/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif StreetBuzz मित्रता दिवस पर जानें कृष्ण-सुदमा की सच्ची मित्रता की कहानी,"जब भी मित्रता की बात हो तब कृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिशाल दी जाती है" Mamta kumari
मित्रता दिवस पर जानें कृष्ण-सुदमा की सच्ची मित्रता की कहानी,"जब भी मित्रता की बात हो तब कृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिशाल दी जाती है"


मित्रता दिवस एक ऐसा अवसर है जब हम अपने दोस्तों की अहमियत को पहचानते हैं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस अवसर पर कृष्ण और सुदामा की सच्ची मित्रता की कहानी हमें मित्रता के महत्व और उसकी पवित्रता को समझने का एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है।

प्रारंभिक जीवन और मित्रता

कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रारंभ उनके गुरुकुल के दिनों से होता है। कृष्ण, जो द्वारका के राजा बने, और सुदामा, जो एक गरीब ब्राह्मण थे, दोनों ही अपने गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उन दिनों में दोनों ने एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा किए और गहरी मित्रता का बंधन बनाया। उनकी मित्रता धन, प्रतिष्ठा या सामाजिक स्थिति से परे थी और पूर्णतः सच्चाई, प्रेम और समर्पण पर आधारित थी।

सुदामा का संघर्ष

सुदामा का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनके पास रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त साधन नहीं थे। आर्थिक तंगी के बावजूद सुदामा ने अपनी संतुष्टि को बनाए रखा और अपने मित्र कृष्ण के प्रति उनकी मित्रता में कोई कमी नहीं आई। उनकी पत्नी ने एक दिन उनसे आग्रह किया कि वे कृष्ण से सहायता मांगें, जो अब एक समृद्ध राजा थे।

कृष्ण से मिलन

सुदामा अपने पुराने मित्र से मिलने द्वारका पहुंचे। उन्होंने कृष्ण के लिए थोड़े से चावल लेकर गए, जो उनके पास देने के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु थी। जब कृष्ण ने अपने मित्र को देखा, तो वे बहुत प्रसन्न हुए और सुदामा का स्वागत अत्यधिक आदर और प्रेम के साथ किया। कृष्ण ने सुदामा के लाए चावल को बड़े प्रेम से ग्रहण किया, जिससे उनकी सच्ची मित्रता की गहराई और पवित्रता प्रकट होती है।

कृष्ण का उपहार

सुदामा ने कृष्ण से अपनी आर्थिक स्थिति का जिक्र नहीं किया, लेकिन कृष्ण उनकी कठिनाइयों से परिचित थे। जब सुदामा अपने घर वापस लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनकी झोपड़ी एक सुंदर महल में बदल गई थी और उनके पास सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध थे। यह कृष्ण का सुदामा के प्रति सच्चे प्रेम और मित्रता का प्रतीक था।

निष्कर्ष

कृष्ण और सुदामा की मित्रता की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता धन, प्रतिष्ठा या सामाजिक स्थिति से परे होती है। यह प्रेम, सम्मान और निस्वार्थता पर आधारित होती है। मित्रता दिवस पर हमें इस कहानी से प्रेरणा लेकर अपने दोस्तों के प्रति प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी मित्रता भी सच्चाई और समर्पण पर आधारित हो।

बच्चो को अगर सक्सेसफुल बनना है तो पढ़ाई के साथ-साथ इन बातों पर भी ध्यान दें,आइए जानते है विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए पेरेंटिंग टिप्स


बच्चों को सफल बनाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है। यहां कुछ विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए पेरेंटिंग टिप्स दिए गए हैं:

1. सकारात्मक माहौल बनाएँ:

बच्चों के लिए एक सकारात्मक और सहयोगी माहौल तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण है। घर का वातावरण शांत और उत्साहवर्धक होना चाहिए।

2. समय प्रबंधन सिखाएँ:

बच्चों को समय प्रबंधन के महत्व को समझाना चाहिए। उन्हें सिखाएँ कि कैसे अपने समय को सही तरीके से विभाजित करके पढ़ाई, खेल और आराम के लिए समय निकालें।

3. स्वास्थ्य पर ध्यान दें:

बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें। उन्हें पौष्टिक आहार दें, नियमित व्यायाम के लिए प्रेरित करें, और पर्याप्त नींद सुनिश्चित करें।

4. सकारात्मक प्रोत्साहन:

