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विधायकों-सांसदों के लिए कोई योग्यता की जरूरत नहीं, हाई कोर्ट बोला- ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर खेद व्यक्त किया कि अब तक विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य नहीं किया गया है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम योग्यता को अनिवार्य न करने पर जताए गए खेद को अब तक दूर नहीं किया गया है।

जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने इस मामले में संविधान सभा में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के 26 नवंबर 1949 को दिए गए संबोधन का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून बनाने वालों की बजाय कानून को प्रशासित करने वालों के लिए उच्च योग्यता पर जोर देना सही नहीं है। कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि लगभग 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी सांसद या विधायक बनने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। यह टिप्पणी एक आपराधिक शिकायत को खारिज करते हुए की गई, जिसमें आरोप था कि बीजेपी नेता और पूर्व विधायक राव नरबीर सिंह ने अपने नामांकन पत्र में शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी दी थी। RTI कार्यकर्ता हरिंदर ढींगरा ने आरोप लगाया था कि नरबीर सिंह ने 2005 में दावा किया था कि उन्होंने हिंदी विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से स्नातक किया था, जबकि यूजीसी ने जानकारी दी थी कि ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं है।

कोर्ट ने शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट ने सही कारणों के आधार पर यह निर्णय लिया था। अदालत ने पाया कि नरबीर सिंह के पास 2005 और 2014 में नामांकन दाखिल करते समय स्नातक की डिग्री थी और इसलिए उन्हें गलत घोषणा करने का दोषी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आज भी विधायकों और सांसदों के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं है। इस मामले ने यह सवाल भी उठाया कि जब एक छोटी सी नौकरी के लिए भी शैक्षणिक योग्यता मांगी जाती है, तो फिर किसी विधायक या सांसद के लिए न्यूनतम योग्यता का प्रावधान क्यों नहीं है? आखिरकार, इन्हीं विधायकों और सांसदों में से कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनता है, और क्या कोई अयोग्य व्यक्ति सही तरीके से राज्य या देश चला सकता है?

दिल्ली में दुश्मनी, हरियाणा में गहरा प्रेम ! AAP -कांग्रेस का गजब पॉलिटिक्स गेम, पढ़िए, पूरी खबर

 हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच गठबंधन की संभावना तलाशी जा रही है, लेकिन दिल्ली में दोनों पार्टियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वहां कोई गठबंधन नहीं होगा। लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद, दिल्ली में कांग्रेस और AAP ने ऐलान किया था कि वे दिल्ली विधानसभा चुनावों में अलग-अलग लड़ेगी। इसके बाद, दिल्ली कांग्रेस ने AAP को सिविक मुद्दों, खासकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है, जबकि आम आदमी पार्टी इस पर चुप्पी साधे हुए है।

दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन की संभावना फिलहाल बहुत कम नजर आती है। दोनों पार्टियां पहले ही सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुकी हैं कि वे विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ेगी। 2024 के आम चुनावों में दिल्ली में AAP-कांग्रेस गठबंधन से नाराज होकर दिल्ली कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन की थी। हालांकि, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली में AAP के साथ गठबंधन नहीं होगा। लेकिन, हरियाणा में उन्हें भाजपा को सत्ता से हटाना है, इसलिए दोनों पार्टियां एक दूसरे के राज़ छुपाकर एक साथ भाजपा पर हमला बोलने की तैयारी में है।

हालांकि, इंडिया गठबंधन के तहत AAP और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा, लेकिन दिल्ली में भाजपा ने सभी सात सीटों पर जीत हासिल की। वर्तमान में, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने फिर से दोहराया है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। कांग्रेस पार्टी दिल्ली में जलभराव, करंट लगने से मौतें, और बिजली दरों में बढ़ोतरी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, और केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ भी आवाज उठा रही है। 2025 के विधानसभा चुनाव में अब कम समय बचा है, और कांग्रेस पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है।

दिल्ली में जहां दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं, वहीं हरियाणा में ये दोनों पार्टियां एक-दूसरे का सहयोग करेंगी। यह सवाल उठता है कि जब दिल्ली में दोनों पार्टियां एक-दूसरे की पोल खोल रही हैं, तो हरियाणा में जाकर कैसे ये दोनों एक-दूसरे की दोस्त बन जाएंगी और एक-दूसरे के राज छुपाने लगेंगी ? क्या जनता इन पार्टियों पर भरोसा कर सकती है, जो केवल अपने सियासी लाभ के लिए समर्थन या विरोध करती हैं? अगर आम आदमी पार्टी गलत है, तो वह दिल्ली और हरियाणा दोनों जगह गलत ही होगी। और अगर वह सही है, तो दोनों राज्यों में सही होगी। राजनीति में यह देखने को मिलता है कि पार्टियां सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं, और यह सच्चाई कई बार जनता के सामने आती है।

