मणिपुरः सीमा पर से घुसपैठ और हिंसा, क्यों बार-बार भड़क उठती है “आग”, लंबा है संघर्ष का इतिहास
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* पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को जातीय हिंसा की आग में जलते हुए डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। समाधान अभी तक कुछ निकला नहीं है। शांति बहाली की कोशिशें हो रही है, लेकिन बात नहीं बन पा रही। कुछ दिनों की शांति के बाद राज्य फिर जल उठता है। सीमा पार से कथित घुसपैठ, हथियारों के इस्तेमाल, ड्रग्स की भूमिका, हिंसा के तमाम कारण बताए जा रहे हैं, लेकिन अब तक समाधान नहीं निकाले जा सकें हैं। मणिपुर में भाजपा शासन कर रही है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की मानें तो आने वाले 4 से 6 महीने में हिंसा पर पूरी तरफ से काबू पाया जा सकेगा। हालांकि, इस बीच एक रिपोर्ट के खुलासे से हडकंप मचा हुआ है। खुफिया जानकारी के अनुसार, 900 से अधिक कुकी उग्रवादी जो ड्रोन-आधारित बम, प्रोजेक्टाइल, मिसाइल और जंगल में युद्ध लड़ने में ट्रेंड हैं उन्होंने म्यांमार के रास्ते मणिपुर में एंट्री कर ली है। रिपोर्ट के अनुसार, ये उग्रवादी 30 सदस्यों के समूहों में बंटे हुए हैं और राज्य के चारों ओर फैले हुए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का दावा कितना सही होगा, ये तो भविष्य ही बताएगा। अब भविष्य देखने से राज्य में हिंसा के इतिहास पर एन नजर डालते हैं। मणिपुर एक ऐसा राज्य रहा है जहां हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है।भारत में विलय के पहले से ये इलाक़ा हिंसक वारदातों का गवाह रहा है और द्वितीय विश्व युद्ध में तो यहाँ जापानी फौजों ने लगातार दो सालों तक बमबारी भी की।60 के दशक में मैतेई समुदाय ने यहां एक बड़ा विद्रोह किया था और दावा किया था कि 1949 में मणिपुर को भारत में धोखे से शामिल किया गया था। इतिहासकारों ने लिखा है कि मणिपुर साम्राज्य की स्थापना ‘निंगथोउजा’ कुनबे के दस क़बीलों के एक साथ आने के बाद हुई। इतिहासकार बताते हैं कि ये इलाक़ा बर्मा और चीन के साथ व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की सेना और ‘मित्र देशों’ की सेना के बीच चल रहे युद्ध का एक बड़ा केंद्र भी रहा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व वाली ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का साथ जापान की सेना ने दिया था क्योंकि बोस जापान की सेना की मदद से ब्रितानी हुकूमत को शिकस्त देना चाहते थे। लेकिन इस मोर्चे पर जापान की सेना और ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। मणिपुर दो सालों तक बमबारी झेलता रहा जिसने पूरे प्रांत में भारी तबाही मचाई थी. इस दौरान इंफ़ाल स्थित राजा का महल भी क्षतिग्रस्त हो गया था। इस तबाही के बाद मणिपुर के लोग ब्रितानी हुकूमत के ख़िलाफ़ गोलबंद होने लगे। आखिरकार ब्रितानी हुकूमत ने 1947 में प्रान्त की बागडोर महाराजा बुधाचंद्र को सौंप दी। *केंद्र शासित घोषित होने के बाद शुरू हुआ संघर्ष* मणिपुर के महाराजा ने शिलॉन्ग में, 21 सितम्बर 1949 को, भारत के साथ विलय के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये और उसी साल 15 अक्टूबर को मणिपुर भारत का अभिन्न अंग बन गया। इसकी औपचारिक घोषणा भारतीय सेना के मेजर जनरल अमर रावल ने की थी। महाराजा बुधाचंद्र की मृत्यु वर्ष 1955 में हो गयी। मणिपुर स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया था और एक निर्वाचित विधायिका के माध्यम से सरकार का गठन भी हो गया। फिर 1956 से लेकर 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित राज्य बना रहा। जानकार मानते हैं कि 1956 में केंद्र शासित राज्य घोषित किये जाने के बाद से ही मणिपुर में संघर्ष शुरू हो गया और बाद में ये संघर्ष हिंसक होने लगा। *अलग राज्य की मांग को लेकर शुरू हुआ उग्र आन्दोलन* इस बीच अलग राज्य की मांग को लेकर राजनीतिक और छात्र संगठनों का उग्र आन्दोलन भी चलता रहा। इस दौरान ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ नाम का संगठन खड़ा किया जो आज़ादी की मांग करने लगा और समाजवादी विचारधारा की वकालत करने लगा। 