बच्चों की मेहनत और सफलता की सराहना करें। उन्हें प्रोत्साहित करें और उनकी आत्मविश्वास को बढ़ावा दें।

5. स्वतंत्रता और जिम्मेदारी:

बच्चों को जिम्मेदारी उठाने और स्वतंत्र निर्णय लेने के अवसर दें। यह उनकी निर्णय लेने की क्षमता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा।

6. रुचियों का विकास:

बच्चों की विभिन्न रुचियों और शौकों को पहचानें और उन्हें प्रोत्साहित करें। इससे उनकी रचनात्मकता और सीखने की उत्सुकता बढ़ेगी।

7. मानसिक विकास:

बच्चों को मानसिक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करें। उन्हें समस्या समाधान, तर्कशक्ति और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने में मदद करें।

8. अनुशासन:

बच्चों को अनुशासन का महत्व समझाएँ और उन्हें अनुशासित रहने के लिए प्रेरित करें। अनुशासन से वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

9. मूल्यों और नैतिकता का महत्व:

बच्चों को सही और गलत के बीच अंतर करना सिखाएँ। उन्हें नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों का महत्व समझाएँ।

10. खुली बातचीत:

बच्चों के साथ नियमित रूप से बातचीत करें और उनके विचारों को सुनें। उन्हें अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का मौका दें।

इन टिप्स को अपनाकर आप अपने बच्चों को न केवल शैक्षिक रूप से बल्कि संपूर्ण जीवन में सफल बना सकते हैं। सही दिशा-निर्देशन और समर्थन के साथ, बच्चे आत्मविश्वास और कौशल से भरपूर होकर जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।

घूमने के लिए बेस्ट है सोनीपत की ये जगह,दोस्तो के संग इन जगहों पर करे विजिट


सोनीपत, हरियाणा का एक ऐतिहासिक शहर है जो दिल्ली के पास स्थित है। यहां की कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल आपके और आपके दोस्तों के लिए एक बेहतरीन अनुभव प्रदान कर सकते हैं। आइए जानते हैं सोनीपत की कुछ बेहतरीन जगहों के बारे में:

1. मुरथल के ढाबे

मुरथल, सोनीपत के पास स्थित एक छोटा सा गांव है जो अपने ढाबों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आप और आपके दोस्त लजीज पंजाबी खाना और पराठे का आनंद ले सकते हैं। सुरीले गाने, देसी माहौल और बढ़िया खाना यहां की पहचान हैं।

2. मोतीलाल नेहरू खेल स्कूल, राई

अगर आप और आपके दोस्त खेल के शौकीन हैं तो मोतीलाल नेहरू खेल स्कूल, राई एक शानदार जगह है। यहां विभिन्न खेलों की सुविधाएं मौजूद हैं और यह हरियाणा का एक प्रमुख खेल संस्थान है।

3. तुम्बा किला

तुम्बा किला एक ऐतिहासिक किला है जो सोनीपत के पास स्थित है। यह किला ऐतिहासिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां की वास्तुकला और इतिहास आपको और आपके दोस्तों को प्रभावित करेगी।

4. भिंडवास झील और वन्यजीव अभयारण्य

भिंडवास झील और वन्यजीव अभयारण्य एक अद्भुत जगह है जो प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। यहां आप और आपके दोस्त बर्ड वॉचिंग का आनंद ले सकते हैं और विभिन्न प्रकार के पक्षियों और वन्यजीवों को देख सकते हैं।

5. सोनीपत का पुराना बाजार

सोनीपत का पुराना बाजार एक अच्छी जगह है जहां आप और आपके दोस्त शॉपिंग कर सकते हैं। यहां आपको विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प, कपड़े और आभूषण मिलेंगे जो सोनीपत की विशेषता हैं।

6. कुम्हारो का चौक

कुम्हारो का चौक सोनीपत का एक और प्रसिद्ध स्थान है जहां आप मिट्टी के बर्तन और हस्तशिल्प खरीद सकते हैं। यहां का माहौल और कलात्मकता आपको और आपके दोस्तों को पसंद आएगी।

निष्कर्ष

सोनीपत में दोस्तों के संग घूमने के लिए कई बेहतरीन जगहें हैं। चाहे आप इतिहास प्रेमी हों, प्रकृति प्रेमी हों या फिर खाने के शौकीन, सोनीपत में आपके लिए सब कुछ है। इन जगहों पर विजिट करके आप अपने दोस्तों के साथ यादगार पल बिता सकते हैं।

