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“अलग तरह की राजनीति करने लगे हैं राहुल गांधी”, स्मृति ईरानी ने ऐसा क्यों कहा?

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लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट से हार के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पहली बार खुलकर बात की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी की चर्चित नेता स्मृति इरानी ने एक हालिया पॉडकास्ट में राहुल गांधी के बारे में अपनी राय रखी। ईरानी ने माना कि राहुल गांधी अब अलग तरह की पॉलिटिक्स कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राहुल अब राजनीतिक पैंतरेबाजी की एक अलग शैली बना रहे हैं। जब वह जाति के बारे में बात करते हैं, जब वह संसद में सफेद टी-शर्ट पहनते हैं, तो उन्हें पता होता है कि यह युवाओं को किस तरह का संदेश देता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी के बारे में कहा कि कांग्रेस के नेता को मुगालता हो गया है कि उन्होंने सफलता का स्वाद चख लिया है।स्मृति ईरानी ने दावा किया कि राहुल गांधी आबादी के वर्ग विशेष को अपनी ओर खींचने के लिए सोच-समझकर कदम उठाते हैं। उन्होंने राहुल गांधी के हमले की इस शैली को कम आंकने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि ‘इसलिए हमें उनके कामों के बारे में गलत तरीके से धारणा नहीं बनानी चाहिए। चाहे आप उन्हें अच्छा, बुरा या बचकाना मानें- वे एक अलग तरह की राजनीति करने में लगे हैं।

नई राजनीतिक सफलता असफल रणनीति से विकसित हुई

ईरानी ने इस मौके पर कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘नरम हिंदुत्व’ की राजनीति अपनाने की पिछली कोशिशों की आलोचना भी की। जिसमें चुनावों के दौरान राहुल गांधी की हाई-प्रोफाइल मंदिर यात्राएं भी शामिल हैं।स्मृति ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी की ये कोशिश वोटरों को पसंद नहीं आई और उन्हें संदेह के साथ देखा गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि गांधी की तथाकथिक नई राजनीतिक सफलता इस असफल रणनीति से विकसित हुई थी। ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी को अपने मंदिर दौरों से कोई लाभ नहीं मिला। यह मजाक का विषय बन गया। कुछ लोगों को यह धोखा देने वाला लगा। इसलिए जब यह रणनीति काम नहीं आई, तो उन्होंने लाभ पाने के लिए जाति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। ईरानी के मुताबिक ये कदम भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की प्रासंगिकता बनाए रखने के मकसद से एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं।

राहुल गांधी को सामाजिक न्याय से कुछ लेना-देना नहीं-ईरानी

स्मृति ने ये भी कहा कि अगर राहुल गांधी को सामाजिक न्याय से सचमुच में कुछ लेना-देना होता तो यह पूरे राजनीतिक जीवन पर इसकी छाप दिखती। लेकिन ऐसा नहीं है। वो अचानक जाति-जाति करने लगे हैं और कई बार बेसिर-पैर की बातें भी करते हैं। मसलन, उन्हें पता है कि मिस इंडिया का चयन सरकार नहीं करती, फिर भी वो पूछ रहे हैं कि कोई दलित-पिछड़े वर्ग की लड़की मिस इंडिया क्यों नहीं बनती। राहुल को भी पता है कि ये बेतुकी बातें हैं, लेकिन वो ये भी जानते हैं कि इससे वो खबरों में रहेंगे और उनकी बातें हेडलाइन बनेंगी।

पश्चिम बंगाल में लॉ एंड ऑर्डर पर बवाल, क्या लगेगा राष्ट्रपति शासन?

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कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म व हत्या के मामले में पूरे देश में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। ट्रेनी डॉक्टर का रेप और हत्या का मामला सामने आने पर भी पश्चिम बंगाल पुलिस के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं, राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर आरोपियों का बचाव करने के आरोप लगा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के छात्र इस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं। जनता ने इस मुद्दे को पकड़ रखा और राज्य सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरी है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग कर रही है। 

तनावपूर्ण हालात के बीच बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने दिल्ली आकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद चर्चा तेज हो गई कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

इस बीच बुधवार को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कोलकाता की घटना को लेकर बयान दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए कहा कि ‘‘बस! बहुत हो चुका। अब वो समय आ गया है कि भारत ऐसी ‘विकृतियों’ के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘कम शक्तिशाली’, ‘कम सक्षम’ और ‘कम बुद्धिमान’ के रूप में देखती है।

पश्चिम बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं। यहां, पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हिंसा की खबरें आती हैं। कभी महिला को सरे आम सड़क पर पीटा जाता हैं तो कहीं पंचायत में कुछ नेता 'कंगारू कचहरी' लगातर इंसाफ करते है। हालांकि, कभी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग ने ऐसे जोर नहीं पकड़ा है। 

ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन कब और किन परिस्थितियों में लगता है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य की व्यवस्था में क्या-क्या बदल जाता है?