आरएसएस ने केरल में ही क्यों की वार्षिक समन्वय बैठक, क्या है सियासी मायने?*
#rss_meeting_in_kerala_why 2024 लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की समन्वय बैठक केरल में हुई। 31 जुलाई से 2 अगस्त के बीच ये बैठक लोकसभा चुनावों के बाद हुई और इस बैठक के बाद देश के तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। इनमें महाराष्ट्र के साथ हरियाणा और झारखंड भी शामिल हैं। ऐसे में बैठक के काफी अहम माना जा रहा है। दरअशल, लोकसभा चुनाव में इस बार पहली बार केरल के त्रिशूर सीट पर बीजेपी को जीत मिली है। वहीं पार्टी तिरुवनंतपुर सीट पर दूसरे नंबर पर रही। यही नहीं बीजेपी को केरल में विधानसभा की 11 सीटों पर बढ़त मिली है। ये संघ द्वारा तैयार किए गए पिच पर ही लड़ने का परिणाम है। ऐसे में अब भाजपा को कर्नाटक के बाद केरल ही दक्षिण का गेटवे नजर आ रहा है और शायद इसी से उत्साहित होकर आरएसएस ने भी अपनी समन्वय बैठक यहीं बुलाने का लक्ष्य रखा। भाजपा का थिंक टैंक कहलाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वार्षिक समन्वय बैठक के आयोजन स्थल को लेकर हर किसी ने हैरानी जताई। केरल को वामपंथी दलों के वर्चस्व के कारण हिंदुत्व विरोधी धारा वाला राज्य माना जाता है। भाजपा लगातार वहां अपनी सियासी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, जिसमें उसे धीरे-धीरे सफलता भी मिल रही है। ऐसे में वहां संघ की राष्ट्रीय बैठक के आयोजन को आम जनता के बीच नेटवर्क बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। केरल में भाजपा लगातार अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश कर रही है। हिंदुत्व विरोधी विचारधारा वाला राज्य कहलाने वाले केरल में भाजपा खुद को हिंदुओं की आवाज बनाने की जुगत में है। इसमें आरएसएस का पूरा साथ मिल रहा है। इसी तस्दीक कर रहे हैं संघ की ओर से जारी आंकड़े। इसी साल मार्च में आरएसएस ने शाखाओं का डेटा जारी किया था। इसके मुताबिक दक्षिण के राज्य केरल में आरएसएस की 5142 शाखाएं चल रही हैं। देशभर में संघ की करीब 60 हजार शाखाएं चल रही हैं। यानी शाखाओं की कुल हिस्सेदारी में केरल की हिस्सेदारी करीब 9 प्रतिशत है। कम आबादी होने के बावजूद शाखाओं की तेजी से बढ़ती संख्या ने संघ का ध्यान केरल की तरफ खिंचा है। हाल ही में संघ ने शाखाओं की संख्या बढ़ने की वजह से केरल को उत्तर और दक्षिण विभागों में विभाजित किया था। जानकारों के मुताबिक संघ विभाजन का काम तब करती है, जब उसे लगता है कि राज्य में उसने अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया है। केरल में संघ ने अगले साल तक 8000 शाखा लगाने का लक्ष्य रखा है। *केरल में पहली बार खिला “कमल”* संघ की बनाई हुई जमीन पर बीजेपी धीरे-धीरे फसलें भी उगाने में लगी हुई है। हालिया लोकसभा में केरल में बीजेपी का खाता खुला है। पार्टी को त्रिशूर सीट पर जीत मिली है। वहीं पार्टी तिरुवनंतपुर सीट पर दूसरे नंबर पर रही। लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो बीजेपी को केरल में विधानसभा की 11 सीटों पर बढ़त मिली है। जिन 11 सीटों पर पार्टी को बढ़त मिली है, उनमें त्रिशूर की 6, अतिंगल की दो और तिरुवनंतपुर की 3 सीटें शामिल हैं। इसके अलावा बीजेपी 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है। इनमें तिरुवनंतपुरम की 3,अतिंगल की 1, अलप्पुझा की 2, पालक्कड की 1 और कासरागोद की 2 सीटें शामिल हैं। *वेट प्रतिशत में बढ़ोतरी* चुनाव आयोग के मुताबिक केरल में बीजेपी को हालिया लोकसभा चुनाव में 19.24 प्रतशित वोट मिले हैं। 2019 के मुकाबले यह 3 प्रतिशत से ज्यादा है। 2019 में बीजेपी को केरल में 15.64 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 12.41 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी की इस बार वोट प्रतिशत ने पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। लेफ्ट और कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी के इस प्रदर्शन से संघ भी उत्साहित है। *देश के दक्षिणी हिस्से में बीजेपी का सियासी दर्जा बढ़ाने की संभावना* भाजपा लगातार खुद को असली राष्ट्रीय पार्टी साबित करने की कवायद में जुटी है। इसके लिए दक्षिण भारतीय राज्यों में उसकी अहम मौजूदगी जरूरी है, जहां कर्नाटक को छोड़कर बाकी राज्यों में वह अब तक दोयम दर्जे की ही साबित हुई है। हालांकि लगातार कोशिश के चलते उसे तेलंगाना में दूसरे नंबर की पार्टी बनने में सफलता मिली है, जबकि तमिलनाडु में भी उसका वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा है। इस बार लोकसभा चुनावों में भाजपा सीटें जीतने में भले ही सफल नहीं हुई, लेकिन वह तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्शाने में सफल रही है। यही हाल आंध्र प्रदेश का भी रहा है। ऐसे में संघ की दक्षिण भारतीय राज्य में वार्षिक बैठक से भाजपा को देश के उस हिस्से में सियासी दर्जा बढ़ाने में मदद मिलने की संभावना आंकी जा रही है।
ब्रुनेई पहुंचे पीएम मोदी, क्राउन प्रिंस हाजी अल-मुहतादी बिल्लाह ने किया स्वागत, किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो देशों की अपनी यात्रा के पहले चरण के तहत ब्रुनेई पहुंच गए हैं। ब्रुनेई दारुस्सलाम में पीएम मोदी का क्राउन प्रिंस हाजी अल-मुहतादी बिल्लाह ने स्वागत किया। ब्रुनेई पहुंचने पर पीएम मोदी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।माना जा रहा है कि यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक होने वाली है। यह भारत और ब्रुनेई के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना की 40वीं वर्षगांठ से भी मेल खाती दिखेगी।किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की ये पहली ब्रुनेई यात्रा है।

