अगर वजन कम करना चाहते है तो अपनी डाइट में शामिल कीजिए ये साउथ इंडियन फूड

वजन कम करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है, लेकिन सही खान-पान से इसे सरल बनाया जा सकता है। साउथ इंडियन फूड एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प हो सकता है, जो आपको वजन कम करने में मदद कर सकता है। आइए जानते हैं कुछ साउथ इंडियन फूड जो आपकी डाइट में शामिल किए जा सकते हैं:
1. इडली

इडली एक लो-केलोरी फूड है जो चावल और उड़द दाल से बनती है। यह स्टीम्ड होने के कारण फैट कम होता है और यह आसानी से पच जाती है। इसे सांभर और नारियल चटनी के साथ खाने से यह और भी पौष्टिक हो जाता है।
2. डोसा

डोसा भी चावल और दाल से बनता है, और इसे कम तेल में तवे पर पकाया जाता है। आप मसाला डोसा के बजाय सादा डोसा चुन सकते हैं, जिसमें कैलोरी कम होती है। इसे सांभर और टमाटर चटनी के साथ खाया जा सकता है।
3. उपमा

रवा उपमा सूजी से बनती है और यह वजन घटाने में मददगार होती है। इसमें सब्जियां डालकर इसे और पौष्टिक बनाया जा सकता है। उपमा प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत है।
4. सांभर

सांभर एक दाल और सब्जियों से बना सूप है, जो प्रोटीन, फाइबर और विटामिन से भरपूर होता है। यह कम कैलोरी वाला होता है और इसे चावल, इडली या डोसा के साथ खाया जा सकता है।
5. रसम

रसम एक पतला सूप है जो टमाटर, इमली और मसालों से बनता है। यह डाइजेशन को सुधारता है और वजन घटाने में मदद करता है। इसे चावल के साथ खाया जा सकता है।
6. पोंगल

पोंगल एक हल्की और पौष्टिक डिश है जो चावल और मूंग दाल से बनती है। इसमें काजू और काली मिर्च का तड़का लगाया जाता है। यह पेट भरने वाला और ऊर्जा देने वाला फूड है।
7. अवियल

अवियल एक मिश्रित सब्जी की डिश है जो नारियल और दही के साथ बनाई जाती है। यह वजन घटाने में मददगार होती है क्योंकि इसमें सब्जियों का उच्च मात्रा में उपयोग होता है।
8. कर्ड राइस

कर्ड राइस दही और चावल का मिश्रण है। यह पेट के लिए हल्का और पाचन में मददगार होता है। दही में प्रोटीन और प्रोबायोटिक्स होते हैं जो वजन घटाने में सहायक होते हैं।
निष्कर्ष
साउथ इंडियन फूड न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। यदि आप वजन कम करना चाहते हैं, तो इन खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। नियमित व्यायाम और सही खान-पान से आप आसानी से अपने वजन घटाने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।


 
						



 
 Bhramari Pranayama)
Bhramari Pranayama)
 