कब लगता है राष्ट्रपति शासन

दरअसल राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में दी हुई है। अनुच्छेद 355 कहता है कि केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए। केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार काम करें। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को शक्ति प्राप्त है कि वो राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन ले सकता है।

राष्ट्रपति शासन की सिफारिश में राज्यपाल की भूमिका

किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने के लिए अक्सर इन दो अनुच्छेदों का एक साथ इस्तेमाल होता है। अगर राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करने में विफल रहती है तो राज्यपाल इस संबंध में एक रिपोर्ट भेज सकता है। राज्यपाल की सिफारिश को जब कैबिनेट की सहमति मिल जाती है तो किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

जरूरी नहीं कि राष्ट्रपति शासन हमेशा कानून व्यवस्था बिगड़ने पर ही लागू हो, जब किसी राज्य में किसी दल के पास बहुमत ना होने और गठबंधन की सरकार भी ना बन पाने की स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।

राष्ट्रपति शासन में सबसे खास बात ये है कि इस अवधि के दौरान राज्य के निवासियों के मौलिक अधिकारों को खारिज नहीं किया जा सकता। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्री परिषद को भंग कर देता है। राज्य सरकार के कामकाज और शक्तियां राष्ट्रपति के पास आ जाती हैं। इसके अलावा राष्ट्रपति चाहे तो यह भी घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल संसद करेगी।

हिंद महासागर में चीन की हर चाल होगी नाकाम, भारतीय नेवी की ताकत बढ़ाने आ रही आईएनएस अरिघात

#ins_arighat_commissioning_indian_navy_second_nuclear_powered_submarine

हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की नौसेना लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है। भारत के लिए ये चिंता का विषय है। हालांकि, देश अपने दुश्मनों को नजरअंदाज नहीं करता, यही कारण है भारत लगातार अपनी सेना को मजबूत करने में लगा है। इसी क्रम में भारतीय नौसेना के बेड़े में आज आईएनएस अरिघात की एंट्री होने जा रही है।अरिघात को 2017 में लॉन्च किया गया था। तब से इसकी टेस्टिंग जारी रही। अब फाइनली इसे कमीशन किया जाएगा। आईएनएस अरिघात भारत की दूसरी न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है। यह स्वदेशी परमाणु पनडुब्बियों की अरिहंत क्लास की दूसरी पनडुब्बी है। परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पहली स्वदेशी पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत है जिसे 2009 में नौसेना में शामिल किया गया था।

अरिघात शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब है ‘शत्रु का नाश करने वाला’। जैसा इसका नाम वैसा ही इसका काम भी है। यह किलर पनडुब्बी पानी की सतह पर 22 से 28 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है और समंदर की गहराई में भी 44 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। इसके अलावा यह महीनों तक पानी में रह सकती है।

लगभग 112 मीटर लंबी इस पनडुब्बी में K-15 मिसाइलें लगी हैं, जो 750 किलोमीटर तक मार कर सकती हैं। 6,000 टन वजन की INS अरिघात लंबे ट्रायल्स और टेक्नोलॉजिकल अपग्रेड्स के बाद पूरी तरह से तैयार है। विशाखापत्तनम में एक गोपनीय कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में इस पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया जाएगा।

आईएनएस अरिहंत के साथ-साथ अब आईएनएस अरिघात के नौसेना में आने से भारतीय नेवी और मजबूत होगी। अरिघात, अरिहंत का एडवांस वर्जन है। दोनों ही समंदर के भीतर से परमाणु बम दागने की क्षमता रखते हैं। बस अंतर है मिसाइलों के अधिक कैरी करने का। अरिघात K15 मिसाइलों को अधिक ले जा सकता है। यह दुश्मनों को छिपकर ध्वस्त कर सकता है। भारत की ये ताकत दुश्मन देशों के लिए काल बन चुकी है। चीन के समुद्री विस्तार को लगाम लगाने के लिए भारत का हर एक कदम उसे पीछे खदेड़ेगा।

बता दें कि भारतीय नौसेना अब तक 3 न्यूक्लियर सबमरीन तैयार कर चुकी है। इसमें से एक अरिहंत कमीशंड है, दूसरी अरिघात मिलने वाली है और तीसरी S3 पर टेस्टिंग जारी है। इन सबमरीन के जरिए दुश्मन देशों पर परमाणु मिसाइल दागी जा सकती हैं।

*मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल के फैसलों पर बार बार क्यों ले रही यू टर्न, मजबूरी या खास रणनीति?*
#why_is_the_govt_taking_u_turn_again_and_again
केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बने एनडीए सरकार को अभी ढाई महीने हुए हैं। इस दौरान सरकार ने ऐसे 5 बड़े फैसले लिए, जिसे मील का पत्थर माना जा रहा है। हालांकि, मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में एक के बाद एक फैसलों पर पलटती दिखी है। इनमें लेटरल एंट्री, ब्रॉडकास्टिंग बिल के ड्राफ्ट से लेकर वक्फ संशोधन एक्ट जैसे मुद्दे शामिल हैं। खास बात है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सरकार के यू-टर्न पर खूब खुश नजर आ रही है। कांग्रेस यह संदेश देने की भी कोशिश कर रही है कि किस तरह से नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में में विपक्ष और अपने सहयोगी दलों के दबाव में अपने फैसलों पर पीछे हटने को मजबूर हो रही है। *फैसलों से पीछे हटने के पीछे बीजेपी की रणनीति!* अब सवाल है कि क्या सचमुच नरेंद्र मोदी की विपक्ष के विरोध के आगे झुकी है? विपक्ष के रवैये के कारण की तीन मौकों पर सरकार झुकी और उसने यू टर्न किया है? या किसी खास रणनीति के तहत जान बूझकर सरकार की ओर से विवादित मसले आगे किए जा रहे हैं और फिर पीछे हटा जा रहा है ताकि देश के मतदाताओं में यह मैसेज बने कि भाजपा को बहुमत नहीं देने का क्या नुकसान हो रहा है? एक दूसरी चर्चा यह कि लैटरल एंट्री पर जान बूझकर विवाद कराया गया ताकि उसमें आरक्षण लागू किया जा सके। इसी तरह वक्फ बोर्ड कानून को भी जेपीसी के पास इसलिए भेजा गया ताकि यह मैसेज बने कि सभी पार्टियों से सलाह मशविरा करके इसे लागू किया जा रहा है। सरकार ने इस तरह कुछ समय भी हासिल किया है ताकि राज्यसभा में उसका बहुमत हो जाए। बहरहाल, परदे के पीछे कारण चाहे जो हो लेकिन यह सरल मामला नहीं है। इसे उस तरह देखने की जरुरत नहीं है, जैसे दिखाया जा रहा है। न्यूज 18 की रिपोर्ट की मानें तो, सरकार से जुड़े लोगों का भी कहना है कि सरकार की तरफ से यह कदम जनता की प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक होने के का प्रतीक है। साथ ही सरकार कांग्रेस की रणनीति को ध्वस्त करती जा रही है। बीजेपी में कई लोगों का मानना है कि यह लोकसभा चुनावों में जीत के बाद पॉलिटिकल नैरेटिव को फिर से अपने पक्ष में करने का हिस्सा है। इसके अलावा पीएम मोदी की तरफ से दिखाई गई राजनीतिक व्यावहारिकता का एक उदाहरण है। *पूर्ण बहुमत की सरकार में भी बीजेपी ने पलटे फैसले* केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पहले भी अपने फैसले पलट चुकी है या यू टर्न कर चुकी है। जिस समय भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी तब भी पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव का बिल वापस लिया था। दूसरे कार्यकाल में किसानों के आंदोलन की वजह से तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लिया गया। लोकतंत्र में यह कोई अनहोनी नहीं है। जन दबाव में सरकारों को फैसले पलटने होते हैं। लेकिन तीसरी बार सरकार बनाने के बाद जितनी जल्दी जल्दी सरकार फैसले पलट रही है, वह हैरान करने वाला है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर है कि सरकार को इन मामलों की संवेदनशीलता का पता है फिर भी क्यों फैसले हो रहे हैं और क्यों वापस हो रहे हैं? *क्या सहयोगियों का दबाव बना यू टर्न का कारण?* वहीं, कई मीडिया रिपोर्ट में ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा अपने सहयोगियों के दबाव कारण फैसले से पलटी है। अब सवाल ये है कि क्या कोई सहयोगी सरकार को इस समय गिराने की कोशिश करेगा? नीतीश कुमार ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि केवल भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाए रख सकती है। चंद्रबाबू नायडू भी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले किए गए अपने वादों को पूरा करना है और अपने बेटे लोकेश को उत्तराधिकारी बनाने के लिए ठोस मंच देना है, इससे पहले कि टीडीपी के प्रमुख नई दिल्ली में किंगमेकर बनने के बारे में सोचें। ऐसा चिराग पासवान भी नहीं करेंगे, जो अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान के योग्य उत्तराधिकारी साबित हुए हैं। बिहार में दलितों के बीच अपना आधार मजबूत करने के लिए चिराग मोदी की लोकप्रियता उनके “हनुमान” बनकर भुना रहे हैं। वे इतने व्यावहारिक राजनेता हैं कि एक मुद्दे को अपने राम, नरेंद्र मोदी के साथ अपने समीकरणों को खतरे में डालने नहीं देंगे। एनडीए में भाजपा के अन्य सहयोगी, जैसे कि शिवसेना के एकनाथ शिंदे या अपना दल की अनुप्रिया पटेल, अगर भाजपा से अलग होने के बारे में सोचते हैं, तो उनके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। *बीजेपी के यू टर्न* अब उन फैसलों की बात करें जिस पर सरकार ने यू टर्न लिया है।लैटरल एंट्री के जरिए केंद्र सरकार में 45 पदों पर सीधी नियुक्ति की बात करें तो सरकार इस बात से अनजान नहीं थी कि इस समय आरक्षण का मुद्दा तूल पकड़े हुए है और अगर बिना आरक्षण के 45 पदों पर बहाली होती है तो उसका विरोध होगा? फिर भी 17 अगस्त को नियुक्ति का विज्ञापन निकला। तीन दिन तक इसका विरोध हुआ और फिर 20 अगस्त को कार्मिक मंत्रालय ने विज्ञापन वापस लेने के आदेश दिया। ठीक इसी तरह सरकार निश्चित रूप से वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव की पहल से पहले को अच्छी तरह जानती होगी कि इसका विरोध होगा। फिर भी सरकार ने बिल पेश किया। संसद के पिछले सत्र में इसे पेश किया गया और विपक्षी पार्टियों के साथ साथ सहयोगियों के विरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेज दिया गया। उससे भी पहले सरकार ने ब्रॉडकास्ट रेगुलेशन बिल का मसौदा तैयार किया था, जिसे सभी संबंधित पक्षों यानी मीडिया समूहों को दिया गया था। लेकिन वह भी रहस्यमय तरीके से वापस हो गया। जिनको ड्राफ्ट की कॉपी भेजी गई थी उनको इसे लौटाने के लिए कहा गया। इस मामले में भी सरकार को पता था कि अभिव्यक्ति की आजादी का मामला उठेगा। फिर भी इसका मसौदा बंटवाया गया।
