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सिद्धारमैया सरकार का बड़ा फैसला, कर्नाटक में अब सीबीआई जांच के लिए लेनी होगी राज्य सरकार से सहमति

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पर लगे भूमि घोटाले के आरोपों के बीच राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से राज्यों के मामलों की जांच की अनुमति वापस ले ली है।मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के बाद कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत कर्नाटक राज्य में आपराधिक मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति देने वाली अधिसूचना वापस ले ली गई है।अब केंद्रीय जांच एजेंसी बिना राज्य सरकार की अनुमति के कर्नाटक में प्रवेश नहीं कर सकेगी।

राज्य के कानून मंत्री एचके पाटिल ने सीबीआई पर पक्षपाती कार्रवाईयों का आरोप लगाते हुए कहा, "हम राज्य में सीबीआई जांच के लिए खुली सहमति वापस ले रहे हैं। हम एजेंसी के दुरुपयोग के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हैं। वे पक्षपातपूर्ण हैं...इसीलिए यह निर्णय ले रहे हैं।" उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि सीबीआई या केंद्र सरकार अपने साधनों का उपयोग करते समय उनका विवेकपूर्ण उपयोग नहीं कर रही है। इसलिए मामले-दर-मामले हम सत्यापन करेंगे और सीबीआई जांच के लिए सहमति देंगे। सामान्य सहमति वापस ले ली गई है।

सीएम सिद्धारमैया पर आरोपों के कारण फैसला लेने से इंकार

पाटिल ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला इसलिए नहीं लिया गया है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर भूमि घोटाले के आरोप लगे हैं। पाटिल ने कहा, "हमने जितने भी मामले सीबीआई को भेजे, उनमें उन्होंने कोई आरोपपत्र दाखिल नहीं किए, जिससे कई मामले लंबित रह गए हैं। उन्होंने हमारे द्वारा भेजे गए मामलों की जांच करने से भी इनकार कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं।"उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य सीबीआई को गलत रास्ता अपनाने से रोकना है।

बंगाल-पंजाब समेत विपक्ष शासित कई राज्यों में है रोक

राज्य की कांग्रेस सरकार के इस फैसले के बाद कर्नाटक भी अब उन विपक्षी शासित राज्यों की सूची में शामिल हो गया, जिन्होंने अपने-अपने राज्यों में सीबीआई से खुली सहमति वापस ली है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी और तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने ऐसा किया है। पंजाब में में नवंबर 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी ऐसा फैसला लिया था।

विपक्ष लगाता रहा है एजेंसियों के दुरूपयोग का आरोप

बता दें, विपक्षी राज्य और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र में सीबीआई को लेकर विवाद है। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल केंद्रीय जांच एजेंसियों पर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग सभी पर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा नीत गठबंधन सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। उनका दावा है कि इन एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी दलों और उनके नेताओं को फंसाने या परेशान करने के लिए किया जा रहा है।

कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को भोजनालयों के पहचान पत्र नियम पर आलोचना के बीच फटकार लगाई

हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को कथित तौर पर दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान द्वारा एक विवादास्पद निर्णय के लिए फटकार लगाई गई, जिसमें राज्य भर में भोजनालयों को मालिकों के पहचान पत्र प्रमुखता से प्रदर्शित करने की आवश्यकता थी।

लोक निर्माण और शहरी विकास विभाग के मंत्री सिंह को परामर्श के लिए दिल्ली बुलाया गया और इस मामले पर विवादास्पद टिप्पणी करने से बचने के लिए कहा गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कथित तौर पर इस मामले को संभालने के सिंह के तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है, जो अब राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।

सिंह के अनुसार, नीति में अनिवार्य किया गया है कि दुकानदार और रेहड़ी-पटरी वाले अपने प्रतिष्ठानों पर अपने पहचान पत्र प्रदर्शित करें, जो पारदर्शिता में सुधार और सुरक्षा बढ़ाने के लिए है। मंत्री ने इस कदम के औचित्य के रूप में राज्य में प्रवासियों की बढ़ती संख्या के बारे में जनता की चिंताओं का हवाला दिया।

