राज्य में झामुमो बन गयी राजनीतिक पाठशाला, कई नेता यहां सीखे दाव पेंच, फिर आजमाया दूसरी पार्टी में किस्मत
झा. डेस्क
झारखंड में अभी सियासी घमासान चल रहा हैं. कारण हैं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को लेकर भाजपा में शामिल होने की चर्चा.यह कोई पहली बार नहीं हो रहा हैं. इसके पूर्व भी झामुमो में रहकर कई नेताओं ने अपने राजनितिक जीवन की शुरुआत की. यहां राजनीती के दावपेंच सीखा और फिर दूसरी पार्टी का हिस्सा बनकर अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत की.
कुछ को सफालता मिली तो कुछ गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं.अब फिर झामुमो में चंपाई की नाराजगी, उनका एक्स पर पोस्ट और सियासी हलकों में चर्चा ने एक बार फिर इस चर्चा को बाल दे दिया हैं कि चंपाई सोरेन झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल होंगे.
इन्ही चर्चाओं के बीच राजनीतिक गलियारों में झामुमो को अक्सर झारखंड में राजनीति की पाठशाला कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कई नेताओं ने राजनीति की इस पाठशाला में सियासी दांवपेच सीखने के बाद मौका मिलते ही दूसरे दलों का रुख कर अपने सियासी करियर को नया आयाम दिया। इसमें कई नेता सफल होकर झारखंड की राजनीति के कद्दावर बने।
झारखण्ड मुक्तिमोर्चा छोड़ने वालों कि रही लम्बी पेहरिस्त रही
चंपाई सोरेन से पहले पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेताओं ने झमुमो को छोड़ा.कृष्णा मार्डी उन्हीं में से एक हैं.
झामुमो के कोल्हान क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में से एक रहे कृष्णा मार्डी झामुमो के सांसद रह चुके हैं, लेकिन एक समय ऐसा आया, जब उन्होंने पार्टी छोड़ दी. उनके अलावा पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां, पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी, पूर्व सांसद सूरज मंडल, हेमलाल मुर्मू, संताल के कद्दावर झामुमो नेता रहे साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी तक ने झामुमो छोड़ दूसरे दलों में अपनी राजनीतिक पारी कि शुरुआत की.
जिन नेताओं ने झामुमो से अलग रहकर भी अपना सियासी कद बनाए रखा, उनमें अर्जुन मुंडा का नाम सबसे बड़ा है. मुंडा ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत झामुमो से की थी.
1995 में झामुमो के टिकट पर खरसावां सीट से चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचने वाले अर्जुन मुंडा भाजपा में जाने के बाद तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में भी मंत्री रहे. उनका राजनीतिक कद आज भी बरकरार है. इसी तरह झामुमो छोड़ने के बाद विद्युतवरण महतो ने तीन बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की.
झामुमो के सांसद रहे शैलेन्द्र महतो भी सफल माने जाएंगे, क्योंकि उन्होंने भाजपा में जाने के बाद पत्नी आभा महतो को भाजपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचाने में सफलता पाई थी. हालांकि उन्हें भाजपा में खुद कोई खास सफलता नहीं मिली.
ताजा उदाहरण जामा विधानसभा सीट से तीन बार से विधायक रहीं सीता सोरेन का है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया थ.
इस तरह लगातार टूट के बाद भी झामुमो ने झारखण्ड में अपना अस्तित्व बनाये रखा और राजनीती के केंद्र में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ही रही. साथ ही नेतृत्व भी शिबू सोरेन के परिवार के पास ही रहा.
चम्पाई को भाजपा में जाने से क्या असर पड़ेगा झामुमो पर
दरअसल चंपाई शिबू सोरेन के साथ झामुमो के कोल्हान में एक जुझारू चेहरा रहे. उनकी जुझारूपन के कारण हीं उन्हें टाइगर के नाम से सम्बोधित कीया जाता रहा. लेकिन चंपाई को भाजपा में जाने से थोड़ा बहुत फर्क जरूर पड़ेगा लेकिन झामुमो के राजनितिक अस्तित्व पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि अभी जो चर्चा हैं की चंपाई के साथ और कई लोग भाजपा का हिस्सा बन सकते हैं इस पर ग्रहण लग गया हैं, कुछ मीडिया हलकों से आ रही खबर से यह सामने आया हैं की कुछ और नाराज लोगों ने चंपाई को अकेले छोड दिया हैं.
छात्र जाते आते रहते पर पाठशाला नहीं बंद होता
झामुमो के एक कद्दावर नेता ने बताया कि नाराजगी से पहले नेतृत्व से बात करने कि जरुरत हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ, अभी यहां चर्चा हैं, कुछ हुआ नहीं. अगर ऐसा कुछ होता हैं तो जनता सब समझती हैं, झामुमो जनता के लिए झारखण्ड कि जनता की पार्टी हैं, और पार्टी जनहित में काम करती रहेगी. झामुमो पाठशाला हैं तो पाठशाला में छात्रों का आना जाना लगा रहता हैं, पर पाठशाला बंद नहीं होता.
Aug 19 2024, 16:02