विदेश मंत्रालय ने पीएम मोदी के ब्रुनेई दौरे पर कही ये बात

प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को लेकर विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक्स पर लिखा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रुनेई पहुंचे और उनका औपचारिक स्वागत किया गया। क्राउन प्रिंस हाजी अल-मुतहादी बिल्लाह ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। यह यात्रा विशेष है क्योंकि यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा है और यह ऐसे समय में हो रही है, जब दोनों देश इस साल राजनयिकों संबंधों की स्थापना के चालीस वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं। 

मजबूत होंगे संबंध दोनों देशों के संबंध

पीएम मोदी का ब्रुनेई दौरा दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के हिसाब से अहम है। दोनों देश रक्षा सहयोग में संयुक्त वर्किंग ग्रुप स्थापित करना चाहते हैं। इसके अलावा पीएम मोदी के दौरे के दौरान ऊर्जा संबंधों और अंतरिक्ष क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ने की भी संभावना है।विदेश मंत्रालय के मुताबिक प्रधानमंत्री की इस यात्रा से ब्रुनेई के साथ रक्षा सहयोग, व्यापार और निवेश, ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सहयोग, क्षमता निर्माण, संस्कृति के साथ-साथ लोगों के बीच आदान-प्रदान सहित सभी मौजूदा क्षेत्रों में हमारा सहयोग और मजबूत होगा और नए क्षेत्रों में सहयोग के अवसर तलाशे जाएंगे। 

भारतीय विदेश मंत्रालय के पूर्व के मामलों के सचिव जयदीप मजूमदार ने कहा कि भारत और ब्रुनेई के संबंधों में रक्षा एक अहम स्तंभ है। पीएम मोदी के इस दौरे पर दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में मिलकर काम करने के लिए संयुक्त कार्यकारी समूह बनाने पर चर्चा होगी। जयदीप मजूमदार ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्किया के बुलावे पर ब्रुनेई जा रहे हैं। ब्रुनेई के सुल्तान साल 1992, 2008 में भारत का द्विपक्षीय दौरा कर चुके हैं। साथ ही वह साल 2012 और 2018 में आसियान देशों के सम्मेलन में भी शामिल होने भारत आए थे। जयदीप मजूमदार ने कहा कि ब्रुनेई के साथ रक्षा, व्यापार और निवेश जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। साथ ही ऊर्जा, अंतरिक्ष, तकनीक, स्वास्थ्य, संस्कृति जैसे क्षेत्रों पर भी बात होगी।

आरएसएस ने जाति जनगणना के समर्थन का दिया संकेत, कांग्रेस ने संघ के बयान पर उठा दिया सवाल

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सोमवार को जाति आधारित जनगणना को समर्थन देने के संकेत दिए हैं।संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि यह संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए। संघ की ओर से दिए गए इस बयान के बाद एक बार फिर विवाद बढ़ता दिख रहा है। आरएसएस के बयान के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर सरकार पर हमला बोला है। 