सिंह ने संवाददाताओं से कहा, "हमने स्ट्रीट वेंडरों के लिए स्थानीय स्ट्रीट वेंडर समिति द्वारा जारी किए गए अपने पहचान पत्र दिखाना अनिवार्य करने का फैसला किया है।" उन्होंने कहा कि यह उपाय हिमाचल प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती संख्या के बारे में स्थानीय लोगों के बीच आशंकाओं को दूर करने के लिए बनाया गया है, खासकर शिमला जैसे लोकप्रिय पर्यटन क्षेत्रों में।

कांग्रेस में असंतोष उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लागू किए गए कार्डों के समान ही कार्ड जारी किए जाएंगे, जिसने कथित तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने के लिए विवाद पैदा किया था। कांग्रेस के भीतर कई लोग चिंतित हैं कि यह नीति उत्तर प्रदेश में लागू किए गए उपायों की याद दिलाती है, जिसका इस साल की शुरुआत में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने तीखा विरोध किया था, जैसा कि एएनआई ने बताया।

कांग्रेस नेतृत्व में जुलाई में यूपी सरकार के निर्देश पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की थी, नेताओं ने इसे धर्मनिरपेक्षता और न्याय की जीत के रूप में सराहा था। अब, एक ऐसे राज्य में इसी तरह के मुद्दे का सामना करते हुए, जहां वह सत्ता में है, कांग्रेस खुद को मुश्किल स्थिति में पाती है। एएनआई के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व ने सिंह से इस निर्णय के पीछे के तर्क पर स्पष्टीकरण देने और यह सुनिश्चित करने को कहा है कि भविष्य में बयान और नीतियां इस तरह से तैयार की जाएं जिससे भ्रम या विवाद उत्पन्न न हो।

‘राहुल बाबा की तीन पीढ़ियों में इतना दम नहीं की 370 वापस ले आएं’, स्टेटहुड के वादे पर अमित शाह का वार*
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गृह मंत्री अमित शाह आज जम्मू-कश्मीर में चुनावी रैली की। उन्होंने चेनानी और उधमपुर में लोगों को संबोधित किया।शाह ने गुरुवार को उधमपुर के चिनैनी विधानसभा के केवी मैदान में आयोजित विजय संकल्प महारैली में भाजपा प्रत्याशी बलवंत सिंह मनकोटिया के लिए और उधमपुर के मोदी मैदान में उधमपुर पूर्व से भाजपा प्रत्याशी आरएस पठानिया व ऊधमपुर पश्चिम से भाजपा उम्मीदवार पवन गुप्ता के लिए जनसमर्थन जुटाया। इस दौरान शाह ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर जमकर हमला बोला। धारा 370 पर विपक्ष पर हमलावर शाह ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में ऐसा चुनाव हो रहा है, जिसमें न धारा 370 है और न ही अलग झंडा। उन्होंने कहा हमारे अध्यक्ष पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे, और मोदी जी ने 5 अगस्त 2019 को इसे खत्म कर दिया। अमित शाह ने आगे कहा कि मोदी जी की सरकार में न पत्थरबाजी हो रही है और न ही आतंकवाद है। राहुल बाबा कल बोले हम स्टेटहुड देंगे। देश की संसद में कहा है कि चुनाव के बाद हम जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देंगे। जम्मू कश्मीर को स्टेटहुड जरूर मिलेगा, लेकिन वो नरेन्द्र मोदी देंगे। उमर अब्दुल्ला और राहुल बाबा कहते हैं कि हम कश्मीर में लोकतंत्र लाएंगे, 70 साल तक जम्मू कश्मीर को इन परिवारों ने बांट के रखा। पहले यहां चुनाव होता था क्या ? ये काम हमारे नेता मोदी जी ने किया। अमित शाह ने कांग्रेस, एनसी, और पीडीपी पर आरोप लगाते हुए कहा इन दलों ने जम्मू-कश्मीर को आतंक में झोंकने का काम किया। 40 वर्षों तक यहां आतंकवाद फैला, जिसमें 40 हजार लोग मारे गए। 70 वर्षों तक कश्मीर के लोकतंत्र को अब्दुल्ला, गांधी और मुफ्ती तीन परिवार ने बांध कर रखा।उस समय फारूक अब्दुल्ला कहां थे? वह गर्मियों में लंदन में छुट्टियां मना रहे थे और महंगी मोटरसाइकिल चला रहे थे। कोई पार्टी नहीं, केवल बीजेपी ने जम्मू और कश्मीर से आतंकवाद को खत्म किया है। अमित शाह ने आगे कहा कि अफल गुरु को फांसी देनी थी या नहीं? जो आतंक फैलाएगा उसका जवाब फांसी से ही दिया जाएगा. शिंदे साहब ने कुछ दिन पहले कहा कि मैं मंत्री तो था पर लाल चौक आने से डरता था, पर आज शिंदे साहब बुलेट प्रूफ गाड़ी की भी जरूरत नहीं है, आप परिवार के साथ आइए।
राहुल गांधी की नागरिकता पर फिर छिड़ी बहस, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत सरकार से मांगा जवाब

