झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ भाग -2 : संथाल में बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण आदिवासियों के अस्तित्व खतरे में
विनोद आनंद
इन दिनों झारखंड में बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण न मात्र आंतरिक सुरक्षा पर खतरा बढ़ता जा रहा है बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व भी खतरे में है।जिसको बाबूलाल मरांडी ने गंभीरता से उठाया है।
संथाल के दुमका समेत कई जिले ऐसे हैं, जहां बांग्लादेशी मुसलमान न केवल आ रहे, बल्कि घर-बार तक बसा रहे हैं।जिसको लेकर स्थानीय स्तर पर भी कुछ आदिवासी नेताओं ने डर जताया है कि जल्द अगर इस पर रोक नही लगा तो उनकी जमीन हीं नही बेटियों को ये लोग टारगेट कर रहे हैं।उसे अपने प्रेम पाश में फंसा कर शादी तो कर ही रहे हैं साथ हीं दान में जमीन भी लिखा रहे हैं ।
अब पड़ताल करने की जरूरत है कि स्थानीय लोगों के इस डर में कितनी सच्चाई है? क्या इतना आसान है सीमा के उस पार से इस पार आकर बस जाना? क्या ये कथित घुसपैठ, महज रोटी-कपड़ा-मकान जैसी बेसिक जरूरतों के लिए हो रही है या एक पूरा तंत्र स्थापित हो चुका है जो इलाके की डेमोग्राफी बदलकर एक बड़े खतरे की वजह बन सकता है?
ऐसे कई सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश के लिए हमे संथाल-परगना के मौजूदा हालात का अवलोकन करना होगा।
आदिम जातियों के अस्तित्व को लेकर नही है सरकार गंभीर
संथाल के पाकुड़, साहिबगंज और दुमका में आदिवासियों का अस्तित्व तो खतरे में है हीं। लेकिन पूरे झारखंड छत्तीसग़ढ में भी विभिन्न समुदाय के आदिवासियों को न तो उचित सरक्षण मिल रहा है और नही उनके अस्तित्व को लेकर सरकार गंभीर है।इसी कारण आदिवासियों की संख्यां घटती जा रही है।
आदिवासियों की गरीबी, अशिक्षा और उनके भोलेपन के कारण उन्हें टारगेट करना ऐसे शक्तियों के लिए आसान हो जाता है जो इस क्षेत्र में घुसपैठ कर अपने स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं।यही हुआ ब्रिटिश हुकूमत के समय अंग्रेजों ने किया , और य आज बांग्ला देशी कर रहे हैं।
अंग्रेजों ने सुविधा और उन्हें प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन कराया और उसे ईसाई बनाया, जिसका बिरसा मुंडा ने विरोध किया था। और आज बांग्ला देशी मुसलमान कर रहे हैं।
इसके अलावे कई सामाजिक स्थितियां, रूढ़िबाद और सरकार की उपेक्षात्मक नीति के कारण कई आदिवासी समुदाय का अस्तित्व लगातार खतरे में है।उनकी संख्यां लगातार घटती जा रही है।आज भी ये मुख्यधारा से नही जुड़ पाये।सरकारी योजनाओं का लाभ इन तक नही पहुंच रहा है।दुर्भाग्य तो यह है कि राज्य के सत्ता का कमान आदिवासियों के हाथ में रही इसके वाबजूद आदिम जातियों में कई ऐसे वर्ग है जिसके विकास के लिये कुछ नही हुआ।ऐसे वर्गों में पहाड़िया, बिरहोर और कई ऐसे आदिवासी समूह है जिसका अस्तित्व मिटता गया।मुख्यधारा से कटे ये लोग बीमारियों से ग्रस्त होकर मरते रहे और इनकी संख्यां लगातार घटती गयी।
शादी,दान में जमीन और फिर धर्म परिवर्तन का खेल है जारी
संथाल में बंगलादेशी की घुसपैठ एक साजिश है या उसके रोजीरोटी की जरूरत यह जांच का विषय है जिसे राज्य सरकार और केंद्र सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए, लेकिन संथाल में जो कुछ भी हो रहा है नि:सन्देह आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा है।
यहां बांग्ला देशी तो घुसपैठ करते हैं रोजगार के नाम पर लेकिन यहां स्थायी रुप से बसने के लिए इनका टारगेट होता है यहां के आदिवासी समुदाय।यहां अपनी शुरुआत तो छोटा मोटा रोजगार से शुरू करते हैं।लेकिन उसके बाद वे लवजिहाद का सहारा लेकर पहले आदिवासी लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाते और उस से शादी कर उसके अभिभावक से दानपत्र में जमीन लिखा कर स्थायी निवास बना लेते हैं।
इन लोगों का उधेश्य लड़कियों से शादी करना, उसकी संपत्ति पर कब्जा होता है। बताया जाता है कि घुसपैठियों का कथित नेटवर्क मुस्लिम युवक को आदिवासी युवती के नजदीक लाता है, जो चंद रुपयों के लेन-देन के क्रम में प्यार में बदल जाता है। अंतत: लड़की शादी के लिए मान जाती है। शादी के बाद मुस्लिम युवक वहीं बस जाता है। ऐसे कई लोग जिन जगहों पर रह रहे हैं उन्हें संथाल परगना में जमाई टोला कहा जाता है। जमाई का मतलब है दामाद।