ममता के यूपी-बिहार-असम भी जलेंगे वाले बयान पर मचा सियासी घमासान, भाजपा नेताओं ने साधा निशाना*
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा द्वारा बुलाए गए बंद के विरोध में ऐसा बयान दे दिया है कि सियासी तूफान खड़ा हो गया है।ममता ने 28 अगस्त को तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद के स्थापना दिवस कार्यक्रम में कहा था कि अगर पश्चिम बंगाल को जलाया तो असम, उत्तर-पूर्व, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे।उनके इस बयान पर भाजपा नेताओं ने आपत्ति जताई है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भाषण पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने जोरदार हमला बोला है। पूनावाला ने ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस, समा और आप नेताओं को भी घेरा है। बीजेपी नेता ने कहा हैं, ''140 करोड़ भारतीय पश्चिम बंगाल की बेटी के लिए न्याय मांग रहे हैं। ममता बनर्जी की प्राथमिकता न्याय नहीं बल्कि बदला है। जब एक सीएम कहतीं हैं, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पूर्वोत्तर और ओडिशा जलेंगे, मैं पूछना चाहता हूं कि क्या अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, आप या गौरव गोगोई इस बयान का समर्थन करते हैं? क्या जो लोग न्याय की मांग कर रहे हैं वे अशांति पैदा कर रहे हैं? यह प्रदर्शनकारियों और डॉक्टरों का अपमान है जब ममता बनर्जी का कहना है कि न्याय की मांग करना अशांति पैदा करने जैसा है। वह संविधान विरोधी बयान दे रही हैं और राहुल गांधी, जो संविधान की प्रति लेकर घूमते हैं, इस पर एक शब्द भी नहीं बोलते हैं।'' *सरमा ने पूछा- आपकी हिम्मत कैसे हुई असम को धमकाने की?* ममता के इस बयान को लेकर असम के सीएम हिमंत विस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि दीदी, आपकी हिम्मत कैसे हुई असम को धमकाने की? हमें लाल आंखें मत दिखाइए। आपकी असफलता की राजनीति से भारत को जलाने की कोशिश भी मत कीजिए। आपको विभाजनकारी भाषा बोलना शोभा नहीं देता। *बंगाल भाजपा अध्यक्ष का गृह मंत्री को लिखा पत्र* सुकांत ने अमित शाह के नाम पत्र में लिखा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कोलकाता में TMC के छात्र विंग को संबोधित करते हुए भीड़ को उकसाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि 'मैंने कभी बदला नहीं चाहा, लेकिन अब, जो करना है वह करो।' ममता का यह बयान राज्य के सर्वोच्च पद से बदले की राजनीति का स्पष्ट समर्थन है। उन्होंने बेशर्मी से राष्ट्र-विरोधी बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि 'याद रखें, अगर बंगाल जलता है, तो असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, और दिल्ली भी जलेंगे।' यह संवैधानिक पद पर बैठने वाले व्यक्ति की आवाज नहीं हो सकती है, यह राष्ट्र-विरोधी की आवाज है। उनका बयान स्पष्ट रूप से धमकाने, हिंसा भड़काने और लोगों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास है। अब वे इतने महत्वपूर्ण पद पर बने रहने की हकदार नहीं हैं। उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिए। जनता के हर सेवक का, खासतौर से ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य है कि वह शांति को बढ़ावा दे और किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ने से रोके। ममता के विचार चिंताजनक हैं और यह पश्चिम बंगाल के नागरिकों की सुरक्षा और राज्य की अखंडता को कमजोर करता है। मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं कि आप इस गंभीर मामले पर संज्ञान लें और स्थिति को संबोधित करने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करें। मैं पश्चिम बंगाल के नागरिकों के हितों की रक्षा करने और हमारे राष्ट्र के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए आपकी तरफ से तुरंत और निर्णायक कार्रवाई का इंतजार कर रहा हूं। *ममता ने क्या कहा* ममता ने कहा था, "कुछ लोगों को लगता है कि यह बांग्लादेश है। वे हमारी तरह बात करते हैं और हमारी संस्कृति भी एक जैसी है, लेकिन याद रखिए कि बांग्लादेश अलग देश है और भारत अलग देश है। मोदी बाबू कोलकाता के मामले में अपनी पार्टी का इस्तेमाल करके बंगाल में आग लगवा रहे हैं। अगर आपने बंगाल को जलाया तो असम, उत्तर-पूर्व, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे। हम आपकी कुर्सी गिरा देंगे।" दरअसल, कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेड में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना के विरोध में छात्र संगठनों ने 27 अगस्त को 'नबन्ना अभियान' विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था।इस दौरान छात्र सचिवालय तक रैली निकाल रहे थे, जहां प्रदर्शन हिंसक हो गया और पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस घटना के विरोध में भाजपा ने 28 अगस्त को 12 घंटे बंद का ऐलान किया था।ममता ने इसी बंद को लेकर भाजपा पर निशाना साधा था।
बारिश में धुलीं गुजरात मॉडल की सड़कें! अब वीडियो शेयर कर कांग्रेस ने कसा तंज