 स्वस्थ रहने के लिए अच्छी नींद आवश्यक है। बिना बाधा रात की नींद लेने से सेहतमंद रह सकते हैं। लेकिन अक्सर कई लोग रात में किसी कारण से जाग जाते हैं। कभी पेशाब जाने या फिर कभी प्यास लगने पर नींद टूटना आम बात है। इस तरह के नींद खुलना कोई चिंता की बात नहीं है लेकिन अगर रोजाना रात में एक ही समय पर आपकी आंख खुलती है तो इसकी कुछ वजह हो सकती है। रोज रात में एक तय समय पर नींद खुलने की समस्या कई लोगों में देखने को मिलती है। कई लोग एक फिक्स समय पर जाग जाते हैं, हालांकि हर व्यक्ति के लिए रात में उठने का समय अलग अलग ही होता है।
स्वस्थ रहने के लिए अच्छी नींद आवश्यक है। बिना बाधा रात की नींद लेने से सेहतमंद रह सकते हैं। लेकिन अक्सर कई लोग रात में किसी कारण से जाग जाते हैं। कभी पेशाब जाने या फिर कभी प्यास लगने पर नींद टूटना आम बात है। इस तरह के नींद खुलना कोई चिंता की बात नहीं है लेकिन अगर रोजाना रात में एक ही समय पर आपकी आंख खुलती है तो इसकी कुछ वजह हो सकती है। रोज रात में एक तय समय पर नींद खुलने की समस्या कई लोगों में देखने को मिलती है। कई लोग एक फिक्स समय पर जाग जाते हैं, हालांकि हर व्यक्ति के लिए रात में उठने का समय अलग अलग ही होता है। 
   मनोचिकित्सक के मुताबिक, रात में सोते समय नींद खुलने के कई कारण हो सकते हैं। लोग नींद खुलने की एक वजह इंसोमनिया की समस्या मान लेते हैं। लेकिन इंसोमनिया में नींद ही नहीं आती है। वहीं रोजाना एक ही समय पर नींद खुलने की समस्या में आपको दोबारा नींद आ जाती है।
मनोचिकित्सक के मुताबिक, रात में सोते समय नींद खुलने के कई कारण हो सकते हैं। लोग नींद खुलने की एक वजह इंसोमनिया की समस्या मान लेते हैं। लेकिन इंसोमनिया में नींद ही नहीं आती है। वहीं रोजाना एक ही समय पर नींद खुलने की समस्या में आपको दोबारा नींद आ जाती है।
   अगर रोजाना रात में जागने की समस्या से परेशान है तो यह स्थिति चिंताजनक तब हो जाती है जब एक बार जागने के बाद आपको दोबारा नींद न आए। ऐसी स्थिति में एंग्जाइटी, निराशा, थकान जैसी शिकायत हो जाती है और सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिवेट जा सकता है। इस तरह की स्थिति में नींद खुलने के बाद दिमाग काफी ज्यादा सक्रिय हो जाता है और हृदय गति तेज हो जाती है। इस वजह से दोबारा नींद आने में दिक्कत होने लगती है। चिंता के कारण इंसोमनिया की समस्या हो जाती है।
अगर रोजाना रात में जागने की समस्या से परेशान है तो यह स्थिति चिंताजनक तब हो जाती है जब एक बार जागने के बाद आपको दोबारा नींद न आए। ऐसी स्थिति में एंग्जाइटी, निराशा, थकान जैसी शिकायत हो जाती है और सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिवेट जा सकता है। इस तरह की स्थिति में नींद खुलने के बाद दिमाग काफी ज्यादा सक्रिय हो जाता है और हृदय गति तेज हो जाती है। इस वजह से दोबारा नींद आने में दिक्कत होने लगती है। चिंता के कारण इंसोमनिया की समस्या हो जाती है।
   इसके अलावा आपको स्लीप एपनिया भी हो सकता है। स्लीप एपनिया में आपको नींद में सांस लेने में दिक्कत आने लगती है। इस बीमारी में सांस की दिक्कत के कारण आपकी अचानक नींद खुल जाती है। फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों में ऑक्सीजन का फ्लो काफी कम होने लगते है। स्लीप एपनिया के लक्षणों में अचानक नींद खुलना, सांस न आना, खर्राटे मारना, थकान और दिन भर सुस्ती आना शामिल है।
इसके अलावा आपको स्लीप एपनिया भी हो सकता है। स्लीप एपनिया में आपको नींद में सांस लेने में दिक्कत आने लगती है। इस बीमारी में सांस की दिक्कत के कारण आपकी अचानक नींद खुल जाती है। फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों में ऑक्सीजन का फ्लो काफी कम होने लगते है। स्लीप एपनिया के लक्षणों में अचानक नींद खुलना, सांस न आना, खर्राटे मारना, थकान और दिन भर सुस्ती आना शामिल है।
   नींद की समस्या होने पर किसी स्लीप एक्सपर्ट से संपर्क करें।  स्लीप एपनिया या इंसोमनिया का सही समय पर इलाज न होने के कारण हृदय संबंधी समस्या, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारी हो सकती है।
नींद की समस्या होने पर किसी स्लीप एक्सपर्ट से संपर्क करें।  स्लीप एपनिया या इंसोमनिया का सही समय पर इलाज न होने के कारण हृदय संबंधी समस्या, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारी हो सकती है।
   
  
 
 उम्र बढ़ना प्रकृति का नियम है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, त्वचा से लेकर पूरे शरीर पर इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। 50 की उम्र आते-आते त्वचा की कसावट कम होने लगती है, चेहरे पर झुर्रियां हो जाती हैं, बाल सफेद होने लगते हैं, मसलन आप बूढ़े दिखने लगते हैं। इसे रोका नहीं जा सकता है पर जीवनशैली के कुछ उपाय हैं जो इन लक्षणों को कुछ साल के लिए आगे बढ़ा सकते हैं।
उम्र बढ़ना प्रकृति का नियम है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, त्वचा से लेकर पूरे शरीर पर इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। 50 की उम्र आते-आते त्वचा की कसावट कम होने लगती है, चेहरे पर झुर्रियां हो जाती हैं, बाल सफेद होने लगते हैं, मसलन आप बूढ़े दिखने लगते हैं। इसे रोका नहीं जा सकता है पर जीवनशैली के कुछ उपाय हैं जो इन लक्षणों को कुछ साल के लिए आगे बढ़ा सकते हैं।
   इसलिए संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करें। फलों, सब्जियों, अनाज और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ आपको स्वस्थ और जवां बनाए रखने में सहायक हैं।
इसलिए संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करें। फलों, सब्जियों, अनाज और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ आपको स्वस्थ और जवां बनाए रखने में सहायक हैं।
   शारीरिक गतिविधि की कमी जैसे लंबे समय तक बैठे रहने, व्यायाम की कमी और कम चलने की आदत कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों की प्रमुख वजह मानी जाती है। इससे मोटापा, हृदय रोग, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। ये बीमारियां शरीर को अंदर-अंदर खोखला बनाती जाती हैं जिसका असर आपकी लुक पर भी दिखने लगता है।
शारीरिक गतिविधि की कमी जैसे लंबे समय तक बैठे रहने, व्यायाम की कमी और कम चलने की आदत कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों की प्रमुख वजह मानी जाती है। इससे मोटापा, हृदय रोग, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। ये बीमारियां शरीर को अंदर-अंदर खोखला बनाती जाती हैं जिसका असर आपकी लुक पर भी दिखने लगता है।
   गड़बड़ आदतों से बचाव करके आप न केवल अपनी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं, बल्कि एक स्वस्थ और लंबा जीवन भी जी सकते हैं।
गड़बड़ आदतों से बचाव करके आप न केवल अपनी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं, बल्कि एक स्वस्थ और लंबा जीवन भी जी सकते हैं।
   