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राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुलगांधी की नागरिकता के विवाद पर केंद्र सरकार से ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत की गई शिकायत पर केंद्र सरकार से कार्रवाई का ब्योरा मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेच में कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की ब्रिटिश नागरिकता को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। ये याचिका कर्नाटक के बीजेपी कार्यकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर सीबीआई जांच कराई जाए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने एएसजी सूर्यभान पांडेय को निर्देश देते हुए कहा कि वो इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय से जानकारी हासिल करें।

जून में रायबरेली लोकसभा से इलेक्शन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में 3 महीने पहले ये जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि राहुल गांधी भारत के नहीं बल्कि ब्रिटेन के नागरिक हैं। इसके आधार पर राहुल गांधी का चुनाव पर्चा रद्द करने की मांग की गई थी।

जुलाई में इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा था कि याची पहले तो सिटीजनशिप एक्ट कतहत सक्षम प्राधिकारी के पास शिकायत कर सकता है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि उसके पास पर्याप्त सबूत हैं कि राहुल गांधी ब्रिटेन नागरिक हैं। याची ने दलील दी कि उसके पास तमाम दस्तावेज और ब्रिटिश सरकार के कुछ ई-मेल हैं जिनसे ये साबित होता है कि राहुल गांधी एक ब्रिटिश नागरिक हैं। ऐसे में वो भारत में चुनाव लड़ने के अयोग्य है। वो लोकसभा के सदस्य पद पर नहीं रह सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने गांधी की ब्रिटिश नागरिकता के आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता को भारतीय न्याय संहिता व पासपोर्ट एक्ट के तहत अपराध बताया और केस दर्ज करने की मांग की। याची ने कहा कि वो इस संबंध में सक्षम अधिकारी से दो-दो बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल है।

कंगना रनौत की ‘इमरजेंसी’ कट के साथ रिलीज हो सकती है: सेंसर बोर्ड ने कोर्ट से कहा


केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा है कि अगर निर्माता कुछ अनुशंसित कट करते हैं तो वह भाजपा सांसद कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ को प्रमाण पत्र जारी कर देगा। यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल पर आधारित है।कंगना रनौत फिल्म में इंदिरा गांधी का किरदार निभा रही हैं। यह फिल्म 6 सितंबर को रिलीज होनी थी। हालांकि, प्रमाण पत्र को लेकर निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच विवाद के कारण रिलीज को रोक दिया गया था।

इंदिरा गांधी की मुख्य भूमिका निभाने के अलावा फिल्म का निर्देशन और सह-निर्माण करने वाली कंगना रनौत ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) पर रिलीज में देरी करने के लिए प्रमाणन में देरी करने का आरोप लगाया था। शिरोमणि अकाली दल सहित कुछ सिख संगठनों ने फिल्म पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इसमें समुदाय को गलत तरीके से पेश किया गया है और ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है।