घरेलू जानवर के साथ रहने वाले लोग स्ट्रेस और डिप्रेशन से रहते हैं दूर,तनाव और डिप्रेशन से मुक्ति की राह हैं पेट एनिमल


 

हमारे व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में, मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहे लोग विभिन्न उपाय अपनाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि घरेलू जानवरों के साथ रहना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी हो सकता है? कई अध्ययन और शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि पालतू जानवर हमारे जीवन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकते हैं।

तनाव कम करने में सहायक

घरेलू जानवर, जैसे कि कुत्ते और बिल्लियां, तनाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। उनके साथ खेलने, समय बिताने और उन्हें प्यार करने से हमारे शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन का स्राव होता है, जो तनाव को कम करता है। उनके साथ बिताया गया समय एक प्राकृतिक और प्रभावी तरीका है अपने मन को शांत रखने का।

डिप्रेशन से राहत

डिप्रेशन के समय, व्यक्ति अक्सर अकेलापन और निराशा महसूस करता है। ऐसे समय में पालतू जानवर आपके सबसे अच्छे साथी साबित हो सकते हैं। उनकी मासूमियत और बिना शर्त का प्यार आपको खुशी और सुकून का अनुभव कराता है। पालतू जानवरों के साथ समय बिताने से सेरोटोनिन और डोपामिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो डिप्रेशन के लक्षणों को कम करता है।

शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार

पालतू जानवरों के साथ नियमित टहलना और खेलना न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। यह नियमित व्यायाम का एक अच्छा स्रोत है, जो आपके दिल की सेहत को बेहतर बनाता है और रक्तचाप को नियंत्रित रखता है।

सामाजिक संबंधों में सुधार

पालतू जानवरों के साथ समय बिताने से आप समाजिक रूप से अधिक सक्रिय हो सकते हैं। उन्हें पार्क में घुमाने ले जाना, अन्य पालतू प्रेमियों से मिलना और उनके साथ बातचीत करना आपके सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है।

जिम्मेदारी की भावना

पालतू जानवरों की देखभाल करने से व्यक्ति में जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सहायक होती है, जिससे व्यक्ति अधिक संगठित और अनुशासित बनता है।

लंबा जीवन

अध्ययनों से यह भी पता चला है कि पालतू जानवरों के साथ रहने वाले लोग अधिक लंबा जीवन जीते हैं। उनके साथ बिताया गया समय खुशी और संतोष का स्रोत बनता है, जो जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

निष्कर्ष

पालतू जानवरों के साथ रहना एक संतुलित और खुशहाल जीवन की कुंजी हो सकता है। उनकी मौजूदगी हमारे जीवन को खुशहाल और तनावमुक्त बनाती है। इसलिए, अगर आप तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, तो एक प्यारे पालतू जानवर को अपनाने पर विचार करें। वे न केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएंगे, बल्कि आपके जीवन में भी खुशियों का संचार करेंगे।

राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त की आज 138 वीं जयंती,आइए जानते है उनके साहित्यिक जीवन के बारे में


मैथिलीशरण गुप्त भारतीय साहित्य के एक प्रमुख कवि और लेखक थे, जिन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगांव में हुआ था। उनकी 138वीं जयंती के अवसर पर, हम उनके साहित्यिक जीवन पर एक नज़र डालते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म एक संपन्न और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके पिता, सेठ रामचरण गुप्त, एक सम्मानित व्यापारी थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद, मैथिलीशरण गुप्त ने स्वाध्याय के माध्यम से संस्कृत, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।

साहित्यिक करियर

मैथिलीशरण गुप्त ने अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत बाल्यावस्था में ही कर दी थी। उनकी पहली कविता "रंग में भंग" 1904 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने "भारत-भारती" (1912) नामक काव्य रचना की, जो उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुई। इस काव्य में उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा, और स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं को उजागर किया।

प्रमुख रचनाएँ

मैथिलीशरण गुप्त की साहित्यिक यात्रा में अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का योगदान रहा। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:

साकेत: इस महाकाव्य में उन्होंने रामायण के लक्ष्मण और उर्मिला के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है।

पंचवटी: इसमें रामायण के पात्रों की मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को दर्शाया गया है।

जयद्रथ वध:

 यह महाभारत के एक प्रमुख घटना पर आधारित है।

द्वापर: इसमें कृष्ण के जीवन और महाभारत की कथा को चित्रित किया गया है।

साहित्यिक शैली

मैथिलीशरण गुप्त की काव्य शैली सरल, सुगम और सुबोध थी। उनकी भाषा में एक विशेष प्रकार की प्रवाहमयता और सौंदर्य था, जो पाठकों को आकर्षित करता है। उन्होंने अपने काव्यों में देशभक्ति, समाज सुधार और मानवता की भावनाओं को प्रमुखता दी।

सम्मान और पुरस्कार

मैथिलीशरण गुप्त को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। इसके अलावा, उन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि भी मिली, जो उनकी देशभक्ति और साहित्यिक योगदान को स्वीकार करने का प्रतीक है।

उपसंहार

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक जीवन भारतीय साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनकी काव्य रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज को प्रेरणा देने वाली भी हैं। उनकी 138वीं जयंती के अवसर पर, हमें उनके साहित्यिक योगदान को याद करते हुए उनके आदर्शों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।

अगर आप में भी है आत्मविश्वास की कमी और हीनभावना से रहते है ग्रस्त तो अपनाएं सेल्फ थेरेपी,जानिए क्या है ये थेरेपी और कैसे करती हैं काम।

आत्मविश्वास की कमी और हीनभावना ऐसे मानसिक समस्याएं हैं जो व्यक्ति के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बाधा डाल सकती हैं। इन्हें दूर करने के लिए सेल्फ थेरेपी एक प्रभावी उपाय हो सकता है। आइए जानते हैं कि सेल्फ थेरेपी क्या है और यह कैसे काम करती है।

क्या हैं सेल्फ थेरेपी?

सेल्फ थेरेपी एक आत्म-सहायता तकनीक है, जो व्यक्ति को अपनी मानसिक और भावनात्मक समस्याओं से निपटने के लिए सिखाती है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति खुद अपने चिकित्सक की भूमिका निभाता है और विभिन्न तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करता है ताकि वह अपनी मानसिक स्थिति को सुधार सके।

सेल्फ थेरेपी कैसे काम करती है?

सेल्फ थेरेपी के कई चरण होते हैं, जिनका पालन करके आप अपनी मानसिक स्थिति को सुधार सकते हैं:

स्वयं की पहचान करें:

 सबसे पहले, आपको यह पहचानना होगा कि कौन से विचार, भावनाएं और व्यवहार आपकी आत्मविश्वास की कमी और हीनभावना को जन्म दे रहे हैं। यह आत्म-जागरूकता की प्रक्रिया है, जिसमें आप अपनी मानसिक स्थिति का गहन विश्लेषण करते हैं।

सकारात्मक आत्म-बातचीत:

अपने आपसे सकारात्मक बातें करें और नकारात्मक विचारों को सकारात्मक में बदलने का प्रयास करें। जैसे कि "मैं यह नहीं कर सकता" को "मैं यह कर सकता हूँ" में बदलें।

लक्ष्य निर्धारण: छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें। यह आपके आत्मविश्वास को धीरे-धीरे बढ़ाने में मदद करेगा।

ध्यान और मेडिटेशन:

 ध्यान और मेडिटेशन करने से मानसिक शांति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। यह तकनीक आपको अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करती है।

सकारात्मक सोच:

अपने आसपास के लोगों और परिस्थितियों में सकारात्मकता खोजने का प्रयास करें। सकारात्मक सोच आपके मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

स्वास्थ्यकर जीवनशैली: नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार और पर्याप्त नींद से आपका शारीरिक स्वास्थ्य भी सुधरता है, जो सीधे तौर पर आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

सेल्फ थेरेपी के लाभ

स्वतंत्रता: सेल्फ थेरेपी आपको अपनी समस्याओं को खुद हल करने की शक्ति देती है, जिससे आप आत्मनिर्भर बनते हैं।

लागत प्रभावी: यह चिकित्सा पद्धति महंगे चिकित्सकों की आवश्यकता को कम करती है, जिससे यह आर्थिक रूप से भी लाभकारी होती है।

समय की बचत: आप अपने समयानुसार थेरेपी कर सकते हैं, जिससे आपको अपने व्यस्त समय में भी इसे अपनाने में सुविधा होती है।

निष्कर्ष

आत्मविश्वास की कमी और हीनभावना से छुटकारा पाने के लिए सेल्फ थेरेपी एक प्रभावी और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाली पद्धति है। इसे अपनाकर आप न केवल अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं। नियमित अभ्यास और सही दृष्टिकोण से आप अपने अंदर के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक में बदल सकते हैं और एक संतुलित और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

Hii

Hii