कांग्रेस ने संघ की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए पहले तो कहा कि जाति जनगणना की इजाजत देने वाला आरएसएस कौन हाता है। इसके बाद कहा कि अगर संघ की तरफ हरी झंडी मिल गई है तो क्या पीएम नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की एक और गारंटी को हाइजैक करके जाति जनगणना करवाएंगे? कांग्रेस ने कुल मिलाकर पांच सवाल किए।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए मोदी सरकार से पांच सवाल पूछे हैं। इन सवालों के जरिए संघ को भी निशाने पर लिया है। जयराम ने पूछा, “जाति जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना पर निषेधाधिकार है? जाति जनगणना के लिए इजाजत देने वाला आरएसएस कौन है? आरएसएस का क्या मतलब है जब वह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह जज या अंपायर बनना है?

जयराम रमेश ने आगे कहा, ‘अब जब RSS ने हरी झंडी दिखा दी है तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?’ 

दरअसल, संघ ने कहा है कि जाति जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। केरल के पलक्कड़ में संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय स्वयंसेवक बैठक के अंतिम दिन आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कांफ्रेन्स की।आंबेकर ने कहा, हिंदू समाज में जाति और जातीय संबंध एक संवेदनशील मुद्दा है। ये हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसे बहुत गंभीरता से निपटाना चाहिए न कि केवल चुनाव या राजनीति के लिए।

उन्होंने कहा, आरएसएस को लगता है कि सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए विशेष रूप से जो जाति पिछड़ रही है, उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है और इसके लिए अगर सरकार को कभी आँकड़ों की ज़रूरत है, तो यह एक स्थापित परंपरा है।इससे पहले भी सरकार ने इस तरह के काम किए हैं। इसलिए वो आगे भी कर सकती है। लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। इसे चुनावी राजनीति के उपकरण के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसलिए हमने सभी के लिए इस बारे में सावधानी बरतने की बात कही है।

मणिपुर में टेंशन बढ़ाने वाली घटना, पहली बार ड्रोन से अटैक, कुकी उग्रवादियों के पास कहां से आ रहे आधुनिक हथियार?

#manipur_imphal_drone_attacks 

देश का उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर पिछले एक साल से सुलग रहा है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच शुरू हुई हिंसा को एक साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन अभी तक हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। अभी दो दिन पहले ही राज्य की मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भरोसा जाताया ता कि आने वाले 6 महीने के भीरत हालात पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगे। हालांकि इसे बीच से खबर आ रही जो चिंता बढ़ाने वाली है। मणिपुर में जातीय हिंसा के बीच ड्रोन और आरपीजी के इस्तेमाल किया गया है। बीते 1 सितंबर को राज्य में शुरू हुई हिंसा फिर से बढ़ती दिख रही है और सोमवार 2 सितंबर को लगातार दूसरे दिन भी इंफाल में ड्रोन से हमला हुआ है। जातीय हिंसा के बीच ड्रोन बम के प्रयोग ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने मंगलवार को कुकी आतंकियों द्वारा ड्रोन के जरिए आम लोगों और सुरक्षा कर्मियों पर बम गिराने की घटना की निंदा की है। उन्होंने इसे आतंकी घटना बताते हुए कहा है कि इस कायराना हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘आम लोगों और सुरक्षा कर्मियों के ऊपर ड्रोन से बम गिराने की घटना आतंकी घटना है। मैं इस कायरतापूर्ण घटना की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं। मणिपुर की सरकार इस अकारण हमले को गंभीरता से लेती है और सरकार स्थानीय लोगों पर इस अकारण हमले के लिए कड़ी कार्रवाई करने को प्रतिबद्ध है।‘

अब तक पुलिस से छीने गए हथियारों का होता था इस्तेमाल

मुख्यमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि हम हर तरह की हिंसा की निंदा करते हैं और मणिपुर के लोग नफरत, विभाजन और अलगाववाद के खिलाफ एकजुट हैं।मणिपुर के कोत्रुक गांव में जिस तरह से कुकी उग्रवादियों ने ड्रोन से आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपैल्ड गन अटैक किया, वह वाकई चौंकाने वाला है। अभी तक कुकी उग्रवादी मणिपुर पुलिस से छीने गए हथियारों का इस्तेमाल हमलों के लिए कर रहे थे, जिनमें इंसास राइफलें, कार्बाइन, हैंड ग्रेनेड, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर जैसे हथियार शामिल थे, लेकिन अब ड्रोन अटैक यह वाकई चिंताजनक है। 

जंग में इस्तेमाल होने वाले हथियार कहां से मिल रहे?

