दक्षिण भारत का कैलाश धाम कहे जाने वाले शिव भगवान का दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन
आइये जानते हैं इस धाम का महामात्य, पौराणिक अवधारणा और इतिहास
- विनोद आनंद
हिन्दू धर्म में देवों के देव शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में आपने प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे कल स्ट्रीटबजज पर पढ़ा. आज हम आप को दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के बारे में बताते हैं जिसे दक्षिण भारत का कैलाश कहा जाता है. जहाँ एक साथ भगवान् शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान हैं.
श्री शैल पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पर्वत पर जो भी व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं,उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाती हैं.
पौराणिक कथा
मल्लिकार्जुन मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान और पवित्र महाकाव्यों में गहराई से निहित हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती ने सृजन और विनाश के अपने दिव्य नृत्य में एक बार मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का रूप धारण किया था. माना जाता है कि यह मंदिर वह स्थान है जहाँ भगवान मल्लिकार्जुन और देवी ब्रह्मराम्बा ने दिव्य विवाह किया था.
किंवदंती है कि ऋषि नारद ने इस पवित्र स्थान पर भगवान शिव और पार्वती के दिव्य मिलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का दिव्य विवाह ब्रह्मांडीय संतुलन और ब्रह्मांड में पुरुष और महिला ऊर्जा के शाश्वत नृत्य का प्रतीक है.
महाभारत से भी जुड़ा है इसकी दंतकथाएं
मल्लिकार्जुन मंदिर महान महाकाव्य महाभारत से भी जुड़ा हुआ है. लोककथाओं के अनुसार, पांडव भाई अपने वनवास के दौरान भगवान मल्लिकार्जुन का आशीर्वाद लेने के लिए इस पवित्र स्थल पर आए थे. कहा जाता है कि इस मंदिर में महाभारत के कई प्रसंग घटित हुए हैं, जो इसके पौराणिक आख्यान को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं.
अन्य दंतकथाएं
मल्लिकार्जुन मंदिर कई किंवदंतियों से सुशोभित है जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं, जो इसकी पवित्रता में एक आकर्षक आभा जोड़ती हैं. ऐसी ही एक किंवदंती मल्लन्ना नामक एक भक्त चरवाहे की कहानी बताती है, जिसकी भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति थी.मल्लन्ना की गहरी श्रद्धा और निस्वार्थ भक्ति ने दिव्य हृदय को छू लिया और भगवान शिव, उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, इस पवित्र स्थान पर मल्लिकार्जुन के रूप में प्रकट हुए.
दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर, इस क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में बुने गए इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों के समृद्ध ताने-बाने का एक प्रमाण है. भगवान शिव के एक रूप भगवान मल्लिकार्जुन को समर्पित, यह पवित्र निवास सदियों से तीर्थयात्रियों, विद्वानों और भक्तों को आकर्षित करता रहा है. इस खोज में, हम मंदिर के इतिहास, इसकी पौराणिक जड़ों और किंवदंतियों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने इसकी पहचान को आकार दिया है.
एक अन्य दंत कथा के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा मान्यता है कि एक बार भगवान श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय के बीच पहले विवाह करने को लेकर विवाद हो गया है. तब भगवान शिव ने उसका हल निकालते हुए कहा कि जो कोई पृथ्वी की सात बार परिक्रमा करके पहले आ जाएगा, उसका विवाह पहले होगा. इसके बाद भगवान कार्तिकेय मोर पर सवार होकर परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े लेकिन भगवान श्री गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा की क्योंकि शास्त्रों में जो पुण्य पृथ्वी की परिक्रमा करने पर मिलता है वहीं माता-पिता की परिक्रमा से भी प्राप्त हो जाता है.
इसके बाद जब भगवान श्री गणेश का विवाह हो जाने पर भगवान कार्तिकेय नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए.तब हुआ इस ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य होने कि
मान्यता है. इस घटना के बाद उन्हें तमाम तरह से मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं माने. इसके बाद जब तब माता पार्वती और भगवान शिव उनसे मिलने के लिए क्रोंच पर्वत पहुंचे तो इसकी जानकारी पाते ही वे भगवान कार्तिकेय और दूर चले गए. अंतत: भगवान शिव माता पार्वती के साथ उसी स्थान पर ज्योति स्वरूप धारण कर विराजमान हो गए. तब से यह पावन धाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.
मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास
मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास इस क्षेत्र के ऐतिहासिक विकास के साथ जुड़ा हुआ है.हालांकि सटीक तिथियों को निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि वर्तमान मंदिर के स्वरूप कि उत्पत्ति एक हज़ार साल से भी पहले की है. चालुक्य राजवंश, जो कला और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाना जाता है, ने मंदिर के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मंदिर की स्थापत्य शैली में चालुक्यों का प्रभाव स्पष्ट है, जिसकी विशेषता जटिल नक्काशी, अलंकृत स्तंभ और विभिन्न कलात्मक तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है.सदियों से, मंदिर काकतीयों और विजयनगर साम्राज्य सहित विभिन्न राजवंशों के शासन के दौरान जीर्णोद्धार और विस्तार हुआ.
पाताल गंगा को लेकर किंवदंती
मंदिर के पास स्थित पवित्र जल निकाय पाताल गंगा के बारे में एक और रोचक कथा प्रचलित है। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, पाताल गंगा पवित्र गंगा नदी से जुड़ी हुई है, और इसके जल में डुबकी लगाने से आत्मा के पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि गौतम की तपस्या से अभिभूत होकर गंगा नदी स्वयं धरती में समा गई और पाताल गंगा के रूप में मल्लिकार्जुन मंदिर में प्रकट हुई।
मल्लिकार्जुन मंदिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, यह पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इस शुभ रात्रि पर भगवान शिव और देवी पार्वती अपनी दिव्य उपस्थिति से मंदिर को सुशोभित करते हैं, और भक्त मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा के दिव्य विवाह को देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं.
निष्कर्ष
मल्लिकार्जुन मंदिर सिर्फ़ एक भौतिक इमारत नहीं है, बल्कि इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों का जीवंत अवतार है। इसकी वास्तुकला पुराने राजवंशों की कहानियाँ बयान करती है, इसकी पौराणिक कथाएँ देवी-देवताओं के लौकिक नृत्य को बुनती हैं और इसकी किंवदंतियाँ विनम्र भक्तों की भक्ति को प्रतिध्वनित करती हैं। जैसे-जैसे तीर्थयात्री इस पवित्र निवास पर आते रहते हैं, मल्लिकार्जुन मंदिर भारत की स्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक कालातीत प्रमाण बना हुआ है।
Jul 03 2024, 08:44