इंटरनेशनल मार्केट में धूम मचा रहा पूर्णिया का स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न, किसान भी उठा रहे अच्छा मुनाफा
डेस्क: सीमांचल के किसान अब स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न की खेती से अपनी किस्मत संवारने में जुटे हैं. विदेशों में बढ़ी मांग से किसानों के चेहरे की चमक बढ़ गयी है. इस स्वीट कॉर्न की खेती के लिए सरकार की तरफ से भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे पूर्णिया समेत पूरे सीमांचल का इलाका स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न के हब के रूप में विकसित हुआ है. जिला प्रशासन ने भी इसकी खेती को तवज्जो दी है. यही कारण है कि यहां के किसानों के लिए यह फसल कमाई का मुख्य जरिया बन रही है. इसकी खासियत यह है कि यह फसल 100 दिन में तैयार हो जाती है. साल में किसान एक ही खेत में तीन फसल आसानी से ले सकते हैं.
पूर्णिया जिले में जिला प्रशासन की पहल पर स्वीट कॉर्न को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलायेगये. इसका फायदा यह हुआ कि स्वीट कॉर्न से किसानों की शुद्ध आय में बढ़ोतरी होने लगी. इससे प्रभावित होकर गेहूं का रकबा कम कर किसानों ने स्वीट कॉर्न की खेती पर जोर दे दिया है. इसमें शुद्ध कमाई देखने के कारण रबी के सीजन में यह फसल किसानों की पहली पसंद बन गयी. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि कोसी सीमांचल के इलाके में उपजाये जानेवाले मक्के की फसल की मांग इसकी बेहतर क्वालिटी की वजह से काफी ज्यादा है. स्थानीय गुलाबबाग मंडी में हर साल लाखों टन मक्के का कारोबार होता है. यहां तक कि रेलवे रैक पॉइंट बनने का श्रेय भी यहां की मक्का की फसल को ही जाता है. लेकिन पारंपरिक मक्के की खेती से इतर कम समय और कम लागत से मुनाफा के दायरे को काफी बेहतर बनाने की दिशा में अब स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न ( मीठा व बच्चा भुट्टा ) की खेती भी जोर पकड़ने लगी है.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लोगों में मक्का उत्पादों की बढती मांग ने इसकी खेती का मार्ग प्रशस्त किया है. जानकार बताते हैं कि धीरे-धीरे ही सही बड़े-बड़े पांच सितारा होटलों व रेस्टोरेंट में स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न के कई व्यंजनों को ग्राहकों के बीच बड़े आकर्षक अंदाज में परोसा जाने लगा है. दूसरी ओर विभिन्न घरेलू छोटे बड़े आयोजनों और उत्सवों में परोसी जाने वाली सामग्रियों में भी यह अपना स्थान बना चुका है. इस वजह से भी एक बड़े और उभरते मार्केट के रूप में स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न की खेती की संभावना दिखती है. किसान भी मानते हैं कि इसकी खेती में कम वक्त लगने से दो फसलों के बीच के अंतर को पाट कर कुछ अलग फसल भी ली जा सकती है.
हर मामले में किसानों के लिए लाभकारी होने की वजह से कृषि विभाग स्वीट कॉर्न व बाबीकॉर्न के उत्पादन को बढाने में लगा है. यही वजह है कि रबी के बाद खरीफ सीजन में इसकी खेती की कवायद तेज हो गयी है. विभाग किसानों को न सिर्फ इसकी खेती के गुर ही सिखा रहा है बल्कि इनपुट्स भी उपलब्ध करा रहा है. स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न की उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की खरीद पर सब्सिडी किसानों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं. याद रहे कि हरी भरी अवस्था में ही पौधों की कटाई हो जाने से पशुओं के लिए हरा चारा भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है. पशुपालकों की मानें तो इससे प्रति पशु अतिरिक्त रूप में अमूमन डेढ़ से दो लीटर तक दूध की बढ़ोतरी हो जाती है.
कृषि में नवाचार को लेकर डीएम कुंदन कुमार ने किसानों से नयी लाभकारी फसलों का उत्पादन प्रायोगिक तौर पर करने के लिए उत्साहित किया है. खेती में 80-20 का अनुपात रखने को कहा है. इसी कड़ी में विभिन्न उद्यानिक फसलों के साथ साथ स्वीट कॉर्न व बेबी कॉर्न के उत्पादन की भी बात कही है.
Jul 24 2024, 20:50