#gujarat_model_congress_taunts_on_floods

बारिश और बाढ़ के कारण गुजरात में हालात बिगड़े हुए हैं। गुजरात में पिछले दो से तीन दिनों से भारी बारिश हो रही है। स्थिति यह है कि, सड़कें जलमग्न है और कई नदी-नाले उफान पर हैं। बाढ़ की चपेट में आने से अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है। 

बाढ़ के दर्दनाक मंजर के बीच देश का सियासी पारा भी हाई है। कांग्रेस ने गुजरात में बाढ़ में बह रहे एक घर का वीडियो अपने एक्स अकाउंट से पोस्ट करते हुए लिखा है, 'मोदी का तैरता हुआ गुजरात मॉडल।' कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में बाढ़ से जानमाल के नुकसान पर दुख जताते हुए बुधवार को पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आह्वान किया कि वे राहत एवं बचाव कार्य में हर संभव सहयोग करें। 

वहीं, बाढ़ का वीडियो शेयर करते हुए कांग्रेस नेता मनोज मेहता ने लिखा है कि “मोदी द्वारा विकसित शहर ए फौलाद हूं, जी हां मैं ही गुजरात का अहमदाबाद हूं।”

कांग्रेस नेता विनय कुमार दोकानिया ने लिखा है “अपनी तरह का पहला, दुनिया में पहली बार अहमदाबाद गुजरात में, अब कहीं भी स्वचालित अंडरग्राउंड पार्किंग सुविधा उपलब्ध है, (सिमित अवधी की पेशकश, सुविधा केवल मानसून के दौरान, कोई शुल्क नहीं, कोई कर नहीं) धन्यवाद मोदी जी।”

बता दें कि पिछले चार दिनों से लगातार हो रही बारिश ने लोगों का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है। भारी बारिश के कारण कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हैं। वडोदरा में स्थिति चिंताजनक है। यहां के कुछ इलाके 10 से 12 फीट पानी में डूबे हुए हैं। 40 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 17000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।