1971 की जंग के बाद मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री आर के दोरेंद्रो सिंह ने कई अलगाववादी नेताओं से आत्मसमर्पण करवा लिया, जबकि कुछ बाग़ी मैतेई अलगाववादी नेताओं को गिरफ़्तार भी किया गया। इनमें अलगाववादी नेता एन बिशेश्वर सिंह भी शामिल थे जिन्हें त्रिपुरा की जेल में बंद किया गया था जहां उनकी मुलाक़ात पहले से बंद माओवादी नेताओं से हुई। जून 1975 में जेल से छूटने के बाद 16 अन्य मेतेई अलगावादी नेताओं के साथ बिशेश्वर सिंह ने तिब्बत के ल्हासा में शरण ले ली। हथियार चलाने और छापामार युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद वो अपने सहयोगियों के साथ मणिपुर लौटे। मणिपुर आने के बाद बिशेश्वर ने ‘जनमुक्ति छापामार सेना’ का गठन कर लिया और ‘अलगाववादी संघर्ष ने फिर ज़ोर पकड़ लिया। *सत्तर-अस्सी के दशक में चरम पर थी हिंसा* सत्तर के दशक के अंत में और अस्सी के दशक की शुरुआत में कई और अलगाववादी संगठन पनप उठे जिनमें ‘पीपल्स रेवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ़ कांगलेइपाक’, ‘कांगलेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी’ (केसीपी), ‘पोइरेई लिबरेशन फ्रंट’, ‘मेतेई स्टेट कमिटी’ और ‘यूनाइटेड पीपल्स रेवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी’ शामिल थे। इसी दौरान नागा चरमपंथियों ने भी सक्रिय होना शुरू कर दिया। मणिपुर ने नगा बहुल चंदेल, उखरुल, तामेंगलांग और सेनापति ज़िलों में आइज़ैक मुईवाह के नेतृत्व वाले संगठन ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ ने एक के बाद एक हिंसक वारदातों को अंजाम देना शुरू किया। 1993 में मई और सितम्बर महीनों के बीच ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ के हथियारबंद चरमपंथियों के हमलों में सुरक्षा बलों के 120 के आसपास जवान और अधिकारी मारे गए थे। *अलगावादी गतिविधियों और हिंसा के लिए बना विशेष कानून* आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पॉवर्स एक्ट यानी सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958 का ही क़ानून है जो पूर्वोत्तर राज्यों में अलगावादी गतिविधियों और हिंसा को रोकने के लिए बनाया गया था। ये क़ानून तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिष्णु राम मेढ़ी की पहल पर 1958 में ही लाया गया था। शुरू में तो ये क़ानून मणिपुर के नगा बहुल उखरुल ज़िले में ही प्रभावी था, मगर 18 सितंबर 1981 को इसे पूरे मणिपुर में लागू कर दिया गया। हालंकि मार्च 2023 में इसे मणिपुर, असम और नागालैंड के कई इलाकों से हटा लिया गया था। *हालिया हिंसा का कारण* मणिपुर में हाल में भड़की हिंसा का प्रमुख कारण मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग रहा है। मैतेई समुदाय की यह मांग नई नहीं है, बल्कि 10 साल से अधिक समय से वह ये मांग कर रहे हैं। इस बार हिंसा तब भड़की जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए चार हफ्ते के अंदर सिफारिश केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को भेजे। इस संबंध में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मैतेई समुदाय को 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था। उनका कहना है कि अपनी रिति-रिवाज, संस्कृति, जमीन और बोली को बचाए रखने के लिए उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस मिलना चाहिए। मणिपुल हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्यभर में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। राज्य के सभी 10 जिलों में छात्र संगठनों के आह्वान पर हजारों लोग ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ के नाम पर सड़कों पर उतर आए। इन प्रदर्शनों के जरिए मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध किया गया।
Sep 27 2024, 19:33