पुलिस से छीने गए हथियारों के बल पर हमले करनमे वाले राज्य में कुकी उग्रवादियों ने अब अपनी रणनीति बदल दी है। मणिपुर में जो हुआ उसकी वाकई किसी ने कल्पना नहीं की थी। कुकी उग्रवादियों ने एक सितंबर को मणिपुर के इंफाल वेस्ट जिले में कोत्रुक गांव पर आश्चर्यजनक तरीके से ड्रोन के जरिए आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपैल्ड गन अटैक किया। आमतौर पर ये हथियार जंग में इस्तेमाल होते हैं। मैतई बहुल इस गांव में पहले उग्रवादियों ने हैवी फायरिंग के बाद ड्रोन से बम गिराए। हमले में एक महिला समेत दो लोगों की मौत हो गई और कई जख्मी हो गए।

पुलिस के लिए हैरानी वाली वारदात

इस तरह के आरपीजी ड्रोन अटैक से मणिपुर पुलिस भी हैरान है। मणिपुर पुलिस ने अपने बयान में कहा है, ड्रोन बमों का इस्तेमाल आम तौर पर सामान्य युद्धों में किया जाता रहा है। सुरक्षा बलों और आम नागरिकों के खिलाफ विस्फोटक हमले करने के लिए आरपीजी अटैक के लिए हाई-टेक ड्रोन का इस्तेमाल वाकई चौंकाने वाला है। इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसके लिए उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों, तकनीकी विशेषज्ञों की मदद ली गई होगी। 

खुफिया सूत्रों का कहना है कि चीन इन ड्रोनों को म्यांमार के रास्ते भारत भेज रहा है और ये ड्रोन मणिपुर की इंटरनल सिक्योरिटी के लिए बड़ा खतरा हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी इन एडवांस ड्रोन हमलों पर चिंता जताई है। 

हाई लेवल कमेटी का गठन

इस बीच, मणिपुर पुलिस ने उग्रवादियों के ड्रोन के इस्तेमाल की जांच के लिए 5 सदस्यों की एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया है। पुलिस विभाग की ओर से सोमवार को जारी की गई एक अधिसूचना में कहा गया है कि 1 सितंबर को कोत्रुक में एक बड़े हमले में कुकी उग्रवादियों ने हाई-टेक ड्रोन का इस्तेमाल करके कई आरपीजी तैनात किए थे, जिसमें एक महिला की मौत हो गई थी और तीन पुलिस कर्मियों समेत कई और लोग भी घायल हो गए थे। इस कमेटी की अध्यक्षता जीडीपी आशुतोष कुमार सिन्हा करेंगे और इसमें भारतीय सेना, असम राइफल्स, सीआरपीएफ और बीएसएफ अधिकारी भी शामिल होंगे।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाबलों को मिली बड़ी सफलता, एनकाउंटर में मार गिराए 9 खूंखार नक्सली

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ में 9 नक्सली मारे गए। इस मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किया है। यह मुठभेड़ दंतेवाड़ा और बीजापुर के सीमावर्ती इलाके में हुई, जहां सुरक्षाबलों को माओवादियों के बड़े जमावड़े की सूचना मिली थी। इस जानकारी के आधार पर सुरक्षाबलों ने संयुक्त अभियान चलाया और नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

सुबह 10:30 बजे से इस इलाके में मुठभेड़ चल रही थी। सर्च ऑपरेशन के दौरान जब सुरक्षाबल नक्सलियों के ठिकाने के करीब पहुंचे, तो दोनों पक्षों के बीच भारी गोलीबारी शुरू हो गई। इस मुठभेड़ में 9 नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, जबकि कुछ और नक्सलियों के भी मारे जाने की संभावना जताई जा रही है। दंतेवाड़ा और बीजापुर के जंगलों में चल रहे इस ऑपरेशन में सुरक्षाबलों को लगातार सफलता मिल रही है। इससे पहले भी, 28 अगस्त को कांकेर-नारायणपुर के सरहदी क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसमें कई नक्सलियों को मार गिराया गया था।

बस्तर के आईजी पी सुंदरराज ने इस मुठभेड़ की जानकारी देते हुए बताया कि दंतेवाड़ा-बीजापुर बॉर्डर पर हुई इस मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को भारी नुकसान पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षाबलों का यह अभियान नक्सलियों के खिलाफ जारी रहेगा, और इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। यह ऑपरेशन सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी सफलता है, क्योंकि नक्सल प्रभावित इलाकों में माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। सुरक्षाबलों की इस सफलता से इलाके में नक्सलियों के हौसले पस्त हुए हैं, और इस कार्रवाई से स्थानीय जनता के मन में भी सुरक्षा की भावना मजबूत होगी।