जम्मू कश्मीर के राजौरी-कुपवाड़ा में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़, तीन आतंकियों के मारे जाने की खबर*
#encounter_between_security_forces_and_terrorists_3_terrorists_killed *
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा और राजौरी में दो अलग-अलग मुठभेड़ की खबर है। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में सुबह-सुबह एनकाउंटर हुआ है। कुपवाड़ा जिले में दो अलग-अलग जगहों पर हुए एनकाउंटर में तीन आतंकवादी मारे गए हैं। तंगधार और माछिल सेक्टर में ये एनकाउटंर हुए हैं।राजौरी में मुठभेड़ खेड़ी मोहरा लाठी और दंथल इलाके में बुधवार (28 अगस्त) देर रात शुरू हुई। इलाके में दो से तीन आतंकी छिपे होने की आशंका है। भारतीय सेना के अनुसार घुसपैठ की आशंका के बारे में खुफिया जानकारी के आधार पर, 28-29 अगस्त की रात तंगधार, कुपवाड़ा के सामान्य क्षेत्र में भारतीय सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने संयुक्त घुसपैठ विरोधी अभियान शुरू किया। उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के कुमकडी इलाके और तंगधार सेक्टर में कथित तौर पर तीन आतंकवादी मारे गए हैं। वहीं, राजौरी में हुई मुठभेड़ में भी आतंकियों की मौत हो सकती है। हालांकि, मुठभेड़ और सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है और सेना ने आतंकियों के शव बरामद नहीं किए हैं। विधानसभा चुनाव में गड़बड़ी फैलाने की साजिश के तहत सीमा पार से आतंकियों को धकेलने की कोशिश की गई थी। पूरे इलाके में सतर्कता बढ़ा दी गई है। ऐसा इनपुट था कि आतंकियों का ग्रुप एलओसी से तंगधार सेक्टर में घुसपैठ कर सकता है। इस सूचना पर एलओसी पर सतर्क सेना के जवानों ने मोर्चा लगाया था। देर रात खुशहाल पोस्ट के पास संदिग्ध गतिविधियां देखने के बाद जवानों ने ललकारा तो दूसरी ओर से आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई से मुठभेड़ शुरू हो गई। जवानों की ओर से पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी गई है ताकि अंधेरे का लाभ उठाकर आतंकी घुसपैठ करने में सफल न हो जाएं। जम्मू-कश्मीर में अगले महीने ही विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावों की तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में चुनाव होंगे. इसमें पहला चरण 18 सितंबर, दूसरा चरण 25 सितंबर और तीसरे चरण के लिए एक अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। जिसके बाद चार अक्टूबर को मतों की गिनती होगी। बता दें कि राज्य में 2014 के बाद अब चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे चुनावी माहौल के बीच घाटी में आतंकियों की नापाक हरकतों का बढ़ना चिंता का विषय बनता जा रहा है।
हिंद महासागर में चीन का बढ़ता दबदबाः ड्रैगन के मुकाबले कितनी मजबूत है भारतीय नौसेना

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इस समय दुनिया में युद्ध के कई मुहाने खुले हुए हैं। एक तरफ पिछले लगभग लगभग 3 वर्षों से रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है। वहीं अक्टूबर 2023 में इजरायल-फिलिस्तीन का युद्ध शुरू हो गया। इस बीच चीन ने खुद को इस जगह पर खड़ा कर लिया है, जहां से देखें तो वो जंग के लिए लालायित दिख रहा है। चीन की अपने पड़ोसी देशों की सीमाओं पर दखलअंदाजी कभी भी बड़ा “धमाका” करा सकती है। इस बीच चीन “स्ट्रिंग्स ऑफ पल्स प्रोजेक्ट” के जरिये भारत को उसकी सीमा के भीतर चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है। साथ ही पिछले कई वर्षों से हिंद महासागर में चीन ने अपनी मौजूदगी बढ़ा कर भारत की चिंता बढ़ाने का कम किया है।

भारत और चीन एशिया की दो महाशक्तियां मानी जातीं हैं।चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में भारत की नौसैनिक क्षमताओं पर कोई भी चर्चा हिंद महासागर पर केंद्रित होनी चाहिए। भारत इसे अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखता है और वहां एक प्रमुख भूमिका निभाना चाहता है। हालांकि बिजिंग का कहना है कि “हिंद महासागर भारत का महासागर नहीं है।”

पिछले कई वर्षों से भारत हिंद महासागर में और खास तौर पर अपने नजदीकी पड़ोस में चीन की बढ़ती नौसैनिक मौजूदगी को लेकर चिंतित है। भारतीय अधिकारियों ने श्रीलंका के तट पर चीनी नौसैनिक जहाजों की मौजूदगी और बांग्लादेश द्वारा चीनी नौसैनिक प्लेटफॉर्म और पनडुब्बियों की खरीद पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। इस संबंध में भारत के लक्ष्य रणनीतिक और भौगोलिक रूप से अच्छी तरह से परिभाषित हैं। भारत हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर पर नियंत्रण को अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए केंद्रीय मानता है।

भारत दक्षिण चीन सागर में चीन के क़दमों को लेकर चिंतित है। भारत नहीं चाहता कि चीनी नौसेना हिंद महासागर में भी अपनी गतिविधि बढ़ाए। भारत की चिंता की बड़ी वजह ये थी कि हंबनटोटा से चेन्नई, कोच्चि, और विशाखापत्तनम बंदरगाहों का फासला क़रीब 900 से 1500 किलोमीटर ही है। साथ ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए लॉन्च बेस इंफ्रास्ट्रक्चर देने वाला सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा भी क़रीब 1100 किलोमीटर की दूरी पर ही है। चीनी नौसेना की संख्या और गतिविधियां जिस तरह से हिन्द महासागर क्षेत्र में बढ़ती दिख रही हैं, जासूसी की सम्भावना भारत जैसे देशों के लिए एक बड़ी चिंता बन रही है।

यही वजह है कि भारत, पूर्व एशिया के देशों जैसे फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम के साथ सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है। दरअसल, दक्षिण चीन सागर में इन देशों का चीन से सीमा विवाद है।वहीं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दख़ल से मुक़ाबला करने के लिए भारत अपनी सेना ख़ासकर नौसेना की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है। इसके लिए भारत अपने समुद्री बेड़े में कई नई पनडुब्बियों को शामिल करने के अलावा सेना के उपकरणों को आधुनिक बना रहा है।

चीन के बढ़ते नौसैनिक प्रभाव के बीच बड़ा सवाल ये है कि चीनी नौसेना भारत के लिए कितना बड़ा ख़तरा है और उसके मुक़ाबले भारतीय नौसेना कहां खड़ी है?