पिछले सप्ताह न्यायालय ने 'आपातकाल' के लिए प्रमाण-पत्र जारी करने पर निर्णय न लेने के लिए सीबीएफसी की आलोचना की थी। न्यायालय ने सीबीएफसी को 25 सितंबर तक अपना निर्णय लेने का निर्देश दिया था। फिल्म के सह-निर्माता जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज ने न्यायालय से प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए सीबीएफसी को निर्देश देने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। गुरुवार को पीठ ने सीबीएफसी से पूछा कि क्या उसके पास फिल्म के लिए "अच्छी खबर" है।

सीबीएफसी के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने न्यायालय को बताया कि बोर्ड की पुनरीक्षण समिति ने अपना निर्णय ले लिया है। उन्होंने कहा, "समिति ने प्रमाण-पत्र जारी करने और फिल्म को रिलीज करने से पहले कुछ कट लगाने का सुझाव दिया है।" जी एंटरटेनमेंट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शरण जगतियानी ने कट लगाने या न लगाने के बारे में निर्णय लेने के लिए समय मांगा। इसके बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को तय की। पिछले सप्ताह जी एंटरटेनमेंट ने आरोप लगाया था कि राजनीतिक कारणों और हरियाणा में आगामी चुनावों के कारण प्रमाणपत्र रोक दिया गया है। पीठ ने तब आश्चर्य जताया था कि सत्तारूढ़ पार्टी रनौत के खिलाफ कार्रवाई क्यों करेगी, जो भाजपा सांसद हैं।

कट्टरपंथियों के दबाव में है बांग्लादेश सरकार? अब हिजाब में नजर आएंगी महिला सैनिक

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बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद जिस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं उससे ऐसा लगने लगा है कि अंतरिम सरकार ने कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए हैं।बांग्लादेश की सेना ने पहली बार महिला सैनिकों को हिजाब पहनने की अनुमति दी है। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर महिला सैनिक हिजाब पहनना चाहती हैं तो वे पहन सकती हैं। पहली बार ऐसा हुआ है, जब बांग्लादेश की सेना ने महिला सैनिकों को हिजाब पहनने की अनुमति दी है। साल 2000 में बांग्लादेश की सेना में महिलाओं को शामिल किया गया था, तभी से सेना में हिजाब पहनना मना था।

एडजुटेंट जनरल कार्यालय से इसको लेकर आदेश जारी किया गया है। जिसके बाद अब महिला सैन्यकर्मियों को हिजाब पहनना वैकल्पिक कर दिया गया है। महिला सैनिक यदि अब हिजाब पहनना चाहती हैं तो पहन सकती हैं। एडजुटेंट जनरल के कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया है, '3 सितंबर को पीएसओ सम्मेलन के दौरान सैद्धांतिक रूप से निर्णय लिया गया, जिसमें इच्छुक महिला कर्मियों को अपनी वर्दी के साथ हिजाब पहनने की मंजूरी दी गई।'

एडजुटेंट कार्यालय ने निर्देश दिया है कि अलग-अलग वर्दी (लड़ाकू वर्दी, कामकाजी वर्दी, साड़ी) के साथ हिजाब के सैंपल प्रस्तुत किए जाएं। सैंपल में फैब्रिक, रंग और माप को भी शामिल करने को कहा गया है। प्रस्तावित हिजाब को पहने हुए महिला सैन्यकर्मियों की रंगीन तस्वीरें गुरुवार 26 सितम्बर तक संबंधित विभाग में जमा करनी होगी।

बता दें कि साल 1997 की शुरुआत में बांग्लादेशी की आर्मी में पुरुषों की तरह ही महिलाओं को अफसर बनने की अनुमति दी गई थी। पहली बार साल 2000 में बांग्लादेश की महिलाएं सेना में अफसर बनीं और साल 2013 में सैनिक के रूप में महिलाएं शामिल हुईं। हालांकि, अभी भी बांग्लादेश में महिलाएं पैदल सेना और आर्मर कोर में अफसर नहीं बन सकती हैं।