जंगलों में सर्च ऑपरेशन जारी है, और सुरक्षाबल सुनिश्चित कर रहे हैं कि इलाके में छिपे हुए अन्य नक्सलियों को भी ढूंढकर उनका सफाया किया जाए। इस मुठभेड़ ने एक बार फिर साबित किया है कि सुरक्षा बल अपने कर्तव्यों को निभाने में सक्षम हैं और नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में सजग हैं।

प्लेन हाईजैक किया इब्राहिम-अख्तर ने, लेकिन फिल्म में आतंकी दिखाए जाएंगे भोला-शंकर, शुरू हुआ विरोध


नेटफ्लिक्स पर अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी सीरीज "IC 814" रिलीज़ हुई है, जो 1999 के कंधार हाईजैक की सत्य घटना पर आधारित है। सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे आतंकियों ने भारत में बंद आतंकवादियों को छुड़ाने के लिए एक प्लेन को हाईजैक किया और यात्रियों को 7 दिनों तक बंधक बनाए रखा। लेकिन, सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में आतंकियों के असली नाम नहीं बताए गए हैं, बल्कि उनके नाम भोला-शंकर बताते हुए उसे हिन्दू समुदाय से जोड़ने की कोशिश की गई है। किसी को प्लेन हाईजैक की असली कहानी ना पता हो, तो हो सकता है, वो प्लेन देखने के बाद यही समझे कि इसे चरमपंथी हिन्दुओं ने हाईजैक किया था, जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। सीरीज को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचकों का कहना है कि बॉलीवुड एक बार फिर से इतिहास को सही ढंग से पेश करने में विफल रहा है। लोगों का आरोप है कि सीरीज में आतंकियों की छवि को सकारात्मक दिखाने की कोशिश की गई है और इसमें हिंदुओं को बदनाम करने के लिए आतंकियों के हिंदू नामों का इस्तेमाल किया गया है। आलोचकों ने निर्देशक अनुभव सिन्हा को इस्लामी जिहादी और हिंदूफोबिक करार दिया है, और सीरीज में दिखाए गए नाम जैसे "भोला" और "शंकर" को लेकर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस तरह की फिल्मों को नहीं दिखाया जाना चाहिए। जबकि आतंकियों के असली नाम इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, गुलशन इकबाल, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर थे, सीरीज में उनके कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया गया है। कोड वर्ड्स जैसे "भोला" और "शंकर" सही हैं, लेकिन असली नामों की बजाय कोड वर्ड्स को प्रमुखता दी गई है। लोगों की आपत्ति इस बात पर है कि सीरीज में आतंकियों के असली नाम क्यों नहीं बताए गए। वे चिंतित हैं कि इससे दर्शकों के दिमाग में गलत धारणा बन सकती है कि हाईजैकर्स हिंदू थे, जबकि असली आतंकवादी मुस्लिम थे। इसके अलावा, सीरीज में आतंकियों को दयावान दिखाए जाने की भी आलोचना की गई है, जिसमें उन्हें यात्रियों के खाने-पीने का ध्यान रखते हुए और उनकी चोटों की परवाह करते हुए दर्शाया गया है। आलोचकों का कहना है कि सीरीज ने आतंकियों की क्रूरता को सही से नहीं दिखाया और इसे बहुत ही सपाट तरीके से प्रस्तुत किया गया है। भाजपा नेता अमित मालवीय ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि "IC 814" के हाईजैकर्स दुर्दांत आतंकवादी थे जिन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाने के लिए हिंदू नामों का इस्तेमाल किया। मालवीय का आरोप है कि अनुभव सिन्हा ने जानबूझकर उनके नामों को छिपाया और वामपंथी एजेंडे के तहत आतंकवाद को हल्का दिखाने की कोशिश की है। इस विवाद के बढ़ते प्रभाव के चलते, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नेटफ्लिक्स कंटेंट हेड को समन भेजने की बात भी सामने आई है।
बंगाल विधानसभा में दुष्कर्म-विरोधी विधेयक पेश, ममता बनर्जी ने अपराजिता विधेयक को बताया एतिहासिक

#west_bengal_govt_introduce_aparajita_woman_and_child_bill_2024 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में महिला सुरक्षा पर एक बिल पेश किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर एंटी रेप बिल (अपराजिता महिला और बाल विधेयक 2024) पेश किया। जिसके बाद सभा में इस बिल पर चर्चा शुरू हुई। सीएम ममता ने इस बिल को ऐतिहासिक बताया।इसके जरिए दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया है।साथ ही इसमें दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को बिना जमानत के आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान भी किया गया है। 

