हिमाचल की आर्थिक स्थिति चिंताजनक, सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर खतरा
हिमाचल सरकार आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है. न संसाधन हैं और न सहूलियत यही वजह है किआय, कर्ज और खर्च के असंतुलन ने सरकार को इतना लाचार कर दिया है कि नौबत सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर आ गई है. हर महीने की एक तारीख को खाते में आने वाली राशि इस बार क्रेडिट ही नहीं हुई. सरकार हिसाब-किताब लगाने में जुटी है और विपक्ष लगातार हमले करने में. हिमाचल सरकार का दावा है कि राज्य की इस स्थिति की जिम्मेदार पूर्व की भाजपा सरकार है, जबकि बीजेपी यही आरोप सुक्खू सरकार पर मढ़ रही है. सरकार की उम्मीद 5 सितंबर को केंद्र से मिलने वाली रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट है, मगर यह राशि इतनी नहीं कि इससे समस्या हल कर दी जाए.
बेशक हिमाचल की खराब वित्तीय हालात के बीच राजनीतिक शह मात के खेल खेला जा रहा हो, मगर ये समस्या बहुत बड़ी है. खासकर हिमाचल जैसे राज्य के लिए जहां आय के पर्याप्त संसाधन नहीं है. कर्ज पहले से ही बहुत है और फ्रीबीज और सब्सिडी योजनाओं पर बेतहाशा खर्च हो रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष फ्रीबीज को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं. कर्ज में डूबे राज्य के लिए काफी हद तक यह जिम्मेदार भी है, दरअसल हिमाचल सरकार की इस हालत के पीछे कोई एक नहीं बल्कि 5 कारण हैं, आइए समझते हैं कैसे?
1- आय का पर्याप्त साधन नहीं
हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य और यहां की आय खेती-किसानी और पर्यटन पर निर्भर है. यहां की जीडीपी में तकरीबन 45 प्रतिशत हिस्सा कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का है. दूसरे नंबर पर पर्यटन है. न तो यहां बड़ी इंडस्ट्री हैं और न ही आय का कोई और साधन. लघु-उद्योग इकाईयां हैं भी तो वे सरकार की आय में योगदान देने की बजाय खुद ही उन पर निर्भर हैं. यहां जमीन लगभग खत्म हो चुकी है, जिसे बेचकर सरकार आय प्राप्त कर सके. जंगलों को काटा नहीं जा सकता. यहां की आमदनी का एक और जरिया डैम, पावर प्रोजेक्ट जस के तस हैं, जबकि आबादी लगातार बढ़ रही है, खर्चे भी बढ़ते जा रहे हैं.
2- प्राकृतिक आपदाओं के कारण मची तबाही
हिमाचल की इस हालत के लिए प्राकृतिक आपदाएं भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. पहाड़ भूस्खलन से जूझ रहे हैं, बादल फट रहे हैं, सड़कें तबाह हो रही हैं, बाढ़ भी अपना प्रकोप दिखा रही है. ऐसे में सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश के हालात संभालने में खर्च हो रहा है. सबसे खास बात ये है कि आपदाओं की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देने वाला पर्यटन व्यवसाय बेपटरी हो चुका है. यही वजह है कि सरकार ने निजी होटलों को दी जाने वाली सब्सिडी भी वापस ले लिया है.
3- केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली ग्रांट और GST में कटौती
हिमाचल के इस हालात के पीछे जो तीसरी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है वह है केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में कटौती. इसे राजस्व घाटा अनुदान कहते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक हिमाचल सरकार को मिलने वाली यह राशि अब तक 8058 करोड़ रुपये सालाना थी, अब इसमें 1800 करोड़ रुपये की कमी कर दी गई है. अब यह राशि महज 6258 रुपये सालाना रह गई है. यानी 5 सितंबर को इसकी मासिक किस्त तकरीबन 521 करोड़ रुपये के आसपास सरकार के खाते में आएंगे. मगर सैलरी और पेंशन का भार इससे कहीं ज्यादा है. इसके अलावा GST लागू होने से अगले पांच साल तक मिलने वाला मुआवजा भी अब बंद हो गया है, इससे भी हिमाचल प्रदेश को तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
4- सरकार की ओर से चल रही फ्रीबीज योजनाएं
हिमाचल सरकार की ओर से कई फ्रीबीज योजनाएं चलाई जा रही हैं, इनसे राज्य के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है. इनमें पहली योजना मुफ्त बिजली की है. अब तक 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जा रही थी, हालांकि राज्य पर आए वित्तीय संकट के बाद सरकार ने इसे सीमित कर दिया है. अब एक मीटर तक 125 यूनिट फ्री बिजली ही दी जा रही है. इसके अलावा महिलाओं को 1500 रुपये हर माह अनुदान देने का ऐलान, इससे प्रतिमाह तकरीबन 800 करोड़ का भार सरकार पर बढ़ा है. इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम भी अहम कारण है, इसकी वजह से सरकार पर जो भार पड़ा वो तो पड़ा ही, सरकार को केंद्र से मिलने वाले एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले मिलने वाला 2 हजार करोड़ रुपये लोन भी नहीं मिला.