चीनी नौसेना नंबर के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी है और ये तेजी से अपना आकार बढा रही है। तीन एयरक्राफ्ट कैरियर उसके पास मौजूद है और वो चौथे सुपर कैरियर की तैयारी कर चुका है। अभी नहीं लेकिन अगले 2-3 साल के अंदर ये एयरक्राफ्ट कैरियर हिंद महासागर क्षेत्र में भी दिखाई दे सकते हैं। सबमरीन और जंगी जहाज तो इस इलाके से होकर गुजरते ही हैं। लिहाजा एयरक्राफ्ट कैरियर और वॉरशिप का सबसे बड़ा किलर यानी सबमरीन की ताकत भारतीय नौसेना युद्ध स्तर पर बढ़ा रही है।

दुनिया में फिलहाल तीन तरह के सबमरीन है। पहला डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन है। फिलहाल भारत के पास 16 डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन और 1 बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है, जिसमें 1 बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन (SSBN) INS अरिहंत तो सूत्रों के मुताबिक दूसरी अरिघात का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और जल्द वो भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा। सूत्रों की माने तो भारतीय नौसेना को उनकी न्यूक्लियर पॉवर्ड अटैक सबमरीन (SSN) की मंजूरी भी सरकार से मिल सकती है।

ग्लोबल फायर पॉवर ने इस साल की शुरूआत में दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं की सूची जारी की थी।इस सूची के हिसाब से अमेरिका की सेना सबसे ताकतवर है। वहीं दूसरे नंबर पर रूस है वहीं चीन की सेना दुनिया में तीसरे नंबर पर आती है। इसके बाद भारत का नंबर आता है।सैन्य विमानों की तुलना करें तो चीन में 3,304 विमान हैं जबकि भारत के पास 2,296 विमान हैं।इसके साथ ही भारत के पास 4,614 टैंक मौजूद हैं तो चीन के पास 5,000 टैंक हैं। थल सेना के अलावा भारत की वायुसेना में 3,10,575 वायुसैनिक हैं और जलसेना में 1,42,252 सैनिक देश की जल सीमाओं की सुरक्षा कर रहे हैं। वहीं चीन की वायुसेना में 4,00,000 जवान है और इनकी जलसेना में 3,80,000 सैनिक हैं।

भारतीय नौसेना की शक्ति की बात की जाए तो नौसेना के पास दो एयरक्राफ्ट करियर हैं। आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत। भारतीय नौसेना के 11 से ज्यादा बेस हैं। जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल, लक्षद्वीप, महाराष्ट्र, गोवा कर्नाटक और गुजरात में मौजूद हैं। भारतीय नौसेना के सबसे जरूरी काम है एम्यूनिशन सपोर्ट, लॉजिस्टिक्स, मेंटेनेंस सपोर्स, मार्कोस बेस, एयर स्टेशन, फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस, सबमरीन और मिसाइल बोट बेस आदि। आठ टैंक लैंडिंग जहाज, 12 विध्वंसक, 12 फ्रिगेट, दो न्यूकिल्यर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, 16 हमला सबमरीन, 22 कार्वेट, आठ लैंडिंग क्राफ्ट उपयोगिताएं, दस बड़े ऑफशोर पेट्रोलिंग शिप, पांच फ्लीट टैंकर और इसके साथ ही कई सारे सहायक जहाज और छोटी पेट्रोलिंग बोट्स भी मौजूद हैं।

विकास की रफ्तार भरेगा भारतः मोदी सरकार ने देश में 12 इंडस्ट्रियल स्मार्ट सिटी बनाने की मंजूरी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने कई बड़े फैसले ल‍िए। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया क‍ि नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत 12 इंडस्ट्रियल स्मार्ट सिटी को मंजूरी दी गई।इन 12 इंडस्ट्रियल पार्कों में 28,602 करोड़ रुपये के निवेश की संभावना है, जिससे करीब 10 लाख नौकरियों की संभावना पैदी होगी।

कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि कैबिनेट ने सभी इंडस्ट्रियल पार्कों को मंजूरी दे दी है। इसमें से 11 पार्क के नामों का ऐलान आज कर दिया गया है, जबकि 1 पार्क हरियाणा राज्य में बनाया जाएगा, जहां आचार संहिता लागू होने के कारण इसके नाम का ऐलान नहीं किया गया है। 28 हजार करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रोजेक्ट में 10 लाख नौकरियों का सृजन होगा और 1.5 लाख करोड़ के निवेश आने की संभावना है।