क्या बोलीं ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा, "43 साल पहले इसी दिन 1981 में, संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए 'महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर सम्मेलन' के लिए एक समिति बनाई थी। मैं नागरिक समाजों से लेकर छात्रों तक सभी का अभिनंदन करती हूं, जो महिला सुरक्षा के लिए आवाज उठा रहे हैं।" सीएम ममता बनर्जी ने आगे कहा, "डॉक्टर की मौत 9 अगस्त को हुई। मैंने मृतक डॉक्टर के माता-पिता से उसी दिन बात की जिस दिन घटना हुई। उनके घर जाने से पहले उन्हें सारा ऑडियो, वीडियो, CCTV फुटेज सब कुछ दिया गया ताकि उन्हें सब पता चल सके। मैंने उनसे साफ कहा कि मुझे रविवार तक का समय दें, अगर हम तब तक सभी को गिरफ्तार नहीं कर पाए तो मैं खुद सोमवार को इसे CBI को सौंप दूंगी। पुलिस ने 12 घंटे में मुख्य आरोपी को पकड़ लिया, मैंने पुलिस से कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में जाएं और फांसी की सजा के लिए आवेदन करें, लेकिन मामला CBI को दे दिया गया। अब हम CBI से न्याय की मांग कर रहे हैं। हम शुरू से ही फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं।"

कोलकाता की घटना के बाद कानून को मजबूत करने की उठी है मांग

बंगाल सरकार के इस विधेयक 'अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024' का उद्देश्य दुष्कर्म और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को संशोधित करके महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा को मजबूत करना है। बीते महीने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना को लेकर जारी हंगामा अभी तक थमा नहीं है। राज्य में महिला सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की मांग हो रही है। ऐसे में राज्य सरकार ने सोमवार से विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाने का एलान किया था। इस विशेष सत्र में राज्य के कानून मंत्री मोलॉय घटक द्वारा मंगलवार को दुष्कर्म-विरोधी विधेयक पेश किया। 

बीजेपी ने किया बिल का समर्थन

ममता सरकार के इस बिल का विपक्षी पार्टी बीजेपी ने समर्थन कर दिया है. विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा में कहा, बीजेपी पूरी तरह से अपराजिता बिल का समर्थन करती है। हम चाहते हैं यह कानून जल्द ही लागू हो. यह आपकी(राज्य सरकार) जिम्मेदारी है। बीजेपी ने कहा, हम इस कानून के लागू होने के बाद राज्य में इसका नतीजा चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। हम आपका पूरा समर्थन करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा, आपको यह गारंटी देनी होगी कि यह विधेयक तुरंत लागू होगा।

अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक क्या है खास?

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पेश हुए अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक बिल की तीन प्रमुख बाते हैं, जो दुष्कर्म के दोषियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान कर रही हैं।

• किसी महिला का दुष्कर्म करने के बाद अगर उसकी हत्या कर दी जाती है तो ऐसा करने वाले दोषी को मृत्युदंड दिया जाएगा।

• किसी महिला के साथ दुष्कर्म किया गया तो इस अपराध को अंजाम देने वाले दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। 

• किसी नाबालिग के साथ दुष्कर्म होता है तो उसके आपराधिक दोषी को 20 साल की कैद और मौत की सजा दोनों का प्रावधान है। 

इस बिल की ये तीन बड़ी बातें हैं, जिसे केंद्र सरकार के कानून में संशोधन के बाद पेश किया गया है। केंद्र सरकार का दुष्कर्म को लेकर जो कानून है, उसमें पूरी तरह से बदलाव नहीं किया जाएगा। मगर इस नए कानून के जरिए 21 दिनों में न्याय सुनिश्चित होगा। अगर 21 दिनों में फैसला नहीं आ पाता है तो पुलिस अधीक्षक की इजाजत से 15 दिन और मिल जाएंगे। यह समवर्ती सूची में है और हर राज्य को संशोधन करने का अधिकार है।

अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा बिल

विधानसभा से बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा, जिनके हस्ताक्षर के बाद ये कानून का रूप लेगा। राज्य का कानून राज्यपाल की मंजूरी से ही बनता है। अगर राज्यपाल की राय इस बिल को कानून में तब्दील करने को लेकर नहीं बन पाती है तो वह इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। हालांकि, राज्यपाल से मंजूरी लेना ही इसे राज्य में कानून बनाने के लिए पर्याप्त है।

हिमाचल में कर्मचारियों को नहीं मिली सैलरी ना ही पेंशन, जानें क्यों गहराया आर्थिक संकट?