मानहानि केस में शिवसेना सांसद संजय राउत दोषी करार, 15 दिन की सजा, 25 हजार जुर्माना

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मानहानि केस में शिवसेना सांसद (उद्धव गुट) संजय राउत दोषी करार दिए गए हैं।कोर्ट ने उन्हें 15 दिन की जेल की सजा सुनाई है। इसके साथ ही उन पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया गया है। बीजेपी नेता किरीट सोमैया की पत्नी मेधा किरीट ने राउत के खिलाफ केस दर्ज कराया था। इस मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट मझगांव ने संजय राउत को मानहानि मामले में दोषी ठहराया है।

बीजेपी नेता किरीट सोमैया की पत्नी मेधा किरीट ने राउत के खिलाफ केस दर्ज कराया था। मेधा ने उन पर 100 करोड़ रुपये के मानहानि का मुकदमा दायर किया था। मेधा सोमैया की अर्जी पर मुंबई के शिवड़ी कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने शिवसेना सांसद को इस मामले में दोषी पाया। मेधा के वकील विवेकानंद गुप्ता ने कहा कि कोर्ट ने संजय राउत को 15 दिन की सजा सुनाई है और उन पर 25 हजार का जुर्माना लगाया है।

डॉ. मेधा किरीट सोमैया के वकील विवेकानंद गुप्ता ने कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट मझगांव ने भाजपा नेता किरीट सोमैया की पत्नी डॉ. मेधा किरीट सोमैया की शिकायत पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत को मानहानि मामले में दोषी ठहराया और उन्हें 15 दिन की कैद की सजा सुनाई और उन पर 25,0000 रुपये का जुर्माना लगाया।सेवरी कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने राज्यसभा सांसद संजय राउत को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत दोषी ठहराया।

क्या है पूरा मामला?

संजय राउत ने साल 20222 में मेधा सोमैया पर मुंबई के मुलुंड में टॉयलेट घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के बाद मेधा के पति और बीजेपी नेता ने राउत को चुनौती दी थी कि वह इसके सबूत दें। राउत की तरफ से सबूत न पेश कर पाने पर मेधा सोमैया ने उन पर 100 करोड़ रुपए का मानहानि मुकदमा दर्ज करवा दिया।

जांच की जरूरत, MUDA घोटाले में सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।

दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।

कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

मुंबई में होने वाले Coldplay इवेंट के लिए बिक रहे फेक टिकट! दर्ज हुई शिकायत

मुंबई में होने वाले कोल्डप्ले (Coldplay) के कॉन्सर्ट के लिए ऑनलाइन टिकट एग्रीगेटर BookMyShow ने कुछ प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी टिकटों की कथित बिक्री के सिलसिले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। BookMyShow कोल्डप्ले के इस कॉन्सर्ट के आधिकारिक टिकटिंग पार्टनर के रूप में कार्य कर रहा है। कंपनी ने एक बयान जारी करते हुए स्पष्ट किया, "BookMyShow का कोल्डप्ले के 'म्यूजिक ऑफ द स्फीयर्स वर्ल्ड टूर 2025' के टिकटों की रीसेल के लिए Viagogo, Gigsberg या किसी अन्य थर्ड पार्टी टिकट बेचने या रीसेलिंग प्लेटफॉर्म से कोई संबंध नहीं है।"

अपने बयान में BookMyShow ने कहा, "भारत में टिकटों की कालाबाजारी को गंभीरता से लिया जाता है तथा यह कानूनन दंडनीय है। हमने इस मामले में पुलिस अफसरों के पास शिकायत दर्ज कराई है तथा जांच में पूरा सहयोग देंगे।" कंपनी ने लोगों से अपील की है कि वे ऐसे घोटालों का शिकार न बनें। अनधिकृत स्रोतों से खरीदे गए टिकटों का जोखिम पूरी तरह से खरीदार पर होगा तथा वे फर्जी हो सकते हैं।

