बीबीसी पर हुए IT के छापे क्या सच में केंद्र सरकार की बदले की कार्यवाही ?
ज्योति शुक्ला
Published on: 15/02/2023
भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। बावजूद इसके प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में भारत 150 पर नंबर पर है। भारतीय पत्रकारिता की इतिहास खंगाली जाए तो शुरु से ही इस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं। फिर चाहे वह अंग्रेजों द्वारा लगाए गए कई नियम कानून हो या फिर इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय लगाए गए प्रतिबंध।
वक्त बदला, हालात बदले और पत्रकारिता ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया। डिजिटल दौर में पत्रकारिता ने एक अपनी अलग नई पहचान बनाई। इस दौरान देश में सरकारें भी बदली और वर्चस्व भी। हाल ही में हुए बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ्तर पर IT के छापों ने एक बार फिर पत्रकारिता के आजादी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दरअसल बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन) के दिल्ली और मुंबई स्थित ऑफिस पर मंगलवार (14 फरवरी) को आयकर विभाग की टीम सर्वे करने पहुंची। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बीबीसी ऑफिस में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी कागजों को खंगाल रहे हैं। सर्वे की इस खबर ने देशभर में सियासी भूचाल ला दिया है।
इस सियासी भूचाल की कई वजह भी है, दरअसल बीबीसी कुछ दिनों पहले से ही सुर्खियों में बनी हुई थी। वजह गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री थी। गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाने वाली बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को दो हिस्सों में जारी किया गया था। इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को और दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को यूट्यूब पर रिलीज हुआ था। पहला एपिसोड आने के साथ ही इस पर बवाल शुरू हो गया था। विपक्ष के नेताओं और कुछ संगठनों ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के जरिये पीएम मोदी और बीजेपी पर निशाना साधना शुरू कर दिया था।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड रिलीज होने से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने 21 जनवरी को इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद यूट्यूब और ट्विटर से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक हटा दिए गए थे।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज होने पर केंद्र सरकार की ओर से बैन करने के बाद इस पर बवाल शुरू हुआ। मोदी सरकार की ओर से बैन लगाने के खिलाफ जेएनयू में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखी गई। वामपंथी संगठनों की ओर से आरोप लगाया गया कि स्क्रीनिंग रोकने के लिए एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी और मारपीट को अंजाम दिया। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी तक कई जगहों पर इसकी स्क्रीनिंग करने की कोशिश की गई थी।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन के खिलाफ कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने अपना गुस्सा जताया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सच कभी नहीं छिपता है. सत्य सत्य होता है। ये बाहर आ ही जाता है।
फैसले के खिलाफ प्रशांत भूषण, एन राम, महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर लगे बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में वकील मनोहर लाल शर्मा ने एक याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका में अनुरोध किया था कि सुप्रीम कोर्ट डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड मंगाकर देखे और इस आधार पर 2002 के गुजरात दंगों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो।
इस याचिका में कहा गया था कि देशभर में डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन की कोशिश कर रहे लोगों पर पुलिस के जरिये दबाव बनाया जा रहा है। याचिका में ये भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट को तय करना है, अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत नागरिकों को 2002 के गुजरात दंगों पर समाचार, तथ्य और रिपोर्ट देखने का अधिकार है या नहीं।
इस डॉक्यूमेंट्री की वजह से बीबीसी पहले से ही चर्चाओं में बनी हुई थी और अब IT के रेड ने इस मामले को और तूल दे दिया। विपक्ष का कहना है कि बीबीसी पर यह छापेमारी बदले के तौर पर की गई है। पीएम मोदी की छवि खराब करने की कोशिश की वजह से बीबीसी पर यह छापेमारी हो रही है।
ऐसा पहली बार नहीं है कि इनकम टैक्स के छापों को सरकार के बदले के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले भी बड़े-बड़े नेताओं और कंपनियों पर हुई छापेमारी को भी सरकारी बदले के तौर पर देखा जाता रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी खामियां उजागर करने वाले देश के प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप दैनिक भास्कर के मध्यप्रदेश में इंदौर और भोपाल ऑफिस में आयकर ने छापा डाला।
पर अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सच में यह कदम बदले के तौर पर लिया गया है। मैं अपने नजरिए से अगर इसे देखूं तो आयकर विभाग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है जो कि देश के हित में बनाई गई है। इसकी किसी भी कार्यवाही पर सवाल उठाना देश की संविधान और संवैधानिक गतिविधियों पर सवाल उठाना होगा।
अगर बीबीसी किसी भी प्रकार से गलत नहीं हुई तो इन छापों का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इसे एक मुद्दा बनाना क्या जायज है? बिना किसी सबूतों के आधार पर किसी को भी इस देश में दोषी करार नहीं दिया जा सकता। तो फिर अगर आयकर विभाग की छापेमारी में बीबीसी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलती तो उन्हें डरने की जरूरत भी नहीं है।
Jul 08 2024, 14:00