लगातार पांचवें साल मानसरोवर की यात्रा नहीं कर सकेंगे श्रद्धालु, दोनों आधिकारिक रास्ते बंद, चीन की ये कैसी चाल
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चीन लाख दुहाई दे की भारत के साथ वो रिश्ते सुधारना चाहती है, हालांकि ऐसा है नहीं। चीन हर बार उस मौके की तलाश में होता है, जिससे भारत को परेशान किया जा सके। कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है।भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा 2020 से लगातार पांचवें साल भी बंद है।महामारी के कारण सीमा चार साल तक बंद रही और पिछले साल अप्रैल में फिर से खोल दी गई। हालांकि, कड़े नियमों के चलते भारतीयों के लिए ये व्यावहारिक रूप से बंद है। कोरोना को यात्रा बंद होने का कारण बताया जा रहा है, लेकिन असल में 2020 से भारत-चीन सीमा तनाव के बाद से यह चीन की एक रणनीति लगती है।
हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच स्थित ओल्ड लिपुपास, भारत को चीन से जोड़ता है, साथ ही कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे पुराना प्रमुख मार्ग भी रहा है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है और हर साल हजारों श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिस्सा बनते रहे हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए भारत को चीन पर निर्भर होना पड़ता था। बावजूद इसके चीन ने लगातार 5 वें साल भी यात्रा की अनुमति नहीं दी है।
न्यूज़18 को विदेश मंत्रालय द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में दिए गए आरटीआई जवाब मिले हैं, जिसमें चीन के साथ 2013 और 2014 में किए गए दो समझौतों की प्रतियां हैं। दोनों समझौतों में यह स्पष्ट किया गया है कि चीन बिना किसी पूर्व सूचना के समझौतों को एकतरफा तरीके से समाप्त नहीं कर सकता। उनका कहना है कि किसी भी तरह का संशोधन आम सहमति से ही होना चाहिए।
पहला समझौता
2013 में हुए पहले समजझौते के मुताबिक तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। इसमें लिपुलेख दर्रे से यात्रा का रास्ता खोला गया था। पहले समझौते के मुताबिक, यह 2013 से पांच साल के लिए वैलिड था और हर पांच साल के लिए अपने आप बढ़ता जाएगा, जब तक कि कोई पक्ष छह महीने पहले लिखित नोटिस न दे। समझौते में कहा गया है कि दोनों पक्ष सहमति से इसमें बदलाव कर सकते हैं।
दूसरा समझौता
2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वांग यी के बीच नाथू ला दर्रे से यात्रा शुरू करने के लिए दूसरा समझौता हुआ था। दूसरे समझौते में भी ऐसी ही कुछ बात थी। समझौते में कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री टूर ऑपरेटरों के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं। चीन ने इन तीर्थयात्रियों को जरूरी सुविधाएं देने पर सहमति जताई थी। दूसरे समझौते में कहा गया कि भारतीय तीर्थयात्री नाथू ला दर्रे से चीन में प्रवेश या निकल सकेंगे। इसकी प्रक्रिया राजनयिक माध्यमों से तय हुई थी। तीसरा विकल्प नेपाल के रास्ते निजी ऑपरेटरों के जरिए चीन जाना था। सभी मामलों में भारतीयों को चीन का वीजा चाहिए था।
भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प
भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प नेपाल जाना और फिर निजी ऑपरेटरों के माध्यम से चीन में प्रवेश करना था। सभी मामलों में, भारतीयों को माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन से वीज़ा की आवश्यकता थी। जबकि दोनों आधिकारिक मार्ग बंद हैं, चीन ने पिछले साल नेपाल की ओर से अपनी सीमाएं खोल दीं, लेकिन विदेशियों, विशेष रूप से भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए और शुल्क बढ़ाने सहित कई प्रतिबंध लगा दिए, जिससे भारतीयों के लिए नेपाल के माध्यम से माउंट कैलाश जाना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया।
ज़्यादातर लोगों को लगता है कि कैलाश मानसरोवर भारत में होगा जबकि ऐसा है नहीं।कैलाश मानसरोवर एक भारतीय तीर्थस्थल है लेकिन यहां जाने के लिए चीन की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है। ऐसे में यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। आप समझिए कि आप नेपाल से जाएं या सिक्क्मि से जाएं आपको चीन का बॉर्डर पार करना ही पड़ेगा। सरहद पार करने के बाद पांच दिन यात्रा करके आप मानसरोवर पहुंचते हैं जहां दायचिंग बेस कैंप है। वहां से फिर आपको तीन दिन मानसरोवर की परिक्रमा करने में लगते हैं। फिर वापसी में पांच दिन और लगते हैं।
तो ये समझ लीजिए कि चीन जब चाहे, जहां चाहे, इस यात्रा को रोक सकता है। एक तो बॉर्डर पर ही वो यात्रियों को रोक सकता है और इसके बाद यात्रियों के जत्थे को अपनी सीमा में जहां चाहे रोक कर वापस कर सकता है। क्योंकि ये सामान्य कानून है कि आप जिस देश में हैं उस देश के क़ानून का आपको पालन करना ही पड़ेगा। मानसरोवर की यात्रा कठिन होती है। बर्फ़ीले रास्तों पर चलना होता है। चीन में सरहद पार करने के बाद आप बस या कार से यात्रा करते हैं और फिर पहुंचते हैं दायचिंग के इलाक़े में जहां बेस कैंप है। कई बार चीनी अधिकारी आपको मानसरोवर झील के पास कैंप करने से भी रोक देते हैं और कहते हैं कि कैंपिंग कहीं और करें। ये सब उनके अधिकार क्षेत्र में है। वो मौसम ख़राब होने की बात कह कर भी यात्रा को बाधित कर सकते हैं।
समुद्र तल से 17 हजार फीट ऊंचे उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे से हर साल यह यात्रा जून माह में शुरू होती थी।प्राचीन काल से ही यह यात्रा लिपूलेख दर्रे से होती रही है। वर्ष 1962 के भारत -चीन युद्ध के बाद भी इस यात्रा को दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों के कारण पूरी तरह से बंद कर दिया गया। तब डेढ़ दशक से अधिक समय बाद यह यात्रा वर्ष 1981 में फिर शुरू की सकी । तब से कोरोना काल से पूर्व तक इस मार्ग से 16 हजार 800 से अधिक देश भर के लोगों ने शिवधाम मानसरोवर जाकर अपने अराध्य के दर्शन किए। लेकिन पिछले पांच सालों से चीन ने अपनी चालाकियां दिखाते हुए यात्रा का बाधित किया है।
Jul 17 2024, 15:42