शादी के बाद आदिवासी लड़की की जमीन पर भी उनके पति का अधिकार हो जाता है। उनकी जमीनों पर वे खनन पट्टे भी हासिल कर लेते हैं। संथाल परगना में आदिवासी अपनी जमीन बेच नहीं सकते, इस वजह से लैंड गिफ्ट का खेल गिफ्ट डीड के जरिए चलता है। इसका कोई कानूनी महत्व नहीं है। आरोप है कि इसकी आड़ में ही घुसपैठ करने वाले लोग सस्ते में आदिवासियों की जमीन खरीद रहे हैं।
आदिवासियों के बीच काम करने वाले समाजसेवी चंद्रमोहन हांसदा का मानना है कि ‘‘अंतरजातीय विवाह आदिवासी समाज के लिए सबसे ज्यादा घातक साबित हो रहा है। इस समाज में बिठलाहा प्रथा है, जिसके तहत अगर कोई आदिवासी दूसरी जाति या धर्म के लोगों से विवाह करता था तो उसे उसके समाज से निकाल दिया जाता है। यह बंगलादेशी मुसलमानों के लिए इन आदिवासियों को मुस्लिम धर्म अपनाने और मुसलमान बनाने के लिए उनकी राह को और आसान कर दिया जाता है।
सांसद निशिकांत दुबे का दावा,आदिवासियों से बांग्लादेशी की शादी के कारण 10 फीसदी आवादी घटी
झारखंड में लगातार बांग्ला देशी मुस्लिम आबादी की घुसपैठ और उसके द्वारा आदिवासी महिलाएं से शादी का दावा करते हुए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि संथाल परगना में साल 2000 में आदिवासियों की जनसंख्या 36 फीसद थी और आज 26 फीसदी रह गई है। ऐसे में 10 फीसदी आदिवासी कहां गायब हो गए? उन्होंने कहा कि हमारे यहां जिला परिषद की जो अध्यक्षा हैं उनके पति मुसलमान हैं. ऐसे में झारखंड में कुल 100 आदिवासी मुखिया है, जो आदिवासी के नाम पर है और उन सभी के पति मुसलमान हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि हर 5 साल में 15 से 17 फीसद जनसंख्या बढ़ती है। सांसद ने कहा कि मधुपुर विधानसभा में करीब 267 बूथों पर 117 फीसद मुसलमानों की आबादी बढ़ गई है। ऐसे में समझिए पूरे झारखंड में कम से कम 25 विधानसभा ऐसी है जहां 123 पर 110 पर आबादी बढ़ी है। यह एक बड़ा चिंता का विषय है।उन्होंने तो लोकसभा में मांग किया कि भारत सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए। और किशनगंज अररिया, कटियार, मालदा, मुर्शिदाबाद और पूरा संथाल परगना है। इसको भारत सरकार यूनियन टेरिटरी बनाये ताकि इस स्थान पर घुसपैठ को रोका जा सके।
क्या एक बड़ी साजिश से बदलती जा रही है डेमोग्राफी’
सहिबगंज , दुमका , पाकुड़ में बढ़ती मुस्लिम आवादी और घटती आदिवासियों की आवादी को लेकर दुमका के घाट-रसिकपुर गांव की प्रिसला हंसदा ने ने एक मीडिया को बताया कि यहां की मुखिया की पोस्ट आदिवासी महिला के लिए रिजर्व है। यहां की मुखिया प्रिसला हंसदा है और उसने एक मुस्लिम से शादी की है। मुसलमान से शादी करने के वाबजूद प्रिसला ने खुद ये माना है कि आदिवासी लड़कियों का ऐसी शादी करना गलत है। उन्होंने कहा कि इससे उनके समुदाय को नुकसान हो रहा है और ऐसी शादियां रुकनी चाहिए।
संथाल परगना में आदिवासियों के बीच काम करने वाले सोशल वर्कर्स इस बदलती डेमोग्राफी को एक बड़ी साजिश मानते हैं। उनका कहना है कि एक प्लानिंग के तहत आदिवासी महिलाओं से शादी की जा रही है ताकि आदिवासियों के सियासी अधिकारों पर कब्जा किया जा सके।
दुमका की जामा मस्जिद के इमाम का अजीब तर्क
दुमका के सोशल वर्कर चंद्रमोहन हांसदा ने कहा कि ऐसी शादियों का मकसद आदिवासियों के नाम पर मिलने वाले पट्टों पर कब्जा करना भी होता है। संथाल के आदिवासी भोले होते हैं। यहां बांग्लादेशी मुस्लिम आकर, अपनी जान पहचान बढ़ाकर यहां की बहू बेटियों से शादी कर रहे हैं। वहीं, दुमका की जामा मस्जिद के इमाम ने संथाल परगना में मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक अजीब तर्क दिया। इमाम जमील अख्तर ने कहा कि मुसलमानों के अलावा बाकी सभी समुदायों के लोग नशाखोरी करते हैं, पर चूंकि मुसलमानों के यहां नशा हराम है इसलिए उनकी नशाखोरी से मौत नहीं होती और आबादी बढ़ती जाती है। इमाम जमील अख़्तर ने इसके लिए हाथरस हादसे की मिसाल भी दे डाली।
निष्कर्ष
संथाल में बढ़ते इस बांग्लादेशी घुसपैठ के पीछे साजिश है या मकसद, सरकार को इसकी गहन जांच करनी चाहिए।महज वोट बैंक के लिए देश की सुरक्षा के साथ खिलबाड़ करना और आदिवसियों के अस्तित्व को मिटाने वाले शक्ति को बढ़ावा देना। कतई उचित नही है।इसके लिए सच सामने लाने के लिए सरकार को सर्वे कराकर आंकड़ा सामने लाना चाहिए,उस पर कारबाई करनी चाहिए।
इस मुद्दा को राजनीति से ऊपर उठकर ठोस नीति बनाना चाहिए तथा जो भी कानून सम्मत हो कारबाई किया जाना चाहिए।
Jul 28 2024, 16:06