   ब्लड ग्रुप मुख्यरूप से चार प्रकार का- ए, बी, एबी और ओ होता है। ब्लड ग्रुप ओ को यूनिवर्सल डोनर भी माना जाता है। यानी कि इस ब्लड ग्रुप वाले लोग किसी दूसरे ब्लड ग्रुप वाले लोगों को रक्तदान कर सकते हैं। दुर्घटनाओं के समय जब समान ब्लड ग्रुप नहीं मिल पाता है तो ब्लड ग्रुप ओ वाला रक्त देकर किसी भी रोगी की जान बचाई जा सकती है।
ब्लड ग्रुप मुख्यरूप से चार प्रकार का- ए, बी, एबी और ओ होता है। ब्लड ग्रुप ओ को यूनिवर्सल डोनर भी माना जाता है। यानी कि इस ब्लड ग्रुप वाले लोग किसी दूसरे ब्लड ग्रुप वाले लोगों को रक्तदान कर सकते हैं। दुर्घटनाओं के समय जब समान ब्लड ग्रुप नहीं मिल पाता है तो ब्लड ग्रुप ओ वाला रक्त देकर किसी भी रोगी की जान बचाई जा सकती है।
   
   एक अन्य अध्ययन में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को कई प्रकार के कैंसर का भी जोखिम कम हो सकता है। ब्लड ग्रुप ए, एबी और बी वाले लोगों में ओ ब्लड ग्रुप की तुलना में पैट के कैंसर का अधिक जोखिम देखा गया हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि एच. पाइलोरी संक्रमण ए रक्त समूह वाले लोगों में अधिक आम है। यह एक बैक्टीरिया है जो आमतौर पर पेट में पाया जाता है और यह सूजन और अल्सर का कारण बन सकता है।
एक अन्य अध्ययन में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को कई प्रकार के कैंसर का भी जोखिम कम हो सकता है। ब्लड ग्रुप ए, एबी और बी वाले लोगों में ओ ब्लड ग्रुप की तुलना में पैट के कैंसर का अधिक जोखिम देखा गया हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि एच. पाइलोरी संक्रमण ए रक्त समूह वाले लोगों में अधिक आम है। यह एक बैक्टीरिया है जो आमतौर पर पेट में पाया जाता है और यह सूजन और अल्सर का कारण बन सकता है।
   ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का जोखिम भी कम देखा जाता रहा है। अध्ययन में पाया गया कि टाइप ए ब्लड वाले लोगों के शरीर में कॉर्टिसोल (स्ट्रेस हार्मोन) का स्तर अधिक होता है, जबकि टाइप ओ वाले लोगों में कॉर्टिसोल की मात्रा सबसे कम पाई गई है। जब एड्रेनल ग्रंथि रक्त में अधिक मात्रा में कॉर्टिसोल रिलीज करती है तो लोगों की तनाव की समस्या अधिक होती है। ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को इससे भी सुरक्षित पाया गया है।
ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का जोखिम भी कम देखा जाता रहा है। अध्ययन में पाया गया कि टाइप ए ब्लड वाले लोगों के शरीर में कॉर्टिसोल (स्ट्रेस हार्मोन) का स्तर अधिक होता है, जबकि टाइप ओ वाले लोगों में कॉर्टिसोल की मात्रा सबसे कम पाई गई है। जब एड्रेनल ग्रंथि रक्त में अधिक मात्रा में कॉर्टिसोल रिलीज करती है तो लोगों की तनाव की समस्या अधिक होती है। ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को इससे भी सुरक्षित पाया गया है।
   
Jul 29 2024, 10:15
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