गौरतलब है कि Coldplay 8 वर्ष पश्चात् भारत लौट रहा है। बैंड का कॉन्सर्ट 18, 19, एवं 21 जनवरी 2025 को मुंबई में आयोजित होने वाला है। कालाबाजारी का तात्पर्य इवेंट और कॉन्सर्ट के लिए बड़ी मात्रा में टिकट खरीदकर उन्हें अधिक कीमत पर बेचना है। जनवरी 2025 में मुंबई में होने वाले कोल्डप्ले कॉन्सर्ट के लिए BookMyShow पर टिकट स्कैम के खतरे मंडरा रहे हैं, जबकि लाखों प्रशंसक टिकट पाने के लिए होड़ कर रहे हैं।

रिकॉर्ड बदले-सबूत मिटाए..', कोलकाता रेप-मर्डर केस में बंगाल पुलिस पर CBI का बड़ा खुलासा

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर डॉक्टर के साथ हुए वीभत्स बलात्कार और हत्या के मामले में CBI ने बड़ा खुलासा किया है। केंद्रीय जांच एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में ताला पुलिस थाने के रिकॉर्ड्स के साथ न केवल छेड़छाड़ की गई, बल्कि कुछ झूठे रिकॉर्ड भी तैयार किए गए। जाँच के दौरान पुलिस थाने के कुछ CCTV फुटेज सीबीआई के हाथ लगे, जिन्हें उन्होंने सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब (CFSL) में भेज दिया है। CBI ने कहा कि अभिजीत मंडल और संदीप घोष से पूछताछ के बाद ये साफ हुआ कि उन्होंने मामले को गलत दिशा में मोड़ने के लिए झूठी जानकारी रिकॉर्ड में डाली थी। इन दोनों के मोबाइल डेटा भी CFSL को भेजे गए हैं, जिनसे और सबूत मिलने की संभावना है। CBI ने आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहाँ कोर्ट ने उन्हें फिर से 30 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इस मामले में अब तक तीन गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं—संजय रॉय, संदीप घोष और अभिजीत मंडल। पुलिस जांच कर रही है कि कहीं ये तीनों मिलकर अपराध की साजिश में तो शामिल नहीं थे। घटना 9 अगस्त 2024 को हुई थी, जब आरजी कर मेडिकल कॉलेज की एक जूनियर डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना की जानकारी सुबह 10 बजे ताला थाने को दी गई, लेकिन बंगाल पुलिस ने FIR रात के 11:30 बजे दर्ज की। इस घटना के बाद कई डॉक्टर सड़कों पर उतर आए थे और न्याय की मांग की थी। पीड़िता के परिवार ने भी आरोप लगाया कि उन्हें बहुत देर बाद उनकी बेटी से मिलने दिया गया। विवाद बढ़ने पर पुलिस ने संजय रॉय को गिरफ्तार कर लिया, जबकि थाना प्रभारी अभिजीत मंडल और संदीप घोष को बाद में CBI द्वारा पकड़ा गया। अब CBI की जांच में यह स्पष्ट हो रहा है कि सबूतों से छेड़छाड़ की गई थी। इस गंभीर मामले में यह सवाल उठता है कि आखिर ममता सरकार किसे बचाने की कोशिश कर रही है? एक मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर का बलात्कार और हत्या हो जाती है, लेकिन बंगाल सरकार पीड़िता को न्याय दिलाने के बजाय सबूत मिटाने में लगी हुई है। जब जांच CBI को सौंपी जाती है, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद विरोध मार्च निकालती हैं, जबकि उनकी पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की थी और आरोपियों को बचाने की कोशिश की थी। इस मामले में INDIA गठबंधन के नेताओं की चुप्पी भी सवाल खड़े करती है। क्या यह चुप्पी बंगाल में हो रही आपराधिक घटनाओं का मौन समर्थन नहीं दिखाती? क्या यह देश की राजनीति का निम्नतम स्तर नहीं है, जहाँ न्याय की मांग को दबाने के लिए सत्ता का गलत इस्तेमाल हो रहा है?