5- लगातार बढ़ रहा कर्ज
हिमाचल सरकार के ऊपर लगातार कर्ज बढ़ रहा है. ऐसे में कर्ज अदाएगी भी उसके लिए जरूरी बन गई है. वर्तमान में हिमाचल सरकार के ऊपर तकरीबन 86 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. प्रतिव्यक्ति के हिसाब से देखें तो राज्य के हर व्यक्ति पर औसत कर्ज तकरीबन 1 लाख 19 हजार रुपये है. सरकार सैलरी-पेंशन और कर्ज अदायगी में ही तकरीबन 42 हजार करोड़ रुपये खर्च कर देती है. केंद्र सरकार बीच में कर्ज देती भी है. इस राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश के लिए 6200 करोड़ रुपये की लोन लिमिट तय की थी. अब तक राज्य सरकार की ओर से इसमें से 3900 करोड़ रुपये कर्ज लिया जा चुका है. अब सरकार के पास 2300 करोड़ लिमिट ही बची है, जबकि अभी चार माह बाकी हैं.
सैलरी और पेंशन पर कितना खर्च करती है हिमाचल सरकार
हिमाचल सरकार की ओर से अपने कर्मचारियों को सैलरी और पूर्व कर्मचारियों का पेंशन देने पर प्रतिमाह तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. इनमें 1200 करोड़ से सैलरी और 800 करोड़ रुपये से सैलरी बांटी जाती है. राज्य में ओपीएस आने के बाद सरकार पर पेंशन का बोझ बढ़ा है. दरअसल अब तक राज्य के कुल बजट में पेंशन का हिस्सा 13 प्रतिशत था जो ओपीएस के बाद 17 प्रतिशत हो गया है. माना जा रहा है कि आज से 15 साल बाद प्रदेश में पेंशन का बजट ही तकरीबन 19728 करोड़ रुपये सालाना हो जाएगा जो वर्तमान में दोगुना होगा.
कितनी है हिमाचल सरकार की आय
हिमाचल सरकार को होने वाली कुल आय 58 हजार 444 करोड़ रुपये है, जबकि व्यय इससे ज्यादा है. इनमें 9 हजार करोड़ रुपये तो सरकार को कर्ज अदायगी ही करनी है. इसके अलावा अगर देखें तो सरकार ने 46,667 करोड़ रुपये राजस्व व्यय और 6,270 करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय के लिए निर्धारित कर रखे हैं.
अब सरकार के पास क्या हैं सैलरी पेंशन देने के विकल्प
सरकार को सरकारी कर्मियों की इस महीने की सैलरी और पेंशन देने के लिए तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपये की दरकार है. इसके लिए सरकार ने अपने मंत्रिमंडल की दो माह तक सैलरी और भत्ते रोकने का ऐलान कर दिया है. अब सरकार की नजर केंद्र सरकार से मिलने वाले रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर है. इसके अलावा सरकार को जो करों से आय होती है वह भी 10 तारीख तक खजाने में आने की संभावना है. इसके अलावा सरकार की कोषागार में ओवरड्राफ्ट लिमिट भी तकरीबन 700 करोड़ रुपये के आसपास है. हालांकि ये पूरी रकम मिलकर 2 हजार करोड़ रुपये नहीं होती. सरकार के पास एक और विकल्प ये है कि वह कर्ज की लिमिट को पूरा कर कर्मियों को पैसे दे दे, लेकिन इससे आपात संकट के समय सरकार क्या करेगी? ऐसे कई सवाल हैं जिन पर सरकार को गौर कर आगे कदम बढ़ाना होगा.
Sep 03 2024, 20:39