अश्विनी वैष्णव ने बताया क‍ि इस मुह‍िम के तहत पिछले तीन महीने में कई बड़े प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है। करीब दो लाख करोड़ के प्रोजेक्ट पास क‍िए गए हैं। इंडस्ट्रियल स्मार्ट सिटी में कुल 1.52 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश आने की संभावना है। बजट में सरकार ने निजी और सरकारी भागीदारी से ऐसे शहरों के डेवपलमेंट की घोषणा की थी। देश के 100 शहरों या उसके पास ‘प्‍लग एंड पे’ इंडस्‍ट्र‍ियल पार्क विकस‍ित करने का ऐलान क‍िया गया था।

इन राज्यों में खुलेंगे इंडस्ट्रियल पार्क

• खुरपिया, उत्तराखंड

• राजपुरा पटियाला, पंजाब

• आगरा, उत्तर प्रदेश

• प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

• गया, बिहार

• दीघी पोर्ट, महाराष्ट्र

• जोधपुर पाली मारवाड़, राजस्थान

• कोपर्थी, आंध्र प्रदेश

• ओरवकल, आंध प्रदेश

• ज़हीराबाद, तेलंगाना

• पलक्कड़, केरल

पहले से ही आठ औद्योगिक शहर विकास के चरण

आठ औद्योगिक शहर पहले से ही विकास के चरण में हैं और बजट में 12 नए शहरों की घोषणा के साथ, देश में इन शहरों की कुल संख्या 20 तक पहुंच जाएगी। इस कदम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाने और रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। चार शहरों - धोलेरा (गुजरात), ऑरिक (महाराष्ट्र), विक्रम उद्योगपुरी (मध्य प्रदेश) और कृष्णापटनम (आंध्र प्रदेश) में ट्रंक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया गया है और उद्योग के लिए भूमि भूखंडों का आवंटन किया जा रहा है। इसी तरह, अन्य चार शहरों में सरकार का वाहन सड़क संपर्क, पानी और बिजली आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण की प्रक्रिया में है।

बांग्लादेश ने पाकिस्तान से गोला-बारूद की नई आपूर्ति मांगी, कहां होगा इसका इस्तेमाल?

#bangladesh_seeks_new_supply_of_ammo_from_pakistan 

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा देने और नई अंतरिम सरकार के गठन के मात्र तीन सप्ताह बाद, ढाका ने पाकिस्तान से गोला-बारूद की नई आपूर्ति का आदेश दिया है।बांग्लादेश से पाकिस्तान को तीन किस्तों में हजारों राउंड गोला बारूद वितरित करने का आदेश दिया गया है, गोला बारूद का यह वितरण सितंबर में शुरू होगा।

बांग्लादेश से पाकिस्तान को तीन किस्तों में हजारों राउंड गोला बारूद वितरित करने का आदेश दिया गया है।गोला बारूद का इस्तेमाल तोपखाने की बंदूकों में किया जाना है जो 30 किलोमीटर से 35 किलोमीटर के बीच लक्ष्य पर हमला कर सकते हैं। निर्यात सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू होकर दिसंबर में समाप्त होगा। इसमें 40,000 से अधिक राउंड गोला-बारूद, विस्फोटकों के लिए मोम की स्थिरता में 40 टन आरडीएक्स और हाई स्पीड के प्रोजेक्टाइल, जिनकी संख्या 2900 है शामिल है। 

अपनी तरफ से, पाकिस्तान आयुध निर्माणी (POF) बोर्ड के निर्यात प्रभाग ने उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनी सभी फैक्ट्रियों को ऑर्डर की सूची भेज दी है। पाकिस्तान से बांग्लादेश को सैन्य निर्यात का विवरण पीओएफ की ओर से हवेलियां, संजवाल और गडवाल में विभिन्न डिवीजनों के प्रबंध निदेशकों को भेजे गए पत्र में दिया गया है। यह निर्यात सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू होकर दिसंबर में समाप्त होने वाले तीन शिपमेंट में किया जाना है।

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान बांग्लादेश को गोला-बारूद की आपूर्ति कर रहा है। हालांकि, संख्या सामान्य से कहीं ज़्यादा है। पिछले साल 2023 की शुरुआत में ऑर्डर 12,000 राउंड गोला-बारूद का था।

बता दें कि बांग्लादेश में 5 अगस्त को तख्ता पलट हुआ, लोग कर्फ्यू तोड़ कर सड़क पर आ गए थे और हिंसा इस हद तक भड़क गई थी कि पूर्व पीएम शेख हसीना को देश छोड़ कर भारत आना पड़ा। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि बांग्लादेश में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाने के लिए हुए विरोध प्रदर्शनों को जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तान और चीनी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर समर्थन दिया था।