. हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी हिमंत के जरिए बीजेपी को बाहरी बताने में जुटी है.
हेमंत इसलिए अपनी हर रैली में हिमंत को बाहरी बता रहे हैं. हेमंत सोरेन हिमंत के जरिए झारखंड को लोगों को गोलबंद करना चाहते हैं. 2019 में इसी गोलबंदी के सहारे हेमंत ने बीजेपी की मजबूत सरकार को उखाड़ दिया था.
वहीं इसके बहाने हेमंत आदिवासी को भी साध रहे हैं. हेमंत ने हाल ही में जो पत्र लिखा है, उसमें उन्होंने संथाल, ओरांव और मुंडा समेत आदिवासियों के 4 समुदाय को असम में आरक्षण देने की मांग की है.
हेमंत इस बहाने झारखंड के 25 प्रतिशत आदिवासियों को अपने पक्ष में करना चाह रहे हैं.
तीसरा कारण बीजेपी के स्थानीय नेताओं को कमजोर बताने की रणनीति-
सीएसडीएस के मुताबिक 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड के 21 प्रतिशत लोग ने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे. हेमंत मुख्यमंत्री बने भी. कहा जा रहा है कि इस साल की शुरुआत में जिस तरह से हेमंत जेल गए, उसने उनकी लोकप्रियता और बढ़ा दी है.
झामुमो अब पूरे चुनाव को हेमंत वर्सेज कौन में बदलना चाहती है. बीजेपी में वर्तमान में मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर खींचातनी मची हुई है. इस पद पर बाबू लाल मरांडी और चंपई सोरेन की मजबूत दावेदारी है.
साल के अंत में होगा 81 सीटों पर चुनाव
झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा की 81 सीटों पर चुनाव प्रस्तावित है. हाल ही में चुनाव आयोग ने तैयारियों की समीक्षा की है. राज्य में मुख्य मुकाबला झामुमो और बीजेपी गठबंधन के बीच है.
झारखंड में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी या गठबंधन को कम से कम 42 सीटों पर जीतना जरूरी है. 24 साल पहले गठित झारखंड में अब तक झामुमो के 3 और बीजेपी के 3 मुख्यमंत्री बने हैं.
Sep 30 2024, 13:32