कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद की आज 114 वी जयंती,आइए जानते है उनके अनमोल विचार
दिल्ली :- मुंशी प्रेमचंद, जिन्हें हिंदी और उर्दू साहित्य में कालजयी लेखक माना जाता है, का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्होंने अपने साहित्यिक करियर में सामाजिक मुद्दों, गरीबी, ग्रामीण जीवन और शोषण जैसे विषयों को प्रमुखता से उठाया।
प्रेमचंद ने अपने लेखन में भारतीय समाज के यथार्थ को सजीव रूप में प्रस्तुत किया। उनकी प्रमुख कृतियों में 'गोदान', 'गबन', 'सेवासदन', 'निर्मला', और 'रंगभूमि' शामिल हैं। उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं, जिनमें 'कफन', 'पूस की रात', 'ईदगाह', और 'बड़े भाई साहब' जैसी प्रसिद्ध कहानियाँ शामिल हैं।
मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से नवाजा गया। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक न्याय और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक मानी जाती हैं।
आइए जानते है मुंशी प्रेमचंद के 25 अनमोल विचार-
मुंशी प्रेमचंद के अमूल्य वचन-
1. आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
2. आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है।
3. आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म ओर अधिकार है।
4. निराशा संभव को अससंभव बना देती है।
5. सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ही जिंदगी हैं।
6. कुल की प्रतिष्ठा भी सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।
7. आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।
8. अन्याय होने पर चुप रहना, अन्याय करने के ही समान है।
9. दौलतमंद आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है।
10. जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
11. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
12. संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।
13. आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फर्क है। आलोचना करीब लाती है और बुराई दूर करती है।
14. क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता हैं। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।
15. प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
16. स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है।
17. कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरूरत पड़ती है।
18. कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।
19. विलासियों द्वारा देश का उद्धार नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।
20. घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते।
21. जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है; उनका सुख छीनने में नहीं।
22. उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं।
23. अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
24. धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।
25. गलती करना उतना गलत नहीं, जितना उसे दोहराना है।
मुंशी प्रेमचंद की 114वीं जयंती के अवसर पर, हम उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान को सलाम करते हैं और उनके जीवन और कृतियों से प्रेरणा लेते हैं।
Aug 02 2024, 12:30