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कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश भारी आर्थिक संकट में फंस गया है। आर्थिक संकट इतना गहरा गया है कि 2 लाख कर्मचारी सितम्बर महीने में अपनी सैलरी का इंतजार कर रहे हैं। राज्य के पेंशनर भी अपनी पेंशन से वंचित हैं।राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब सरकारी कर्मचारियों का वेतन महीने की पहली तारीख को नहीं मिला। माना जा रहा है कि कर्मचारियों को वेतन के लिए 5 सितंबर तक का इंतजार करना होगा।केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के 490 करोड़ रुपए मिलने के बाद ही वेतन और पेंशन का भुगतान होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के 2 लाख कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनरों को अगस्त महीने की सैलरी सितम्बर माह के 3 दिन होने के बाद भी नहीं मिली है। सामान्यतः हर महीने की 1 तारीख को आने वाली सैलरी और पेंशन सितम्बर माह में नहीं आई। 1 तारीख को रविवार होने के कारण इसे बैंकिंग व्यवस्था में देरी मानी गई। कर्मचारियों और पेंशनरों को आश्चर्य तब हुआ जब उन्हें 2 तारीख को पैसा भी नहीं मिला, इस दिन सोमवार था और बैंक खुले थे। बताया गया है कि सैलरी और पेंशन में देरी सरकार की आर्थिक स्थिति के कारण हुई है।

आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है?

हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट की चर्चा इन दिनों पूरे देश भर में हो रही है। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल है कि राज्य में ऐसा आर्थिक संकट पैदा क्यों हो गया है? इसके पीछे की वजह देखें, तो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में टेपर फॉर्मूला की वजह से राज्य सरकार को नुकसान हो रहा है। इस फॉर्मूले के मुताबिक, केंद्र से मिलने वाली ग्रांट हर महीने कम होती है। इसके अलावा, लोन लिमिट में भी कटौती की गई है। साल 2024-25 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1 हजार 800 करोड़ रुपये की कटौती हुई। आने वाले समय में यह परेशानी और भी ज्यादा बढ़ेगी।

ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी बनी वजह

आर्थिक हालत खराब होने की एक और वजह ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली भी है। इसकी वजह से नई पेंशन स्कीम के राज्य के कंट्रीब्यूशन के कारण मिलने वाला 2 हजार करोड़ का लोन भी राज्य सरकार को अब नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह से भी राज्य के खजाने पर बोझ आ गया है।

कैसे बिगड़ा बैलेंस?

हिमाचल की बदहाल आर्थिक स्थिति इसके 2024-25 के बजट से समझी जा सकती है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹58,444 करोड़ का बजट सुक्खू सरकार ने पेश किया था। इस बजट में भी सरकार का राजकोषीय घाटा (सरकार की आय और खर्चे के बीच का अंतर, जिसे कर्ज लेकर पूरा किया जाता है) ₹10,784 करोड़ है।

इस बजट का बड़ा हिस्सा तो केवल पुराने कर्जा चुकाने और राज्य के कर्मचारियों की पेंशन और तनख्वाह देने में ही चला जाएगा। इस बजट में से ₹5479 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज चुकाने, ₹6270 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज का ब्याज देने में करेगी। यानी पुराने कर्जों के ही चक्कर बजट का लगभग 20% हिस्सा चला जाएगा।

इसके अलावा सुक्खू सरकार तनख्वाह और पेंशन पर ₹27,208 करोड़ खर्च करेगी। इस हिसाब से देखा जाए तो ₹38,957 का खर्च तो केवल कर्ज, ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर ही हो आएगा। यह कुल बजट का लगभग 66% है। अगर नए कर्ज को हटा दें तो यह हिमाचल के कुल बजट का 80% तक पहुँच जाता है। यानी राज्य को बाकी खर्चे करने की स्वतंत्रता ही नहीं है।

हिमाचल प्रदेश 2024-25 में लगभग ₹1200 करोड़ सब्सिडी पर भी खर्च करने वाला है। यह धनराशि सामान्य तौर पर छोटी लग सकती है, लेकिन आर्थिक संकट में फंसे हिमाचल के लिए यह भी भारी पड़ रही है। इस सब्सिडी में सबसे बड़ा खर्चा बिजली सब्सिडी का है।

अभी कम नहीं होने वाली है मुश्किलें

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को हर महीने वेतन देने के लिए राज्य सरकार को 1 हजार 200 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसी तरह पेंशन देने के लिए हर महीने 800 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होती है।कुल-मिलाकर यह खर्च 2 हजार करोड़ रुपये बनता है। वहीं, हिमाचल प्रदेश सरकार के पास इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6 घर 200 करोड़ रुपये है। इनमें से 3 हजार 900 करोड़ रुपये लोन लिया जा चुका है। अब सिर्फ 2 हजार 300 करोड़ की लिमिट बची है। इसी से राज्य सरकार को दिसंबर महीने तक का काम चलाना है।

दिसंबर से लेकर मार्च तक वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के लिए केंद्र से अलग लोन लिमिट सैंक्शन होगी। ऐसे में राज्य सरकार के समक्ष अब सितंबर के बाद अक्टूबर और नवंबर महीने का वेतन और पेंशन देने के लिए भी कठिनाई होगी।